ऊपरी भट्टू, हिमाचल प्रदेश, भारत - ११ मार्च, २०१५ - आज प्रातः परम पावन
दलाई लामा को विदा देने शुभचिंतक, तिब्बती और विदेशी, उनके निवास के प्रवेश
द्वार के बाहर एकत्रित थे। जब वे धर्मशाला के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर गाड़ी
से जा रहे थे तो अन्य छोटे दल उनके दर्शनों के लिए प्रतीक्षारत थे। ग्यूतो
तांत्रिक महाविहार के बाहर १०० से अधिक संख्या में श्रमणेर अपने हाथों में
श्वेत दुपट्टा तथा धूप लिए उऩका अभिनन्दन करने हेतु प्रतीक्षा कर रहे थे।
गोपालपुर में टी सी वी स्कूल की पूरी आबादी, सैकड़ों बच्चे और कर्मचारी,
करीब २०० मीटर या उससे अधिक की दूरी पर सड़क पर मुख पर मुस्कान लिए सम्मान
के साथ हाथ जोड़े पंक्तिबद्ध खड़े थे।
निकट डोंग्यु गछेल श्रमणेरी विहार की
३० से अधिक श्रमणेरियों ने उनका अभिनन्दन किया, जबकि टाशी जोंग के खमपागर
समुदाय के लिए सड़क के अंत में, लगभग २-३०० श्रमण, श्रमणेरियाँ तथा उपासक,
युवा तथा वृद्ध परम पावन को वहाँ से जाते हुए देखने के िलए धैर्यपूर्वक राह
देख रहे थे। जंगल के बीच से जब सड़क घूमी और वे पालपुंग शेरबलिंग में अपने
गंतव्य के निकट पहुँचे तो वहाँ और अधिक लोग, स्वागत मेहराब, धूप के मेघ और
बिखरे हुए पुष्प थे।
जब वे शेरबलिंग पहुँचे तो ताई सीतु रिनपोछे और
जमगोन कोंगटुल रिनपोछे ने उनका स्वागत किया। उन्होंने उनका आच्छादित िकए
प्रांगण, जो और अधिक लोगों से भरा था, गर्जन करते हुए हिम सिंह जो सीढ़ियों
की रक्षा करते हैं, से होते हुए विहार के सभागार तक अनुरक्षण किया। प्रवेश
द्वार पर उन्होंने औपचारिक रूप से फीते को काटा और द्वार को ढकेलते हुए
खोला। अंदर अतिथियों में पूर्व और सेवारत मंत्री, निर्वासित तिब्बती संसद
के सदस्य, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अधिकारी और शेरबलिंग के अतिरिक्त
पास के कई संस्थानों के लामा, श्रमणेर और श्रमणेरियाँ शामिल थे।
परम
पावन के मैत्रेय बुद्ध की एक विशाल मूर्ति के समक्ष उच्च सिंहासन ग्रहण
करने पर प्रार्थनाओं और स्तुतियों का पाठ हुआ। जब ब्रह्मांड के मंडल की
भेंट का पाठ हो रहा था तब सीतु रिनपोछे ने स्वयं अनाज के मंडल का निर्माण
किया और सम्यक संबुद्धों के काय, वाक् और चित्त के प्रतीक के रूप में
समर्पित किया।
अपने स्वागत शब्दों में, सीतु रिनपोछे ने गेदुन डुब
से प्रारंभ कर ५वें दलाई लामा, जिन्होंने तिब्बती लोगों के कल्याण का
उत्तरदायित्व लिया था, सहित दलाई लामा के बोधिसत्व कार्यों की प्रशंसा की।
उन्होंने अपने पूर्ववर्ती और १३वें दलाई लामा के बीच एक संबंध का स्मरण
किया। उन्होंने माना कि वर्तमान कठिन समय में जब विश्व भर में बौद्ध धर्म
में रुचि फैली है, परम पावन दलाई लामा ने एक गैर सांप्रदायिक दृष्टिकोण को
उचित माना है। १९५९ से परम पावन की दृष्टि और दयालुता और भारत के लोगों और
सरकार के समर्थन के कारण सैकड़ों, हज़ारों तिब्बती भारत में बस गए हैं।
उन्होंने कहा कि बाद में, परम पावन और १६वें ज्ञलवा कर्मापा के विचार १७वें
ज्ञलवा कर्मापा के रूप में उज्ञेन ठिनले दोर्जे को मान्यता देने में एक
