रॉटरडैम, हॉलैंड - ११ मई २०१४ - रॉटरडैम में परम पावन दलाई लामा का दूसरा दिन खिड़कियों पर वर्षा की थाप से हुआ। एहोय स्टेडियम के लिए रवाना होने से पहले उन्होंने तीन साक्षात्कार दिए: पहला एन ओ एस नेशनल न्यूज़ के हार्म वान लुइन के साथ था, जिन्होंने कल उनके डच विदेश मंत्री के साथ हुई बैठक के बारे में पूछा।
जाकोबीन गील, जो धार्मिक मामलों पर एक टॉक शो प्रस्तुत करते हैं, ने मंदिरों की प्रासंगिकता और धर्म के पारंपरिक साज के सामान के विषय में बार बार प्रश्न पूछे और पूछा कि परम पावन ऐसा क्यों सोचते हैं कि लोगों को उनका संदेश सुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनको सुनने वाले सभी मानव साथी हैं और वह नियमित रूप से उन्हें सलाह देते हैं कि यदि उनकी इसमें रुचि है तो वे जो कहते हैं उस पर सोचें। यदि वे इसे उपयोगी पाते हैं तो उस पर चलें; यदि वे नहीं पाते तो भूल जाएँ। बौद्ध प्रसारण की बेट्टिने वृराएसेकूप ने परम पावन से चीन में बौद्ध धर्म में रुचि के नवीकरण के बारे में पूछा। उन्होंने उनसे कहा कि तिब्बत की तुलना में, चीन बौद्ध धर्म का वरिष्ठ विद्यार्थी है और बौद्ध धर्म में एक पुनर्जीवित रुचि के संदर्भ में कई चीनियों में तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रति रुचि के प्रमाण दिखते हैं।
एहोय स्टेडियम पहुँचने पर परम पावन का स्वागत हॉलैंड में निवास कर रहे और आयोजन के समूहों के सदस्य कई गेशों द्वारा किया गया। जब वह मंच पर हँसमुख दिखाई दिए तो ११,००० सशक्त दर्शकों के बीच प्रफुल्लता से भरी तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी।
परम पावन ने उत्तर दिया "धर्म मित्रों, आध्यात्मिक भाइयों और बहनों, मैं यहाँ आपके बीच आकर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं जहाँ भी जाता हूँ हमेशा यह कहता हूँ कि किस तरह सभी ७ अरब मानव एक समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं। हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि हम सभी एक मानव परिवार से संबंध रखते हैं।"
उन्होंने कहा कि धार्मिक परम्पराओं के दो वर्ग हैं, एक जो निर्माता की अवधारणा रखते हैं और अन्य जैसे बौद्ध धर्म, जो ऐसा नहीं मानते। बौद्ध धर्म एक स्वतंत्र आत्मा के अस्तित्व को भी नहीं मानता, एक ऐसी आत्मा जो शरीर और चित्त से अलग है। उन्होंने उल्लेख िकया कि जब भी संभव हो उन्हें प्रवचन का प्रारंभ पालि में मंगल सुत्त के सस्वर पाठ के साथ करना अच्छा लगता है। आज उन्होंने जेन समूह के सदस्यों को जापानी में 'हृदय सूत्र' का पाठ करने के िलए आमंत्रित किया।
"वास्तविकता समझाने के लिए बौद्ध दृष्टिकोण अपनी बुद्धि का पूरा उपयोग है। नागार्जुन और नालंदा के अन्य आचार्यों ने तर्कों का भी प्रयोग किया। उन्होंने बुद्ध की सलाह, कि वे केवल उनके प्रति विश्वास और श्रद्धा के कारण उनकी शिक्षाओं का पालन न करें अपितु उनकी जाँच और परीक्षण करें, का पालन किया। धर्म चक्र के तीन प्रवर्तनों के दौरान बुद्ध ने शिक्षा दे रहे शिष्यों को उनकी क्षमता के अनुकूल पढ़ाया। कुछ लोगों को उन्होंने मनोवैज्ञानिक - शारीरिक स्कंधों को आत्मा द्वारा ढोए जा रहे एक बोझ के रूप में बताया मानो वे दोनों अलग हों।"
परम पावन ने कहा कि एक सत्व के रूप में, हम सभी सुख चाहते हैं, दुख नहीं, अतः हमें यह जानने की आवश्यकता है कि दुख और सुख कैसे आता है। उन्होंने नागार्जुन का उद्धरण िदया कि दुख हमारे कर्मों के फल के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। बुद्ध ने कहा कि 'दुख को जानना चाहिए, मूल पर काबू पाया जाना चािहए, मुक्ति की प्राप्ति करनी चाहिए और मार्ग का विकास किया जाना चाहिए'। प्रतीत्य-समुत्पाद की बौद्ध अवधारणा, कार्य कारण नियम को अभिव्यक्त करती है कि फल उनके कारणों पर निर्भर करते हैें। पर कारण भी परिणाम के अस्तित्व पर निर्भर करता है। एक कारण, एक कारण है क्योंकि वहाँ एक परिणाम है। इसका अर्थ यह नहीं कि एक कारण एक फल से आता है, पर इसका अर्थ यह कि फल के अभाव में यह कारण नहीं है। परम पावन ने इसकी तुलना क्वांटम भौतिकी में भौतिक वस्तुओं के स्पष्टीकरण से की।
