लंदन, इंग्लैंड - २१ सितम्बर २०१५- अाज प्रातः दिन के अन्य कार्यक्रमों के लिए रवाना होने से पहले, परम पावन दलाई लामा ने सीएनएन की क्रिस्टिएन एमनपोर को एक साक्षात्कार दिया। उन्होंने पूछते हुए प्रारंभ किया: "आप यहाँ क्या करने का प्रयास कर रहे हैं?" और उन्होंने कहा:
"महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी मनुष्यों को, वे चाहे जहाँ भी हों, चाहे धनवान हों या निर्धन, शिक्षित हों अथवा अशिक्षित, को सुखी जीवन जीने का अधिकार है। कई सोचते हैं कि सुख अपने से बाहर भौतिक वस्तुओं में मिलता है, पर वास्तव में सुख अन्दर से आता है। इसलिए मैं आंतरिक मूल्यों के महत्व को प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूँ, धार्मिक उद्धरणों के आधार पर नहीं, अपितु एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण लेते हुए जो वैज्ञानिक निष्कर्ष और सामान्य ज्ञान पर आधारित है।
सुश्री एमनपोर ने टिप्पणी की, कि अपनी तेजी से विकसित अर्थव्यवस्था के कारण चीन में परिवर्तन हो रहा है पर फिर भी अधिकारी अब तक परम पावन को ‘विभाजनकारी’ कह संदर्भित करते हैं। उन्होंने उसे बताया कि १९७४ से तिब्बती स्वतंत्रता की माँग नहीं कर रहे और सभी यह जानते हैं। उन्होंने इस विषय पर चिंता जताई कि परम पावन का उत्तराधिकारी कौन होगा। परम पावन ने उत्तर दिया कि जहाँ तक तिब्बती बौद्ध धर्म का सवाल है तो आज जो १०,००० भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ अध्ययन व अभ्यास कर रहे हैं, वे इसे संरक्षित करने में सक्षम होंगे। उन्होंने यह स्पष्ट किया, कि बुद्ध के किसी मान्यता प्राप्त पुनर्जन्म के बिना बुद्ध की शिक्षाएँ जीवित रही हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि जहाँ वे अंतिम दलाई लामा हो सकते हैं, पर फिर भी अपने जाने से पहले वे किसी योग्य लामाओं में से एक को नियुक्त कर सकते हैं।
यह पूछे जाने पर कि वह बर्मा में रोहिनग्यास के उत्पीड़न को कैसे देखते हैं, परम पावन ने कहा:
"यह बहुत दुख की बात है। मैंने बर्मी बौद्धों को रुककर सोचने के लिए कहा है। जब वे इन लोगों के प्रति क्रोध अथवा नाराज़गी का अनुभव करें तो वे बुद्ध के चेहरे का स्मरण करें। मेरा विश्वास है कि यदि बुद्ध वहाँ हों तो वे रोहिनग्यास को सुरक्षा देंगे।"
अंत में, यह टिप्पणी करते हुए कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग शीघ्र ही संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की यात्रा करेंगे, सुश्री एमनपोर जानना चाहती थीं कि यदि उन्हें अवसर मिले तो वे उनसे क्या कहेंगे। उन्होंने उत्तर दिया:
"शायद मैं यह कहूँगा कि यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टि से हम एक स्वतंत्र देश थे जैसा कि ७-९वीं शताब्दी के दस्तावेज़ बताते हैं, हम अभी स्वतंत्रता की माँग नहीं कर रहे। हम चीन की पीपुल्स गणराज्य के एक अंग के रूप में विकास से लाभान्वित हो सकते हैं, पर हम अपनी भाषा, संस्कृति और बौद्ध परंपराओं की रक्षा करने में सक्षम हो सकें। मैं उन्हें स्मरण कराना चाहूँगा कि विगत वर्ष पेरिस तथा दिल्ली में उन्होंने कहा था, कि चीनी संस्कृति में बौद्ध धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बौद्ध मूल्य उस समय सहायक हो सकते हैं जबकि वे बड़े पैमाने के अन्याय और भ्रष्टाचार को सीमित करने का प्रयास कर रहे हैं।"
हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बौद्ध सोसायटी द्वारा आयोजित एक अंतर्धर्म बैठक में भाग लेने के लिए आने पर परम पावन का स्वागत बैरोनेस कैरोलीन कॉक्स और सोसायटी के अध्यक्ष डेसमंड बिद्दुल्फ ने किया। उन्होंने बैठक के लिए भव्य सभागारों से होते हुए उनका अनुरक्षण किया, जिसमें ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और विभिन्न संप्रदायों के हिंदुओं और एक सिख ने भाग लिया था।
बैरोनेस कॉक्स ने सबको हँसी में डाल दिया जब उन्होंने स्व परिचय देते हुए कहा कि वे पेशे से एक नर्स और सामाजिक वैज्ञानिक और विस्मय से एक बैरोनेस हैं। यह टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि वह प्रथम बेरोनेस थीं, जिनसे वे मिलीं थीं, उन्होंने जोड़ा कि इस भूमिका ने उन्हें उन लोगों की ओर से एक आवाज़ प्रदान की है, जिन्हें सुनने वाला कोई नहीं। डेसमंड बिद्दुल्फ ने सभा को बताया कि परम पावन बौद्ध सोसायटी के संरक्षक है और यह उनके ८०वें जन्मदिन और समाज की ९०वीं वर्षगांठ मनाने का एक अवसर था। उन्होंने कहा कि परम पावन के अनुरोधों में से एक यह था कि एक बौद्ध के रूप में सोसायटी के सदस्यों को एक दूसरे तक पहुँचना चाहिए। उन्होंने सभा को संबोधित करने के लिए परम पावन को आमंत्रित किया, जो उन्होंने किया।
"विभिन्न परम्पराओं के आध्यात्मिक भाईयों और बहनों के साथ यहाँ बैठना मेरे लिए एक महान सम्मान की बात है। लगता है कि आज कई स्थानों में यह धार्मिक और राष्ट्रवादी भावनाएँ भयानक संघर्ष को जन्म दे रहीं हैं। हमें शांति को लाने के तरीके खोजने हैं। यह कुछ ऐसा है जो हममें से धार्मिक हैं उन्हें करना है। इस प्रकार की बैठकें हमारे बीच मैत्री और विश्वास के निर्माण और पोषण का एक अवसर है।
"आज कई लोगों के मन में यह धारणा है कि मुसलमान विशेष रूप से आतंकवादी हैं। परन्तु हमें याद रखना होगा कि आतंकी ईसाई, हिंदू, सिख, यहूदी और बौद्ध भी हैं। मुसलमान समुदाय जो तिब्बत में रहते थे, वे बहुत ही शांतिपूर्ण समुदाय थे और निर्वासन में उनसे मिलकर मुझे याद आती है कि वे किस तरह अभी भी शुद्ध ल्हासा बोली बोलते हैं।
मुसलमान मित्रों ने मुझे बताया है कि यदि आप रक्तपात करते हैं तो आप फिर एक सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते और मुसलमानों के लिए अल्लाह के सभी प्राणियों का सम्मान करने की एक प्रतिबद्धता है। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि 'जिहाद' शब्द को गलत समझा गया है। इसका अन्य लोगों के साथ लड़ने से कुछ लेना देना नहीं है, पर इसका संदर्भ अपने अंदर के क्लेशों का मुकाबला करने से है।"
यॉर्क के आर्चबिशप डॉ जॉन सेंतामु ने युगांडा में जंजीबार के दो मुसलमान बच्चों के साथ बड़े होने की बात की। उनके पिता ने उन बच्चों को अपने संरक्षण में ले लिया जब उनके अपने माता पिता की एक अग्निकांड में मृत्यु हो गयी और वह उनके किसी भी परिजनों का पता लगाने में असमर्थ हुए। यद्यपि उनका ईसाई परिवार था पर उनके पिता ने इन बच्चों के लिए शुक्रवार के दिन एक मस्जिद में जाने की व्यवस्था कर दी। आर्चबिशप ने सूचित किया कि इसी भावना से उन्होंने हाउस ऑफ लॉर्ड्स में परम पावन दलाई लामा को एक आध्यात्मिक नेता के रूप में स्वीकार करते हुए सम्मान करने के लिए चीनी अधिकारियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बात की। उन्होंने कहा कि वे अनुभव करते हैं कि यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि "मैं अपने भाई रखवाला नहीं, मैं अपने भाई का भाई हूँ।"
