कैम्ब्रिज, इंग्लैंड, १६ सितम्बर २०१५
- आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा मगडालेन महाविद्यालय के कार्यक्रम स्थल, क्रिप्स कोर्ट एक छोटी सी ड्राइव के बाद पहुँचे तो सड़कें गीली थी। तिब्बती और अन्य मित्र और शुभचिंतक गेट के दोनों ओर झंडे और बैनर के साथ धीरे से स्वागत जाप करते हुए एकत्रित थे। अंदर सर हम्फ्री क्रिप्स थियेटर में प्रवेश करने से पहले, परम पावन अपने मेजबान लार्ड रोवन विलियम्स, संचालक बैरोनेस पैट्रिसिया स्कॉटलैंड और इंस्पायर डायालोग फाउंडेशन के आयोजक कैमरून टेलर से मिले।
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कैमरून टेलर ने दो दिवसीय बैठक के प्रारंभ में सबका स्वागत किया और संवाद समर्थकों में से एक, हिलेरी विलियम्स-पेपवर्थ को अपने पति बिल पेपवर्थ के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया जिनका एक वर्ष पूर्व निधन हो गया था। उन्होंने उल्लेख किया कि परम पावन हँसी में टिप्पणी करते हैं कि वे जब अपनी हम उम्र के लोगों से मिलते हैं तो सोचने लगते हैं कि, "पहले कौन जाएगा?" "हाँ, बिल पहले चला गया," उन्होंने कहा। वे एक वर्ष और एक महीने बड़े थे। विद्वान तथा परम पावन के प्रमुख अंग्रेजी अनुवादक थुपटेन जिमपा ने बिल को तिब्बतियों और सभी मानवता एक बड़ा सहयोगी बताया। वह संवाद के एक महान और दृढ़ समर्थक थे और चुनौती के सामने आने पर और सहायता करने की इच्छा रखते हुए सदा पूछते थे, कि "मैं क्या कर सकता हूँ?"
प्रथम पूर्ण सत्र के संचालक के रूप में बैरिस्टर और पूर्व अटॉर्नी जनरल, बैरोनेस स्कॉटलैंड, ने कार्यवाही प्रारंभ की। उन्होंने परम पावन का परिचय प्रज्ञा के साकार रूप तथा कैंटरबरी के पूर्व आर्चबिशप लार्ड रोवन विलियम्स को उनकी सुनने की महान शक्ति के विषय में बताते हुए कराया। उन्होंने स्वयं के संबंध में कहा कि उनके साथ सम्मिलित होते हुए वे सम्मानित और विनम्र अनुभव करती हैं और पहले परम पावन को बोलने के लिए आमंत्रित किया।
"आदरणीय बड़े भाई और बहनों और साथ ही छोटे भाइयों और बहनों," उन्होंने प्रारंभ किया, "मैं यहाँ मात्र एक और मानव के रूप में आया हूँ। जब मैं दूसरों से बातें करता हूँ तो मैं स्वयं को कुछ विशिष्ट, एक एशियायी या एक बौद्ध के रूप में नहीं देखता। जब मैं किसी से मिलता हूँ तो सोचता हूँ, 'ओ मेरे जैसा एक दूसरा मनुष्य जिसकी मेरी जैसी समस्याएँ हैं।' हम सब इस छोटे नीले ग्रह पर रहते हैं, जहाँ वास्तविकता यह है कि हमारे जीवन अन्योन्याश्रित हैं। इस कारण हमें एक वैश्विक स्तर पर सोचना होगा, केवल अपने देश, अपने समुदाय के बारे में नहीं जो पूरी तरह तारीख से बाहर है।
"समय सदैव गतिशील है और जहाँ हम अतीत को बदल नहीं सकते, भविष्य अभी भी हमारे हाथों में है। इस बीच परिस्थितियाँ परिवर्तित होती हैं पर हमारे सोचने के पुराने तरीके वैसे के वैसे ही रहते हैं। जिन कई समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं, वे हमारी अपनी निर्मित हैं। उन्हें सुलझाने के लिए एक दृष्टि और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसलिए मैं यहाँ सुनने, सुझाव समग्रित करने आया हूँ। मेरे कान खुले हैं।”
लार्ड विलियम्स ने मानवीय परिवार द्वारा सामना कर रहे समस्याओं का विषय उठाया और टिप्पणी की, कि उनका सामना कोई एक देश या रुचि रखने वाला समूह अकेला नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था सीमा में नहीं बँधती जैसा शायद यूनानी बताएँ। जलवायु परिवर्तन सीमा में नहीं बँधती जैसा शायद बंग्लादेश के लोग बताएँ। और महामारी के रोग सीमा में नहीं बँधते जैसा शायद घाना और सियरा लियोन के लोग बताएँ। उन्होंने जोड़ा कि संघर्ष भय के साथ पूरी तरह जुड़ा है और यह कि हम आसानी से भय में लिप्त हो जाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हम अपने भय के मूल की जाँच करें और यह कि हम क्यों उनसे ग्रस्त हैं।
