मिनियापोलिस, मिनेसोटा, संयुक्त राज्य अमेरिका - २ मार्च २०१४ - कल के धुँधले दिन के बाद आज, तिब्बती नव वर्ष का पहला दिन, उज्ज्वल तथा खिला हुआ था। जैसे ही परम पावन दलाई लामा मिनेसोटा तिब्बती अमेरिकी फाउंडेशन द्वारा आयोजित लोसर समारोह के लिए ऑग्सबर्ग कॉलेज गाड़ी से पहुँचे, सड़क की बर्फ को प्रतिबिंबित करता और गाड़ियों से श्वास की तरह निकलती भाप को पकड़ता हुआ, सूरज शान से चमक रहा था। आगमन पर परम पावन का तिब्बतीय पारम्परिक ढंग से स्वागत किया गया। उन्होंने तिब्बती नवनीत दीप प्रज्ज्वलन में भाग लिया जिसके पश्चात सभी, तिब्बती और अमेरिकी राष्ट्रगान के लिए सावधान होकर खड़े हो गए।
तिब्बती समुदाय के अध्यक्ष ने एक संक्षिप्त रिपोर्ट रखी और परम पावन को मंडल और प्रबुद्ध काय, वाक् और चित्त के तीन प्रतिनिधि रूप प्रस्तुत किए। इसके पश्चात परम पावन को एक दीर्घायु का समर्पण प्रस्तुत किया गया। अपने स्वागत भाषण में, मिनेसोटा तिब्बतियों के नेता नमज्ञल दोर्जे ने विशिष्ट अतिथियों, परम पावन, प्रधान मंत्री, कांग्रेस सांसद बेट्टी मेकोल्लम, कांग्रेसी सांसद कीथ एलिसन और मिनियापोलिस के मेयर बेट्सी होजेस का स्वागत किया। उन्होंने टिप्पणी की, कि यह पहली बार है कि परम पावन ने पश्चिम में लोसर मनाया है और मिनेसोटा के तिब्बती इसे बहुत शुभ मानते हैं, कि वह उनके साथ मना रहे हैं।
|
अपने संबोधन में प्रधान मंत्री डॉ. लोबसंग सांगे ने भी यह कहा कि परम पावन का यहाँ होना कितना शुभ था। वहाँ उपस्थित सभी लोगों का अभिनंदन टाशी देलेक कहते हुए किया और एक प्रार्थना व्यक्त की कि परम पावन की सभी कामनाएँ पूरी हों और टिप्पणी की, कि यह कितना उपयुक्त था कि परम पावन हाल ही में राष्ट्रपति ओबामा से भेंट कर पाए थे। कांग्रेस सांसद बेट्टी मेकोल्लम ने अपने वक्तव्य का अंत इस घोषणा के साथ किया कि अब तिब्बत का हिंसा और उत्पीड़न से मुक्त होने का समय आ गया है। कांग्रेसी कीथ एलिसन ने अपनी बारी आने पर कहा कि यह समय है कि चीन की सरकार धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों के प्रति सम्मान दिखाए। उन्होंने कहा कि इसे खुलना है, विशेषकर स्वायत्त तिब्बत के मामले पर एक सीधी बातचीत के लिए खुला होना चाहिए। मेयर बेट्सी होड्जेस ने एक शानदार "लोसर टाशी देलेक" के साथ अपना भाषण प्रारंभ किया। उन्होंने परम पावन के समक्ष आज के दिवस का नाम मिनियापोलिस में दलाई लामा का शांति दिवस कहते हुए घोषणा की। अंत में, टाशी नमज्ञल ने निर्वासन में तिब्बती संसद के अध्यक्ष का एक संदेश पढ़ा जिसके अंत में एक प्रार्थना थी कि परम पावन की इच्छाएँ पूरी हों, एक प्रार्थना कि उनका लंबा जीवन हो और तिब्बत के भीतर तिब्बती शीघ्र ही मिल जाएँ।
युवा तिब्बतियों ने उत्साह और आनंद से गीतों और नृत्य का प्रदर्शन किया जो कि तिब्बत के तीन प्रांतों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। परम पावन के बात करने का समय आया:
"लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता, लोबसंग सांगे, क्षेत्रीय तिब्बती नेताओं, कांग्रेस प्रतिनिधियों, महिला मेयर, भिक्षुओं और साधारण लोगों, हमारे विशिष्ट अतिथि आए हैं और हमारे लिए बात की है - धन्यवाद। मैं यहाँ तिब्बतियों, न केवल यहाँ उपस्थित, अपितु वे सभी जो तिब्बत के बाहर और अंदर हैं, का अभिनंदन करते हुए प्रारंभ करना चाहता हूँ। तिब्बतियों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, पर हमारा अपना साहित्य और भाषा है जो बौद्ध धर्म पर चर्चा करने के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। सभी धार्मिक परंपराएँ प्रेम और करुणा, सहनशीलता, क्षमा और संतोष के विषय में शिक्षा देती है। बौद्ध धर्म में विशेष जोर, कारण का उपयोग है। बुद्ध ने एक ऐसे मार्ग की शिक्षा दी जो अच्छे पुनर्जन्म तथा मुक्ति की ओर ले जाती है। इन शिक्षाओं का एक आद्योपांत विवरण, तिब्बती भाषा में मौजूद है, ऐसी व्याख्या जो किसी भी भाषा से अधिक व्यापक है, जो कि गर्व का विषय है।"
|
"जब हम पहले निर्वासन में आए तो जिस वस्तु के विषय में हमें निश्चित रूप से पता था वह था पृथ्वी तथा आकाश। मसूरी पहुँचने पर हम नहीं जानते थे कि हमारा क्या होगा। जैसे समय बीतता गया, हम अहिंसा और सत्य की शक्ति पर विश्वास कर जीवित रहे। उस समय मैं २४ वर्ष का था और अब मैं लगभग ७९ का हूँ। सत्य की शक्ति के अतिरिक्त, हम करुणा की शक्ति का अनुभव करते हैं। हमसे जो बन पड़ा, हमने किया है और अपने चित्त की शांति बनाए रखी है।"
परम पावन ने कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात चित्त शोधन है। उन्होंने नर्तकों के प्रति अच्छी तरह प्रशिक्षित और अच्छे प्रदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने हँसी में कहा कि जबकि दर्शकों को ठंड लग रही थी नर्तकों को काफी गर्म लग रहा होगा। उन्होंने कहा कि पीढ़ियाँ बदल रही है पर फिर भी तिब्बती भावना प्रबल बनी हुई है। उन्होंने वहाँ एकत्रित सभी लोगों से कहा कि वहाँ सभी उपस्थित लोगों के लिए एक उपहार स्वरूप बोधिचित्तोत्पद का अनुष्ठान करने की सोच रहे हैं। उन्होंने कहा कि मात्र शरण गमन तथा बोधिचित्तोत्पद के पदों का पाठ पर्याप्त नहीं है, आप को समझना होगा कि हम अंततः सर्वज्ञता, जो कि बुद्धत्व है, को प्राप्त करने हेतु शरण लेते हैं। बुद्ध बनने की वह प्रेरणा शून्यता की समझ पर आधारित है। हमें अज्ञान के कारण दुखानुभूति होती है और बुद्ध ने उस पर काबू पाने का एक मार्ग प्रशस्त किया।
परम पावन ने जे चोंखापा के 'प्रतीत्य समुत्पाद की स्तुति में' का एक पठन प्रसारण प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि जे रिनपोछे ने बाल्यकाल से ही शून्यता में रुचि दिखाई और प्रतीत्य समुत्पाद की शिक्षा देने के िलए बुद्ध की प्रशंसा का यह ग्रंथ अत्यंत मूल्यवान है। उन्होंने आगे कहा:
"हम यहाँ लोसर मना रहे हैं, जो कई कारकों पर निर्भर है। यदि लोसर का स्वतंत्र अस्तित्व होता तो हम इस विषय पर बात नहीं कर सकते कि तिब्बत और भारत में रहने वालों ने इसे कल ही मना लिया, यद्यपि हम आज ऐसा करते प्रतीत हो रहे हैं। इसी तरह, हमारे पास यह डिज़ाइन वाले हरे रंग के कुछ कागज़ हैं जिन्हें डॉलर के रूप में जाना जाता है। यह उनका ज्ञापित रूप है। हम यह भी पूछ सकते हैं कि सोने का मूल्य किसने घोषित किया? लोगों ने इसे इस रूप में ज्ञापित किया और हमने इसे स्वीकार कर लिया। जब आप मेरे शरीर को देखते हैं तो आप कह सकते हैं कि आप दलाई लामा को देख रहे हैं, पर यदि आप और विश्लेषणात्मक रूप से देखें तो वह आपको नहीं मिलेगा। चूँकि इन वस्तुओं का कोई आंतरिक अस्तित्व नहीं है, उनके नाम का भी कोई आंतरिक अस्तित्व नहीं है।"
"जे रिनपोछे स्वयं को एक बौद्ध भिक्षु कहते हैं जो शिक्षा को लेकर निर्धन नहीं हैं। उनका तथा मेरा जन्म एक ही स्थान पर हुआ था।"