आर्चबिशप केविन मैकडोनाल्ड ने यूनाइटेड किंगडम में रोमन कैथोलिक चर्च के नेता कार्डिनल विंसेंट निकोल्स की ओर से परम पावन और सभा के सदस्यों को शुभकामनाएँ अभिव्यक्त की। उन्होंने यह भी स्मरण किया कि पोप जॉन पॉल द्वितीय ने १९८६ में एक अभूतपूर्व अंतर्धर्म सभा बुलाई थी जिसमें परम पावन और आर्कबिशप रॉबर्ट रनसी ने भाग लिया था जबकि वे वेटिकन में सेवारत थे।
अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर ऑल पार्टी समूह की अध्यक्ष बैरोनेस बरर्रिड्ज, जो हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका से लौटी थी, ने बर्मा तथा अन्य स्थानों पर पीड़ित मुसलमानों और ईसाइयों के लिए अपनी चिन्ता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जो सार्वजनिक जीवन में हैं उनका सभी के अधिकारों के लिए कार्य करना एक उत्तरदायित्व बनता है।
छिमे रिनपोछे ने इस अवसर पर परम पावन ने जितना कुछ किया है उस सबके लिए केवल धन्यवाद कहा।
कोवेन्ट्री के बिशप क्रिस्टोफर कोक्सवर्थ ने टिप्पणी की, कि हिंसा से किसी भी रूप में सहायक नहीं है और धार्मिक नेताओं द्वारा उनके विभिन्न सरकारों को यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है। उन्होंने ध्यानाकर्षित किया कि जहाँ सीरिया और इराक में हिंसा को लेकर सार्वजनिक भय है, पर विगत सप्ताह ब्रिटेन में एक महान शस्त्र प्रदर्शन था। उन्होंने कहा कि प्रतीत होता है कि अभी भी एक बड़ी भावना है कि सैन्य बल का प्रयोग समस्याओं के समाधान का एक तरीका है, पर वास्तव में दीर्घकाल में गोलियों की तुलना में शब्द अधिक प्रभावी हैं। कुल मिलाकर सभा ने जिस प्रकार हिंसा जारी है उस पर निराशा जताई और संवाद के लिए कार्य करने का एक दृढ़ संकल्प व्यक्त किया।
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अपने समापन भाषण में, परम पावन ने जो वे प्रायः कहते हैं, उसे दोहराया कि प्रेम और करुणा ही लोगों को निकट लाता है, जबकि क्रोध और संदेह उन्हें अलग करता है। उन्हें टिप्पणी की, कि धार्मिक लोगों के अपने अलग- अलग रास्ते हैं, जिनमें से प्रत्येक सम्मान के योग्य है। उन्होंने कहा कि भोजन के विभिन्न प्रकारों का आम उद्देश्य हमारा पेट भरना है, परन्तु यह कहना मूर्खता होगी कि "मुझे यह खाना अच्छा लगता है, इसलिए तुम्हें भी यह खाना चाहिए।”
उन्होंने धार्मिक परंपरा के तीन पहलुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। धार्मिक पहलू का संबंध प्रेम और करुणा, सहिष्णुता और आत्म - अनुशासन का आम अभ्यास है। जहाँ दार्शनिक विचार काफी अलग हो सकते हैं, पर वे सभी प्रेम के अभ्यास को सशक्त करने के एक ही लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं। परन्तु उन्होंने कहा कि धार्मिक परंपरा के सांस्कृतिक पहलू भी हो सकते हैं, जैसे जातिगत भेदभाव, जो अब प्रासंगिक नहीं रह गए हैं और उन्हें परिवर्तित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे धार्मिक नेताओं को जब भी उनके लिए संभव हो इन विषयों के बारे में बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। सभा हाउस ऑफ कॉमन्स के स्ट्रेंनजर्स भोजन कक्ष में मध्याह्न के भोजन के लिए स्थगित हुई।
