टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - २४ दिसम्बर २०१५- टाशी ल्हुन्पो में तीन प्रमुख स्थान हैं, जहाँ लोग प्रवचन सुनने और बड़े विड़ियो परदे पर जो हो रहा है, उसे देखने के लिए बैठे हैं। लोगों का एक विशाल समूह महाविहार के परम पावन की ओर मुँह किए ठीक सामने बैठा है। एक और बड़ा समूह पूर्व की ओर महाविहार के बगल में बैठा है और एक तीसरा समूह महाविहार के पश्चिम की ओर थोड़ा पीछे बैठा है। सभी तीन क्षेत्रों को लोगों को धूप से बचाने के लिए शामियाने द्वारा ढाँका गया है। उस समयावधि में जब लोग अपनी जगह ले रहे हैं और प्रवचन का प्रारंभ होना है सभी प्रमुख महाविहारों के भिक्षु शास्त्रार्थ करने में संलग्न हैं।
प्रवचन स्थल अपेक्षाकृत अच्छी अवस्था में हैं, क्योंकि महाविहार के भिक्षुओं के सफाई करने के दल हैं, जो सभी खाली पानी की बोतलों को हटाते हैं जिन्हें वे पुनः चक्रित करने के लिए बेचते हैं।
यद्यपि प्रार्थनाएँ लगभग एक समान हैं, प्रारंभ में पथक्रम वंशज प्रार्थना और अंत में पथक्रम समर्पण प्रार्थना। वे प्रत्येक दिन सुनने में अलग अलग लगती हैं क्योंकि विभिन्न महाविहारों के मंत्राचार्य बारी बारी से पाठ का नेतृत्व करते हैं। प्रार्थनाओं का अंत मंडल और काय, वाक् और प्रबुद्ध चित्त के प्रतीक के समर्पण से होता है। आज ग्यूमे महाविहार के उपाध्याय ने समर्पण किया जिसके बाद थुपतेन ज़ोपा रिनपोछे ने समर्पण किया।
बाद में परम पावन दलाई लामा ने घोषणा की कि ज़ोपा रिनपोछे ने उनसे नेपाल के लोगों के लिए प्रार्थना हेतु एक अनुरोध के साथ उनसे संपर्क किया था। इस वर्ष अप्रैल में आए भूकंप के परिणामस्वरूप जिन कठिनाइयों का सामना उन्हें करना पड़ा है वह भारत के साथ सीमा की नाकेबंदी से भी बढ़ गई है। परम पावन ने कहा:
"तिब्बत और नेपाल के बीच पड़ोसी संबंध तिब्बत के ३३वें राजा सोंगचेन गम्पो के समय से रहा है। जोखंग के भित्ति चित्र नेपाली कलाकारों द्वारा चित्रित किए गए थे और हमारी अन्य कई कलाकृतियाँ हैं, जो नेपाली मूल की हैं। भूकम्प में कई लोग मारे गए और बहुत लोगों ने अपने घर खो दिए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि उन स्थानों पर जहाँ वे कर सकते थे भिक्षुओं और भिक्षुणियाँ ने सहायता करने के लिए बहुत परिश्रम किया। हममें से जो बाहर हैं वे बहुत कुछ नहीं कर सकते। मैंने राहत कोष के लिए दान दिया। जब, जैसे कि अब यह हमारी क्षमता से परे है कि व्यावहारिक रूप से कुछ और अधिक करें, हम मात्र प्रार्थना कर सकते हैं कि नेपाली लोगों के कष्ट कम हों।
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"हम सभी यहाँ व्यापार या मनोरंजन के लिए एकत्रित नहीं हुए हैं, पर धर्म को सुनने हेतु जमा हुए हैं और इस समय ग्रंथों का विषय केंद्र परोपकार और करुणा है। हम सभी सत्वों के लिए बोधिचित्तोत्पाद की बात कर रहे हैं। ऐसा करने के पश्चात हम सभी सत्वों को अपने अतिथि के रूप में आमंत्रित करते हैं। तो जब हमारे पड़ोसी इतनी अधिक पीड़ा झेल रहे हैं तो मैं आप सभी को उनकी ओर से सच्ची प्रार्थना करने के अनुरोध करता हूँ।"
