न्यूयॉर्क, एन वाई, संयुक्त राज्य अमरीका - ३ नवंबर २०१४ - परम पावन दलाई लामा आज तड़के ही तिब्बत हाउस अमेरिका और तिब्बती बौद्ध अध्ययन केंद्र के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए जे चोंखापा के 'सुभाषित सार' पर आधारित प्रवचन देने के लिए न्यूयॉर्क के बीकन थियेटर पहुँचे। प्रोफेसर रॉबर्ट थर्मन ने श्रोताओं से परम पावन का औपचारिक रूप से परिचय यह आधार देते हुए न करवाया कि कार्यक्रम की विवरणिका में उनका एक लिखित परिचय है। वे यह भी चाहते थे कि परम पावन को बोलने के लिए अधिक से अधिक समय मिले।
"थर्मन १९६४ में प्रथम बार धर्मशाला आए थे," परम पावन ने लगभग ३००० की क्षमता के जनसमुदाय से कहा। "वह एक भिक्षु के चीवर पहने थे और नागार्जुन के शिष्य आर्यदेव की तरह उनकी केवल एक ही आँख थी। हम तब से करीबी दोस्त रहे हैं। वे एक प्रोफेसर बने और उन्होंने अपना शैक्षणिक जीवन जे चोंखापा की शिक्षाओं तथा गेलुगपा परम्परा के पक्षों की व्याख्या करने में समर्पित किया है। मैं प्रायः सोचता हूँ कि हमें इस ओर अधिक देखना है कि हमें एक करने वाला क्या है, जैसे कि हमारे साझा नालंदा विश्वविद्यालय की धरोहर, न कि हमारे ध्यान के देवताओं की वंशावली तथा अभ्यास की विविधता। सक्या, कर्ग्यू ,गेलुग, ञिङमा, जोनंग और बोनपो सभी परंपराएँ महान शास्रीय भारतीय बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन करती हैं। जे चोंखापा ने महान भारतीय ग्रंथों के बारे में लिखा तथा थर्मन ने उस पूरे कार्य में विशेष रुचि ली है। मैं यहाँ उसे स्वीकारना चाहता हूँ और उनका धन्यवाद करना चाहता हूँ।"
तिब्बती में हृदय सूत्र के गतिशील सस्वर पाठ के बाद, एक आराम कुर्सी पर बैठे, भिक्षुओं से घिरे परम पावन ने अपना संबोधन पुनः प्रारंभ किया:
"सबसे प्रथम, इन विद्वानों, विहाराध्यक्षों, पूर्व विहाराध्यक्षों और गेशे समुदाय को मेरा अभिनन्दन। मैं सोच रहा हूँ कि कहीं आप मेरी परीक्षा लेने के लिए तो मेरा व्याख्यान सुनने नहीं आए। मैं इस बात की सराहना करता हूँ कि लगभग आप सभी लोगों ने ३० वर्ष के गंभीर अध्ययन के आधार पर अपना जीवन बुद्ध धर्म के लिए समर्पित किया है। भिक्षु विनय के आचार्य होने के नाते, आपने शील का पालन किया है, शमथ या एकाग्रता के संबंध में, हम कह सकते हैं कि आपको उसके विकास का पर्याप्त समय नहीं मिल पाया है। परन्तु तिस्र शिक्षा के तीसरी शिक्षा के विषय में आप महान विद्वानों में न केवल प्रज्ञा है, पर आपने उसे अपने स्वयं के अनुभव से जोड़ा भी है। आपकी उपस्थिति में इस महत्वपूर्ण ग्रंथ से शिक्षा देने का अवसर मिलना एक सम्मान की बात है।
