फ्रैंकफर्ट, जर्मनी - १४ मई २०१४ - फ्रैंकफर्ट में अपने दूसरे दिन के प्रारंभिक भाग में, परम पावन दलाई लामा ने मीडिया के साथ एक बैठक की तत्पश्चात् वह तिब्बत हाउस के बोर्ड से मिले। एक खचाखच भीड़ से भरे प्रेस कक्ष को सम्बोधित करते हुए उन्होंने ७ अरब मनुष्यों के बीच में एक के रूप में, सबसे पहले अपनी तीन प्रतिबद्धताओं की रूप - रेखा रखी। यथा - मानवीय मूल्यों का विकास, अंतर्धार्मिक सद्भाव और तिब्बत की बौद्ध संस्कृति के संरक्षण को बढ़ावा देना। उन्होंने मीडिया की भूमिका और जनता को सूचना देने के उनके उत्तरदायित्व को भी सराहा। उन्होंने कहा कि एक तरफ उन्हें हाथी के समान एक लंबे सूंड की आवश्यकता है ताकि वे सूंघ कर समझ सकें कि क्या हो रहा है पर साथ ही लोगों तक इसके संप्रेषण में सच्चाई और ईमानदारी से निर्देशित हों।
उनसे पूछे गए प्रश्नों में, यह भी पूछा गया कि क्या वह क्रोध का अनुभव करते हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया ः
"हाँ, निश्चित रूप से मैं एक मनुष्य हूँ। पर मेरा क्रोध आता और चला जाता है और जब वह चला जाता है तो मैं उससे चिपका नहीं रहता।"
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एलिज़ाबेटा शाड्ट, एक छोटी बच्ची जो बच्चों के चैनल की संवाददाता है, ने पूछा कि उन्हें दलाई लामा होने में क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं। उन्होंने उससे कहा कि जब वह तिब्बत में थे तो बहुत अधिक समारोह और औपचारिकता थी जबकि उन्हें चीजो़ं का व्यावहारिक और सरल होना अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि यदि वह स्वयं को किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में देखेंगे तो उनके और दूसरे लोगों के बीच एक दूरी पैदा होगी और वह अकेले पड़ जाएँगे।
"यद्यपि तुम छोटी हो और मैं वृद्ध हो गया हूँ, तुम एक लड़की हो और मैं एक आदमी हूँ, पर अंततः हम मनुष्य के रूप में एक जैसे हैं।"
यह पूछे जाने पर कि क्या वह शुगदेन से संबंधित विवाद का समाधान करेंगे, उन्होंने इस मुद्दे का इतिहास संक्षेप में बताया यह कहते हुए कि उनका उत्तरदायित्व इस बात को स्पष्ट करना है कि यह अभ्यास एक दुष्ट आत्मा की पूजा से जुड़ी है। उन्होंने दोहराया कि लोग उनकी कही बात पर ध्यान देते हैं अथवा नहीं, वह पूरी तरह से लोगों पर निर्भर है। उन्होंने इतालवी पत्रकार रैमोंडो बल्ट्रीनि द्वारा लिखित पुस्तक 'द दलाई लामा एंड द किंग डीमन', की ओर ध्यान आकर्षित किया जो इस विषय की विस्तृत जानकरी देता है, जो और अधिक जानना चाहता है, वह उसे पढ़ सकता है।
एक और अंतिम प्रश्न उस अफवाह के विषय में था कि उन्हें उनके ८०वें जन्मदिन मनाने के लिए अगले वर्ष विएसबदेन आमंत्रित किया गया था, उन्होंने कहा कि एक बौद्ध भिक्षु के रूप में उनकी जीवन शैली में, जो प्रातः ३ बजे उठने और रात को ६ः३० बजे सोने की है, पार्टियों के लिए अधिक समय नहीं रह जाता ।
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तिब्बत हाउस बोर्ड के साथ अपनी बैठक में उनका जोर तिब्बत हाउस की भूमिका, न केवल तिब्बत की बौद्ध संस्कृति के बारे में जागरूकता फैलाना, पर साथ ही एक केंद्र के रूप में चित्त और भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करना था।
"करुणा के विकास की सहायता के िलए हमें चित्त के बेहतर ज्ञान की आवश्यकता है" उन्होंने कहा। "मैं यहाँ चित्त के विज्ञान को एक शैक्षणिक विषय के रूप उपलब्ध देखना चाहूँगा।"
