थेगछेन छोलिंग,मेक्लॉडगंज, धर्मशाला, हि प्र,भारत, जुलाई २०,२०१५ - आज प्रातः प्रारंभ में परम पावन दलाई लामा ने नेपाल के भिक्षु और भिक्षुणियों द्वारा प्रदर्शित शास्त्रार्थ देखने के लिए चुगलगखंग के नीचे अपना आसन ग्रहण किया। वे कोपान विहार, शेलकर छोड, छुवार गदेन डोपेन लिंग, श्री छुसांग गोम्पा,सामतेनलिंग डुबगोन, थुकजे छोलिंग, सरकोंग गदेन जामगोनलिंग और गोशक फुनछोग छोलिंग साथ ही दो भिक्षुणी विहारों , किरोंग थुकजे छोलिंग और कोपान खेछो गेकिल लिंग से आए थे ।
उन्होंने अपने अध्ययन और गतिविधियों की एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की । परम पावन ने उनकी सराहना की और टिप्पणी की, कि ४० वर्ष पूर्व उन्होंने सलाह दी थी कि वे विहार जो अधिकांश रूप से आनुष्ठानिक कार्यों में लगे हुए है और भिक्षुणी विहारों,को अध्ययन के कार्यक्रम प्रारंभ करने चाहिए । उन्होंने उनसे कहा कि उन्हें न केवल अध्ययन, मनन और भावना करने की आवश्यकता है,जो वे अभ्यास में जानते हैं ,पर उन्हें एकीकृत करने की भी आवश्यकता है।
चुगलगखंग के सिंहासन से परम पावन ने घोषणा की ,कि ग्यारह विभिन्न संगठनों ने तेन -शुग ,अथवा दीर्घायु समर्पण का अनुरोध प्रस्तुत किया था। उनमें नेपाल का गेलुग एसोसिएशन,तिब्बती युवा कांग्रेस,यू-छांग प्रांत के लोग,शांग गदेन छोकोर लिंग,तकलुंग कग्यु परम्परा, तिब्बती महिला संगठन, गुछुसुम आंदोलन, नारी छिदुन एसोसिएशन,पोखरा का लोद्रिक एसोसिएशन,नेपाल, मध्यम मार्ग पीपुल्स एसोसिएशन और हिमालय बौद्ध सांस्कृतिक समाज शामिल थे । चूँकि उन सब के लिए अलग समर्पण करने लिए समय अपर्याप्त था , उन सब को आज एक साथ लाया गया है ।
"आज छठवें तिब्बती मास के चौथे दिन हम बुद्ध के प्रथम शिक्षण का समारोह मनाते हैं, " परम पावन ने खचाखच भरे जनसमुदाय से कहा । "वे एक निर्माणकाय के रूप में प्रकट हुए जो साधारण लोगों द्वारा देखा जा सकता है और उन्होंने एक राजकुमार का जीवन जिया । एक बार जब उन्होंने चार संकेत देखे - जन्म, जरा, व्याधि और मृत्यु - उन्होंने राजसी जीवन त्याग दिया और छह वर्षों तक तप किया। नैरात्म्य पर भावना करते हुए उन्होंने सम्यक् संबुद्धत्व की प्राप्ति की और अपने अनुभव को दूसरों के साथ साझा कर, उन्होंने मार्ग का प्रकटीकरण किया ।
"तीन धर्म चक्र प्रवर्तन हुए थे । प्रथम में बुद्ध ने चार आर्य सत्यों की , द्वितीय में प्रज्ञा- पारमिता और तीसरे में चित्त की प्रकृति और बुद्ध प्रकृति की देशना की । जहाँ प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन सार्वजनिक रूप से हुआ ,दूसरा कुछ चुने शिष्यों के दल को ही िदया गया ।
"आज, प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन का स्मरणोत्सव मनाना शुभ है । मैं श्वेत तारा चिन्तामणि चक्र से संबंधित दीर्घायु अभिषेक दूँगा और उसके साथ हम बोधिचित्तोत्पाद के समारोह का संचालन करेंगे । उसके पश्चात आप दीर्घायु समर्पण कर सकेंगे। "
परम पावन ने बताया कि तिब्बती बौद्ध परम्परा का मूल नालंदा परम्परा में है जिसकी विशेषता शिक्षाओं का संशयात्मक विश्लेषण है । यह बुद्ध की अपने अनुयायियों के लिए अपनी स्वयं की सलाह से मेल खाता था कि वे उनकी शिक्षाओं को उनके प्रति सम्मान रखने के कारण स्वीकार न करें, पर केवल उस समय, जब विश्लेषण द्वारा वे स्वयं उसकी सच्चाई के संबंध में आश्वस्त हो जाएँ ।
उन्होंने कहा कि जहाँ तिब्बती शब्द 'छोस' में रूपांतरण का अर्थ है, संस्कृत शब्द 'धर्म' में संयम,रोकने और सुरक्षा की भावना है ।
उन्होंने ध्यानाकर्षित िकया कि आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य सुख चाहते हैं और दुख नहीं चाहते । पर फिर भी आज की शिक्षा प्रणाली केवल भौतिक विकास के िलए समर्पित है जो अपर्याप्त है । इसके साथ हमें जिसकी आवश्यकता है वह है, आंतरिक शांति की भावना,मानसिक शांति । उसे प्राप्त करने के लिए हमें अपनी उद्वेलित करने वाली भावनाओं का सामना करने की आवश्यकता है, जो उन कारकों में से एक हैं जो उसे नष्ट करती हैं । परम पावन ने सुझाया कि यद्यपि प्रदक्षिणा और प्रार्थना का मूल्य है , पर वे हमारी अज्ञानता पर काबू पाने में हमारी सहायता नहीं करेंगे । मात्र प्रज्ञा व बुद्धि ऐसा कर सकते हैं । यद्यपि प्रेम व करुणा सभी धार्मिक मार्गों में समान हैं ,केवल बौद्ध धर्म ऐसी प्रज्ञा की शिक्षा देता है जो अज्ञान पर काबू पाता है , जिसमें वास्तविकता की भ्रांति शामिल है ।
"अपनी रिपोर्ट में नीचे नेपाल के भिक्षु और भिक्षुणियों ने बौद्ध धर्म और विज्ञान के बीच चल रहे एक संवाद का संदर्भ दिया । मैं बौद्ध विज्ञान और आधुनिक विज्ञान से संबंधित एक संवाद के बारे में बात करना पसंद करता हूँ । उदाहरण के लिए, जहाँ क्वांटम भौतिकी कहता है कि वस्तुओं में वस्तुनिष्ठता का अभाव है ,चित्त मात्र परम्परा कहती है कि किसी भी वस्तु का बाहरी अस्तित्व नहीं होता । मैं यह सोचता हूँ कि एक क्वांटम भौतिक विज्ञानी के मन में इस तरह की समझ का उसकी उद्वेलित करने वाली भावनाओं पर क्या कोई प्रभाव पड़ता है ?