परम पावन ने सभा में बोधिचित्तोत्पाद के पदों के पाठ का नेतृत्व किया। उन्होंने कई लोकप्रिय मंत्रों का प्रसरण किया और फिर तिब्बत में अपने भाइयों और बहनों के हितार्थ ओम मणि पद्मे हुँ के पाठ में उनके साथ सम्मिलित होने के लिए प्रत्येक से कहा। अंत में वे बोले:
"बस इतना ही, धन्यवाद। सुखी रहिए।"
दोपहर में, परम पावन मकालेस्टर कॉलेज गए जहाँ वह पहले तंत्रिका विज्ञान विभाग के एक छात्र समूह से मिले जिन्होंने उन्हें अपने विषय के प्रति रुचि और सहयोग के िलए एक सराहना प्रस्तुत की।
हॉल में, ३५०० वाली संख्या के दर्शकों के सामने, प्रोवोस्ट कैथलीन मरे और कॉलेज अध्यक्ष ब्रायन रोसेनबर्ग ने परम पावन को विश्व शांति हेतु उनकी तथा उनके लोगों की ओर से किए गए कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। इसके बाद उन्होंने दर्शकों को संबोधित किया।
"आदरणीय ज्येष्ठ बहनों और भाइयों और कनिष्ठ बहनों और भाइयों, इन युवा छात्रों के इस समूह से मिल कर मैं अत्यंत खुश हूँ। जब मैं युवा लोगों से मिलता हूँ तो मुझे वास्तव में लगता है कि वे एक नई सदी में एक नए विश्व को आकार देने वाले हैं। समय सतत आगे बढ़ रहा है, उसे कोई शक्ति रोक नहीं सकती। अतीत अतीत है, हम मात्र अपने अनुभवों से सीख सकते हैं, पर हम उन्हें परिवर्तित नहीं कर सकते। परन्तु भविष्य को पुनः आकार दिया जा सकता है।"
"कुछ इतिहासकार कहते हैं कि २०वीं शताब्दी में, इसके कई सकारात्मक विकास के बावजूद, लगभग २०० अरब लोग हिंसा के फलस्वरूप मारे गए। बहुत अधिक रक्तपात, हिंसा और पीड़ा हुई थी। यदि इसने किसी एक नई व्यवस्था को जन्म दिया होता तो वह न्यायोचित हो सकता था, पर ऐसा नहीं हुआ, यह केवल दुख लाया। हिंसा के सबसे नकारात्मक पहलुओं के बीच ही उसके अप्रत्याशित परिणाम हैं। इस संदर्भ में ९/११ की त्रासदी के बाद, मैंने अपने मित्र राष्ट्रपति बुश को अपने दुख और संवेदना व्यक्त करने के लिए लिखा, और यह आशा भी जताई कि जो भी प्रतिक्रिया सोची गई है वह अहिंसक होगी।"
|
"दुर्भाग्य से, २०वीं सदी न केवल उस समय हिंसा पूर्ण थी, पर उसका प्रभाव अब भी निरन्तर है। इस सदी को एक और अधिक शांतिपूर्ण सदी बनाने के लिए, हमें इस सदी को, संवाद की सदी बनाने की आवश्यकता है। यद्यपि हम शांति के एक युग की कामना करते हैं, पर इसका यह अर्थ नहीं कि यह बिना समस्याओं के होगा। अंतर यह है कि हमें संवाद द्वारा उन समस्याओं से निपटना होगा, हथियारों पर नहीं पर सत्य पर निर्भर रहना होगा। अपने प्रतिद्वंद्वी की हार की कामना करते हुए आप सफल न होंगे, आपको उसे सम्मान दिखाने की आवश्यकता है।"
परम पावन ने कहा कि हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें धनाढ्यों और निर्धनों के बीच की बड़ी खाई है जो कि नैतिक रूप से अनुचित है और व्यावहारिक रूप से गलत है। इससे निपटने के लिए रचनात्मक उपाय होने चाहिए। विश्व के कई भागों में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है, जो समाज में एक कैंसर की तरह है। प्राकृतिक आपदाएँ तथा ऋतु परिवर्तन, वैश्विक अर्थव्यवस्था, ये सभी ऐसी है जो हम सभी को प्रभावित करती है। वस्तुएँ और अधिक जटिल हो जाएँगी, तो आज जो युवा हैं, २१वीं सदी की पीढ़ी, उन्हें और भी अधिक दृढ़ संकल्पी होना होगा। वे हमारी आशा के स्रोत हैं।"