जब बैरोनेस स्कॉटलैंड ने चर्चा को दर्शकों की ओर मोड़ा, तो एक कवि ने विनम्रता के महत्व का उल्लेख किया कि दोनों पक्षों में बिना विनम्रता के कोई संवाद नहीं हो सकता।
परम पावन ने बीच में बोलते हुए कहा कि जहाँ वे मानते हैं कि आधारभूत मानव स्वभाव सकारात्मक है, पर हमारी शिक्षा व्यवस्था में दोषों और उसके भौतिकता पर एकमात्र रूप से केन्द्रित होने के कारण हम अपनी बुद्धि का प्रयोग उचित रूप से नहीं करते। उन्होंने सुझाव दिया कि हम प्रायः आत्मकेन्द्रितता और संकीर्णता से पीड़ित होते हैं। दूसरी ओर, अपने आचरण में सच्चरित्रता और दूसरों के प्रति चिंता, दूसरों में विश्वास उत्पन्न करती है और मैत्री की ओर ले जाती है। अंततः उन्होंने कहा कि अपनी भावनात्मक प्रणाली को स्वीकार करने की क्षमता बहुत सहायक हो सकती है।
श्रोताओं की ओर से अभिव्यक्त विचारों में एक युवती के विचार थे कि जब उसने टेलिविज़न के समाचार देखने बंद कर दिए तो उसका उत्कंठा विकार समाप्त हो गया। एक युवा मुसलमान वैज्ञानिक ने समझाया कि अन्य युवा मुसलमान सीरिया जैसे स्थानों में लड़ने के लिए जाना चाहते हैं क्योंकि वे घर में स्वयं को एकाकी अनुभव करते हैं। यह याद रखने से पहले कि वे मात्र मनुष्य हैं, वे स्वयं को शिया अथवा सुन्नी के रूप में पहचानने लगते हैं।
लार्ड विलियम्स ने एक विनाशकारी गृहयुद्ध की संभावना पर उनके सोलोमन द्वीपों में से एक की यात्रा की अपनी कहानी सुनाई। स्थानीय नेताओं में से एक ने बताया कि जहाँ उसके देशवासियों में से कइयों ने युद्ध के लिए दूसरे पक्ष को दोषी ठहराया वह जानता था कि वे सभी उत्तरदायी थे। उसने लार्ड विलियम्स को बताया कि वह उनके समक्ष घुटने टेकेगा और उनसे अनुरोध करेगा कि वे उन्हें दोषमुक्त करें।
श्रोताओं की ओर से, कार्यक्रम के प्रायोजकों में से एक लार्ड रूमी वर्जी ने विकास और धन को पुर्नपरिभाषित करने की आवश्यकता पर बात की। उन्होंने कहा कि प्रायः उसे बैंक अथवा जाने माने लोगों के धन के साथ भ्रमित किया जाता है। मैथ्यु रिकार्ड ने यह राय व्यक्त करते हुए कहा कि अधिक से अधिक लिंग समानता का परिणाम कम हिंसा होगी। उन्होंने अच्छाई की तुच्छता के बारे में बात की, और कहा कि प्रतीत होता है कि पुण्य का कोई मोल नहीं है। जोर्ग एइजेनद्रोफ ने इसे ही एक सलाह के साथ आगे बढ़ाते हुए कहा कि मीडिया पर दोषारोपण करने अथवा आलोचना करने की बजाय, क्योंकि हमें वही दिया जाता है जो हमें अच्छा लगता है हमें जांच करनी चाहिए कि हम क्या देखते, पढ़ते और ध्यान देते हैं। यूरोप आ रहे शरणार्थियों के संबंध में उन्होंने यह पूछने की सिफारिश की कि हमारी करुणा की क्या सीमा है।
परम पावन ने इस अंतिम बिंदु का उत्तर देते हुए कहा कि इसका व्यावहारिक मूल्य था। उन्होंने कहा कि चूँकि मध्य पूर्व की पूरी जनसंख्या एकसाथ यूरोप नहीं जा सकती, हम सबको उनके स्वदेश में शांति सुरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने आगे जोड़ा कि वे और अधिक संख्या में महिला नेताओं और करुणा को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता को देखते हैं। उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व के अधिकांश संकटों की जड़ में अनसुलझा फिलीस्तीन/इजरायल संघर्ष है। उन्होंने आग्रह किया कि इसे शांत करने के लिए कदम उठाए जाएँ।