मध्याह्न के भोजन के बाद वे गाड़ी से फ्रेपोर्ट एरीना गए जहाँ उन्होंने एक सुखी जीवन की खोज में आंतरिक मूल्यों के विकास के महत्त्व के बारे में लगभग ४८०० दर्शकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा:
"हमारे जीवन का उद्देश्य सुखी रहना है। हमारा जीवन आशा पर आधारित है, कुछ अच्छे की संभावना पर आधारित है। आप एक बार आशा खो दें तो वह आपके जीवन को छोटा कर सकता है; इसलिए हमारा उद्देश्य सुखी होना है।"
उन्होंने कहा कि चित्त और भावनाओं के बारे में सीखना ऐसा है, जो सभी मनुष्य कर सकते हैं। यह हमारी शिक्षा का अंग होना चाहिए। उन्होंने स्वीकार किया कि जहाँ हम सभी कुछ हद तक स्वार्थ से प्रेरित हैं, तो यह बुद्धिमत्ता भरा होना चाहिए, न कि मूर्खता से भरा स्वार्थ। हम जितना अधिक दूसरों के हित को ले चिंतित होंगे, हम उतना अधिक एक दूसरे से निकटता का अनुभव करेंगे। यह विश्वास को पोषित करता है जो कि मैत्री का आधार है, जो महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि हम सबको मित्रों की आवश्यकता होती है।
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"जब हम दया से प्रेरित होते हैं तो हमारे चित्त तनाव मुक्त और विश्रांत होते हैं। भय और शंका हमें व्याकुल करते हैं, यहाँ तक कि यदि हम सम्पन्न हों तो भी हम दुखी रहते हैं। ऐसी भावना कि अन्य मनुष्य हमारे भाई और बहनें हैं, हमारे चित्त को शांत करती है। हमारे भौतिकवादी जीवन में सुखी होने के लिए हम अपना ज़ोर भौतिक वस्तुओं पर डालते हैं। हमें जो करने की आवश्यकता है, वह यह कि धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर आधारित अपनी शिक्षा प्रणाली में आंतरिक मूल्यों, करुणा और स्नेह की भावना लाएँ।"
परम पावन से कई प्रश्न पूछे गए। उनका उत्तर देते हुए उन्होंने विश्व में शांति निर्मित करने के लिए आंतरिक शांति की आवश्यकता और संघर्ष के समाधान के लिए संवाद स्थापित करने पर ज़ोर दिया। जब एक दम्पत्ति, जिन्होंने एक यातायात दुर्घटना में अपना बेटा खो दिया था, ने पूछा कि वे अपने दुःख और क्षति से कैसे निपटें, तो उन्होंने कहा:
"यह बहुत दुःख की बात है और मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ। पर ऐसा हुआ है, और ऐसा अन्य लाखों लोगों के साथ होता है। अब इसको लेकर चिंतित रहने से कुछ लाभ न होगा।"
उन्होंने सुझाव दिया कि करुणामय गतिविधियों में संलग्न रहना, अन्य कष्ट झेल रहे लोगों की सहायता और इसी प्रकार के क्षति का सामना करने वालों को सांत्वना देना, उनके दु:ख से निपटने के लिए एक प्रभावी तरीका होगा। उन्होंने उल्लेख किया, कि जब उनके वरिष्ठ अध्यापक, जो एक ऐसे चट्टान की तरह थे जिन पर वह टिके थे, का निधन हो गया तो उन्होंने अनाथ जैसा अुनभव किया। पर तब उन्होंने अनुभव किया कि उन्हें अपने गुरु की इच्छाओं को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक प्रयास करना है।
पुनर्जन्म के बारे में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए परम पावन ने कहा कि यदि हम दूसरों का अहित किए बिना एक करुणामय जीवन व्यतीत करते हैं, तो यह अगली बार एक अच्छा जीवन पाने की लगभग एक गारंटी है। जब श्रोताओं में से एक ने पूछा कि दलाई लामा को क्या खुशी देता है। उन्होंने एक पल के लिए सोचा और कहा:
"इस समय मैं यहाँ आप सभी के साथ होकर खुश हूँ" और सभी ने खुशी प्रकट की।
कल परम पावन सेक्यूलर एथिक्स और एथिक्स बिओंड रिलिजियन (धर्मनिरपेक्ष नैतिकता तथा धर्म से परे नैतिकता) पर व्याख्यान देंगे।