बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - १४ दिसंबर २०१५ - जब परम पावन दलाई लामा ने सेरा लाची मंदिर में आज पुनः प्रवेश किया तो उन्होंने माइंड एंड लाइफ के प्रस्तुतकर्ताओं तथा केन्द्र के अन्य संस्थानों के सदस्यों के लिए कुर्सियाँ व्यवस्थित रूप से रखी देखीं। उनके चारों ओर वरिष्ठ लामा थे जिनमें से कइयों का उन्होंने अभिनन्दन किया जब वे सैकड़ों अन्य भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों और रुचि रखने वाले आम लोगों के बीच से होते हुए आए। अंग्रेज़ी तथा तिब्बती वक्ताओं की सुविधाओं के लिए बहुत प्रयास किए गए थे, जिसमें परदे पर प्रस्तुतकर्ताओं की प्रस्तुति दो भाषाओं में स्पष्ट दिखाई दे रही थी और एफ एम रेड़ियो पर साथ साथ अनुवाद भी उपलब्ध था । अपना आसन ग्रहण करने से पूर्व परम पावन ने सौहार्दता से कई पुराने मित्रों का अभिनन्दन किया।
पहले सत्र का संचालन करते हुए रोशी जोन हैलिफ़ैक्स ने आधुनिक विज्ञान और बौद्ध विज्ञान के बीच माइंड एंड लाइफ ३०वें संवाद हेतु सेरा महाविहार के निमंत्रण के लिए हार्दिक धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पेरिस में सीओपी २१ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, जिसने एक अधिक टिकाऊ भविष्य की खोज करने की आवश्यकता की पुष्टि की है, के बाद यह एक उपयुक्त सभा थी। उन्होंने फ्रांसिस्को वरेला के प्रभाव को स्वीकार किया, जो माइंड एंड लाइफ बैठकों के अग्रदूतों में से एक थे।
इसके पश्चात माइंड एंड लाइफ की नई अध्यक्षा सूसन बॉयर-वू, ने दुःख को कम करने के लिए आधुनिक विज्ञान के साथ बौद्ध विज्ञान की साझेदारी तथा मिलकर कार्य करने की बात की। उन्होंने कहा कि इस महान महाविहार में बैठक करना अद्भुत था और कहा कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों के चीवरों से घिरा होना अत्यंत सुंदर था। उन्होंने उल्लेख किया कि पाँच वर्ष पूर्व वे एमोरी विज्ञान पहल और धर्मशाला में सेरा भिक्षुओं को शिक्षित करने का अंग थीं। उन्होंने बैठक के विचार को साकार करने में सह प्रायोजक दलाई लामा ट्रस्ट और उसके सचिव जम्पेल ल्हुनडुब को धन्यवाद दिया।
जोन हैलिफ़ैक्स ने प्रथम दो प्रस्तुतकर्ताओं, रिची डेविडसन और जे गारफील्ड का परिचय कराया, जो इस सम्मेलन के मुख्य विषय धारणा, अवधारणाओं और जिसे हम आत्म रूप में ज्ञापित करते हैं, पर चर्चा करेंगे। पर इसके पूर्व कि वे बोलें उन्होंने परम पावन को सत्र का आरंभ करने के लिए आमंत्रित किया।
"चूँकि आपमें से कई भिक्षु इस के लिए नए हैं, इसलिए मैं आपको बताऊँ कि माइंड एंड लाइफ इंस्टीट्यूट किस तरह अस्तित्व में आया और इसका विकास किस प्रकार हुआ" उन्होंने प्रारंभ किया। "३० वर्ष पूर्व मेरी वैज्ञानिकों के साथ गहन रूप से विचार विमर्श करने की एक इच्छा थी। मेरी विज्ञान में रुचि उस समय से थी जब मैं तिब्बत में एक बच्चा था। मैंने सोचा कि अच्छा होगा यदि मैं निजी रूप से वैज्ञानिकों से मिलूँ। और जब मैं मिला तो इस बात से प्रभावित हुआ कि वे कितने निष्पक्ष थे। हमारे बाद की चर्चाएँ पारस्परिक रूप से लाभप्रद रहीं। मैंने पाया कि हममें से जो नालंदा परंपरा से आते हैं, हम उनसे भौतिक वस्तु तथा विश्व के बारे में जान सके और साथ ही वे हमसे चित्त के विषय में सीख सके।
