न्यूयार्क, संयुक्त राज्य अमेरिका - ९ जुलाई २०१५- परम पावन दलाई लामा कल एक लंबी तथा विलम्बित उड़ान के अंत में लॉस एंजिल्स से न्यूयॉर्क पहुँचे। एक सुखद रात की नींद से ताजा होने के बाद उनके प्रमुख बैठकों में से एक उनके पुराने मित्र डेन गोलमेन और उनकी पत्नी तारा के साथ थी। वे परम पावन को गोलमेन की नई पुस्तक 'अच्छाई के लिए बल ः हमारे विश्व के लिए दलाई लामा का स्वप्न' भेंट करने आए थे जिसका विमोचन हाल ही में उनके ८०वें जन्मदिन को चिह्नित करने के लिए हुआ था। पुस्तक परम पावन के व्यापक संदेश, एक बेहतर विश्व के निर्माण में उनके दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य को प्रकट करती है। यह एक ऐसी दृष्टि है, जो व्यक्ति जहाँ कहीं भी हों और जो भी कर रहे हों, उनकी आम मानवता के आधार पर आत्मसात कर सकते हैं।
परम पावन को पुस्तक की प्रति भेंट करते हुए गोलमेन ने कहा, "यह आपके लिए संदेश है", "जिन कुछ लोगों ने इसे पढ़ा है उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि करुणा इतनी शक्तिशाली हो सकती है।"
"हमें आंतरिक शांति लाने के लिए एक नए दृष्टिकोण को ढूँढने की आवश्यकता है। जैसा मैं प्रायः कहता हूँ, कि सिर्फ अमेरिका 'मुक्त विश्व' का नेता है और तकनीकी रूप से नवप्रवर्तनशील है, अब इसे शिक्षा और आंतरिक मूल्यों के विकास के विषय में नेतृत्व करने की आवश्यकता है।"
तारा गोलमेन ने परम पावन को 'अच्छाई के लिए बल' के साथी वेबसाइट के बारे में बताया, http://www.joinaforce4good.org/, जिसमें वह सब शामिल है जो पुस्तक में है, पर साथ ही लोगों को अपनी कहानियों और करुणा के कार्यों को साझा करने की अनुमति भी देता है। होमपेज कहता है: "हमें विश्व को प्रकाशित करने में सहायता दो - एक समय पर एक सद्कार्य।" परम पावन प्रसन्न हुए और ठिठोली करते हुए कहा कि विश्व की छवि से निकलती प्रकाश की किरणें, अवलोकितेश्वर की सहस्र नेत्रों के साथ सहस्र भुजाओं के समान हैं। टीम से मिलते हुए जिन्होंने वेबसाइट बनाने में अपना समय तथा कौशल दिया है, उन्होंने उनका धन्यवाद किया कि उन्होंने "न ही धन के लिए, या 'हम' और 'उन' जैसी किसी भावना के साथ, पर इसलिए कार्य किया है , क्योंकि करुणा शांति का आधार है।"
जेविट्स सेंटर में उत्तर अमेरिकी तिब्बती समुदाय के १४,००० से भी अधिक सदस्यों ने परम पावन का स्वागत किया जब परम पावन मंच पर आए जिसके एक ओर उपाध्याय और भिक्षु थे और दूसरी ओर सिक्योंग लोबसंग सांगे, अध्यक्ष पेनपा छेरिंग और मंत्री मंडल के अन्य कई सेवारत और पूर्व सदस्य थे। पृष्ठभूमि में विशाल बुद्ध और नालंदा पंडितों, श्वेत तारा और १००० भुजा वाले अवलोकितेश्वर के थंका शामिल थे।
"भावनाक्रम का यह मध्य भाग कमलशील द्वारा लिखा गया, जो शांतरक्षित के निर्देश पर ८वीं शताब्दी में तिब्बत आए थे। उस समय, सम्ये के विभिन्न विभागों में चीनी ध्यान शिक्षक थे जिन्होंने बल दिया कि आध्यात्मिक विकास के लिए अध्ययन महत्वपूर्ण नहीं था। कमलशील ने उनके साथ संवाद किया और उस संवाद की विषय सामग्री को राजा ठिसोंग देछेन के आदेश पर लिखा गया। वह सामग्री 'भावनाक्रम' का आधार बना, शमथ और विपश्यना की व्यापक व्याख्या िलए एक विस्तृत ग्रंथ।"
सत्र का प्रारंभ पालि में मंगल सुत्त के पाठ से प्रारंभ हुआ जिसके पश्चात संस्कृत, चीनी और अंत में, तिब्बती में 'प्रज्ञा हृदय' का पाठ किया गया।
परम पावन ने टिप्पणी की कि बुद्ध एक साधारण मानव के रूप में प्रकट हुए, एक राजकुमार जिसने जन्म, जरा, रोग और मृत्यु के आधारभूत कष्टों को देखने के परिणामस्वरूप एक सन्यासी का जीवन अपनाया। वे छह वर्षों तक तपश्चर्या में लगे रहे, जिसमें प्रचलित ध्यान के रूप भी शामिल हैं, जिसके बारे में उन्होंने अंततः निष्कर्ष निकाला कि वह स्वयं में मुक्ति नहीं देगा।
महायान के अनुसार बुद्ध ने तीन धर्म चक्र प्रवर्तन किए। पहले का संबंध चार आर्य सत्यों से है जो कि सभी बौद्ध परंपराओं में आम हैं। दूसरे में प्रज्ञा-पारमिता की शिक्षाएँ सम्मिलित थीं और तीसरे में चित्त की प्रकृति और बुद्ध प्रकृति की प्रकृति की व्याख्या शामिल थीं।