उन्होंने कहा कि यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि सभी को सुख का अधिकार है। वहाँ 'हम' और 'उन' में विभाजन का कोई स्थान नहीं है। हमें मानवता की एकता के संदर्भ में सोचने की आवश्यकता है। राष्ट्रीयता, जाति, धर्म, विश्वास, शिक्षा के स्तर के अंतर सभी गौण हैं। हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि दूसरों की समस्याएँ हमारी समस्याएँ हैं।
"शारीरिक दर्द को मानसिक बल की सहायता से कम किया जा सकता है, परन्तु मानसिक व्यग्रता शारीरिक सुविधा से कम नहीं होती। हमें दूसरों के कल्याण के लिए चिंता होनी चाहिए। सौहार्दता तनाव कम करता है और शांति लाता है। युवतियाँ अपने शारीरिक सौन्दर्य की ओर सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग द्वारा ध्यान देती है जो कि ठीक और अच्छा है। परन्तु बाह्य सौंदर्य से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण आंतरिक सौंदर्य का विकास है। सौहार्दता विश्वास को जन्म देता है और विश्वास मैत्री की ओर ले जाती है।"
ब्रायन रोसेनबर्ग द्वारा परम पावन के समक्ष रखे गए प्रश्नों में पहला था कि क्या वे कभी क्रोधित होते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि होते हैं, और यदि और विवरण की आवश्यकता हो तो वह उनके कर्मचारियों से पूछ सकते हैं। पर उनका क्रोध बना नहीं रहता। उन्होेंने कहा कि कभी कभी वे अपने क्रोध को अधिक होता हुआ देखते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह अपनी भावनाओं को देखते हुए, हम यह सीख सकते हैं कि वे किस तरह विकसित होते हैं तथा कार्य करते हैं। हमारी बुद्धि को पनपने देते हुए, हम दृश्य और यथार्थ के बीच के अंतर को कम कर सकते हैं। धर्म और विज्ञान के बीच टकराव के विषय में एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने समझाया कि विश्वास का संबंध हमारे आंतरिक मूल्यों से है जबकि विज्ञान काफी हद तक भौतिक विश्व के साथ जुड़ा है, तो वास्तव में कोई टकराव नहीं है।
उचित निर्णय लेने के विषय में परम पावन ने अपने ही अनुभव का संदर्भ दिया। तिब्बत में, एक बार उन्होंने देश के राजनैतिक और आध्यात्मिक उत्तरदायित्व को ग्रहण कर लिया तो वे स्वयं ही वस्तुओं के विषय में सोचते थे। फिर वे दूसरों से परामर्श करते। वे नौकरों के साथ संबद्धित अधिकारियों को शामिल करते। उस आधार पर वह एक सूचित निर्णय लेते। उन्होंने कहा कि इस तरह की परिस्थितियों में यदि आपकी प्रेरणा अच्छी हो, तो यदि कोई बात बिगड़ भी जाए, तो खेद के लिए कोई आधार नहीं होता।
एक अंतिम प्रश्न था कि सबसे बड़ा खेल कौन सा है और परम पावन हँसे और उन्होंने कहा कि इस विषय में वह एक गलत व्यक्ति हैं क्योंकि उनकी खेल में कोई रुचि नहीं है। जब उन पर ज़ोर डाला गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने १९५४ में पेकिंग में टेबल टेनिस खेला था ताकि वे प्रधानमंत्री चाउ एनलाइ को हरा सकें, और बाद में भारत में वे थोड़ा बैडमिंटन खेले थे। पर उन्होंने कहा, कि हाल ही में उन्हें धर्मशाला में जब एक क्रिकेट मैच में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उन्हें पूछना पड़ा कि कौन जीत रहा था क्योंकि वे स्वयं कुछ नहीं जानते थे।
अध्यक्ष रोसेनबर्ग ने वहाँ आने के लिए उनका अत्यंत आभार व्यक्त किया। अपने श्रोताओं के लिए परम पावन के कुछ अंतिम शब्द थे।
"आप युवा, जो मैंने कहा है उस पर तनिक चिंतन करें। हम अब और यह मानकर नहीं चल सकते कि हमारे जीवन का ढंग टिकने वाला है। हमें नई वास्तविकता के अनुसार इसके आकलन और समायोजन की आवश्यकता है। धन्यवाद।"