मध्यमक कहते हैं कि वस्तुओं का वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं होता, वे मात्र ज्ञापित रूप में अस्तित्व रखती है। हम अज्ञानता के कारण दुख का अनुभव करते हैं, दृश्य तथा यथार्थ के बीच के अंतर के कारण। परम पावन ने इसे उससे जोड़ा जो अमेरिकी मनोचिकित्सक हारून बेक ने कहा था कि, जब हम किसी के बारे में क्रोधित होते हैं तो हमारी क्रोध की वस्तु पूरी तरह से नकारात्मक प्रतीत होती है, पर वास्तव में उस का ९०% हमारा अपना मानसिक प्रक्षेपण है। यह भी नागार्जुन के विवरण से मेल खाता है।
परम पावन ने कहा, "हमारे दो उद्देश्य हैं, उच्च पुनर्जन्म और मुक्ति। हमें जो भव चक्र में बाँधता है वह अज्ञान है। नैरात्म्य की समझ ही हमें इससे बाहर लेकर आती है। अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में भी सद्गुण, उच्च पुनर्जन्म का कारण समान रूप से पाया जाता है पर प्रतीत्य - समुत्पाद तर्क का राजा है जो आंतरिक अस्तित्व की ग्राह्यता के अज्ञान को मिटाता है।"
उन्होंने कहा कि प्रबुद्धता प्राप्त करने के लिए, हमें बोधिचित्तोत्पाद से समर्थित शून्यता की समझ और छह पारमिताओं के अभ्यास की आवश्यकता है। सर्वज्ञता प्राप्ति के लिए हमें ज्ञान की बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
मार्ग के तीन प्रमुख अंग हैं, त्याग या मुक्त होने का दृढ़ संकल्प, बोधिचित्त तथा प्रज्ञा। प्रारंभ में हम मुक्त होने का दृढ़ संकल्प उत्पन्न करते हैं। इस इच्छा का दूसरों तक विस्तार करना बोधिचित्त है, पर प्रतीत्य - समुत्पाद की समझ के बिना मुक्ति का दृढ़ संकल्प तथा बोधिचित्त पूरा न होगा। हमें यह अनुभव करने की आवश्यकता है कि अन्य कारकों पर निर्भर होते हुए वस्तुएँ जिस रूप में दृश्य होती है उस रूप में अस्तित्व नहीं रखती, वे केवल ज्ञापित रूप से अस्तित्व में हैं।
परम पावन ने कहा कि वे मध्याह्न का सत्र श्रोताओं के प्रश्नंों से प्रारंभ करना चाहेंगे। मध्याह्न भोजन के अंतराल के दौरान उन्होंने सम्मानित पत्रकार फ्लोरिस वैन स्ट्राटेन को एक साक्षात्कार दिया, जिसमें चीन में सकारात्मक विकास की बात की, जिसमें हाल के तीसरे प्रेरण में साधारण गरीब किसानों की आवश्यकताओं और न्यायिक सुधार की जरूरतों पर ध्यान दिया जाना भी सम्मिलित था। उन्होंने शी जिनपिंग के बौद्धों द्वारा चीनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए जिम्मेदारी लेने के बारे में की गई टिप्पणी का उल्लेख किया जो एक कम्युनिस्ट पार्टी के नेता के लिए एक असामान्य अवलोकन था। उन्होंने कहा कि यह कहना जल्दबाजी होगी, कि यह किस ओर जाएगा, पर उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग ने उनके पहले के हू य़ाओबंग की तरह, एक और अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया है।
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एरिका तेर्प्स्ट्रा, जो परम पावन को एक लंबे समय से जानती है, ने मध्याह्न सत्र का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि यहाँ उनकी उपस्थिति में होना वास्तव में सच्चा आनंद था। उन्होंने उस अवसर का स्मरण किया जब परम पावन से पूछा गया कि वे अपनी दृष्टि के अनुसार किसे अपने आध्यात्मिक सहकर्मी के रूप में मानते थे और एक क्षण सोचकर उन्होंने उत्तर दिया ः "विश्व में हर कोई।" उन्होंने श्रोताओं से अनुरोध किया कि वे 'हमारे परम पावन' का स्वागत करें।
परम पावन ने सदैव की तरह यह कहते हुए प्रारंभ किया, कि सभी मनुष्य समान हैं, मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से। सभी एक सुखी जीवन चाहते हैं। उन्होंने कहा:
"यदि हम यह समझ लें कि सभी मनुष्य भाई और बहनें हैं और एक ही मानव परिवार से संबंधित हैं, तो वहाँ संघर्ष के लिए कोई स्थान न होगा, 'हम' और 'उन' के बीच कोई विभाजन नहीं होगा। कोई हिंसा, कोई धोखा या शोषण न होगा। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों को गंभीर रूप से सोचना होगा कि शिक्षा में इस तरह के मूल्यों को किस तरह लाया जाए। हम सामाजिक प्राणी हैं, मधुमक्खियों की तरह जो अपने को जीवित रखने के लिए बिना धर्म, कानून या पुलिस के मिलजुलकर काम करती हैं।"
