रीगा, लातविया - ६ मई २०१४ - आज प्रातः प्रवचन स्थल के लिए बाहर निकलने से पहले, परम पावन दलाई लामा ने अपने होटल में प्रेस से भेंट की। एक संक्षिप्त परिचय में यह बताया गया कि लातविया की यह उनकी चौथी यात्रा है, जो कि उनके द्वारा दिए जा रहे बौद्ध प्रवचनों के कारण प्रतिष्ठित है और जिसमें लिथुआनिया, एस्टोनिया और रूस के लोग भाग ले रहे हैं।
"मैं यहाँ आकर बहुत प्रसन्ऩ हूँ", परम पावन ने कहा। "गत वर्ष जब मैं यहाँ था, तो स्थानीय लोगों से अनुरोध के अतिरिक्त, एक साधारण रूसी ने मुझसे कहा कि उसके जैसे लोगों के लिए बौद्ध शिक्षाओं को सुनने के लिए भारत आना कठिन था। मैंने सोचा कि क्या रूसी लोगों के लिए बाल्टिक राज्यों में से एक में आना अपेक्षाकृत आसान होगा। मैंने पूछा और मुझे बताया गया कि यह ठीक होगा, इसलिए आने का निर्णय कर लिया।"
फिर उन्होंने अपनी तीन प्राथमिक प्रतिबद्धताओं को समझाया, सुख की खोज में मानव मूल्यों के महत्त्व की जागरूकता के प्रति सार्वजिनक जागरूकता बढ़ाना, अंतर्धार्मिक सद्भाव का विकास और तिब्बती भाषा, धर्म, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण। फिर उन्होंने पत्रकारों के प्रश्नों के उत्तर दिए।
नार्वे सरकार की घोषणा कि कोई सदस्य उससे नहीं मिलेगा, के संबंध में उनकी प्रतिक्रिया पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह असामान्य नहीं था। यद्यपि उनकी इस यात्रा का उद्देश्य, उनकी तीन प्रतिबद्धताओं को बढ़ावा देना, पुराने मित्रों से मिलना और जनता के साथ बातचीत करना था। उन्होंने आगे कहा कि वह जहाँ भी जाते हैं, उनकी किसी भी प्रकार की परेशानी खड़ा करने की कोई इच्छा नहीं है।
दुनिया के कई भागों में उत्पन्न हो रही हिंसा के संबंध में उन्होंने कहा कि कई उदाहरण पिछली लापरवाही का परिणाम थे। उन्होंने चेताया कि शस्त्रों के प्रयोग निर्णायक प्रतीत हो सकते हैं, पर वे अपने साथ भय लाते हैं जो समस्याओं के समाधान के पक्ष में नहीं है। जहाँ २०वीं शताब्दी हिंसा का युग था, उन्होंने २१वीं शताब्दी को संवाद और संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की एक सदी बनाने के महत्त्व पर बल दिया। ऐसे समय जब मानव मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता है, जिसके प्रति महिलाएँ और अधिक संवेदनशील होती है, हमें नेतृत्व की भूमिका का उत्तरदायित्व लेने के िलए और अधिक महिलाओं की आवश्यकता है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे असहमति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह एक राजनीतिक प्रश्न था जिसके विषय में उनके पास पूरी जानकारी नहीं थी। संकट को शांत करने के लिए जो भी उद्देश्य अपनाया जाए, पर बल प्रयोग उसे पूरा करने में सहायक नहीं होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाषा और संस्कृति के अंतर संघर्ष के कोई आधार नहीं हैं। उन्होंने बेल्जियम के फ्रेंच और फ्लेमिश बोलने वालों तथा भारत के लोगों का उदाहरण दिया और कहा, कि वे कानून के शासन के तहत स्वतंत्रता और प्रजातांत्रिक रूप से सौहार्दपूर्ण भाव से एक साथ रहते हैं।
