जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली, भारत - १२ नवंबर २०१५- आज प्रातः परम पावन दलाई लामा जब अरावली पहाड़ियों के उत्तरी क्षेत्र में विस्तृत जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के हरे भरे परिसर में पहुँचे तो रेक्टर प्रो. प्रसेनजीत सेन और कुलपति प्रोफेसर एस के सोपोरी ने उनका स्वागत किया। तिब्बती छात्रों ने भी एक पारंपरिक तिब्बती स्वागत समर्पित किया।
सभागार में प्रवेश करने से पूर्व कुलपति ने उन्हें एक पदक प्रस्तुत किया जिसमें विश्वविद्यालय का लोगो है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक आदान प्रदान और मनुष्य की बेहतरी के लिए ज्ञान की खोज का प्रतिनिधित्व हुआ है। इसके बाद उन्होंने मंच पर परम पावन का अनुरक्षण किया, जहाँ प्रोफेसर प्रसेनजीत सेन ने कार्यक्रम का एक संक्षिप्त परिचय दिया।
परम पावन और एकत्रित अतिथियों का अभिनन्दन करने के पश्चात प्रोफेसर सेन ने समझाया कि जो प्रारंभ होने वाला था वह अनूठा था, क्वांटम भौतिकी और माध्यमक दर्शन पर विशेषज्ञों के बीच एक चर्चा। उन्होंने कहा कि आशा यह थी कि दो अलग-अलग धाराओं के संगम का निर्माण किया जाए और यही कारण है कि प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। उन्होंने सबका ध्यान पंक्तिबद्ध रूप से औंधे रखे हुए मिट्टी के सकोरों की ओर आकर्षित किया जो अधिकांश रूप से दही जमाने या पक्षियों को दाना चुगाने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। छात्रों ने उन्हें भारतीय बौद्ध स्तूप के पारंपरिक आकार का सुझाव देने के लिए इस प्रकार व्यवस्थित रखा था। उनकी संख्या आठ थी जो आठ शुभ प्रतीक (अष्टमंगल) सुझा रहे थे।
कुलपति प्रोफेसर एस के सोपोरी ने भी परम पावन और अन्य अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि वे इस प्रकार के सम्मेलन के आयोजन और इसके लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय को कार्यक्रम स्थल के रूप में चुनने के लिए परम पावन के प्रति आभारी हैं। परम पावन ने सभा को संबोधित करने के लिए उनके निमंत्रण का उत्तर देते हुए कहा:
"आदरणीय बड़े और छोटे भाइयों तथा बहनों, सबसे प्रथम मैं आपको बताना चाहूँगा कि मैं स्वयं को एक सामान्य मनुष्य मानता हूँ। कोई विशेष नहीं। मैं एक साधारण मनुष्य हूँ जिसने सात या आठ वर्ष की आयु में ग्रंथों को कंठस्थ करते हुए अध्ययन प्रारंभ किया। आज ८० वर्ष की आयु में अब भी मैं नालंदा विश्वविद्यालय के पंडितों के विचारों का प्रतिदिन पठन और चिन्तन करता हूँ। उन्मुक्त चित्त रखने के लिए मैं इसे वास्तव में उपयोगी पाता हूँ। और मैं बुद्ध की सलाह के प्रति सजग रहता हूँ कि मात्र उनके प्रति विश्वास या भक्तिवश उन्होंने जो कहा उसे स्वीकार न करूँ, पर केवल परीक्षण, खोज और प्रयोग करने के बाद।
"जब मैं लगभग १९ या २० वर्ष का था तो विज्ञान को लेकर मेरी जिज्ञासा उत्पन्न हुई जो कि यांत्रिक चीजों में रुचि और वे किस प्रकार कार्य करते हैं, से प्रारंभ हुई। चीन में १९५४/५ में, मैंने माओत्से तुंग से कई बार भेंट की। एक बार उन्होंने मुझमें वैज्ञानिक चित्त रखने के लिए मेरी सराहना की और साथ में यह भी जोड़ा कि धर्म विष था शायद यह सोचकर कि यह किसी ऐसे को जिसका वैज्ञानिक चित्त है, आकर्षित करेगा। एक शरणार्थी के रूप में भारत में आने के बाद मुझे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से कई लोगों से मिलने का अवसर मिला, जिनमें वैज्ञानिक भी थे। मैंने ब्रह्माण्ड विज्ञान, तंत्रिका जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जिसमें क्वांटम भौतिकी भी शामिल थे पर केन्द्रित संवाद की एक श्रृंखला प्रारंभ की। ये चर्चाएँ बहुत सीमा तक पारस्परिक रूप से लाभदायक रही हैं। वैज्ञानिकों ने चित्त और भावनाओं के बारे में और अधिक सीखा है, जबकि हमने पदार्थ का अधिक सूक्ष्म विवरण प्राप्त किया है। इसमें जिसने मार खाई है वह मेरा मेरु पर्वत पर विश्वास, जिसका वर्णन प्राचीन भारत में ब्रह्मांड की धुरी के रूप में किया गया है।