"मैंने अनुभव किया कि न केवल आधुनिक वैज्ञानिक और बौद्ध वैज्ञानिक एक साथ काम कर लाभान्वित हो सकते हैं पर हमारे विहारों में भी विज्ञान के अध्ययन को शामिल करना अच्छा होगा। यह हमने किया है और विज्ञान अब अंतिम परीक्षा का एक अंग है।
"दो वर्ष पूर्व हमने डेपुंग महाविहार में माइंड एंड लाइफ की एक बैठक रखी थी और उस समय प्रश्नों में एक यह उठा था कि क्या बौद्ध तर्क और शास्त्रार्थ को अन्य विषयों पर लागू किया जा सकता है। तब से इसका उपयोग तिब्बती स्कूलों में और हिमालय क्षेत्र में बढ़ गया है। यह बिना किसी धार्मिक अर्थ के विज्ञान का परीक्षण करने और खोज करने के लिए प्रयोग किया जाता है। जो भी हो हम विश्व के ७ अरब लोगों की सहायतार्थ उपाय खोज रहे हैं।
"हमारी समस्याओं में से अधिकांश स्वयं निर्मित हैं। हम प्रार्थना करके उनका समाधान नहीं पा सकते। चूँकि हमने उनका निर्माण किया है हमारा उनका समाधान खोजने का अपना एक उत्तरदायित्व है। हममें जिस बात का अभाव है वह है नैतिकता की भावना, हमारे कार्यों में मानवीय मूल्यों के लिए एक स्थान जिससे प्रत्येक को लाभ होगा। अतीत में चित्त तथा भावनाओं की क्रियाओं के प्राचीन भारतीय ज्ञान को बौद्ध साहित्य में अनुवाद करने के महान प्रयास के परिणाम स्वरूप आज यह तिब्बती में उपलब्ध है।
"यह हमारी ३०वीं बैठक है और यद्यपि आज यहां हममें से कुछ ४०वाँ नहीं देख पाएँगे, पर मुझे विश्वास है कि इन बैठकों की गति हमारे बिना २१वीं शताब्दी तक जाएगी। हममें से कोई भी पीड़ा नहीं चाहता, हम सभी सुख की खोज में हैं। हम स्नेह और करुणा के वातावरण में बड़े होते हैं। चूँकि हमारी आधारभूत प्रकृति करुणाशील है अतः हमारे पास निर्माण के लिए कुछ है। बच्चों के रूप में हम गौण अंतर के आधार पर एक दूसरे के बीच भेदभाव नहीं करते। यह एक ऐसी आदत है जो जैसे जैसे हम बड़े होते हैं विकसित होती है। ठीक इस समय विश्व के अन्य भागों में लोग एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं, जो कि धर्म के नाम हो रही है। यह बहुत दुख की बात है। अतः यह अत्यावश्यक है कि हम अपनी मानव समस्याओं के लिए मानव समाधान खोजें।"
रिची डेविडसन ने परम पावन को, जो उन्होंने तत्क्षण कहा था उसके लिए और साथ ही वैज्ञानिकों की एक समूची पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनने के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने माइंड एंड लाइफ बैठकों के बाद विज्ञान के क्षेत्र में हुए विकास का उदाहरण दिया जैसे कि मस्तिष्क और जीनोम के लचीलेपन का ज्ञान। उन्होंने कहा कि व्यवहार विज्ञान और बौद्ध विज्ञान के बीच भी एक महत्वपूर्ण संबंध है।
प्रस्तुतियों का प्रारंभ करते हुए रिची डेविडसन और जे गारफील्ड ने पाश्चात्य विज्ञान और दर्शन की दृष्टि से धारणा, अवधारणाओं और आत्म के विषय पर बात की। उन्होंने धारणा, अवधारणाओं और आत्म के अध्ययन से महत्वपूर्ण प्रश्नों का परिचय करायाः संज्ञान की रचनात्मक प्रकृति, पूर्व अवधारणाओं के संभावित प्रकृति और आत्म की विभिन्न अवधारणाएँ। उन्होंने ऊपर से नीचे की धारणाओं का उल्लेख किया जिसमें मस्तिष्क की प्रधानता होती है और नीचे से ऊपर जहाँ ऐन्द्रिक अनुभूतियाँ जैसे कि आँख या कान से प्रधान होती हैं।
