बेंगलुरू, कर्नाटक, भारत - ७ दिसंबर २०१५- आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने ट्रांस एशिया न्यूज सर्विस की एलिजाबेथ जेन और पीटीआई के बी .डी. नारायंनकर को साक्षात्कार दिया। सुश्री जेन ने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि क्या यह सत्य है कि परम पावन ने सुझाया है कि अगली दलाई लामा एक महिला हो सकती है। उन्होंने स्वीकार किया कि यह संभव है और समदिंग दोर्जे फगमो, स्थापित परंपरा का उदाहरण दिया, जो स्त्री अवतारों की परम्परा है तथा तिब्बत में प्रथम अवतिरत लामा, करमापा की परम्परा जितनी प्राचीन है।
जब उन्होंने पूछा कि क्या बर्मा और श्रीलंका में कुछ बौद्ध भिक्षुओं के अति व्यवहार को उचित ठहराया जा सकता है, तो परम पावन ने सीधा उत्तर दियाः "नहीं, कभी नहीं।" उन्होंने इन गड़बड़ियों की तुलना भारत की दीर्घकालीन सहिष्णुता और सद्भाव के साथ की, जो यहाँ की धार्मिक परंपराओं, वे जिनका जन्म भारत में हुआ और वे जो बाहर से आयी हैं, के बीच प्रबल है। उन्होंने पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि आई एस आई एस या दाएश धार्मिक अथवा राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है और परम पावन ने उत्तर दिया कि यदि उनकी प्रेरणा धार्मिक होती तो सभी मुसलमान एक दूसरे की हत्या कर रहे होते, जो वे नहीं कर रहे।
इस बात पर कि जो कट्टरता अभी हो रही है उनका प्रतिकार करने के उपाय हैं, उन्होंने सुझाव दिया कि मानव चित्त ने क्या किया जाना चाहिए बताने पर उसका प्रतिरोध करता है, पर जो वर्जित है उसके प्रति कौतूहल भाव रखता है। एक बेहतर उपाय संभवतः लोगों को समझाने का है कि यदि लोग इस तरह का व्यवहार करेंगे तो यह परिणाम होगा, जबकि दूसरे उपाय जो कि सद्भाव के विकास का है, उसका एक अलग परिणाम निकलेगा।
उन्होंने कहा "नालंदा विश्वविद्यालय की विशेषताओं में से एक है कि विचारों की एक विस्तृत श्रृंखला व्यक्त की गई और उस पर शोध हुआ। लोग बिना किसी एक अनम्य विचार का पालन किए बिना, उनका अध्ययन कर उनकी तुलना कर अपने निष्कर्ष पर पहुँचने में सक्षम थे।"
तिब्बत, चीन और भारत के बीच संबंधों पर चर्चा करते हुए परम पावन ने कहा कि जहाँ इस समय कोई औपचारिक चीनी - तिब्बती बातचीत नहीं हो रही परन्तु जानकार व्यवसायियों, सेवानिवृत्त अधिकारियों इत्यादि की अनौपचारिक कड़ी मौजूद है। उन्होंने कहा कि यह कहना अत्यंत कठिन है कि स्थिति किस रूप में सामने आएगी। ऐसी सूचनाएँ मिल रही हैं कि राष्ट्रपति शि जिनपिंग तिब्बत को लेकर एक अधिक समझौता पूर्ण दृष्टिकोण अपना रहे हैं, जबकि कट्टरपंथियों ने दृढ़ता से इसका विरोध किया है।
उन्होंने ९वीं शताब्दी में तिब्बती सम्राट की हत्या के बाद हुए तिब्बत के विखंडन पर अफसोस जताया। उन्होंने अनुमान लगाया कि परिस्थितियाँ अलग भी हो सकती थीं, यदि १३वें दलाई लामा ल्हासा में ही रहते, जब यंग हसबेंड अभियान १९०४ में वहाँ पहुँचा। उन्होंने कई अन्य खोए हुए अवसरों का उल्लेख किया जैसे कि एक उच्च तिब्बती अधिकारी की सलाह की उपेक्षा कर दी गई जो १९४६ में भारत तीर्थ यात्रा पर आया था और जिसने भारतीयों के स्वतंत्रता आंदोलन को देखा। उन्होंने भारतीय नेताओं के साथ संपर्क बनाने की सिफारिश की थी परन्तु कुछ भी नहीं किया गया। इसी तरह १९४८ में भारत सरकार ने तिब्बत की सरकार को एक संदेश भेजा था जिसमें चीन में साम्यवादियों की आनेवाली विजय और उसके संभावित परिणामों को लेकर चेतावनी थी। इसे भी नजरअंदाज कर दिया गया। एक बार चीनी सैनिकों ने १९५०- ५१ पूर्वी तिब्बत के भागों पर कब्जा कर लिया तो तिब्बती सरकार संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की पर वे असफल रहे।
"मैं नहीं सोचता कि नेहरू ने तिब्बत को लेकर कोई बड़ी गलतियाँ की। भारत की सरकार ने तिब्बतियों को चेतावनी देने की कोशिश की जिन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। नरसिंह राव ने मुझे स्पष्ट रूप से बताया कि भारत तिब्बत को चीन के एक भाग के रूप में नहीं पर चीन के एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में देखता है। शिमला समझौता वैध माना जाता है।"
