सूरत, गुजरात, भारत - १ जनवरी २०१५ - आज तड़के प्रातः परम पावन दलाई लामा ने गुजरात तट पर स्थित सूरत के लिए पुणे से एक घंटे की उड़ान भरी। वे हीरे के व्यवसाय में एक सफल उद्यमी गोविंद ढोलकिया के अतिथि थे। सूरत हवाई अड्डे पर स्वागत समिति के सदस्यों द्वारा परम पावन का स्वागत किया गया और वहाँ से वे सीधे श्री रामकृष्ण निर्यात के नए आवासों के लिए गाड़ी से गए। श्री ढोलकिया ने उन्हें अपनी कंपनी का नया परिसर दिखाया, पर्यावरण अनुकूल भवन, जहाँ वे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी द्वारा हीरा तराशते हैं।
उन्होंने तेरह वर्ष की आयु में हीरा काटने का काम करने के लिए अपने कृषि परिवार को छोड़ने की कहानी सुनाई। उन्होंने अंततः अपनी स्वयं की कंपनी की स्थापना के सपने को पूरा किया और वे अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरु श्री धोनग्रेजी महाराज से दूसरों के साथ सम्मान के व्यवहार के मूल्य को सीखने को देते हैं। उन्होंने पाया कि परिणाम स्वरूप अन्य आपके साथ सहयोग और बदले में सम्मान भरा व्यवहार करते हैं। उन्होंने कहा कि वे ध्यान रखते हैं कि जो उनकी कम्पनी के िलए काम कर रहे हैं, उन्हें वे अपने परिवार के सदस्यों के रूप में देखें। परम पावन ने उत्तर दिया कि उनका दृष्टिकोण उन्हें जापान में कंपनियों का स्मरण कराता है जहाँ सफलता की ताली श्रमिकों और प्रबंधन के बीच मौजूद सम्मान और समानता है। उन्होंने कहाः
"प्रौद्योगिकी के बिना मानवता का कोई भविष्य नहीं है, पर हमें सावधान रहना होगा कि हम इतने यांत्रिक न हों जाएँ कि अपनी मानव भावनाओं को खो बैठें।"
परम पावन ने हीरे तराशने के विभिन्न चरणों का दौरा किया और उस में काम कर रहे लोगों से बात की। अपने ही जिद पर वे कर्मचारियों के भोजन कक्ष में मध्याह्न के भोजन के लिए उनके साथ शामिल हुए।
मध्याह्न में, परम पावन ने वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के सभागार में ४००० से अधिक, अधिकांशतः युवा लोगों को संबोधित किया।
"प्रिय बड़े भाई और बहनों और छोटे भाइयों और बहनों, मैं वास्तव में आप युवाओं के साथ यहाँ बातचीत करने का अवसर पाकर बहुत खुश हूँ। दो कारण हैं। पहला कि अब मैं एक वृद्ध व्यक्ति हूँ और युवा लोगों के साथ जुड़कर मैं भी युवा अनुभव करता हूँ। जब मैं अधिक आयु वाले लोगों के साथ होता हूँ, तो मैं अपने आपको यह सोचता पाता हूँ कि पहले कौन जाएगा, आप या मैं?"
"दूसरा कारण यह कि अतीत, अतीत है। हम उससे सीख सकते हैं, पर हम उसे बदल नहीं सकते। भविष्य अभी तक नहीं आया है, वह खुला है। क्या होगा इसकी सुनिश्चितता नहीं है। इसे परिवर्तित करना हमारी शक्ति में है पर ऐसा करने हेतु हमें दृष्टि की, एक दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य लेने की आवश्यकता है, और हमें कठोर परिश्रम करना होगा। मेहनत करनी होगी। आप जो आज युवा हैं, आप २१वीं सदी की पीढ़ी के हैं। यदि आप को इस िवश्व में एक अधिक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण भविष्य के दृष्टिकोण को पूरा करना है तो आपको प्रत्येक दिन अधिक सार्थक रूप से जीना सीखने की आवश्यकता है। अध्ययन के माध्यम से आपको अपनी मानवीय बुद्धि पैनी करनी होगी, पर साथ ही एक सौहार्दपूर्ण हृदय के विकास की भी आवश्यकता है।"
उन्होंने एक व्यापक परिप्रेक्ष्य और एक अधिक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने के महत्व को दोहराया। उन्होंने कहा कि वास्तविकता को स्पष्ट रूप से देखने के लिए हमें एक से अधिक कोणों से देखने की आवश्यकता है। हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जब वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि बनी हुई है, और जलवायु परिवर्तनों के संकट बढ़ रहे हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं जो समस्त मानवता को प्रभावित करते हैं। हतोत्साहित होना सरल होगा। पर परम पावन ने कहा उन्होंने सौहार्दता को आंतरिक शक्ति और आत्म-विश्वास के एक स्रोत के रूप में पाया है। यह आपके उत्साह को बनाए रखने में और एक ईमानदार, पारदर्शी रूप से जीने में सहायक होता है।
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परम पावन ने प्राचीन भारतीय ज्ञान में पाई जाने वाली प्रज्ञा का संदर्भ दिया। एक ओर उन्होंने महान भारतीय भौतिक विज्ञानी राजा रामण्णा द्वारा बताए गए उत्साह और गर्व को उद्धृत िकया कि उन्हें नागार्जुन के लेखन में वे विचार देखने को मिले जो क्वांटम भौतिकी के समकालीन निष्कर्षों से पूर्व कालीन थे। दूसरी ओर परम पावन ने प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान में हमारे चित्त तथा भावनाओं के कार्य कलापों के ज्ञान की सम्पदा की प्रशंसा की, ज्ञान जो आज बहुत मूल्यवान हो सकता है। उन्होंने भारत की अहिंसा, और धर्मनिरपेक्षता की सदियों पुरानी परम्पराओं की भी सराहना की।