समान थे।
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"१९९१ में जब हमने मैत्रेय की इस प्रतिमा के साथ इस मंदिर
का निर्माण किया, जब, हमने आपको आने का आमंत्रण दिया था और आज वह कामना
पूरी हुई है," ताई सीतु रिनपोछे ने समाप्त करते हुए कहा "हम अपनी गहरी
कृतज्ञता समर्पित करते हैं और आपसे दीर्घ काल तक बने रहने का अनुरोध करते
हैं और आपसे हमें अपने हृदय में रखने का अनुरोध करते हैं।"
तत्पश्चात
खेनपो जमयंग लोडो द्वारा मंगल पाठ हुआ। खेनपो ज्ञलछेन फुनछोग ने पालपुंग
विहार का परिचय दिया, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि प्रथम कर्मापा और
५वें दलाई लामा दोनों ने सीतु रिनपोछे और पालपुंग की स्थापना के विषय में
भविष्यवाणी की थी। तिब्बत में पालपुंग विहार के नष्ट होने के बाद शेरबलिंग
की प्रतिस्थापना हुई। अब यहाँ श्रमणेर और श्रमणेरियों का विहार,
महाविद्यालय और एकांतवास केन्द्र है और विश्व भर में इससे संबंधित १८० से
अधिक केन्द्र और शाखाएँ हैं।
लोपोन कर्मा डगपा ने सूत्र परंपरा की
एक प्रस्तुति दी। श्रद्धेय छोइंग कुनख्यब ने तिब्बती चिकित्सा परंपरा,
जिसका उद्गम राजा ञठी चेनपो के समय में था, ११ शताब्दी में युथोग के
कार्यों के विषय में तथा विभिन्न तिब्बती चिकित्सा प्रणालियों को एक साथ
लाने के लिए पूर्व सीतु रिनपोछे के प्रयासों के बारे में बात की। श्रद्धेय
ञवंग ने यहाँ मानी जाने वाली ज्योतिष परंपरा के बारे में बात की और लामा
शेरब डीमे ने व्याकरण परंपराओं, जो संस्कृत के अध्ययन से आई थी और ८वें
सीतु पंछेन, जिन्होंने एक व्याकरण ग्रंथ की रचना की जो आज एक शास्त्रीय
ग्रंथ माना जाता है, को समझाया। उन्होंने देरगे मुद्रणालय की स्थापना में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन में धर्म और
संस्कृति मंत्री, पेमा छिनजोर ने अपने संबोधन परम पावन दलाई लामा के
तिब्बती युवा कांग्रेस की पहली बैठक में उनके वक्तव्य का स्मरण किया कि
तिब्बतियों के पास अपनी बौद्ध परंपराओं में विश्व को देने के लिए एक सम्पदा
है। उन्होंने कहा कि एक युवा के रूप उन्हें उसमें कुछ सार्थकता न जान पड़ी
पर बाद में उन्हें समझ में आया कि परम पावन ने कितना ठीक कहा था। उन्होंने
यह सुनिश्चित करने के महत्व पर बल दिया कि शिक्षक अच्छी तरह से योग्य हों
और प्रत्येक तिब्बती बौद्ध परंपरा अपनी अनूठी विशिष्टताओं को बनाए रखे।
निर्वासित
तिब्बती संसद के अध्यक्ष पेनपा छेरिंग ने कहा शेरबलिंग में परम पावन की
उपस्थिति उत्सव के लिए कारण थी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि शिक्षा और
आध्यात्मिक चर्या में गिरावट न आनी चाहिए, श्रमण और श्रमणेरियों में
गुणवत्ता उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी संख्या।
अपने संबोधन में परम
पावन ने उल्लेख किया कि लगातार सभी सीतु रिनपोछे धर्म और सत्वों की सेवा
में लगे रहे हैं। उनके इस विहार की स्थापना, जहाँ अध्ययन और चर्या का अवसर
है, इस बात का प्रमाण है। उन्होंने कहा:
"जब हम नालंदा की सोचते