"८वीं सदी के विद्वान शांतरक्षित की करुणा के कारण बौद्धों में केवल तिब्बतियों ने श्रमसाध्य अध्ययन और अभ्यास के माध्यम से नालंदा परम्परा को संरक्षित रखा है।
"लगभग १५-२० वर्ष पहले किसी बैठक में भारतीय भौतिक विज्ञानी राजा रामण्णा ने मुझे बताया कि वे नागार्जुन पढ़ रहे थे और उन्हें यह देख हैरानी हुई कि उन्हें जो कहना था उसमें से अधिकांश उससे मेल खाता था, जो उन्होंने क्वांटम भौतिकी के विषय में समझा था। एक वर्ष पूर्व कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में कुलपति प्रो एस भट्टाचार्य ने उल्लेख किया कि क्वांटम भौतिकी के अनुसार किसी भी वस्तु का वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं है, जिसे सुनकर मुझे उसमें और चित्तमात्रिन और माध्यमक दर्शन के बीच समानता दिखी, विशेषकर नागार्जुन का तर्क कि वस्तुओं का अस्तित्व मात्र उसके ज्ञापित रूप से है।
"मैं जोड़ना चाहूँगा कि मैं उस हर व्यक्ति के प्रति प्रशंसा व्यक्त करता हूँ जिसने यहाँ इस संवाद को संभव करने में योगदान दिया है।
"मेरे जीवन के प्रारंभिक काल में, विज्ञान का उपयोग भौतिक व आर्थिक विकास के लिए किया गया। बाद में २०वीं सदी में, वैज्ञानिकों ने यह समझना प्रारंभ किया कि शारीरिक स्वास्थ्य और कल्याण हेतु चित्त की शांति महत्वपूर्ण है। निश्चित रूप से हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनका मूल हमारा चित्त व भावनाएँ हैं। यद्यपि हम इन समस्याओं के समाधान हेतु सहायता के लिए ईश्वर या बुद्ध से प्रार्थना के इच्छुक हो सकते हैं, पर वे उत्तर दे सकते हैं कि चूँकि हमने इन समस्याओं को जन्म दिया है, उनका समाधान भी हम पर निर्भर है। यही कारण है कि मैं प्रायः सलाह देता हूँ कि यह हम पर निर्भर करता है कि एक और अधिक करुणाशील विश्व के निर्माण के लिए कार्य करें। हमें सार्वभौम मानवीय मूल्यों को प्रतिस्थापित करने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
"मेरी आशा है कि इस तरह के सम्मेलन दो उद्देश्यों को संबोधित कर सकते हैं: हमारे ज्ञान का विस्तार और वास्तविकता के प्रति हमारे दृष्टिकोण में सुधार ताकि हम अपने क्लेशों से बेहतर रूप से निपट सकें। सौहार्दता के साथ बुद्धि के संयोजन के परिणाम स्वरूप, मैं आशा करता हूँ कि हम मानवता के कल्याण में योगदान देने हेतु बेहतर रूप से तैयार होंगे।"
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प्रथम सत्र जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर एन मुकुंद ने की, में विज्ञान के दर्शन के फ्रांसीसी शोधकर्ता प्रोफेसर मिशेल बिटबोल की प्रस्तुति थी जिसका शीर्षक था 'क्वांटम फिसिक्स एंड द नो व्यू स्टांस'। इसमें उन्होंने आध्यात्मिक विचारों तथा पदार्थवाद के दो महत्वपूर्ण आलोचनाओं की तुलना का प्रयास किया जो कभी प्रस्तवित नहीं किए गए हैं। उन्होंने सुझाया कि क्वांटम भौतिकी की एक विशेषता 'एनटेंगलमेंट' अथवा 'नोन-सेपेरेबिलिटी' प्रतीत्य- समुत्पाद की बौद्ध अवधारणा का स्मरण कराती है। जिस प्रकार प्राचीन ग्रंथ हमें सचेत करते हैं कि शून्यता की व्याख्याएँ जो तैयार नहीं है उसे सकते मैं डाल सकती हैं, बिटबोल ने नील्स बोर को उद्धृत करते हुए कहा कि उसी तरह जो क्वांटम सिद्धांत से हैरान नहीं, वह उनकी समझ में नहीं आया है।
