प्रिंसटन, न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका - २८ अक्टूबर २०१४ - कल, बर्मिंघम, अलबामा से प्रिंसटन आते हुए परम पावन दलाई लामा रास्ते में अपने पुराने मित्र हारून बेक से भेंट करने के िलए फिलाडेल्फिया रुके। डॉ बेक मनोचिकित्सक हैं और कई उन्हें संज्ञानात्मक उपचार के पिता के रूप में मानते हैं।परम पावन प्रायः अपने सार्वजनिक व्याख्यानों में, कुछ वर्ष पूर्व उनके साथ हुई बातचीत का संदर्भ देते हैं। डॉ बेक ने समझाया कि जब हम किसी बात पर क्रोधित होते हैं तो हमारी क्रोध की वस्तु पूरी तरह से नकारात्मक प्रतीत होती है जबकि उस भावना का ९०% हमारा अपना मानसिक प्रक्षेपण है। यह बहुमूल्य अंतर्दृष्टि नागार्जुन के विवरण से मेल खाती है। डॉ बेक, जिनकी आयु ९२ वर्ष की है और परम पावन दोनों खुश थे कि उनकी पुनः भेंट हो सकी।
आज प्रिंसटन विश्वविद्यालय के जेडविन जिमनैजियम में, डीन एलिसन बोदेन ने परम पावन का परिचय ५००० संख्या के छात्रों के सशक्त दर्शकों और संकाय से करवाया और उन्हें संबोधित करने के लिए परम पावन को आमंत्रित किया।
"भाइयों और बहनों," उन्होंने प्रारंभ किया,"मेरे िलए यह अत्यंत सम्मान की बात है कि मुझे आज आपसे बात करने का अवसर मिला है। आमंत्रण के लिए धन्यवाद। एक बौद्ध भिक्षु होने के नाते में मैं प्रत्येक दिन अपने काय, वाक और चित्त के कर्म दूसरों की सेवा हेतु समर्पित करता हूँ। विज्ञान और प्रौद्योगिकी बहुत अधिक विकास लेकर आया है, पर हम अभी तक कई मानव निर्मित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उदाहरण के लिए, धनी और निर्धन के बीच की गहरी खाई।"
"हम सामाजिक प्राणी हैं। हम उस समुदाय पर निर्भर हैं जिसमें हम रहते हैं। अतः हमें वैश्विक उत्तरदायित्व की भावना की आवश्यकता है क्योंकि मानवता का कल्याण हमारा कल्याण है। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, हममें से कोई भी दुख झेलना नहीं चाहता। इसलिए हमें एक ऐसे भावना की आवश्यकता है कि हम सभी एक मानव परिवार के हैं। फिर दूसरों के अहित, शोषण या धोखा देने जैसी कोई संभावना नहीं होगी।"
उन्होंने कहा, एक आस्तिक धार्मिक दृष्टिकोण से, चूँकि हम सब ईश्वर द्वारा बनाए गए हैं, हम सब के अंदर ईश्वर का स्फुलिंग है। बौद्ध संदर्भ में यह बुद्ध प्रकृति के रूप में जाना जाता है। किसी भी रूप में यह विश्वास का एक स्रोत है। परम पावन ने उल्लेख किया कि हमारे पास धार्मिक परंपराओं की विविधता है, परन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि यद्यपि दार्शनिक रूप से इन परंपराओं में अंतर हो सकते हैं, पर वे प्रेम, सहनशीलता, क्षमा और आत्म अनुशासन का एक ही संदेश देते हैं। और फिर भी आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में १ अरब यह दावा करते हैं कि उनका किसी भी धर्म में विश्वास नहीं है। उनमें प्रेम और करुणा प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए हमें एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। हमें धर्मनिरपेक्षता की लंबे समय से चली आ रही भारतीय परंपरा का पालन का अनुपालन करना होगा, जिसमें सभी धार्मिक परंपराओं के प्रति निष्पक्ष सम्मान है और उन लोगों के लिए भी जिनका कोई धर्म नहीं है।
आंतरिक मूल्यों के प्रति धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का आधार हमारे माँ के वात्सल्य का आंचल, बड़े होने का साझा अनुभव और हमारे अस्तित्व के लिए दूसरों पर हमारी निर्भरता है। परम पावन ने कहा:
"मेरे जीवन में करुणा का प्रथम बीज मेरी माँ से आया। मुझे लगता है कि यह लगभग हम सभी का सच है। यदि हमारी माँओं ने हमारी उपेक्षा की होती तो हम जीवित न होते। बॉब लिविन्गस्टन नामक एक वैज्ञानिक ने एक बार मुझे बताया कि जीवन के पहले सप्ताह में, मस्तिष्क के समुचित विकास के लिए एक माँ का स्पर्श महत्वपूर्ण है। बाद में जब भय और संदेह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को खा जाता है, करुणा हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी है।"
सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि चाहें हम सम्पन्न हों पर यदि हम संदेह और चिंता से भरे हैं, तो हम दुखी होंगे। जबकि यदि निर्धन हैं, पर स्नेह की भावना से भरे और घिरे हैं तो हम सुखी हैं। परम पावन ने कहा कि यद्यपि आराम से रहने के लिए धन आवश्यक है, पर धन चित्त की शांति नहीं ला सकता। आज वैज्ञानिक और शिक्षाविद समान रूप स्वीकार करते हैं कि हमारी भौतिकवादी उन्मुख शिक्षा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। आंतरिक मूल्यों की शिक्षा देने के उपाय की भी आवश्यकता है। यदि मानवता की एकता की एक बड़ी भावना हो, कि हम सब एक मानव परिवार के हैं तो, उदाहरण के लिए झगड़ा, हत्या और युद्ध का कोई आधार न होगा।
"यदि आप युवा लोग जो आज २१वीं सदी की पहली पीढ़ी के हैं, आज प्रयास करें तो आप एक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण दुनिया बनाने में सक्षम हो सकते हैं," परम पावन ने सलाह दी। "पर आप यह मानकर नहीं बैठ सकते कि यह सब अपने आप होगा, आप को कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी।"
परम पावन ने प्रश्न आमंत्रित किए। यह पूछे जाने पर कि उनका सबसे बड़ा पछतावा क्या है, उन्होंने कहा कि एक िकशोर के रूप में उन्होंने उस कड़े रूप में अध्ययन नहीं िकया जैसा उन्हें करना चािहए था और उनके पास इसकी स्वतंत्रता थी। उन्होंने छात्रों को व्यापक रूप से अध्ययन करने तथा कई दृष्टिकोणों को सम्मिलित करने की सलाह दी। जीवन को सार्थक बनाने के लिए, उन्होंने सुझाव दिया कि वे आंतरिक मूल्यों की उपेक्षा न करें।मानव अधिकारों के बारे में पूछे जाने पर वे बोले कि जीवन का उद्देश्य सुखी रहना है और यह हमारा अधिकार है। हमारे जीवन आशा पर आधारित हैं क्योंकि इसका कोई आश्वासन नहीं है कि भविष्य में क्या होगा।
उन्होंने क्षमा को जब हमारे साथ कुछ गलत हुआ हो तो स्वयं को बचाने के िलए एक मार्ग के रूप में परिभाषित किया। इसका यह अर्थ नहीं कि गलती भुला दी गई है, पर उन्होंने गलत कार्य और करने वाले, जिसे क्षमा किया जा सकता है, के बीच अंतर समझने पर बल दिया। इस बात को समझाने पर ज़ोर िदए जाने पर कि तिब्बत में उनके कार्यों के िलए वे किस प्रकार चीनी अधिकारियों के प्रति नकारात्मक भावनाओं को अपने चित्त में नहीं आने देते, परम पावन बोले:
"मनुष्य के रूप में हम जानबूझ कर उनके प्रति करुणाशील होने का प्रयास करते हैं जो हमारा अहित करते हैं। २००८ में जब पूरे तिब्बत में प्रदर्शन भड़क उठा, तो मैंने आशंका और विवशता का अनुभव किया, उसी तरह जो मैंने १९५९ के विद्रोह के समय किया था। मैंने एक चित्त शोधन के अभ्यास को अपनाया और चीनी अधिकारियों की धारणा की और उनके क्रोध और घृणा को ले लेने और उन्हें प्रेम और स्नेह लौटाने की कल्पना की। निस्सन्देह, जो वास्तव में हो रहा था उस पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा, परन्तु मुझे एक शांत चित्त रखने में सहायता मिली।"
एक अन्य छात्र निवेश बैंकिंग के बारे में सलाह चाहता था और परम पावन ने टिप्पणी की कि वह उत्तर नहीं दे सकते:
"पर पहले एक वर्ष के लिए मैं निवेश बैंक में उस उच्च वेतन पर काम कर लूँ फिर मैं तुम्हें बताऊँगा।"
उन्होंने स्पष्ट किया कि जब हम कुछ बौद्ध ग्रंथों में पढ़ते हैं एक पुरुष के रूप में जीवन एक स्त्री रूप जीवन से बेहतर है तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि धर्म के तीन पहलू हैं, धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक और इस तरह के संदर्भ सांस्कृतिक पहलू के हैं। निर्वाण तक पहुँचने की क्षमता में पुरुष तथा स्त्रियाँ समान हैं।
