वॉशिंगटन डी सी , अमरीका १९ फ़रवरी २०१४ - सोमवार को हाल के दिनों के धर्मशाला के अत्यधिक शीत के मौसम में आई राहत के कारण परम पावन दलाई लामा का हवाई उड़ान द्वारा दिल्ली जाना संभव हो सका । स्वच्छ नीले आकाश के परिपृष्ठ में धौलाधार पर्वत चमकीले दिखाई दे रहे थे । उनकी यात्रा फ्रैंकफर्ट होती हुई संयुक्त राज्य अमेरिका की थी । अंतिम चरण में पूर्वी समुद्र तट बर्फ से ढँका था और गाड़ी से जाते हुए वाशिंगटन डी सी के मार्ग अभी भी बर्फ से सजे थे । होटल में उनका स्वागत सिक्योंग लोबसाग सांगे के नेतृत्व में खिले चेहरे लिए तिब्बतियों ने पारंपरिक तिब्बती संगीतकारों की संगत के साथ किया ।
"हम अलग होने की माँग नहीं कर रहे । ७ वीं , ८ वीं और ९ वीं शताब्दी में तीन महान साम्राज्यों ,चीन,मंगोलियाऔर तिब्बत में से तिब्बत एक था । पर यह अतीत में था और अतीत पीछे जा चुका है । बीते कल का स्वादिष्ट भोजन आज की क्षुधा को शांत नहीं कर सकता । आज तिब्बत को विकास की आवश्यकता है इसलिए वह चीन की पीपुल्स रिपब्लिक से लाभ उठा सकता है । चीनी संविधान में तथाकथित अल्पसंख्यकों के अधिकारों की ओर ध्यान देने की बात है, और ५० के दशक में माओत्से तुंग ने मुझसे बार बार यह कहा था कि चीन तिब्बत को उसी रूप में नहीं देखता जैसे वह अन्य अल्पसंख्यक क्षेत्रों को देखता है । "
नई चीनी राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग के बारे में परम पावन ने कहा कि कई जानकार चीनी मित्रों ने उन्हें बताया था कि वे अधिक यथार्थवादी प्रतीत होते हैं । जिस साहस से वे भ्रष्टाचार से निपट रहे हैं वह इस बात से मेल खाता है । क्सी जिनपिंग के पिता ,क्सी जो़नगुन जिनसे वे चीन में मिले , एक भले आदमी थे । क्सी जिनपिंग की हू यायोबांग के प्रति भी सम्मान के संकेत मिलते हैं , जिन्होंने एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया ,अपनी जानकारी के लिए विश्वसनीय स्रोत पर भरोसा किया और ल्हासा की यात्रा के दौरान यह स्वीकार किया कि त्रुटियाँ हुई थीं ।वैनिटी फेयर के लिए परम पावन का साक्षात्कार करते हुए डेविड रोज़ ने पूछा कि उनके आगमन का क्या कारण था जिसका उत्तर देते हुए परम पावन ने कहा:
यह पूछे जाने पर कि वह अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष आर्थर ब्रूक्स से कैसे मिले ,परम पावन ने स्मरण किया कि वह उनसे मिलने और उन्हें इंस्टिटयूट आने हेतु आमंत्रित करने के लिए धर्मशाला आए थे । उन्होंने कहा :
"मैं उनसे प्रभावित हुआ और मैंने उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया । कुछ लोगों ने यह शिकायत की है कि अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट एक दक्षिणपंथी संगठन है, पर जहाँ तक मेरा संबंध है , दक्षिणपंथी और वामपंथी सबसे पहले मनुष्य हैं । समाज में परिवर्तन लाने हेतु हमें शिक्षा की आवश्यकता है और हमें मानवता की एकता पर विचार करने की जरूरत है । अतः एक स्वतंत्र विश्व के नेता के रूप में अमेरिका को संपूर्ण विश्व के कल्याण पर विचार करना चाहिए । "
रोज़ ने सुख में राजनीति की भूमिका के बारे में पूछा और परम पावन ने कहा कि राजनीति सुख की परिस्थितियांँ बनाने के विषय में है । उन्होंने कहा कि रोबोट के विपरीत हममें सुख और पीड़ा की अनुभूतियाँ हैं जिन्हें मानवीय ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि इच्छा के बिना कोई विकास नहीं होगा पर कहा कि लालच अलग है । जहाँ पूंजीवाद धन के निर्माण पर केंद्रित है, वहीं मार्क्स का दृष्टिकोण समान वितरण पर बल देता है । किसी भी तरह हो , कोई नहीं चाहता कि सब निर्धन बने रहें ।परम पावन को अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के सदस्यों और अतिथियों के साथ मध्याह्न भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था जहाँ उनका स्वागत बड़े उत्साह के साथ किया गया । इसके पश्चात ' सुख , स्वतंत्र उपक्रम तथा मानव सम्पन्नता ' पर चर्चा हुई । आर्थर ब्रूक्स ने परम पावन से यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि वह सुख किस तरह परिभाषित करते हैं । उन्होंने उत्तर दिया :
" यदि आप सुख मात्र आनंद के रूप में देखें तो यह बहुत ही सीमित है । उदाहरण के लिए कभी कभी भी दुख भी संतोष दे सकता है । वह संतोष आंतरिक शांति की ओर ले जाता है और आंतरिक शांति एक शांत चित्त को जन्म देती है । हम न केवल शारीरिक स्तर पर अपितु एक भावनात्मक और मानसिक स्तर पर भी सुख की अनुभूति करते हैं और एक सुखी जीवन जीते हैं । जब एक डॉक्टर आराम करने की सलाह देता है तो वह मात्र शारीरिक रूप से हमें आराम करने के लिए नहीं कहता पर हमें मानसिक स्तर पर भी विश्राम करना चाहिए , इसका अर्थ है कि हमें एक शांत चित्त की आवश्यकता है ।बाद में हुई एक बैठक में छात्रों और संभावित भविष्य के नेताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने पुनः संतोष के संबंध में सुख का संदर्भ दिया ।
" संतोष आंतरिक शक्ति और विश्वास को जन्म देता है । हम सामाजिक प्राणी हैं , हमें मित्रों की आवश्यकता है । मैत्री विश्वास पर निर्भर करती है और विश्वास स्वयं सच्चाई और ईमानदारी का आचरण का पालन करते हुए एक दूसरे के प्रति सच्चे सम्मान और स्नेह से आता है । "क्रोध के संबंध में और उससे कैसे निपटा जाए के विषय में, परम पावन ने कहा कि यह निर्भर करता है कि आप का चित्त किस स्तर तक शांत है । क्रोध जैसे विनाशकारी भावनाओं के लिए यह संभव है कि वह आपके आधारभूत शांत चित्त को व्याकुल किए बिना आ कर चला जाए । उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि अपने चित्त के एक कोने से अपने क्रोध का निरीक्षण कर यह आकलन लगाना कि क्या इसका कोई मूल्य है, भी संभव है ।
" आज जीवित ७ अरब मनुष्यों के सदस्यों के रूप में हम समान हैं । हमें एक उन्मुक्त ह्रदय रखना चाहए , दूसरों के प्रति उन्मुक्त जो हम से अलग हैं । वैश्विक भाईचारे और भगिनीचारे का सिद्धांत आपके अपने हाथ में है । "