उन्होंने अपने श्रोताओं से कहा कि सबसे अधिक जनसंख्या वाले लोकतांत्रिक देश से संबंधित होते हुए आज भारतीय युवाओं को देखना चाहिए कि वे किस प्रकार न केवल भारतीयों के लिए अपितु विश्व के लिए एक समग्र रूप में योगदान कर सकते हैं।
"हम आज जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से अधिकांश मानव निर्मित हैं। इसलिए समाधान भी हमारी मुट्ठी में ही होना चाहिए। परन्तु यह महत्वपूर्ण है कि हम मानवता को समग्र रूप में लें।"
उनसे पूछे गए प्रश्नों में, पहला धर्म के वास्तविक मूल्य के विषय पर था। परम पावन ने उत्तर दिया ः
"सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ प्रेम, सहिष्णुता, सादगी और आत्म-अनुशासन का संदेश संप्रेषित करती हैं। वे मानवता के लिए सहायक हैं। यह आप पर निर्भर है कि आप एक धार्मिक परम्परा का पालन करना चाहते हैं अथवा नहीं। पर यदि आप करते हैं, तो महत्वपूर्ण बात सच्चाई से करने की है। एक बात जो स्पष्ट है वह यह कि, सभी मनुष्यों को स्नेह की आवश्यकता है और हमारी शिक्षा में आज हमें ऐसे मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के उपायों को ढूँढने की आवश्यकता है जो प्रत्येक को शामिल करे। अपने साझे अनुभव, स्नेह, तथा वैज्ञानिक निष्कर्ष के के आधार पर हमें एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण को अपनाने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारा चित्त तथा भावनाएँ किस प्रकार कार्य करती हैं।"
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एक अन्य छात्र ने पूछा कि परम पावन क्या अनुभव करते हैं कि उनकी प्रज्ञा उन्हें बुद्ध की शिक्षाओं से सीधे मिलती है या अपने स्वयं के अनुभव से। परम पावन ने उत्तर दिया कि बुद्ध ने अपने अनुयायियों को प्रोत्साहित किया था कि वे जो भी कहें, उनके शिष्य उसे उसी तरह स्वीकार न करें पर उसका परीक्षण, जाँच और िवश्लेषण करें। उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा करते हुए नागार्जुन जैसे महान आचार्यों का अनुपालन ठीक उसी प्रकार िकया। उन्होंने कहाः
"मैं भावनाओं के परिवर्तन के िलए विश्लेषणात्मक ध्यान को सबसे प्रभावशाली उपाय मानता हूँ।"
अंत में एक युवती ने पूछा कि क्या उनके पास आज छात्राओं के लिए कोई सलाह है। अपने उत्तर में उन्होंने मानव इतिहास के बारे में बात की, कि कुछ समय पहले कैसे लोग बिना नेतृत्व का विचार किए समूहों में रहते थे और उनके पास जो होता उसे आपस में बाँट लिया करते थे। परन्तु कृषि, संपत्ति और उसकी सुरक्षा के िलए विकास के साथ, एक नेतृत्व की आवश्यकता हुई। उस समय कोई शिक्षा न थी और नेतृत्व की कसौटी शारीरिक शक्ति थी। इस प्रकार पुरुष प्रभुत्व अस्तित्व में आई। शिक्षा के उद्भव ने पुरुषों और महिलाओं के बीच कुछ सीमा तक समानता की भावना बहाल कर दी। पर केवल शिक्षा पर्याप्त नहीं है। ऐसे समय में जब प्रेम और करुणा की एक व्यापक भावना को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है, विज्ञान ने यह प्रमाण प्रस्तुत िकए हैं कि स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा दूसरों की आवश्यकता और पीड़ा के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। इसलिए हमें आवश्यकता है कि स्त्रियाँ नेतृत्व के लिए अधिक से अधिक उत्तरदायित्व लें। और जहाँ असमानता हो हमें उसे सुधारने की ओर कार्य करना चािहए।
लगभग ७५० तिब्बतियों से भेंट करते हुए, जो सूरत में व्यापार करने के लिए आते हैं, परम पावन ने उनसे कहा कि तिब्बती भावना मजबूत बनी हुई है। उन्होंने उन्हें २०वीं सदी का बौद्ध होने के लिए, बौद्ध धर्म क्या है, उसका अध्ययन करने और समझने और तिब्बती भाषा में गर्व का अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने उनसे यह भी कहा कि उन्होंने तिब्बती आवासों से युवाओं के बाहर जाने और इसका उनके भविष्य पर प्रभाव के विषय में डॉ सिक्योंग लोबसंग सांगे के साथ चर्चा की है। उन्हें देखने के लिए आने के लिए, उन्होंने उनका धन्यवाद करते हुए समाप्त किया ः
"खुश रहिए।"
कल, परम पावन सूरत में सतोकबा स्मारक पुरस्कार कार्यक्रम में भाग लेंगे।