परम पावन ने बीच में कहा कि न केवल वस्तुएँ ऐसी प्रतीत होती हैं मानो उनका स्वतंत्र अस्तित्व हो, पर हम यह मान कर चलते हैं कि उनकी स्वभाव सत्ता है। उन्होंने कहा कि वह यह जानने के लिए इच्छुक हैं कि किस प्रकार क्वांटम भौतिकी के विचार, जो इन्हें चुनौती दे सकते हैं, उन्हें किस तरह प्रभावित करेंगे जो उन्हें अपने नित्य प्रति के जीवन में समझते हैं।
प्रोफेसर मुकुंद की टिप्पणियों में उन्होंने कहा कि इंग्लैंड के भौतिक विज्ञानी डिराक ने दार्शनिक बहस में भाग लेने से मना कर दिया था। उन्होंने फेनमैन को भी उद्धृत करते हुए कहा कि विज्ञान के लिए दर्शन उतना ही उपयोगी है जितना पक्षीविज्ञान पक्षियों के लिए।
श्रोताओं द्वारा रखे गए प्रश्न क्वांटम भौतिकी से संबंधित 'सिंग्युलारिटी', 'इनसेपेरेबिलिटी' और 'एनटेंगलमेंट' जैसे कई धारणाओं पर थे।
गेशे नवांग समतेन ने दूसरे सत्र की अध्यक्षता की। अपने परिचय में उन्होंने कहा कि बुद्ध ने नैरात्म्य की शिक्षा दी जो पहले नहीं सुनी गई थी। बौद्ध दर्शन की चारों प्रमुख परम्पराएँ इस आदर्श का समर्थन करती हैं, यद्यपि दो निम्न परम्पराओं में इसका संबंध मात्र पुद्गल नैरात्म्य से है। अन्य दो उच्चतर परम्पराएँ मध्यमक और चित्तमात्र, धर्म नैरात्म्य की भी बात करते हैं।
अपनी प्रस्तुति 'कनसर्निंग द चित्तमात्रिन व्यू ऑफ एम्पटिनेस' में, डेपुंग लोसेलिंग महाविहारीय विश्वविद्यालय के गेशे नवांग संज्ञे ने बाहरी अस्तित्व को चित्तमात्र के वास्तविकता के संबंध में अंतिम दृष्टिकोण के अंग के रूप में नकारने के तर्क को समझाने का प्रयास किया, उनके अंतिम दृष्टिकोण की प्रतिस्थापना के कारण और अन्य प्रश्न जो इन प्रतिस्थापनाओं से उत्पन्न होते हैं। उन्होंने उन संस्कारों की चर्चा की जिनकी बात चित्तमात्र परम्परा के समर्थक करते हैं जब वह इस पर ज़ोर देते हैं कि सभी धर्म, संस्कारों के विपाक से जन्म लेते हैं। उन्होंने उस चेतना पर भी बात की जब वे कहते हैं कि सभी धर्म चेतना के साथ एक रूप रखती हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने चर्चा की, कि किस प्रकार कई व्यक्ति एक ही वस्तु को एक साथ देख सकते हैं और क्या वही वस्तु अलग व्यक्तियों को दिखाई पड़ती है।
मध्याह्न भोजन के अंतराल के पूर्व श्रोताओं की ओर से कई प्रश्न रखे गए।
प्रोफेसर राजाराम नित्यानंद की अध्यक्षता में हुए मध्याह्न के प्रथम सत्र के दौरान प्रोफेसर मैथ्यू चन्द्रकुन्नेल ने 'द आंटालोजी एंड एपिस्टोमोलिजी ऑफ रियालिटी एकॉर्डिंग टु क्वांटम मैकेनिक्स एंड माध्यमक बुद्धिज्म' पर अपनी प्रस्तुति पढ़ी। उन्होंने सुझाया कि शास्त्रीय भौतिकी पर्यवेक्षक से स्वतंत्र एक उद्देश्य और सतत वास्तविकता प्रदान करता है। परन्तु क्वांटम मैकेनिक्स में वास्तविकता का अस्तित्व उसी समय होता है जब एक माप लिया जाता है ऐसा कि मानो पर्यवेक्षक वास्तव में अवलोकन को प्रभावित कर रहा है, पर्यवेक्षक और जिसका अवलोकन हो रहा है उसे एक करते हुए। उन्होंने कहा कि क्वांटम मैकेनिक्स की पूर्णता-अपूर्णता तर्क करते हैं और इम्पासिबिलिटी थियोरेम से इसको नकारने के माध्यम से भौतिक वास्तविकता के बारे में आंटालोजी एंड एपिस्टोमोलिजी वाद - विवाद पर गहराई में जाते हैं। इसका संबंध गणित के सिद्धांतों के माध्यम से वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करने की संभावना से भी है।
प्रोफेसर चन्द्रकुन्नेल ने सापेक्षता और ज्यामिति और साथ ही कोपेनहेगन व्याख्या, द कोलेप्स ऑफ वेव फंक्शन और बोहमियां पर बात की। सभा से उठे प्रश्नों के उत्तर देने से पहले उन्होंने माध्यमक और योगाचार पर भी अपने विचार व्यक्त किए।
परम पावन के मध्य दोपहर में प्रस्थान करने के पश्चात दो प्रस्तुतियाँ हुई: एक गेशे लोबसंग तेनपे ज्ञलछेन द्वारा 'द बुद्धिस्ट पर्सपेक्टिव ऑन द वर्ल्ड एंड इट्स बीइंग्स' पर और गेशे छिसा डुंगछेन टुल्कु द्वारा 'द टू ट्रुथ्सः ए प्रासंगिक माध्यमक पर्सपेक्टिव' पर। सम्मेलन कल जारी रहेगा।