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों को बौद्ध धर्म से परिचित कराने के लिए, यदि वे एक बौद्ध परिवार के ही हैं, तो उन्हें बुद्ध, धर्म और संघ से समझाया जा सकता है। यदि नहीं, तो चित्त और भावनाओं के विषय में चर्चा करना सरल हो सकता है। यह पूछे जाने पर कि वह कैसे आराम करते हैं, उन्होंने कहा - सोकर, और आगे कहा कि जब उन्हें समय मिलता है तब वह पढ़ते हैं और साधारणतया वह नालंदा आचार्यों के ग्रंथों को पढ़ते हैं। कोई और जानना चाहता था कि परम पावन मच्छरों से कैसे निपटते हैं, श्रोताओं की हँसी के बीच उन्होंने कहा कि मच्छरों के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं थे। उन्होंने आगे कहा कि वह कभी कभी सोचते हैं कि सराहना के विकास के लिए किस आकार के मस्तिष्क की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे कभी कभी किसी मच्छर को खून चूसने देते हैं, पर वह बिना कृतज्ञता जताए उड़ जाता है।
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इच्छा मृत्यु के विषय में उन्होंने कहा कि वह गर्भपात की तरह है और उचित होगा कि इससे बचा जाए, पर आप को प्रत्येक मामले के पक्ष और विपक्ष को तोलना होगा। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के विषय में अपना व्याख्यान प्रारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि सभी धार्मिक परंपराएँ प्रेम, सहनशीलता, क्षमा और आत्मानुशासन की शिक्षा देती है। पर आज के विश्व में, जिसमें कम से कम १ अरब लोगों की धर्म में कोई रुचि नहीं है, एक ऐसी नैतिक प्रणाली की आवश्यकता है जिसका सार्वभौमिक आकर्षण हो; इस या उस धार्मिक परंपरा की सीमा से परे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की एक प्रणाली।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभाव राष्ट्रीय सीमाओं से परे हैं। भ्रष्टाचार तथा धनवान और निर्धनों के बीच भारी अंतर जैसी समस्याओं से निपटने के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को शामिल करने के लिए एक पाठ्यक्रम निर्माण के लिए अग्रिम परियोजनाएँ बनाई जा रही है। वे इस कार्य के परिणाम को देखने की आशा नहीं रखते, पर यदि यह सफल होता है तो २१वीं सदी के पीढ़ी के लोगों की सोच का एक नया रूप सामने आ सकता है जिसका परिणाम यह होगा कि यह शताब्दी शांति की एक सदी बन सकती है।
परम पावन ने श्रोताओं के अन्य प्रश्नों के उत्तर दिए, यह सलाह देते हुए कि मरणासन्न व्यक्तिओं के लिए मन की शांति सबसे महत्त्वपूर्ण बात है, और जो बुद्ध ने सिखाया वह कला के कार्यों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने सलाह दी कि स्वतंत्र आत्मा के न होने की शिक्षा का यह अर्थ नहीं कि वहाँ पर कोई आत्मा है ही नहीं, पर यह कि वह शरीर और चित्त के आधार पर ज्ञापित की जाती है।
बाहर सड़क पर शुगदेन समर्थक प्रदर्शनकारियों के संबंध में उन्होंने कहा:
"वे चिल्लाते रहते हैं, 'झूठ बोलना बंद करो', पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि वे किस के बारे में झूठ बोलने की बात कर रहे हैं। इस विषय में मैंने बहुत स्पष्ट रूप से कह दिया गया है।"
यह पूछे जाने पर कि क्या यह सत्य है कि वह अंतिम दलाई लामा होंगे, उन्होंने कहा कि १९६९ में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि एक और दलाई लामा होंगे अथवा नहीं, यह तिब्बती लोगों के निर्णय पर निर्भर होगा।
अंत में, जलवायु परिवर्तन के बारे में एक प्रश्न पर उन्होंने संकेत दिया कि हमें और सतर्क होना है। जहाँ दिखाई पड़ने वाली हिंसा हमें पीछे खींचती है, पर्यावरण की क्षति और जलवायु परिवर्तन अधिक छिपे रूप में होता है। हम प्रायः इसके प्रति सचेत नहीं होते, जब तक कि यह पहले से ही हो नहीं जाता और इसे पहले जैसी स्थिति में लाना कठिन है।
आयोजकों ने वहाँ आने के लिए परम पावन का धन्यवाद िकया। श्रोताओं के उत्साहित और लम्बी करतल ध्वनि के बीच उन्होंने मंच छोड़ा। कल वह सांसदों से मिलने और 'द हार्ट ऑफ एजुकेशन' (शिक्षा का हृदय) पर एक संगोष्ठी में भाग लेने के लिए हेग जाएँगे।