हैं, तो जो मन में आता है वह है शिक्षण और अध्ययन का केन्द्र, ऐसी स्थान
नहीं जहाँ मात्र अनुष्ठानों का प्रदर्शन होता है। इसी प्रकार, ताई सीतु
रिनपोछे ने यहाँ पाँच विद्या स्थानों के अध्ययन में सहयोग के लिए
व्यावहारिक कदम उठाए हैं।"
"एक आध्यात्मिक परंपरा के रूप में
तिब्बती बौद्ध धर्म हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता, परन्तु तिब्बती
संस्कृति के अंदर ज्ञान निहित है जैसे तिब्बती औषधि, जिसकी दवाइयाँ
प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती हैं, जिसमें कई लोगों के लाभ की क्षमता
है।"
"बौद्ध धर्म मात्र एक अंधविश्वास नहीं है। यह प्रशिक्षण के
माध्यम से चित्त को बदलने के विषय में है। और जो परिवर्तित होता है और जो
परिवर्तित करता है, वह चित्त है। वे भावनाएँ जो हमारे चित्त को उद्वेलित
करती हैं धन से काबू में नहीं लाई जा सकतीं, हमें समझना है कि चित्त किस
प्रकार कार्य करता है और चित्त की शांति को किस प्रकार प्राप्त किया जाए।
यही कारण है कि आज बढ़ती संख्या में लोग मनोविज्ञान, चित्त विज्ञान और
नालंदा परम्परा द्वारा प्रकट की गई चित्त की बौद्ध समझ में रुचि व्यक्त कर
रहे हैं।"
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उन्होंने कांग्यूर व तेंग्यूर से दर्शन, विज्ञान और
धार्मिक चर्या से संबंधित बुद्ध की शिक्षाओं और उनके भाष्यों के संग्रह से
सामग्री निकालने के प्रयासों की बात की। उन्होंने कहा कि जो भी रुचि रखता
है, वह दार्शनिक और वैज्ञानिक सामग्री का अध्ययन एक शैक्षणिक आधार पर कर
सकता है। उन्होंने उस प्रतिध्वनि का भी उल्लेख किया जो चन्द्रकीर्ति द्वारा
व्यक्त मध्यमक दृष्टिकोण, जो यह मानता है कि जहाँ कोई भी वस्तु स्वतंत्र
रूप से अस्तित्व नहीं रखती पर वस्तुएँ सांवृतिक रूप में अस्तित्व रखती हैं
तथा क्वांटम भौतिकी का दृष्टिकोण कि किसी का भी वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं
होता, के बीच पाई जाती है। इसी तरह यह सुझाव कि देखनेवाला तथा देखी जाने
वाली एक ही वस्तु के हैं, का संबंध चित्तमात्र परम्परा के अनुसार है - ऐसा
दृष्टिकोण जो बाह्य अस्तित्व के खारिज करता है। परम पावन ने कहा कि इस
प्रकार की तुलनाओं के आधार पर ही वे धर्म केन्द्रों को शैक्षिक केन्द्रों
की तरह बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
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अपने निवास जाते हुए
जहाँ उनके मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की गई थी, परम पावन सभागार के ऊपर की
मंज़िल पर पुस्तकालय तथा उसके ऊपर मंडल सभागार गए जहाँ उन्होंने पवित्रीकरण
के पदों का पाठ किया तथा चावल और फूल बिखेरे।
मध्याह्न में श्रमणेर
तथा श्रमणेरियों के समूहों द्वारा शास्त्रार्थों की प्रस्तुति और भाषा और
व्याकरण तथा प्रज्ञापारमिता पर चर्चा हुई जिन्हें परम पावन ने रुचिपूर्वक
सुना। सत्र धन्यवाद के शब्दों के साथ समाप्त हुआ।
कल, परम पावन दीर्घायु आशीर्वचन तथा अतीश के 'बोधिपथप्रदीप' का संचरण करेंगे।