यह पूछे जाने पर कि क्या मध्यम मार्ग दृष्टिकोण एक व्यावहारिक विकल्प बना हुआ है परम पावन ने कहा:
"चीन तिब्बत का निर्माण करे, पर इसकी पारिस्थितिकी और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करे। हमें भी अपनी संस्कृति और भाषा को संरक्षित रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।"
बी.डी. नारायंकर के प्रश्नों का उत्तर देते हुए परम पावन ने राष्ट्रपति ओबामा को उद्धृत किया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ईमानदार, सीधे हैं और देश के लिए एक स्पष्ट दृष्टि लिए हुए हैं। इस बीच भारत की छवि में सुधार हुआ है और आर्थिक विकास की इसकी संभावनाएँ बढ़ रही हैं। परम पावन ने भारत में स्वतंत्र रूप से अपने विचार रखने की क्षमता की तुलना चीन के अधिनायकवाद के साथ की। उन्होंने कहा कि चीन द्वारा एशियाई बुनियादी ढांचे के निवेश बैंक के प्रारंभ का प्रश्न जटिल है और वह स्वयं को उस कुछ पर टिप्पणी करने के लिए योग्य नहीं मानते।
चीन की तुलना अमरीका से करते हुए परम पावन ने कहा कि संयुक्त राज्य अमरीका की जिस बात के वे प्रशंसक हैं वह आणविक अस्त्र अथवा सैन्य बल नहीं अपितु स्वतंत्रता, लोकतंत्र और उन्मुक्तता का सशक्त रूप है। जहाँ वे कठोर परिश्रम के लिए चीनी लोगों की प्रशंसा करते हैं, उन्होंने टिप्पणी की कि चीनियों को सही जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जो उन्हें वास्तविकता का आकलन करने में तथा सही और गलत के अंतर का निर्णय लेने में सक्षम करेगा। उस आधार पर चीन में प्रचलित सेंसरशिप, जो कि लगभग सरकार द्वारा लोगों को मूर्ख बनाने के बराबर है, अनैतिक है।
परम पावन ने आगे जोड़ा कि चीनी न्यायिक प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के स्तर तक उठाए जाने की आवश्यकता है ताकि साधारण लोग भी संरक्षण प्राप्त कर सकें। उन्होंने न्यूयॉर्क में कुछ वर्षों पूर्व चीनी लेखकों से हुई भेंट का उल्लेख किया जिन्होंने बताया कि नैतिकता की दृष्टि से पिछले ५००० वर्षों में चीन अपने निम्नतम स्तर पर है।
मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन गाड़ी से नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निमहांस) गए, जहाँ कल गार्डन ऑफ समाधि मांइड सेंटर के साथ संयोजन के रूप में इंटिग्रेटिंग साइंटिफिक एंड कान्टेम्लेटिव एप्रोचस टु एक्सप्लोर द माइंड पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। गलियारे में उन्होंने थोड़े समय तक ध्यान के प्रभाव के बारे में वैज्ञानिक निष्कर्षों की एक प्रदर्शनी देखी।
सभागार में कुलपति प्रो सतीश चंद्र ने परम पावन और श्रोताओं का स्वागत किया और निमहांस के कार्य के बारे में एक संक्षिप्त रिपोर्ट दी, जिसमें विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य में योग को जोड़ना भी शामिल था। डॉ शिवराम वरम्बल्ली गार्डन ऑफ समाधि मांइड सेंटर के गतिविधियों के बारे में इसी तरह की एक रिपोर्ट दी। परम पावन के लिए स्वागतीय संबोधन में रिचर्ड गियर ने संयुक्त राज्य अमेरिका में दूसरे विश्व युद्ध के बाद की ध्यान समझ के संबंध में डीटी सुजुकी के योगदान की बात की।
उन्होंने मननशील और वैज्ञानिक विचारों का एक खुला आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में माइंड एंड लाइफ इंस्टीट्यूट के अभूतपूर्व कार्य का उदाहरण दिया। उन्होंने इसे "हमारे समय के सबसे रोमांचक बातों में से एक" के रूप में वर्णित किया। वे "हमारे समय के शीर्ष व्यक्तियों में से एक परम पावन दलाई लामा," को स्थान देते हुए एक ओर हुए।
"आदरणीय भाइयों और बहनों, मेरे लिए यहाँ आकर आप शिक्षकों, छात्रों और अतिथियों से मिलना एक महान सम्मान की बात है," परम पावन ने श्रोताओं से कहा। "मैं सदा स्पष्ट करता हूँ कि हम सभी मनुष्य के रूप में समान हैं शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से। मैं भी मात्र एक इंसान हूँ। मैं आपको कुछ चीज़ों के बारे में बताना चाहूँगा जो मैंने सीखी हैं जो कि एक शांत चित्त को बनाए रखने में सहायक हैं। एक तो यह कि परोपकार का अभ्यास आंतरिक शक्ति को जन्म देता है। एक और कि सभी वस्तुओं के प्रतीत्य समुत्पाद के कारण उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों से देखना हमें वास्तविकता के सही आकलन में सक्षम करता है, अतः हमारा दृष्टिकोण यथार्थवादी है। जिन समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं उनमें से कई हमारी अपनी बनाई हुई हैं। इसका कारण यह नहीं कि हममें से कोई समस्या चाहता है, पर इसलिए कि एक सुखी जीवन की हमारी इच्छा के बावजूद, हम अज्ञानता और अदूरदर्शिता से काम करते हैं।