"बुद्ध की सभी गतिविधियाँ महान करुणा से प्रेरित हैं। हम कहते हैं कि उन्होंने निर्वाण के लिए प्रणिधान का विकास किया, तीन अनगिनत कल्पों तक पुण्य तथा प्रज्ञा का संभार किया और सम्यक सम्बुद्धत्व प्राप्त किया। इस तरह वे एक मान्य शिक्षक बने, ऐसे जो वास्तव में दूसरों का कल्याण कर सके। करुणा द्वारा दूसरों का कल्याण करने के साथ साथ बौद्धों का मुख्य उद्देश्य सभी मिथ्या दृष्टि को दूर करना है।"
परम पावन ने समझाया कि उनकी अद्वितीय शिक्षा के माध्यम से, जो वाणी में अभिव्यक्त है, बुद्ध सत्वों को मुक्त करते हैं।उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि सभी धार्मिक परंपराएँ कोई अहित न करना और सद्कार्य पर बल देती हैं, जो कि मार्ग का उपाय पक्ष है और आगामी अच्छे पुर्नजन्म का स्रोत है। अन्य उद्देश्य का स्रोत, मुक्ति और प्रबुद्धता या नैश्रेयस, उचित दृष्टिकोण है। 'सुभाषित सार' का दृष्टि के दो पक्षों से संबंध है, चित्तमात्र तथा मध्यमक।
अपनी 'प्रतीत्यसमुत्पाद की स्तुति' में, चोंखापा सुझाते हैं कि पहले तो जब उन्होंने भारतीय आचार्यों के लेखन में ढूँढा, तो वे और अधिक उलझ गए। कहा जाता है कि उन्हें मंजुश्री का दर्शन मिला और उन्होंने दृष्टि की अपनी समझ का वर्णन किया और पूछा कि यह समझ उचित थी या कि वो, और मंजुश्री ने उत्तर दिया "दोनों में से कोई भी नहीं।" उन्होंने उनसे स्पष्ट करने को कहा।
परम पावन ने एक महान आचार्य का स्मरण किया, जो १९५० के दशक में रहते थे जिन्होंने टिप्पणी की कि वे जो अपनी प्रज्ञा को बढ़ाना चाहते हैं, यदि एक महीने तक मंजुश्री मंत्र का पाठ करने में लगाएँ या फिर 'एकत्रित विषय' का अध्ययन करें, तो अध्ययन अधिक लाभकर होगा। वे एक गेलुगपा आचार्य थे जिन्होंने ज़ोगछेन में भी रुचि ली। परम पावन ने एक और ञिङमा आचार्य का स्मरण किया, जिन्होंने जे चोंखापा के लेखन में रुचि ली। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार के गैर-सांप्रदायिक आचार्य ही धर्म में योगदान कर सकते हैं।
परम पावन ने कहा कि उन्हें 'सुभाषित सार' का संचरण लिंग रिनपोछे से प्राप्त हुआ था, जिसका आधार दूसरे दलाई लामा की एक कारिका थी जो प्रथम दलाई लामा की तरह वास्तव में एक महान गुरु थे। दूसरे दलाई लामा, एक पीले रंग की टोपी वाले, गैर सांप्रदायिक रूप में जाने जाते थे। परम पावन ने स्पष्ट किया कि वे सम्पूर्ण पाठ को पढ़ नहीं पाएँगे और पूछा कि विवरणिका में किस ने मूल पाठ का चयन किया था, और कहा कि वे अपने चयन पर निर्भर करेंगे और तरीके से आगे बढ़ेंगे।
प्रारंभिक पदों में बुद्ध की वंदना, मंजुश्री तथा अग्रणी नागार्जुन और असंग की श्रद्धा के पद सम्मिलित हैं। यह करने के उपरांत चोंखापा ने ग्रंथ की रचना करने का प्रण लिया। वे धर्मकीर्ति का उद्धरण देते हुए कहते हैं, "यदि यह आप के लिए अस्पष्ट है तो वह आप दूसरों को कैसे समझा सकते हैं?"
