एक परिणाम एक हेतु पर निर्भर करता है, पर प्रतीत्य समुत्पाद के संदर्भ में हम यह भी कह सकते हैं कि हेतु परिणाम पर निर्भर करता है, जिस तरह कार्य, कर्ता और वस्तु एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
परम पावन ने यह भी उल्लेख किया कि हृदय सूत्र का मंत्र, 'तद्यथा गते गते पारगते, पारसंगते बोधि स्वाहा' उन परिवर्तनों की ओर संकेत करता है जो एक अभ्यासी के आध्यात्मिक मार्ग के विकास में होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे अभ्यास में उस समय तक क्रमशः सुधार होना चाहिए जब तक कि अंततः हम भी सम्यक् संबुद्ध न बन जाएँ। इसकी कुंजी शून्यता की समझ है, क्योंकि केवल यही अज्ञान और क्लेशों का प्रतिद्वंद्वी है जो दुख को जन्म देते हैं। प्रज्ञा पारमिता की शिक्षाओं के दो पहलू हैं ः शून्यता, जिस की व्याख्या नागार्जुन ने की और असंग द्वारा समझाया गया मार्ग के चरण।
परम पावन ने फिर जे चोंखापा के ग्रंथ 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तव' के अधिगमन करने के उद्देश्य की घोषणा की जो शून्यता और प्रतीत्य समुत्पाद दोनों के महत्व पर बल देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि यह अच्छा होगा कि प्रतिदिन हृदय सूत्र का पाठ करने के पश्चात इस ग्रंथ का पाठ करें। उन्होंने कहा कि शून्यता और प्रतीत्य समुत्पाद पूरक हैं। यदि प्रतीत्य समुत्पाद आपको शून्यता के विषय में सोचने पर प्रेरित करता है और उसी समय शून्यता आपको प्रतीत्य समुत्पाद के विषय में सोचने के लिए प्रेरित करती है तो आपकी शून्यता की समझ उचित है।
जे चोंखापा को जो व्याख्याएँ मिली थीं वे उससे असन्तुष्ट थे और उन्होंने ढँूढकर उस समय प्राप्त शून्यता पर सभी ग्रंथ और उनके भाष्य पढ़े और जो कुछ पढ़ा उसका विश्लेषण करने के उपरांत सही दृष्टिकोण पर पहुँचे। एकांतवास में उन्हें मंजुश्री के दर्शन हुए जिसके बाद उन्होंने बुद्धपालित का भाष्य पढ़ा और शून्यता की पूर्ण अनुभूति प्राप्त की। उन्होंने समझा, कि चूँकि वस्तुएँ अन्य कारकों पर निर्भर करती हैं, अतः वे आंतरिक रूप से स्वभाव रहित हैं, पर वे अस्तित्वहीन नहीं हैं। न ही अस्तित्व हीन होकर या स्वभाव सत्ता से अस्तित्व रखते हुए वे एक प्रकार्य धर्म के रूप मे अस्तित्व रखती हैं, पर केवल ज्ञापित रूप में। परम पावन से परिचित वैज्ञानिक उनकी इस व्याख्या की सराहना करते हैं।
परम पावन ने इंगित किया कि जब हम कुछ भी देखते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने स्वभाव लिए अस्तित्व में है, हम उसे अन्य कारकों पर निर्भर हुए रूप में नहीं देखते। उन्होंने कहा कि जब हम उन्हें देखते हैं, तो वह ठोस रूप में अस्तित्व लिए जान पड़ते हैं पर फिर भी तर्क हमें बताता है कि वस्तुतः ऐसा नहीं है।
प्रवचन परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु के लिए एक छोटी प्रार्थना के साथ संपन्न हुआ। उन्होंने कहा कि हमें इस तरह के अनुष्ठानों को सबसे महत्वपूर्ण नहीं समझना चाहिए। हमारी वास्तविक आवश्यकता प्रतीत्य समुत्पाद की समझ के लिए अध्ययन करने की है। जब प्रार्थना समाप्त हुई तो उन्होंने उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने उस आयोजन को संभव बनाने में योगदान दिया था।
लेह लौटते हुए गाड़ी में यात्रा के दौरान, परम पावन बासगो में एक भिक्षुणी आश्रम देखने के लिए रुके, जहाँ एक शिक्षण केंद्र स्थापित किया जा रहा है। उन्होंने वहाँ जो कुछ देखा उससे वे बहुत प्रसन्न थे तथा जिन भिक्षुणियों और डच समर्थकों से उनकी भेंट हुई, उनसे उन्होंने अपने अच्छे कार्य को बनाए रखने के लिए कहा।
कालचक्र अभिषेक की आनुष्ठानिक तैयारियाँ ३ जुलाई से प्रारंभ होगी जबकि प्राथमिक शिक्षाएँ ६ जुलाई से शुरू होंेगी।
जिनकी रुचि है उनके लिए श्री नालंदा के सत्रह महापंडितों की प्रार्थना श्रद्धात्रय प्रकाशन का अनुवाद यहाँ उपलब्ध होगा
http://www.thubtenchodron.org/PrayersAndPractices/illuminating_the_threefold_faith.html
और जे चोंखापा का 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तव' का अनुवाद यहाँ पाया जा सकता है:
http://www.berzinarchives.com/web/en/archives/sutra/level2_lamrim/advanced_scope/voidness_emptyness/praise_dependent_arising.html