मार्च ३० , २०१४ - बीजिंग में भापा फुनछोग वांगज्ञल के निधन का समाचार सुन कर मुझे अत्यंत दुख हुआ है। वे एक सच्चे कम्युनिस्ट थे जो तिब्बती लोगों के हितों को पूरा करने के लिए वास्तव में प्रेरित थे। उनके निधन पर हमने एक विश्वसनीय मित्र खो दिया है।
मैं १९५१ में फुनवांग, जिस नाम से वह लोकप्रिय था, से पहली बार मिला जब वह ल्हासा में चीनी अधिकारियों के साथ आए थे। बाद में, १९५४-५५ में मेरी बीजिंग और अन्य शहरों की यात्रा के दौरान उन्होंने मेरी सहायता और अनुवाद किया, जिस दौरान हम अच्छे मित्र बन गए। अध्यक्ष माओ के साथ मेरी बैठकों की श्रृंखला के दौरान विशेष रूप से एक दुभाषिया के रूप में उन्होंने मेरी महत्त्वपूर्ण मदद की। वह मार्क्सवादी सोच से भली भाँति परिचित थे और जितना मैं जानता हूँ उस के विषय में अधिकांश रूप से मैंने उनसे सीखा। वह उन तिब्बतियों में से एक थे जो तिब्बत में प्रचलित सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की कमियों से परिचित थे और जो परिवर्तन हेतु साम्यवाद से प्रेरित थे।
अपने ही उदाहरण के माध्यम से फुनवांग ने यह दिखा दिया कि आप एक सच्चे कम्युनिस्ट होने के साथ साथ अपनी तिब्बती धरोहर पर गर्व का अनुभव कर सकते हैं। उन्होंने मुझे आश्चर्य में डाल दिया, जब हमारी पहली भेंट में, चीनी प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति में उन्होंने मुझे साष्टांग प्रणाम किया। साथ ही जहाँ सभी चीनी अधिकारियों ने समान रूप से विनियमन माओ कपड़े पहन रखे थे, वह एक पारंपरिक तिब्बती छुपा पहने हुए थे। जब मैंने इस विषय में उससे पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया, कि ऐसा सोचना गलत होगा कि साम्यवाद क्रांति की प्राथमिक चिंता इस बात को लेकर होगी कि किस प्रकार के कपड़े पहने जाएँ। उन्होंने कहा कि उसका अधिक संबंध विचारों की क्रांति को लेकर था और इस तरह उन्होंने मुझे दर्शाया कि एक साम्यवादी होने का अर्थ तिब्बती परंपराओं की उपेक्षा करना नहीं है।
कम्युनिस्ट आदर्शों के प्रति उसकी निष्ठा के बावजूद चीनी अधिकारियों ने तिब्बती पहचान के प्रति उनके समर्पण को नकारात्मक रूप से देखा, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें १८ वर्ष कारागार में बिताने पड़े। वह निड़र बने रहे और अपने सेवानिवृत्त उपरांत भी तिब्बती लोगों के अधिकार और कल्याण के प्रति चिंतित थे, और जब भी अवसर प्राप्त होता वे उसे चीनी नेतृत्व के समक्ष उठाते।
एक सच्चे, ईमानदार व्यक्ति ,जब भी मैं उनसे मिला मुझे उनके साथ रहने में आनंद आया। मैं आशा करता था कि मैं उनसे पुनः मिलूँगा, पर ऐसा न हो सका।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि फुनछोग वांगज्ञल को एक अच्छा पुनर्जन्म मिले और मैं उनकी पत्नी और बच्चों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूँ।
धर्मशाला, भारत
मार्च ३०, २०१४