रायपुर, छत्तीसगढ़, भारत - जनवरी १५, २०१४ ( द्वारा - स्मिता मैनकर, टाइम्स न्यूज नेटवर्क) - तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने सोमवार को कहा कि लोग बिना अर्थ समझे, केवल अनुष्ठान के लिए भगवान की पूजा करते हैं और पुष्प समर्पित करते हैं।
"जापान और चीन जैसे देशों के विश्वविद्यालयों में छात्रों को उन भिक्षुओं की अपेक्षा संस्कृति का बेहतर ज्ञान है जो केवल पूजा करते रहते हैं। मैं यहाँ विश्वविद्यालयों में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना चाहँूगा।" उन्होंने कहा जब वे यहाँ पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में नागार्जुन के दर्शन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन कर रहे थे।
नागार्जुन के दर्शन पर प्रकाश डालते हुए दलाई लामा ने कहा, "एक अच्छा व्यक्ति बनने के लिए मनुष्य को केवल प्रेम, करुणा का विकास करना चाहिए। सुख का परम स्रोत आंतरिक शक्ति और आत्म विश्वास है।" "मस्तिष्क में ज्ञान और हृदय में अनुभव को एक साथ होना चाहिए। अहिंसा का अर्थ कुछ न करना नहीं है। इसका अर्थ है, कोई बल नहीं, कोई हिंसा नहीं। मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ का सामना करना पड़ा है। २४ वर्ष की आयु में मैंने अपना देश खो दिया, ६०वें वर्ष में मुझे बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पर सबसे महत्त्वपूर्ण है कि व्यक्ति को एक अच्छा मनुष्य होना चाहिए", उन्होंने कहा।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा, "नागार्जुन को आयुर्वेद के लिए और एक भैषज बुद्ध के रूप में याद किया जाता है। हम अत्यंत भाग्यशाली हैं कि छत्तीसगढ़ में नागार्जुन के अवशेष हैं।" केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलपति गेशे ङवङ समतेन और रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति एस के पांडे ने संगोष्ठी के दौरान अपने विचार रखे।
इस बीच, दलाई लामा १४ जनवरी को प्राचीन गुफाओं में ध्यान करने के लिए नागार्जुन गुफाओं की यात्रा करेंगे।