किपसला अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र में उनकी प्रतीक्षा कर रहे श्रोताओं का अभिनन्दन करते हुए उन्होंने रूसी में 'हृदय सूत्र' का पाठ करने के लिए कहा। उन्होंने बुद्ध के कथन को उद्धृत किया।
"अपनी ओर से मैं तुम्हें मार्ग दिखाऊँगा पर आप को इस पर चलने की आवश्यकता है": और साथ ही यह पद जोड़ा।
"बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत् के दुःखों को हाथों से हटाते हैं;
न ही अपनी अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते;
वे धर्मता सत्य देशना से मुक्ति कराते हैं।"
उन्होंने कहा कि दुख का कारण अकुशल कार्य, दूसरों को हानि पहुँचाना है। अतः हमें अकुशल कार्यों से बचना चाहिए। उन्होंने उल्लेख किया जिसे हम साधारण तौर पर सुख मानते हैं बुद्ध ने उसे परिणाम दुख के रूप में वर्णित किया। यद्यपि यह कुशल कर्मों से उत्पन्न होता है, पर परिवर्तनशील होने के कारण यह असंतोषजनक है। दुख का कारण अविद्या है जो वास्तविकता के ठीक विपरीत है। चूँकि अविद्या ज्ञान के विपरीत है, अतः हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यथार्थ क्या है। प्रतीत्य समुत्पाद के द्वादशांग में अविद्या प्रथम अंग है। यह वास्तविकता के प्रति अज्ञान है कि वस्तुएँ किस प्रकार अस्तित्व रखती है। हमें दृश्य और वास्तविकता के बीच के अंतर को समझने की आवश्यकता है। वस्तुएँ अपने आप में अस्तित्व िलए जान पड़ती है। वे स्वतंत्र अस्तित्व लिए जान पड़ती है, पर वास्तव में उनका अस्तित्व केवल ज्ञापित है।
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परम पावन ने अज्ञान के विभिन्न स्तरों की ओर ध्यानाकर्षित किया उदाहरण के लिए, उनके थैले में क्या रखा है की अज्ञानता धर्मों की स्थिति की अज्ञानता से अलग प्रकार की है। क्योंकि हम वस्तुओं को वस्तुनिष्ठ रूप से अच्छा देखते हैं, हमारे मन में उनके प्रति मोह का विकास होता है। जब वे नकारात्मक प्रतीत होते हैं, तो हम क्रोध और घृणा का विकास करते हैं। इन के प्रभाव में, जैसा कि अमरीकी मनोचिकित्सक हारून बेक संकेत करते हैं कि हमारी मोह अथवा क्रोध की भावना ९०% हमारा अपना मानसिक प्रक्षेपण है। माध्यमक कहते हैं कि जहाँ वस्तुएँ वस्तुनिष्ठ अस्तित्व िलए जान पड़ती है, वे मात्र ज्ञापित हैं। सांवृतिक स्तर पर भी उनका कोई वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं है।
परम पावन ने तीन कालों का उदाहरण रखा़ः भूत, वर्तमान और भविष्य। अतीत जा चुका है, भविष्य अभी आना बाकी है, पर वर्तमान को ठीक से पकड़ पाना कठिन है। इसी तरह सभी पदार्थ स्वभाव शून्य हैं।
अध्ययन और परीक्षण के लिए नालंदा दृष्टिकोण की सराहना करते हुए, परम पावन ने चार प्रतिशरणों की दिशा निर्देशों के रूप में सराहना की:
अर्थ का प्रतिशरण करें, न कि व्यंजन का,
धर्म का प्रतिशरण करें, न कि पुद्गल का,
ज्ञान का प्रतिशरण करें, न कि विज्ञान का,
नीतार्थ का प्रतिशरण करें, न कि नेयार्थ का।
उन्होंने कहा:
"मैं लोगों से कहता हूँ कि २१वीं सदी के बौद्ध होने के लिए हमें बुद्ध की सलाह का पालन कर अपनी बुद्धि का पूरी तरह से उपयोग करते हुए अपने क्लेशों को परिवर्तित करना चाहिए। १३वीं सदी के एक महान तिब्बती आचार्य ने सलाह दी कि यदि आप यह जानते भी हों कि आपकी मृत्यु कल होने वाली है, पर फिर भी आज अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसका आगामी जीवन पर प्रभाव पड़ सकता है। अध्ययन के संदर्भ में, तिब्बती, नालंदा परंपरा का अध्ययन करने के लिए सबसे सटीक भाषा है। विद्वान, उनके प्रतिपादन की सटीकता के कारण संस्कृत ग्रंथों के तिब्बती अनुवादों को महत्त्व देते हैं। और तिब्बती से अंग्रेजी अनुवाद की बढ़ती संख्या है।"
"क्लेशों और ज्ञानार्जन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए हमें शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा की आवश्यकता है, जो बोधिचित्त और छह पारमिताओं द्वारा समर्थित हो।"
'हृदय सूत्र' की व्याख्या समाप्त करते हुए परम पावन ने अंत में आने वाले मंत्र को आध्यात्मिक मार्ग के विकास से जोड़ा, यह सुझाव देते हुए कि, तद्यथा गते गते पारगते पारसंगते बोधि स्वाहा का यह अर्थ है ः गए, गए, पार गए, संपूर्ण रूप से पार गए, पूर्ण बुद्धत्व की नींव रखते हुए। उन्होंने स्पष्ट किया कि शब्दांशों का पहला वर्ग, गते गते / गए, गए, संभार मार्ग और प्रयोग मार्ग तथा शून्यता के प्रथम अनुभव को दर्शाता है; पारगते/पार गए, दर्शन मार्ग को इंगित करता है, शून्यता की प्रथम अंतर्दृष्टि और प्रथम बोधिसत्व भूमि की प्राप्ति; पारसंगते/पूर्ण रूप से गए, भावना मार्ग को इंगित करता है और अन्य बोधिसत्व भूमियों को दर्शाता है, जबकि बोधि स्वाहा, सम्पूर्ण ज्ञान की नींव रखने को दर्शाता है।
एक बार पुनः प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने ज्योतिष शास्त्र के विषय में संदेह व्यक्त किया, ५वें दलाई लामा की टिप्पणी कि उनका जन्म एक शुभ दिन पर हुआ था, पर कई कुत्ते भी उसी दिन पैदा हुए थे। दूसरी ओर परम पावन ने सूचित किया कि उनकी कुंडली ने भविष्यवाणी की थी कि, उनकी २५वें वर्ष में या तो उनकी मृत्यु होगी या वे देश छोड़ देंगे, जिसे घटनाओं ने सिद्ध कर दिया। एक सुझाव पर कि कर्म पूर्वनिर्धारण की ओर संकेत करता है, परम पावन ने नकारते हुए कहा कि जब तक वह फलित नहीं होता, कर्म को परिवर्तित किया जा सकता है। उन्होंने संकेत किया कि यद्यपि वह कल ओस्लो के लिए उड़ान भरने के लिए आरक्षित हैं, जब तक वह वायुयान में हैं और वह उड़ान भर रहा है, कोई आपातकालीन या अन्य परिस्थिति उन्हें उनकी योजनाओं को बदलवा सकती है। उन्होंने कहा कि चूँकि कर्म हमारी अपनी निर्मित है, हम उसे परिवर्तित भी कर सकते हैं।
कल मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन रूसी संसद के पाँच सदस्यों के एक समूह से मिले। आज उन्होंने सात लातवियाई सांसदों और यूरोपीय संसद के लिए दो उम्मीदवारों से भेंट की।