परम पावन ने टिप्पणी की कि धारणा के घटक भागों का विश्लेषण करने की कठिनाइयों में से एक यह है कि इसकी गति अत्यंत तेज़ होती है।
आत्म के बारे में बात करते हुए जे गारफील्ड ने मनुष्य के एक विचित्र विचार कथात्मक आत्म के रूप को स्पष्ट किया, हम कौन हैं इस विषय में हम जो कथा कहते हैं। एक हाथी के आत्म की भावना के परीक्षण के लिए एक प्रयोग का वीड़ियों देखकर श्रोता भावविह्वल और खुश भी हुए। इसमें एक हाथी जिसके चेहरे पर एक बड़ा एक्स का चिह्न अंकित था और एक विशाल दर्पण में उसकी प्रतिबिम्ब की प्रतिक्रिया को दिखाया गया था। वह अपनी सूँड से उस चिह्न को छूने का प्रयास कर रहा था जिससे यह भावना स्पष्ट थी कि वह जान गया था कोई दूसरा हाथी न था बल्कि वह दर्पण में उसका अपना प्रतिबिम्ब था।
थुबतेन जिनपा ने परम पावन और अन्य उपस्थित कई वरिष्ठ लामा जैसे कि गदेन पीठधारी के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हुए दूसरी प्रस्तुति प्रारंभ की। 'क्या हमारी धारणा वास्तविकता को प्रतिबिम्बित करती है?' शीर्षक के अंतर्गत बौद्ध ज्ञान मीमांसा में धारणा के सिद्धांतों के विषय में बोलते हुए उन्होंने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख किया। बौद्ध ज्ञान मीमांसा का परीक्षण अभिधर्म काल ३-१ शताब्दी ईसा पूर्व तक जाता है, पर वास्तव में वह अपने स्वरूप में दिङ्गनाग (५ वीं सदी), जो वसुबन्धु के शिष्य थे, के कार्य के साथ आया। उनके शिष्य धर्मकीर्ति (७वीं शताब्दी) विषय पर सप्त प्रमाणवार्तिक ग्रंथों की रचना की।
जिनपा ने समझाया कि दिङ्गनाग ने धारणा को वस्तु, इंद्रियों और जागरूकता के अभिसरण के रूप में तथा उसे अवधारणा के अभाव जैसे कि किसी वस्तु के साथ नाम और प्रकार के जोड़ के संदर्भ में परिभाषित किया। धर्मकीर्ति ने इसे विकसित किया और धारणा को अनुभूति, जो धारणा से मुक्त हो और अविकृत हो कहकर परिभाषित किया। दोनों ने धारणा की अद्वितीय विशेषता, जो कि वास्तविक विश्व का गठन करता है, से जोड़ा जबकि धारणात्मक अनुभूति सामान्य विशेषताओं से संबंधित है, जो कि हमारे विचारों की संरचना है। उन्होंने तिब्बत में ज्ञान मीमांसा के विकास के तीन चरणों की रूपरेखा दी: एक जो ङोग लोदेन शेरब से प्रारंभ हुआ, दूसरा चरण जिसमें सक्या पंडित धर्मकीर्ति की ओर मुड़े और अंतिम चरण जिसका संबंध गेलुग परम्परा तथा ज्ञलछब जे और खेडुब जे की रचनाओं से था।
मध्याह्न में बैठक पवन सिन्हा से पुनः प्रारंभ हुई, जब उन्होंने एक परियोजना का वर्णन किया जिसमें वैज्ञानिक खोज और एक तत्काल मानवीय आवश्यकता का संयोग हुआ है। उन्होंने यह समझाते हुए प्रारंभ किया कि किस तरह धारणा की जांच के क्रम में वैज्ञानिक यह समझने में रुचि रखते हैं कि मस्तिष्क में किस तरह दृश्य जागरूकता विकसित होती है। आदर्श विषय नवजात शिशु हो सकते हैं पर वे सहायता के लिए बहुत ही छोटे हैं। सिन्हा ने बताया कि भारत में विश्व के सबसे अधिक अंध बच्चों की जनसंख्या है। इस अंधेपन से बहुत हद तक बचा जा सकता है या इसका उपचार किया जा सकता है।
