"मेरे लिए यहाँ होना एक महान सम्मान और विशेष बात है। समूचा विश्व आपसे प्रेम करता है और हम आप युवा लोगों से कहना चाहते हैं कि आपके लिए ऐसा संभव प्रतीत नहीं हो कि एक दिन आप एक स्वतंत्र तिब्बत में लौटेंगे। लेकिन हम दक्षिण अफ्रीका में कई वर्षों तक अन्याय और अत्याचार की व्यवस्था के आधीन रहे। हमारे कई नेता और युवा निर्वासित हुए। ऐसा प्रतीत होता था उत्पीड़न की श्रृंखलाएँ कभी न टूटेगीं और रॉबेन द्वीप पर हमारे बंदी कभी घर न लौटेंगे। पर फिर भी, "उन्होंने उच्च स्वर में हँसते हुए कहा, ऐसा हुआ।"
"१९९५ में हमारे प्रिय नेल्सन मंडेला और अन्य लोग रिहा हो गए और शरणार्थी घर लौटे। एक दिन, आप भी, आप सभी अपने प्रिय तिब्बत को पुनः देखेंगे। आप उस उत्पीड़न से मुक्त हो जाएँगे जिसने आपको यहाँ खदेड़ा है। चीनी सरकार पाएगी कि वास्तव में उत्पीड़न की तुलना में स्वतंत्रता सस्ती है।"
उन्होंने कहा कि वह परम पावन को अपने मित्र के रूप में देखते हुए एक गहन गौरव का अनुभव करते हैं और विश्व भी ऐसा ही अनुभव करता है। उन्होंने आगे कहा ः
"मैं भारत सरकार और भारतीय लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने उन्मुक्त रूप से आपका स्वागत किया, क्योंकि उन्होंने हमारे लिए एक महान निधि संरक्षित कर रखी है, जो अन्यथा खो गई होती।"
छात्रों की और देखते हुए उन्होंने कहा:
"देखिए आप कितने सुंदर हैं। एक दिन आप तिब्बत के मार्गों पर नाच और गा रहे होंगे।"
इसके पश्चात छात्रों को दोनों आध्यात्मिक नेताओं से प्रश्न पूछने का अवसर मिला, जिसमें प्रथम प्रश्न परम पावन से पूछा गया कि क्या हम कभी एक हिंसा मुक्त विश्व में जीने की आशा कर सकते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि हिंसा के कई अलग अलग प्रकार होते हैं जिनमें शोषण और भ्रष्टाचार शामिल हैं।
"यदि आप युद्ध से संबंधित और लोगों द्वारा एक दूसरे की हत्या करने जैसी गंभीर शारीरिक हिंसा के बारे में सोच रहे हैं, तो हाँ, मुझे लगता है कि यदि हम सही प्रयास करें तो हम उसे समाप्त कर सकते हैं।"
आर्चबिशप टूटू से इस िवषय पर उनकी सलाह पूछी गई कि लोग किस प्रकार भौतिक वस्तुओं में खुशी ढूँढते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि अधिक से अधिक लोग इस बात का अनुभव कर रहे हैं कि उन्हें मात्र वस्तुओं से वास्तविक संतुष्टि प्राप्त नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जहाँ एक ओर आपके पास कई वस्तुएँ हो सकती हैं, वहीं आपका हृदय रिक्त रह सकता है।
"मैं कई सम्पन्न परिवारों के युवाओं से मिलता हूँ जो बाहर जाकर दूसरों की सहायता करते हैं और उसमें कहीं अधिक संतोष प्राप्त करते हैं।"
जब परम पावन से पूछा गया कि वह अपने दैनिक जीवन में किस प्रकार अपने क्रोध को नियंत्रित करते हैं, तो उन्होंने कहा कि जब वह क्रोध में होते हैं तो वह चिल्लाते हैं। उन्होंने १९५६ के एक अवसर की कहानी सुनाई जब वे उस ड्राइवर और मैकेनिक को देख रहे थे जो मोटर गाड़ियों की देखभाल कर रहे थे जिनमें से एक १३वें दलाई लामा की थी। उस पर काम करते समय गलती से उसका सिर कार से टकराया। क्रोध में भरकर उसने जानबूझकर फिर से अपना सिर गाड़ी पर दे मारा और परम पावन को लगाः "इसका क्या लाभ?" उन्होंने टिप्पणी की, कि क्रोध हमारे चित्त की शांति को नष्ट कर देता है।
"मणि के जाप करने से कोई सहायता नहीं मिलेगी, यहाँ तक कि शरण गमन प्रार्थना भी सहायक न होगी। हमारे चित्त का शोधन एकमात्र समाधान है।"
यह पूछे जाने पर कि क्या आनन्द वास्तव में विश्व शांति का एक स्रोत हो सकता है, परम पावन ने कहा ः
"मुझे ऐसा लगता है और इसलिए लोगों में इस बात की स्पष्ट समझ होनी चाहिए कि किस प्रकार आनन्द निर्मित किया जाए। दूसरों का अहित कुछ अस्थायी संतोष ला सकता है, पर उनका सहायक होना ही स्थायी आनन्द का वास्तविक स्रोत है।"
आर्चबिशप टूटू से भी पूछा गया कि सच्चा आनन्द व सुख किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है और उन्होंने उत्तर दिया:
"यदि हम सोचते हैं कि हम स्वयं के लिए आनन्द चाहते हैं तो वह अदूरदर्शिता है और वह अल्पकालिक होगी। वास्तविक आनन्द दूसरों को आनन्द देने के कार्य करने में है। गहरा आनन्द वह है जब आप दूसरों के प्रति प्रेम, चिंता और करुणा व्यक्त करते हैं। इसे आप किसी अन्य उपाय से प्राप्त नहीं कर सकते। आप इसे खरीद नहीं सकते।"
पर्यावरण के बारे में एक अंतिम प्रश्न के उत्तर में, आर्चबिशप ने कहा:
"हमें लोगों को याद दिलाना है कि यह हमारा एकमात्र घर है और यदि हम इसके साथ बुरा व्यवहार करें तो हमारा काम तमाम हो जाएगा। बर्फ की चोटियाँ पिघल रही हैं। गर्मी और सर्दियाँ बहुत लम्बी हैं। हमें कहने की आवश्यकता है कि 'हाँ, कुछ गड़बड़ है'। जो कई धार्मिक नेता कह रहे हैं लोगों ने उसे सुनना प्रारंभ किया है, कि यह हमारा एकमात्र घर है और हमें इसकी देखभाल करनी होगी।"
मंच पर के एक बैंड ने समूची भीड़ा के 'वी आर द वर्ल्ड', के गायन का नेतृत्व किया। आर्चबिशप टूटू अपने पैरों पर खड़े हो नाचने और संगीत में झूमने लगे। अंत में उन्होेंने माइक्रोफोन लिया और परम पावन के लिए 'हैप्पी बर्थडे' के गायन का नेतृत्व किया जब मोमबत्तियों से ज्वलित एक बड़ा केक उनके समक्ष रखा गया। उन्होंने बच्चों के मोमबत्तियों को बुझाने में परम पावन की सहायता करने के लिए बच्चों को आमंत्रित किया। केक काटा गया और जब वह बच्चों और अतिथियों के बीच वितरित किया जा रहा, परम पावन, आर्चबिशप और टीम आनन्द मेकलोड़गंज लौट गए।
कल संवादों का अंतिम दिन होगा जो कि 'आनन्द की पुस्तक' का रूप लेने वाली है।