"हमारे पास एक अद्भुत मस्तिष्क है पर हमें इसका उचित रूप से उपयोग करना चाहिए। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण शोध और प्रयोग के प्रति संशयात्मक होना है। मैं इस उपाय का प्रशंसक हूँ और मेरा विश्वास है कि यह अतीत के नालंदा पंडितों के दृष्टिकोण से मेल खाता है। प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान अत्यधिक विकसित है, जबकि आधुनिक मनोविज्ञान की वहाँ तक पहुँच नहीं है। यह देखने हेतु कि आज हमारे लिए क्या प्रासंगिक है, इसकी जाँच और विश्लेषण आवश्यक है। आधुनिक विज्ञान ने भौतिक विश्व को भली भाँति जांचा है, जबकि बौद्ध विज्ञान चित्त और भावनाओं के कार्य की गहन समझ रखता है।"
परम पावन ने दृश्य तथा वास्तविकता के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर और विध्वंसकारी भावनाओं का सामना करने में उनकी भूमिका की ओर ध्यानाकर्षित किया। उन्होंने अपने पुराने मित्र हारून बेक को उद्धृत किया जिसने उन्हें बताया था कि जब हम क्रोधित होते हैं तो हमारी क्रोध की वस्तु बहुत नकारात्मक प्रतीत होती है पर उसका ९०% हमारा मानसिक प्रक्षेपण है।
सभा की ओर से कई रोचक प्रश्न थे। पहला था कि क्या बुद्ध ने अपनी शिक्षा उपनिषदों पर आधारित की थी। परम पावन ने उत्तर दिया कि हिंदू और बौद्ध धर्म जैसी भारतीय परंपराओं में कई बातें आम हैं जैसे त्रिशिक्षा - शील, समाधि और प्रज्ञा। अंतर यह है जैसा कि उन्होंने स्वामी मित्र को बताया कि "आप आत्मन् (एक स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाली आत्मा) में विश्वास करते हैं, जबकि मैं अनात्मन (किसी भी स्वतंत्र रूप से विद्यमान आत्मा के अभाव) में विश्वास करता हूँ।"
एक अन्य प्रश्नकर्ता ने परम पावन की इस टिप्पणी को चुनौती दी कि आधुनिक मनोविज्ञान प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान के समकक्ष नहीं है, क्योंकि आधुनिक मनोविज्ञान वैज्ञानिक निष्कर्षों द्वारा सिद्ध है। उन्होंने उत्तर दियाः
"आधुनिक वैज्ञानिक शोध परीक्षण की वस्तुओं के माप के लिए उपकरणों के उपयोग पर निर्भर होते है। यह चित्त द्वारा सरलता से नहीं किया जा सकता। परन्तु किसी वस्तु को न देख पाने का अर्थ यह नहीं कि वह उपस्थित नहीं है। यह भी बात है कि अब तक ऐन्द्रिक चेतना तथा धारणात्मक चेतना के बीच के अंतर और मस्तिष्क पर उनके विभिन्न प्रभावों की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।"
एक युवती के लिए जो शून्यता या स्वभाव सत्ता के अभाव के विषय में और अधिक जानना चाहती थी, परम पावन ने नागार्जुन के 'मूलमध्यमकारिका' से एक श्लोक उद्धृत कियाः
जो प्रतीत्य समुत्पाद है
उसे शून्यता कह व्याख्यायित किया गया है
चूँकि वह प्रतीत्य प्रज्ञप्ति है,
वह स्वयं मध्यमा प्रतिपद है।
जब किसी ने पूर्व तथा अपर जीवन के विषय में पूछा तो परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने इसकी चर्चा किसी अन्य स्वामी के साथ की थी जिनका वे बहुत सम्मान करते हैं, जिन्होंने बार बार यह पूछे जाने पर कि वे किस प्रकार पूर्व जन्मों को समझते हैं, उत्तर दिया, "उनकी स्मृति।"
जैसे ही कार्यक्रम का समापन होने को आया, परम पावन ने दर्शकों से आग्रह कियाः
"हम सभी पर मानवता के कल्याण को सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व है, चलिए सब एक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने का प्रयास करें। हमें नैतिकता या मानवीय मूल्यों की स्वीकार्यता के प्रति एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए उपाय खोजने होंगे। उन्मुक्त हृदय सुरक्षा और विश्वास की भावना को प्रोत्साहित करता है जो कि सच्ची मैत्री का आधार है जो कि सबके लिए हितकारी है। धन्यवाद।"