मध्याह्न में २००० से अधिक की संख्या में उत्साहपूर्ण और मैत्रीपूर्ण श्रोतागण लाइसेम थियेटर में परम पावन के आगमन की प्रतीक्षा में थे। मंच द्वार पर उनका स्वागत उनके पुराने मित्र लार्ड रिचर्ड लेयर्ड ने किया जिन्होंने एक्शन फॉर हेप्पिनस के निदेशक मार्क विलियमसन के साथ मंच पर उनका अनुरक्षण किया। उत्साहपूर्ण गूँज और तालियों का गड़गड़ाहट से उनका स्वागत हुआ। डॉ विलियम्स ने समझाया कि एक्यप्लोरिंग व्हाट मैटर्स नाम से प्रशिक्षण का एक नया पाठ्यक्रम, विश्व शांति दिवस के अवसर पर आज प्रारंभ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि लोगों को उनके जीवन के बारे में सोचने के लिए एक साथ लाया जाए और उन्हें अपने जीवन को अधिक खुशहाल बनाने में सहायता की जाए।
उन्होंने जैस्मिन होड्ज – लेक को उसकी कहानी बताने के लिए मंच पर आमंत्रित किया। उसने समझाया कि एक दुर्घटना के बाद, जिसके कारण वह घायल हो गई थीं और पीड़ा में थी, ने उसे निराशा से भर दिया था। एक्शन फॉर हेप्पिनस के एक व्य़ाख्यान को सुनकर उसे यह समझने में सहायता मिली कि वह किस तरह एक अलग ढंग से अपनी पीड़ा को समझ सकती है। उसके पश्चात उसने एक्शन फॉर हेप्पिनस का पायलेट कोर्स किया जिसे उसे यह अनुभव करने में सहायता दी कि वह किस प्रकार अपने जीवन में आशा वापस ला सकती है और दूसरों की सहायता कर सकती है। उसने कहाः
"मैंने सीखा कि किस प्रकार दूसरों के सहायता करते हुए आप अपनी सहायता कर सकते हैं। मैं एक्शन फॉर हेप्पिनस कोर्स के पहले जो व्यक्ति थी, उसकी तुलना में अलग व्यक्ति हूँ। मैंने अनुभव किया कि मैं वह परिवर्तन हो सकती हूँ जो मैं देखना चाहती थी।"
जॉन स्टेनर सामुदायिक प्राथमिक स्कूल के एक शिक्षक एड्रियन बिथयून ने कहा कि उनका भी अध्यापन को लेकर मोहभंग हो गया था जब तक कि उन्होंने भी इस कोर्स को नहीं किया था। इससे उन्हें यह समझने में सहायता मिली कि वे अपना कार्य किस प्रकार अधिक सकारात्मक ढंग से कर सकते हैं और कक्षा में परिवर्तन ला सकते हैं। उन्होंने न्यूरोसाइंस की अंतर्दृष्टि के आधार पर अपने छात्रों के साथ चर्चा करनी प्रारंभ की, कि किस प्रकार चित्त और मस्तिष्क कार्य करते हैं।
उन्होंने एक धौंस जमाने के विरोध में एक कार्यक्रम को एक नया नाम दिया, ‘दयालु होना ही फैशन है’। शुक्रवार को उन्होंने छात्रों से कहा कि सोचकर देखें कि उन्होंने उस सप्ताह कौन से तीन अच्छे कार्य किए थे। उन्होंने कहा कि शिक्षक और छात्र अब विद्यालय आने को लेकर और अधिक खुश हैं।
प्रोफेसर लेयर्ड ने फिर परम पावन के साथ, जो एक्शन फॉर हेप्पिनस के संरक्षक हैं, संवाद प्रारंभ किया। उन्होंने पूछा कि हम किस प्रकार और अधिक सुखी हो सकते हैं और हृदय में अधिक शांति हो सकती है और परम पावन ने उत्तर दिया:
"शांति का अर्थ है, कोई व्याकुलता नहीं, कोई संकट नहीं। यह हमारे मानसिक व्यवहार से संबंधित है। यदि हमारा चित्त शांत है तो बाधाएँ कम विघटनकारी होंगी। महत्वपूर्ण बात यह अनुभव करने की है कि अंततः शांति हमारे भीतर है, इसके लिए सौहार्दता और अपनी बुद्धि का उपयोग करने की आवश्यकता है। लोग कभी कभी सोचते हैं कि सौहार्दता करुणा और प्रेम धार्मिक विषय हैं, वे वास्तव में हमारे अस्तित्व के कारक हैं। यदि इस समय हम इन गुणों को सशक्त करने के लिए कदम नहीं उठाते तो २१वीं सदी भी २०वीं सदी की तरह हिंसा का युग बनकर रह जाएगी। यदि हम कार्रवाई नहीं करते तो हम परिवर्तन की आशा नहीं रख सकते। प्रार्थना पर्याप्त नहीं है, हमें स्वयं उत्तरदायित्व उठाना है। मानव निर्मित समस्याओं को मनुष्य द्वारा ही सुलझाया जाना चाहिए।"