परम पावन ने ज़ामर पंडित के 'भाष्य' से पाठ किया जो व्याख्यायित करता है कि अपनी चित्त संतति को परिपक्व बनाने के लिए किस तरह छह पारमिताओं में प्रशिक्षित किया जाए जो दान से, भौतिक वस्तुओं को देने, धर्म के दान और अभय के दान से संबंधित है। उन्होंने कहा:
"इन सभी अभ्यासों के संदर्भ में तत्काल परिणाम की प्रत्याशा न रखें, पर छोड़े नहीं। और जब आप थकान अनुभव करें तो एक अंतराल लें, अपने उत्साह को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।"
'विमुक्ति हस्त धारण' की ओर लौटते हुए उन्होंने टिप्पणी की:
"हमारी अधिकांश समस्याएँ आत्म निर्मित हैं। इस प्रकार का कर्म जन्म लेता है जब हम एक अदूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाते हैं जो कि हमारी आधारभूत आत्मपोषण व्यवहार द्वारा संचालित है। हमारे जीवनों में जो अच्छा है वह हमारी परोपकार की भावना से संबंधित है। हम भूल जाते हैं कि हम अन्य सत्वों पर निर्भर हैं। अन्य सत्व हमारे प्रति दयावान हैं। यदि और जब अंततः हमें विमुक्ति अथवा प्रबुद्धता प्राप्त होगी तो वह अन्य लोगों पर निर्भर होकर होगी।"
परम पावन ने, 'चित्त शोधन के अष्ट पद', 'मार्ग के तीन प्रमुख आकार, और 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' की सराहना की जो इस ओर सारगर्भित सलाह देते हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इन ग्रंथों को कंठस्थ करना तथा नियमित रूप से उनका पाठ करना लाभकारी लगा है। उन्होंने आगे सुझाया कि यदि आप सुखी रहना चाहते हैं तो देने लेने के अभ्यास के विकास से बेहतर कुछ और नहीं है। उन्होंने प्रेरणा के स्रोत के रूप में नागार्जुन की 'रत्नावली' से छंद उद्धृत किए:
सत्व मुझे मेरे अपने जीवन के समान प्रिय हों,
और वे मुझे स्व से अधिक प्रिय हों,
उनके अकुशल कर्म मुझ पर परिपक्व हों,
और मेरे समस्त पुण्य उन पर परिपक्व हों।
जब तक कोई सत्व
कहीं विमुक्त न हुआ हो
मैं उस सत्वार्थ बना रहूँ (विश्व में)
यद्यपि मैंने परम प्रबुद्धता प्राप्त कर ली है।
और एक और शांतिदेव के 'बोधिसत्चचर्यावतार' से:
अंतरिक्ष के समान
और पृथ्वी के सम महान तत्व,
मैं सदा असीम प्राणियों
के जीवन को पोषित करूँ।
मध्याह्न भोजनोपरांत लौटने पर परम पावन ने एक बार पुनः 'विमुक्ति हस्त धारण' लिया और 'दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों को प्रबुद्धता के मार्ग में परिवर्तन' शीर्षक वाले खंड से पढ़ना प्रारंभ किया। उस क्षण एक वातमय हवा थी जिसने परम पावन के ग्रंथ के पृष्ठों को बिखेर दिया। लिंग रिनपोछे तुरन्त उन्हें उठाने के लिए अपने पैरों पर खड़े हुए। परम पावन ने टिप्पणी की:
"कोई वस्तु अंततः अस्तित्व में नहीं होती, पर यह भ्रांत धारणा मोह और अन्य क्लेशों को जन्म देती है। भय आत्म-पोषण की हमारी भावना से उत्पन्न होता है। शून्यता पर ध्यान इन दोनों भ्रांतियों का प्रतिकार कर सकता है।"
'विमुक्ति हस्त धारण' में एक विशेष विधि शामिल है जिसमें दोनों अभ्यासों बोधिचित्तोत्पाद, परात्मसमपरिवर्तन के साथ कार्य कारण के सप्त बिंदु व्यवहार का समन्वय है। उपेक्षा के साथ प्रारंभ कर इसमें सत्व आपकी माँ रहे हैं का भाव, उनकी और साथ ही समस्त सत्वों की दया का स्मरण करते हुए और उनकी दया का प्रत्युपकार आदि आदि सम्मिलित है।
परम पावन ने एक अन्य पद, जिसका पाठ करना उन्हें अच्छा लगता है, का उल्लेख किया जो नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' के अंत में आता है, पर उन्हें उसे अपने अनुकूल बनाना अच्छा लगता है, तो यह कहने के स्थान पर कि "... मैं गौतम को नमस्कार करता हूँ " वह कहते हैं
क्या मैं गौतम से आशीर्वचित होऊँ?
जिसने करुणा के माध्यम से,
सद्धर्म की शिक्षा दी,
जिसने सभी दृष्टियों का प्रहाण किया।
जब प्रथम दलाई लामा वृद्धावस्था में थे तो उन्होंने शिकायत की कि जाने का समय आ गया और उनके शिष्यों में से एक ने कहा, "और जब आप जाएँगे तो आप अमिताभ की विशुद्ध भूमि में जाएँगे। गेन्दुन डुब ने उत्तर दिया कि उन्हें इस तरह के परिणाम की ऐसी कोई इच्छा न थी, वे किसी ऐसे स्थान पर लौट कर आना चाहते थे जहाँ वे पीड़ित लोगों की सहायता कर सकते थे।
यह टिप्पणी करते हुए कि विनय निर्देशित करता है कि किसी बौद्ध को जब तक अनुरोध न किया जाए शिक्षा नहीं देना चाहिए। परम पावन ने इसकी तुलना कुछ ईसाई मिशनरियों से की जो आपके स्वीकृति के बिना अपना शिक्षण थोपते हैं। परम पावन ने कहा कि वे अनुभव करते हैं कि एक दूसरे के प्रति सम्मान दिखाने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने पुराने मित्र श्रद्धेय बिल क्रूज़ द्वारा चलाए जा रहे एक ऑस्ट्रेलिया के एक सूप रसोई की यात्रा का स्मरण किया जिन्होंने उनका परिचय इस प्रकार दिया "यह दलाई लामा हैं जो एक बहुत ही अच्छे ईसाई हैं।" जब परम पावन की बात करने की बारी आई तो उन्होंने उसी तरह प्रशंसा करते हुए क्रूज़ का संदर्भ एक अच्छे बौद्ध के रूप में किया।
परम पावन ने आगे उन लामाओं के बारे में टिप्पणी की जिनके विषय में वह सुनते हैं जो पश्चिम और चीन में बुरी तरह से व्यवहार करते हैं जो प्राथमिक रूप से धन तथा सेक्स की इच्छा से प्रेरित हैं। उन्होंने एक चीनी से जिसने उनसे इस बारे में शिकायत की तो उनसे कहा कि वे भारत में रहते हुए बहुत कुछ नहीं कर सकते। उन्होंने शिक्षार्थियों को शिक्षकों को न केवल उनकी योग्यता के विषय में पर उनके आचरण के बारे में भी जाँचने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने टिप्पणी की कि नालंदा परंपरा अनमोल है और यह एक बचाव के तरीकों में से एक होगा।
ग्रंथ का अगला विषय जिस पर कल हम प्रवचन देंगे, धैर्य है।