धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत - ४ मार्च २०१५ - आज एक उज्ज्वल परन्तु शीतल प्रातः, नीले नभ के समक्ष शानदार पर्वतों की ताजा बर्फ की पृष्ठभूमि में परम पावन दलाई लामा के लिए अमितायुस, दीर्घायु के बुद्ध, से संबंधित एक जटिल दीर्घायु प्रार्थना समर्पित की गई।
दोर्जे डग विहारों के भिक्षुओं ने अपनी पीठ पर ढोल बाँधे उस समय स्वागत आनुष्ठानिक छम नृत्य प्रस्तुत किया जब परम पावन दलाई लामा ने अपने निवास स्थल के द्वार से प्रवेश किया । इसकी व्यवस्था पाँच समितियों ने िमलकर की थी ः बेल्जियम तिब्बती एसोसिएशन, तिब्बत संयुक्त समिति, ल्हासा जिला दीर्घायु समारोह समिति के प्रतिनिधि, ल्होका पीपुल्स एसोसिएशन और धर्मशाला में तिब्बती व्यापार एसोसिएशन।
प्रार्थनाओं में गुरु पद्मसंभव, सत्रह नालंदा पंडितों की स्तुति तथा दलाई लामा के जातकों की स्तुति शामिल थी। मिनडोलिंग के भिक्षुओं और तगलुंग चेटुल रिनपोछे. जो ञिङमा परम्परा के सर्वोच्च हैं, की अध्यक्षता में दोर्जे डग विहारों द्वारा अमितायुस का अनुष्ठान किया गया। परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु के लिए जमयंग खेनचे छोकी लोडो द्वारा रचित प्रवाहपूर्ण प्रार्थना और परम पावन दलाई लामा के शिक्षकों लिंग रिनपोछे और ठिजंग रिनपोछे द्वारा रचित दीर्घायु प्रार्थना के भी पाठ हुए।
अंत में सभा को सम्बोधित करते हुए, परम पावन ने पाँच प्रतिभागी समूहों के सदस्यों को उनके दृढ़ समर्पण के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि दोर्जे डग और मिनडोलिंग के भिक्षु इस अवसर पर अनुष्ठान के लिए एकत्रित हुए थे। उन्होंने उन्हें धन्यवाद दिया तथा दोर्जे डग के पेमा ठिनले और मिनडोलिंग के तेरदग लिंगपा के पांचवें दलाई लामा के साथ विशेष संबंधों का स्मरण किया। उन्होंने कृतज्ञता से तगलुंग चेटुल रिनपोछे की सहभागिता को स्वीकार किया।
"मैं आप सबको धन्यवाद करना चाहता हूँ, जिन्होंने इस समर्पण में भाग लिया है," परम पावन ने कहा। "इस प्रार्थना का सार गुरु व शिष्य के बीच सशक्त आध्यात्मिक बंधन है। प्रमुख बात जो चित्त में धारण करने की है, वह यह कि गुरु ने क्या शिक्षा दी है और उसे व्यवहार में लाना है।"
"बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत के दुःखंो को अपने हाथों से हटाते हैं;
न ही अपने अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते हैं;
वे धर्मता सत्य देशना से सत्वों को मुक्त कराते हैं।"
"यदि गुरु कुछ अनुचित सुझाव देते हैं तो आप उनके साथ विवाद करने हेतु स्वतंत्र हैं, पर यदि आप पाते हैं कि वह जो कह रहे हैं वह उचित है, तो उसे आप कार्य में लाएँ।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि तिब्बती विश्व भर में अपनी सौहार्दता के लिए जाने जाते हैं और साथ ही यह भी जोड़ा कि किसी व्यक्ति का अपना अच्छा अभ्यास वास्तव में सबसे अच्छा समर्पण है। उन्होंने आत्मतुष्टि के विरोध में चेतावनी दी और इस बात पर बल दिया कि यदि तिब्बती, जो वे करते हैं उसके प्रति समर्पित, व्यावहारिक और ईमानदार हैं, तो इस संबंध में कोई संशय न रह जाएगा कि उन्होंने तिब्बती समस्या के लिए योगदान दिया है और मरणासन्न अवस्था में पश्चाताप का कोई कारण न रहेगा। उन्होंने "टाशी देलेक और धन्यवाद" कहते हुए समाप्त किया जब वहाँ उपस्थित जनमानस ने सत्य के शब्दों का पाठ किया जिसका अंत इस प्रकार होता है :
"संक्षेप में, प्रणिधि की सभी व्यापक प्रार्थनाएँ
जो नाथ अवलोकितेश्वर ने तिब्बत की धरा के लिए बनाईं
बुद्ध और उनके बोधिसत्व आत्मजों की उपस्थिति में,
त्वरित यहाँ और अभी सकारात्मक रूप से फलित हों।"