दस वर्ष पूर्व पहले परियोजना प्रकाश की स्थापना बाहर सहायता पहुँचाने, उन अंधे बच्चों का पता लगाने और उन्हें उपचार के लिए दिल्ली लाने हेतु की गई थी। चूँकि उन्होंने पहले कभी कुछ देखा न था, जिन बच्चों को दृष्टि प्रदान की गई उनका परीक्षण यह जानने के लिए भी किया जा सकता था कि किस प्रकार मस्तिष्क अनुकूल बनाता है और सीखना देखता है। सिन्हा ने कई भावुक वीडियो दिखाए जिसने इन बच्चों के आनन्द को प्रकट किया जो अब देख सकते हैं।
इस कार्य के वैज्ञानिक महत्व का एक उदाहरण देते हुए सिन्हा ने समझाया कि किस तरह वे और उनके छात्र क्रास मोडल मेपिंग की जांच करने में सक्षम हुए और मोलिनियक्स समस्या का उत्तर पाया। यह प्रश्न १७वीं शताब्दी में उठाया गया जब मोलिनियक्स नाम के एक आयलैंडवासी की पत्नी अंधी हो गईं। वे यह पूछने के लिए प्रेरित हुए कि क्या एक अंध व्यक्ति जिसने स्पर्श से एक चक्र और घन में भेद करना सीखा था, उसकी दृष्टि लौटने पर क्या केवल देखने मात्र से बता सकता है कि कौन क्या है। दूसरे शब्दों में, क्या एक इंद्रिय से प्राप्त ज्ञान, बिना अनुभव से सीखे दूसरे में अंतरित किया जा सकता है? सिन्हा के रोगियों ने यह प्रदर्शित किया है कि ऐसा नहीं हो सकता।
परियोजना प्रकाश करुणाशील विज्ञान का एक प्रोटोटाइप है। वैज्ञानिक खोज और मानवीय आवश्यकता का विलय, हृदय व चित्त के हितों के विलय, ने इसके रोगियों में कइयों में आत्मनिर्भरता की भावना लाई है। पवन सिन्हा ने परम पावन से पूछा कि करुणाशील विज्ञान को किस प्रकार विकसित किया जा सकता है। उन्होंने उत्तर दिया:
"इस सुन्दर परियोजना में आपने एक वैज्ञानिक अवसर और इन बच्चों की सहायता करने का एक अवसर दोनों को देखा। यही करुणा है, इस जीवन में यहाँ अभी सहायता लाना। यह एक सुखी विश्व का निर्माण करने के प्रयास के बारे में है। करुणा सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्ष पर निर्भर होकर परिवर्तन को प्रभावशाली बनाने लिए उत्साह लाने के बारे में है।"
जब सिन्हा ने यह जोड़ा कि परियोजना प्रकाश ने यह निष्कर्ष निकाला था कि वैज्ञानिक खोज और मानवीय आवश्यकताओं के अतिरिक्त एक तीसरा तत्व आवश्यक है, जो कि शिक्षा थी, परम पावन यह कहते हुए सहमत हुए कि शिक्षा के माध्यम से हम विश्व को परिवर्तित करेंगे। उन्होंने कहा कि वह उनकी प्रस्तुति से कितना भावुक हुए थे और उन्होंने उसकी तुलना उस अनुभूति से की जो उन्हें बाबा आमटे के आनंदवन आश्रम में किए गए दौरान हुई थी जहाँ बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित किया था। परम पावन समुदाय के सदस्यों के आत्मविश्वास से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। उन्होंने उस समय हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था और उन्होंने उन्हें एक अनुदान देने का वादा किया।
"अब," परम पावन ने कहा "मैं आपकी अद्भुत परियोजना के लिए भी एक अनुदान योगदान करना चाहता हूँ।"
जैसे ही माइंड एंड लाइफ सत्र का अंत हुआ, प्रतिभागियों को मंदिर के बाहर बरामदे में सेरा भिक्षुओं द्वारा बाहर के प्रांगण में विज्ञान पर शास्त्रार्थ देखने के लिए आमंत्रित किया गया। वे परम पावन के चारों ओर सीढ़ियों पर बैठे और उन्होंने भिक्षुओं को तिब्बती में कणों और लहरों के गुणों पर चर्चा करते हुए देखा तथा सुना। इस पारस्परिक संवाद का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया तथा एफएम रेडियो पर प्रसारित किया गया। प्रस्तुतियाँ और चर्चाएँ कल जारी रहेगीं।