मंच पर लौटकर उन्होंने बोधिसत्व के ३७ अभ्यास को ऐसे ग्रंथ के रूप में बताया, जो स्पष्ट करता है कि दैनिक रूप से किस प्रकार ध्यान किया जाए। उन्होंने कहा कि १३/१४ सदी के लेखक थोगमे संगपो अपने जीवन काल में व्यापक रूप से एक बोधिसत्व के रूप में जाने जाते थे। उनका बोधिचित्त का अभ्यास इतना प्रभावशाली था कि वे जहाँ भी रहते वहाँ का वातावरण शांति से भर उठता था।
चूँकि विषय बोधिचित्त है, अतः पाठ का प्रारंभ सभी बुद्धों के करुणा के साकार रूप, अवलोकितेश्वर की वन्दना से हुआ है। परम पावन ने यहाँ वहाँ टिप्पणी करते हुए छंदों को पढ़ा। उन्होंने कहा कि बुद्ध को बिना कारण बुद्धत्व की प्राप्ति नहीं हुई थी अपितु आवश्यक कारणों और परिस्थितियों के निर्माण के साथ वे बुद्ध बने थे। नागार्जुन ने दो उद्देश्यों में अंतर स्पष्ट किया, अभ्युदय और नैःश्रेयस या मुक्ति और उनकी प्राप्ति में तीन अधिशिक्षाः शील, समाधि और प्रज्ञा की सराहना की।
परम पावन ने श्रोताओं को श्वास अभ्यास की नौ बार आवृत्ति करवाई, जो उन्होंने कहा कि हमारी आंतरिक ऊर्जा के शमन में सहायता करता है और इस तरह चित्त को शांत करता है और उसे ध्यान के लिए और अधिक तैयार करता है।
त्रिरत्नः बुद्ध, धर्म और संघ में शरण गमन के उल्लेख ने परम पावन को यह कहने के िलए प्रेरित किया कि हिमालय क्षेत्र में कई आत्माएँ, 'ज्ञलपो' हैं, जिनको कुछ लोग भेंट चढ़ाते हैं। पर यदि आप उन में शरण लेने की स्थिति तक जाएँ, तो आप अपना बौद्ध शरण खो बैठेंगे। उन्होंने कहा कि वे शुगदेन पर भरोसा करते थे जो कि ऐसी आत्मा है।
"मेरे शिक्षक ठिजंग रिनपोछे और उनके शिक्षक फबोंगखा रिनपोछे भी, जिन्होंने शुगदेन पर विश्वास किया, उन्होंने उसे एक शरण के रूप में नहीं देखा, इसलिए उन्होंने उसे शरण के स्थान में नहीं रखा। परन्तु फबोंगखा की जीवनी में यह लिखा गया है कि जिस प्रकार वे उस पर आश्रित थे उसे देखकर १३वें दलाई लामा ने उन की खबर ली, यह कहते हुए कि यह उनके त्रिरत्न शरण गमन के विरोध करना जैसा है।"
"मैंने इसका अभ्यास उस समय तक किया था जब तक परीक्षण और विश्लेषण ने संकेत दिया कि इसे रोकना बेहतर होगा। तब से मैंने दूसरों को भी इसे बन्द करने की लिए सलाह दी है। यदि लोग इसे जारी रखने रखना चाहते हैं, तो मैंने उनसे मुझ से संवर और दीक्षा लेने के लिए मना किया है। ५वें दलाई लामा ने शुगदेन को विकृत प्रार्थना से उत्पन्न होने के रूप में तथा प्राणियों और धर्म की क्षति करते हुए देखा।"
"आजकल जो शुगदेन पूजा करते हैं वे मुझसे नाराज हैं। वे मेरे विरुद्ध नॉर्वे तथा अन्य स्थानों पर प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं जैसा उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में इस साल के प्रारंभ में किया था। मुझे इन लोगों के लिए बुरा लगता है क्योंकि वे ठीक से शुगदेन की प्रकृति समझ नहीं पाते।"
"बौद्ध शरण त्रिरत्न में है।"
उस पद पर पहुँचकर जिसमें परात्मपरिवर्तन का उल्लेख है, परम पावन ने शांतिदेव के कथन को उद्धृत किया, कि स्वयं और दूसरों के आदान प्रदान के बिना कोई सुख नहीं है। बाद के छंदों का संबंध छह पारमिताओं से है और अंतिम पद पुण्यों की परिणामना व्यक्त करता है।