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जब प्रोफेसर लेयर्ड ने पूछा कि हम किस प्रकार एक दूसरे के साथ अपने संबंधों में सुधार ला सकते हैं, तो परम पावन ने उत्तर दिया कि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते लोगों को दूसरों को 'हम' और 'वे' के रूप में देखने की पुरानी आदत पर काबू पाना होगा जो केवल विभाजन को ठोस करती है। उन्होंने कहा कि हमें देखना है कि हम सब मात्र इंसान हैं और हमारे भूमंडलीकृत विश्व में हमें वैश्विक अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ, जिनके प्रभाव राष्ट्रीय सीमाओं को अनदेखा करते हैं, से निपटना है। इसके बजाय हमें वैश्विक उत्तरदायित्व की भावना को विकसित करना है जो सबको 'हम' के रूप में देखता है।
परम पावन ने समझाया कि किस प्रकार ३० साल से अधिक हुए वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श ने बाल विहार से विश्वविद्यालय तक के शिक्षा के क्षेत्र में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के एक पाठ्यक्रम की समझ के लिए योगदान दिया था। इसका एक भाग भावनाओं के मानचित्र के साथ कार्य करना है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वस्थ रहने के लिए जो शारीरिक स्वच्छता आवश्यक है उसके साथ भावनात्मक स्वास्थ्य भी शामिल हो।
उन्होंने श्रोताओं द्वारा पूछे गए कई प्रश्नों के उत्तर दिए, और कहा कि करुणा का स्वाभाविक बीज, जो हम सब में है, में अपने शत्रु तक को शामिल किया जा सकता है यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करें। उन्होंने अपने हितों की देखभाल की आवश्यकता को स्वीकार किया, पर समझाया कि इसे मूर्खतापूर्ण ढंग से करना मात्र स्व केन्द्रित होना है। स्वार्थ की एक समझदार भावना दूसरों को हितों को भी शामिल करना है। यह पूछे जाने पर कि संसार को अधिक सुखी स्थान बनाने के लिए कौन सी वह एक बात है जो लोग कर सकते हैं, उन्होंने उत्तर दियाः "स्नेह का विकास करें।"
जैसे ही विचार विमर्श समाप्त हुआ और परम पावन ने श्रोताओं से हाथ हिलाकर विदा ली श्रोताओं ने स्नेह भरे स्वरों में उत्तर दिया।
एक बार मंच पर पर्दा गिरा दिया गया तो बीबीसी के मार्क ईस्टन ने परम पावन से व्हाट मैटर्स एंड एक्शन फॉर हेप्पिनस के प्रारंभ के विषय में पूछा। उन्होंने सुझाया कि कुछ लोग इस बात को लेकर आलोचना कर रहे थे कि इस तरह का कदम प्रभावी हो सकता है। परम पावन ने प्रतिवाद स्वर में कहा कि ऐसा प्रतिरोध सिर्फ पुराने जमाने की सोच है। सौहार्दता व्यक्तियों, परिवारों, समुदायों, यहाँ तक कि देशों को भी अधिक सुखी कर सकती है।उन्होंने कहा:
"यहाँ तक कि यूरोपीय संघ का भी सृजन अनिवार्य रूप से करुणा का एक कार्य था। और देखो, मैं आश्वस्त हूँ कि बीबीसी और मीडिया द्वारा अधिक सकारात्मक रिपोर्टिंग, जैसा कि आप अभी कर रहे हैं, वास्तव में लोगों को और अधिक सुखी बनाने में सहायक होगा।"