बैरोनेस स्कॉटलैंड ने एक अवसर का उल्लेख किया जब अफ्रीका में कहीं शांति वार्ता चल रही थी जिसमें कोई महिला शामिल न थी। जब इस पर प्रश्न उठाया गया तो पुरुषों ने उत्तर दिया कि यदि उन्हें शामिल किया जाता तो वे रियायत बरतते। उन्होंने सभा को उत्तरी आयरलैंड में महिला शांति-निर्माताओं की सफलता का स्मरण कराया।
चाय और कॉफी के अंतराल के पश्चात सभा चार छोटे चर्चा समूहों में विभाजित हुई। परम पावन, लार्ड विलियम्स और बैरोनेस स्कॉटलैंड ने एक एक कर उन्हें सुनते हुए और वार्तालाप में अपने विचार रखते हुए इसमें भाग लिया। उन्होंने अक्षय ऊर्जा और सुधार भंडारण तकनीक के बारे में सुना। एक और समूह में माता - पिता के बच्चों से बात करने के महत्व की बात उठी। परम पावन ने टोकते हुए चित्त की शांति के महत्व और पर्यावरण की रक्षा में जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका की बात की। जब एक युवती ने किसी भी प्रत्यक्ष कार्रवाई करने में सक्षम होने को लेकर निराशा जताई तो परम पावन ने उसे केवल यथार्थवादी और सच्चा होने की सलाह दी।
मध्याह्न भोजनोपरांत डॉ भास्कर वीरा द्वारा संचालित चर्चाएँ पर्यावरण पर लौट आईं। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक पर्यावरण पर इसके प्रभाव के भविष्य से हमें भयभीत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले से ही ऐसी भविष्यवाणी हो चुकी है कि इससे भारी जनसंख्या विस्थापन और संबंधित समस्याएँ होगी।
लार्ड विलियम्स ने सुरक्षा की धारणा की बात की और सुझाया कि यही अंतर्निहित कारण है कि हम धन संग्रह करते हैं। परन्तु उन्होंने आगे जोड़ा कि विकास के हमारे लक्ष्य प्राकृतिक सीमा को तोड़ सकते हैं और सुरक्षा की कमी देते हुए ग्रह के प्रबंधन में हमारी क्षमता को परास्त कर सकते हैं।
परम पावन ने उत्तर दिया कि इसका हल शिक्षा और अधिक जागरूकता है। उन्होंने सभा को यह भी याद दिलाया कि विश्व में बहुत अधिक संख्या में लोगों के पास ऐसी जागरूकता बनाए रखने के लिए या तो कम समय अथवा ऊर्जा है, क्योंकि वे इस बात को लेकर चिन्ताकुल हैं कि उन्हें अगला भोजन कहाँ से मिलेगा। यह अमीर और गरीब के बीच खाई की गंभीरता को दिखाता है। इसके बावजूद यदि इस समय २१वीं सदी की पीढ़ी के सदस्य एक दृष्टिकोण के साथ प्रयास करें तो इस सदी के अंत तक विश्व एक अधिक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण स्थान हो सकता है।
छोटे समूह चर्चा के प्रतिनिधियों ने जो कहा और चर्चा की, उसे सूचित किया। लार्ड विलियम्स ने सोचने की इस प्रवृत्ति, कि सब कुछ लागत के संदर्भ में देखा जा सकता है, पर दुःख प्रकट किया। उन्होंने कहा कि यह मानव जाति के लिए उचित नहीं था क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता अगले व्यक्ति से पृथक है। लिंग भेद पर लौटते हुए परम पावन ने कहा कि पुरुषों को क्रोध को छोड़ने और इस भावना से कि यह उचित प्रतिक्रिया है को लेकर किस प्रकार साहस के विकास के लिए सहायता की जाए। उन्होंने अमेरिकी मनोचिकित्सक हारून बेक का उल्लेख किया जिन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि वस्तुओं के प्रति हमारी क्रोध तथा राग की भावनाओं का ९०% वास्तव में मानसिक प्रक्षेपण है।
डॉ वीरा की ज्ञानपूर्ण शब्दों के आदान प्रदान की प्रशंसा और कैमरून टेलर द्वारा सभी आयोजकों और उस बैठक में भाग लेने वाले सभी लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन के साथ दूसरा पूर्ण सत्र समाप्त हुआ। संवाद कल दूसरे दिन भी जारी रहेगा।