श्रोताओं की ओर से अंतिम प्रश्नों में एक था कि एक माँ गर्भपात का अनुभव होने के पश्चात अपने खोए बच्चे के लिए क्या कर सकती है। परम पावन ने सबसे पहले कहा कि मृत शरीर का निपटान महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। उन्होंने कहा कि जहाँ कर्म व्यक्ति का होता है, पर माता पिता और बच्चों, शिक्षकों और छात्रों के बीच विशेष संबंध होते हैं इत्यादि। अतः इस प्रकार के मामले में एक माँ कुछ सद्कार्य कर सकती है और उसका पुण्य बच्चे के लाभ के लिए समर्पित कर सकती है। उन्होंने कहा कि उनकी माँ का निधन हुआ था जब उन्होंने उनकी ओर से मंत्र जाप किया था और उसके पुण्य को माँ को समर्पित किया था।
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एक अन्य प्रश्नकर्ता ने पूछा कि एक बौद्ध को क्या करना चाहिए यदि उसके देश पर एक आक्रमणकारी द्वारा आक्रमण किया जाता है। परम पावन ने कहा उसे यह निर्णय लेना होगा किस से अधिकतम लोगों को लाभ होगा। यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। उन्होंने उस जातक कथा का उल्लेख किया जिसमें बताया गया है कि किस तरह बोधिसत्व, बुद्ध बनने से पूर्व एक जीवन में, एक जहाज के कप्तान थे। उन्होंने एक ऐसे आदमी को जान से मारने का निश्चय किया जो जहाज पर सवार अन्य ४९९ लोगों की हत्या करने के लिए तैयार था। ऐसा करने में उसने उनके जीवन को बचाया, पर साथ ही उस आदमी को बहुत गंभीर नकारात्मक कर्मों का निर्माण करने से बचाया।
यह पूछे जाने पर कि गैर सांप्रदायिक रूप से कैसे अभ्यास िकया जाए परम पावन ने स्पष्ट किया कि सभी तिब्बती बौद्ध परंपराओं की जड़ें नालंदा परंपरा में हैं। उन्होंने कहा कि गेलुगपा का अध्ययन करने का दृष्टिकोण अच्छा है पर उनके अपने अनुभव में िञङ्मा का ज़ोगछेन (महापूर्ण) गुह्यसमाज के अंगों को समझने में बहुत सहायक हो सकता है, जबकि गुह्यसमाज ज़ोगछेन को समझने में भी सहायक हो सकता है। उन्होंने हँसी में कहा कि अलग अलग रंगों और आकारों की टोपी से अधिक, यह बिंदु महत्त्वपूर्ण है।
अंत में बुर्यातिया की एक महिला ने पूछा कि क्या परम पावन इस वर्ष मंगोलिया आएँगे। उन्होंने उसे बताया कि प्रस्तावित कालचक्र अभिषेक स्थगित कर दिया गया था, पर अब भी वैज्ञानिकों के साथ बैठक के लिए आने का एक कार्यक्रम था। उन्होंने कहा कि पिछले दो दिनों में जिस प्रकार की चर्चाएँ हुई थी, उसकी लोगों ने सराहना की थी और उनसे अगले वर्ष ऐसा ही करने को कहा था। लातवियाई सांसदों ने भी अपनी सराहना व्यक्त की थी, इसलिए सिद्धांत रूप में उन्होंने सहमति दे दी थी।
तेलो रिनपोछे ने, समर्थकों, आयोजकों, स्वयंसेवकों और सबसे अधिक परम पावन, जिनके कारण यह कार्यक्रम संभव हो पाया, के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। उन्होंने खाते का एक विस्तृत बयान पढ़ने का अनुरोध किया। इस कार्यक्रम के समापन के अवसर पर रूसी गायक बोरिस ग्रेबेनशिकोव ने एक मधुर गीत बजाया। और उसी के साथ परम पावन स्नेह की एक विशाल लहर के साथ सभागार से बाहर निकले।
कल वह नोबेल गोलमेज सम्मेलन की बैठक में भाग लेने के लिए ओस्लो, नार्वे के लिए उड़ान भरेंगे।