बुद्ध की टिप्पणी से प्रेरित:
मार्ग शून्य है, शांतिपूर्ण और अनिर्मित,
यह न जानते हुए, जीवित प्राणी भटकते हैं,
करुणा से द्रवित, वे उनका परिचय कराते हैं,
सैकड़ों कारणों और तकनीकी प्रक्रियाओं से।
परम पावन ने मार्ग के तीन प्रमुख आकार के पद का स्मरण कियाः
चार शक्तिशाली नदियों के प्रवाह से बह,
कर्म के प्रबल पाश से बँधे, जिनका खोलना इतना कठिन
अज्ञान के अंधकार से पूर्णतया आवृत्त
असीम भव चक्र में बार बार पुनर्जन्म,
निरंतर तीन दुखों से पीड़ित
सभी सत्व, तुम्हारी माताएँ, इस अवस्था में हैं
उनके विषय में सोच बोधिचित्त उत्पाद करो।
उन्होंने कहा कि हम सभी एक आत्म को ग्राह्य कर लेते हैं, और केवल अपनी बुद्धि से हम मुक्ति और ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। हमें शून्यता को समझना और उसका अनुभव करना होगा। "यद्यपि," उन्होंने हँसी में कहा, "कुछ को भव में रहना सरल प्रतीत हो सकता है, यह सोचते हुए कि यह इतना भी बुरा नहीं है, और वे इसका आनंद ले रहे हैं, विशेषकर अमरीकी संसार। पर दूसरी ओर यदि आप मुक्ति की कामना रखते हैं, तो स्वभावगत सत्ता की दृष्टि को त्यागे बिना कोई विकल्प नहीं है।"
परम पावन ने क्रोध जैसे विनाशकारी भावना, जिसके िलए एक निर्देशित लक्ष्य की आवश्यकता पड़ती है तथा करुणा जैसी रचनात्मक भावनाओं, जो सामान्य लक्ष्य की ओर निर्धारित की जा सकती हैं, के बीच अंतर को स्पष्ट किया। एक उदाहरण के रूप में, उन्होंने सुझाया कि चूँकि हममें से प्रत्येक सुख चाहता है, तो सभी सत्वों के िलए करुणा जनित करने का आधार है। उन्होंने टिप्पणी की कि विनाशकारी भावनाओं का सबसे प्रभावी मारक, शून्यता की समझ है। पाठ में आता हैः
"विवेकी को तथता की अनुभूति के तकनीक में स्वयं का बल लगाना चाहिए। यह जिन की देशनाओं के नेयार्थ तथा नीतार्थ के मध्य के अंतर के विवेक पर निर्भर करता है।"
तिब्बत हाउस द्वारा आयोजित आर्ट ऑफ फ्रीडम अवार्ड मध्याह्न भोज के पश्चात, अपना पाठ जारी रखते हुए, राग जैसे क्लेशों की शक्ति के बल को प्रदर्शित करने के िलए परम पावन ने अपने श्रोताओं से किसी दुकान की कोई विशेष वस्तु की ओर आकर्षित होने की कल्पना करने के लिए कहा।
"यदि कोई उसे गिरा कर तोड़ दे, तो आपको बुरा नहीं लगेगा, पर यदि आपने पहले ही उसे खरीद लिया है, तो संभवतः दुख के कारण आप रो पड़ें।"
परम पावन ने एक प्रमुख स्रोत के रूप में चित्तमात्र परम्परा द्वारा संधिनिर्मोचन सूत्र पर निर्भरता की बात की। उसमें बुद्ध कहते हैंः
"मैं निम्नलिखित इस प्रकार की तीन अवास्तविकताः अस्तित्व-अवास्तविकता, उत्पाद-अवास्तविकता और पारमार्थ-अवास्तविकता का अनुशीलन करते हुए सभी वस्तुओं की स्वभावगत अवास्तविकता की शिक्षा देता हूँ।"
'संधिनिर्मोचन सूत्र' व्याख्या करता है कि स्वभाव गत सत्ता के अस्तित्व और अस्तित्व हीनता के बीच अंतर करते हों अथवा नहीं, के आधार पर दो प्रकार के सूत्र होते हैं। अंतर करने वाले सूत्र नेतार्थ होते हैं, चूँकि उनकी व्याख्या किसी अन्य रूप में नहीं की जा सकती और अंतर न करने वाले सूत्र नीयार्थ होते हैं, चूँकि उनकी अन्य रूप से व्याख्या की जानी चाहिए।
परम पावन ने इस ओर ध्यानाकर्षित किया कि असंग तृतीय भूमि के बोधिसत्व माने जाते हैं, एक ऐसे व्यक्ति ने जिन्होंने शून्यता का प्रत्यक्ष अनुभव किया था। उन्होंने अनुमान लगाया कि उन्होंने चित्तमात्र परम्परा की व्याख्या का चयन अपने भाई वसुबन्धु, जो कि प्रारंभ में महायान को लेकर अवमानना का भाव रखते थे पर बाद में उसमें परिवर्तित हो गए, की सहायता करने के लिए किया था।
परम पावन ने जोनंगपा द्वारा व्याख्यायित 'अन्य-शून्यता' की परंपरा का संदर्भ दिया। उन्होंने शून्यता के कई दृष्टिकोणों का उल्लेख किया, जो अन्य लोगों को विरोधाभास जैसा प्रतीत होता है, पर खुनु लामा रिनपोछे की टिप्पणी उद्धृत की कि किसी गहन समझ रखने वाले और योगी का अनुभव रखने वाले के लिए ये विभिन्न दृष्टिकोण एक ही बिन्दु पर अभिसरित होते हैं।
"बस इतना ही," उन्होंने कहा, "शुभरात्रि।"