"तिब्बती बौद्ध धर्म व्यापक और गहन है, पर हमें उसका विकास अपनी समझ के आधार पर करना चाहिए , न कि यह बहाना कर कि यह हमारे माता पिता की आस्था है । जब माओ ज़ेदोंग ने मुझे बताया कि धर्म जहर है, मुझे लगता है कि वह अंध विश्वास के साथ धर्म का पालन करने का संदर्भ दे रहे थे ।
" लगभग चालीस वर्षों से मैंने विहारों में जहाँ अध्ययन की कोई परम्परा नहीं थी , इसे लागू करने का आग्रह किया है । इन दिनों मैं आम लोगों से भी अध्ययन करने का आग्रह करता हूँ और अधिक से अधिक संख्या में लोग ऐसा कर रहे हैं । नालंदा परम्परा ने तर्क और ज्ञान-मीमांसा पर बल दिया जो ज्ञान प्रकृति, स्रोतों और सीमा के साथ संबंधित है । हम तिब्बतियों ने इसे कायम रखा है । यह हमारी निधि है, और यह विश्व के लिए भी निधि बन सकती है ।"
परम पावन ने तिब्बतियों को हिमालय के लोगों से जो दयालुता प्राप्त हुई है , उसके लिए आभार व्यक्त किया । कई भिक्षु जो पुनर्स्थापित तिब्बती विहारों में शामिल हुए हैं , उन्हें लाभ मिला , पर साथ ही परम्परा भी लाभान्वित हुई है । उन्होंने उदाहरण के रूप में , ग्युमे लामा उमज़े , गेन लोबसांग , शरचे महाविहार के उपाध्याय , जांगछुब छोदेन, चोसफल ज़ोपा , और गदेन ठि रिनपोछे, रिज़ोंग रिनपोछे का उल्लेख किया । उन्होंने तिब्बत में डेपुंग महाविहार में दिवगंत बकुला रिनपोछे के बाल्यकाल की कहानी का भी स्मरण किया । जब रिनपोछे के शिक्षक ने उन्हें डाँटा , तो रिनपोछे ने क्षमा मांगी और उन्हें क्षमा करने को कहा क्योंकि वे सीमावर्ती प्रदेश से आए थे । परम पावन ने टिप्पणी की , कि आजकल लद्दाख एक केंद्रीय भूमि की तरह अधिक है ।
" यद्यपि हम शरणार्थी हैं," परम पावन ने कहा , "हमने अपनी परम्पराओं का संरक्षण किया है और उन्हें दुनिया के साथ साझा किया है।"
जब उन्होंने श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक देना प्रारंभ किया , जिसमें बोधिचित्तोत्पाद का समारोह भी शामिल था , उन्होंने टिप्पणी की , कि यदि हम बुद्ध के िवशाल और गहन शिक्षाओं को चर्या में लाना चाहें तो हमें दीर्घायु की आवश्यकता है । उन्होंने सलाह दी , कि यदि संभव हो तो बाल्यकाल से ही एक स्पष्ट चित्त बनाए रखना महत्वपूर्ण है ।
" यदि आप आगामी कुछ महीनों में मृत्यु को प्राप्त न हों , तो आप अच्छे पुनर्जन्म के लिए कारणों का निर्माण करने में सक्षम हो सकते हैं । यदि आप अगले कुछ वर्षों में न मरें तो आप स्थायी सुख के कारणों का निर्माण करने में सक्षम हो सकते हैं, "उन्होंने कहा ।
जिस क्षण श्वेत तारा अभिषेक सम्पन्न हुआ , सभा ने दीर्घायु समर्पण करना प्रारंभ कर दिया । प्रतीकात्मक और वास्तविक भैंट समर्पित करने के प्रथागत शोभा यात्रा के दौरान , भाग लेने वाले ११ संगठनों से लगभग १३०० लोग मंदिर होकर गुज़रे , जिनमें से कई उत्सुकता पूर्वक सिंहासन की ओर देख रहे थे , इस आशा में कि , परम पावन की दृष्टि उन पर पड़े । इस सुखद अवसर पर परम पावन ने टिप्पणी की , कि जबकि कई अपने ८१ वर्ष को प्रतिकूल मानते हैं , उनके िलए यह सबसे अधिक शुभ रहा है । उनके निवास स्थल पर लौटने के बहुत देर बाद तक , वर्षा के बावजूद जिन लोगों ने समारोहों में भाग लिया था , उनका मंदिर के प्रांगण में गाना तथा नाचना बना रहा ।