सुख की कुंजी पर प्रश्न िकए जाने पर उनके तपाक उत्तर, "पैसा और सेक्स" ने वातावरण में हँसी भर दी, पर परम पावन ने आगे कहा कि असली कुंजी सौहार्दता, करुणा और आत्मविश्वास के साथ कार्य करना है। उन्होंने कहा कि यदि हम सच्चाई, ईमानदारी और पारदर्शिता से स्वयं को आचरित करें तो हम विश्वास और मैत्री अर्जित करेंगे। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपनी नकारात्मक भावनाओं के परिवर्तन में मानव बुद्धि के उपयोग की सराहना की।
"एक बेहतर विश्व बनाने," उन्होंने कहा, "दृष्टि और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। लिंकन ने दास-प्रथा समाप्त की। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने नागरिक अधिकारों की स्थापना के लिए काम किया और आज राष्ट्रपति एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी जड़ें अफ्रीका में हैं। यह अद्भुत है। धन्यवाद।"
परम पावन ने प्रिंसटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के साथ प्रोसपेक्ट हाउस, जो वुडरो विल्सन का घर था जब वे विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे, में मध्याह्न का भोजन किया। तत्पश्चात उन्होंने कालमिक समुदाय के सदस्यों के साथ भेंट की। द कालमिक थ्री ज्वेल्स फाउंडेशन ने प्रिंसटन ऑफिस ऑफ रिलीजियस लाइफ के साथ मिलकर प्रातःकाल के सार्वजनिक व्याख्यान और मध्याह्न के चर्चा के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
चांसलर ग्रीन रोटोंडा की लाइब्रेरी में वे एक पैनल में सम्मिलित हुए, जिसमें प्रोफेसर जिल डोलन, मिशेल डुनियर और एडी एस ग्लाउड जूनियर सहित १५० छात्र शामिल थे जो 'सेवा' पर चर्चा कर रहे थे। अपनी टिप्पणियों में परम पावन ने पुष्टि की कि यदि हम दूसरों की सहायता करने में सक्षम होते हैं तो हमें प्रेम और स्नेह से प्रेरित करने की आवश्यकता है। उन्होंने बोधिसत्व की नैतिकता का संदर्भ दिया, जिनमें संयम की नैतिकता, परोपकारिता की नैतिकता और वास्तव में सहायता करने की नैतिकता शामिल है। उन्होंने चेताया कि अच्छी प्रेरणा के साथ अंतर्दृष्टि और समझ की आवश्यकता है, इस ओर ध्यान आकर्षित करते हुए, कि यदि हमारे प्रयास अवास्तविक हैं तो उनके सफल होने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि चूँकि हम सभी हमारे मानवता के आधारभूत स्तर पर समान हैं, तो किसी भी प्रकार के भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है। और तो और यह मानव समानता ही है जो हमें अपने वैरी के कल्याण की कामना के लिए सक्षम करती है।
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परम पावन ने स्वीकार किया कि हममें आत्म हित की भावना है, पर वे एक मूढ़ आत्म हित, जो कि अपनी संभावनाओं में संकीर्ण है और एक बुद्धिमानी से भरा आत्म हित जो दूसरों की आवश्यकताओं के विषय में भी सोचता है, में अंतर देखते हैं। उन्होंने ध्यान िदलाया कि हम दुख तथा सुख को शारीरिक तथा भौतिक संदर्भ में देखते हैं, पर इस पर सहमति जताई कि दूसरों की सेवा में, आराम देना, गले लगाना तथा एक मुस्कान बाँटना शामिल है। उन्होंने कई बार इस पर बल दिया कि दूसरों की सहायता करना स्वैच्छिक है।
अंततः उन्होंने कहा कि दूसरों की सेवा करने के िलए अपने आप को अभ्यस्त करना संभव है। इसमें साहस तथा समय की आवश्यकता पड़ती है। वे स्वयं ८वीं शताब्दी के भारतीय आचार्य शांतिदेव की रचना के एक श्लोक पर चिंतन करते हुए अपनी दृढ़ता को पुष्ट करते हैं।
जब तक आकाश स्थित है और संसार रहे,
तब तक जगत के दुखों का नाश करते हुए मेरी भी स्थिति बनी रहे।
उन्होंने कहा प्रोफेसर बनने की यात्रा वर्णमाला की शिक्षा के साथ प्रारंभ होती है, आप को प्रयास बनाए रखना होगा। आज बेहद जटिल विमानों को उड़ान भरने वाले पायलटों को, इसके पूर्व कि उन्हें वह कौशल सरलता से प्राप्त हो, पहले एक लंबे और गहन प्रशिक्षण से होकर जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि स्वयं को दूसरों की सहायता के लिए लैस करना ऐसा ही है।