कोयंबटूर, तमिलनाडु, भारत - ७ जनवरी २०१४ - बंगलौर से एक छोटी विमान यात्रा के बाद परम पावन कोयम्बटूर पहुँचे, जहाँ उनका स्वागत प्रसन्नता तथा कुशलता के साथ किया गया और उन्हें पास के होटल में ले जाया गया। संभवतः यह उचित है कि वे निर्वाण सुइट में ठहरे हैं। वे कोयंबटूर अरुपकोट्टे, तामिलनाड़ू के मौन स्वामी स्वामी सत्यानंद महाराज के अनुरोध पर आए हैं। स्वामी एक वर्ष पूर्व मुंडगोड कर्नाटक के डेपुंग महाविहार में माइंड एंड लाइफ सम्मेलन में भाग लेने के िलए आए थे। परम पावन उनके आचरण से प्रभावित थे और इस तथ्य से कि अपने आध्यात्मिक अभ्यास के एक भाग के रूप में उन्होंने बीस वर्षों से भी अधिक का मौन रखा है। परम पावन ने उनके यहाँ अंतर्धमीय सद्भाव के समर्थक स्वामी विवेकानंद, जिनके प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है, के जन्म की १५०वीं वर्षगांठ के समारोहों में भाग लेने के निमंत्रण काे स्वीकार किया।
अनुमानित लगभग ५००० लोग, व्यस्क और बच्चे स्वामी विवेकानन्द की तरह नारंगी पोषाक में सज कर कोडिस्सा व्यापार मेला केंद्र के एक सभागार में उपस्थित थे जब स्वामी सत्यानंद महाराज परम पावन को मंच पर लेकर आए। प्रारंभ में गायकों तथा संगीतकारोें ने आनंददायी भजनों का गायन प्रस्तुत किया, जब परम पावन मुस्कुरा कर देखते रहे। अगला मंगलमय दीप प्रज्ज्वलन था, जिसके बाद परिचयात्मक वक्तव्य, विशेष रूप से श्री स्वामी निर्मलादांत का प्रमुख भाषण था। उसके बाद था, इस कार्यक्रम का विशेष आकर्षण, जब परम पावन को विवेकानंद की एक ७ फुट ९ इंच ऊँची मकराना संगमरमर की प्रतिमा के अनावरण के लिए आमंत्रित किया गया, जो कि वास्तव में कांगेयम के निकट करीब ७० कि. मी. दूर वट्टमलै में था। ऐसा करने के लिए उन्हें निमंत्रित किया गया और उन्होंने एक बटन दबाया जिससे प्रतिमा के सामने से परदे खुल गए जिसे सभागार में उपस्थित सभी लोगों ने विशाल वीडियो परदे पर देखा। उसके तत्काल बाद परम पावन को बोलने हेतु आमंत्रित किया गया।
"आदरणीय आध्यात्मिक नेताओं, और, जैसा मैं साधारणतया कहता हूँ, भाइयों और बहनों। हम मनुष्य सभी एक जैसे हैं। हम सब एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और हम सभी को उस लक्ष्य को प्राप्त करने का अधिकार है। मैं अपने आप को केवल एक मनुष्य मानता हूँ, कुछ विशिष्ट नहीं। यदि मैं स्वयं को कुछ विशिष्ट मानूँ तो उसका क्या लाभ होगा? यह मात्र मेरे और अन्य लोगों के बीच एक अंतर पैदा करेगा। मैं आप सब को मेरे भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित करना चाहूँगा।"
"मैंने इस कार्यक्रम का वास्तव में आनंद लिया है जिसमें इन सभी लड़कों और लड़कियों ने इतना आनंद और उत्साह जताया है। यह मुझे खुशी से भी भर देता है। स्वामी सत्यानंद महाराज, जिन्होंने मुझे यहाँ आमंत्रित किया, वह इतने लंबे समय से मौन हैं जो बिलकुल भी सरल बात नहीं है। मैंने एक बार एकांत ध्यान का अभ्यास किया था जिसमें केवल एक सप्ताह मौन रहना भी शामिल था। यह काफी कठिन था। निस्संदेह, स्वामी जी यह आप पर निर्भर है, पर मैं आशा करता हूँ कि आप एक मोड़ पर पुनः बोलने के विषय में सोचेंगे, फिर चाहे वह केवल एक घंटे या सप्ताह में एक बार कुछ समय के लिए हो, जिससे आप और आसानी से इच्छुक लोगों के साथ अपने अनुभवों को साझा करने में सक्षम हो पाएँगे।"
परम पावन ने स्वामी विवेकानंद के प्रति अपनी श्रद्दा का उल्लेख किया और यह कि वह कन्याकुमारी गए हैं जहाँ उन्होंने अपनी यात्रा प्रारंभ की थी जिसका समापन वर्षों पहले उनके शिकागो में विश्व धर्म संसद में भाग लेने से हुआ ।उन्होंने स्वामी विवेकानंद के न केवल समर्पित आध्यात्मिक अभ्यास पर साथ ही उनके व्यापक, दूरदर्शी दृष्टि के प्रति भी अपनी प्रशंसा व्यक्त की । उन्होंने कहा कि वे भी सबसे हाल ही में मेलबोर्न , ऑस्ट्रेलिया में विश्व धर्म संसद की बैठकों में सम्मिलित हुए । पर उन्हें लगता है कि यद्यपि यह बातचीत का अवसर प्रदान करता है ,परन्तु संसद जैसा सक्रिय विवेकानंद के समय में था उस रूप में नहीं है ।
परम पावन ने कहा कि भारत विश्व की महान सभ्यताओं में से एक है, जिसकी जड़ें प्राचीन इतिहास तक जाती है, जो कि अपने महान शिक्षकों की श्रृखंला से विशिष्ट हैं, जिन्हें इसने जन्म दिया है। उन्होंने अपने मित्र, भारतीय परमाणु वैज्ञानिक राजा रामण्णा, जो कभी कभी भारतीय सखारोव के रूप में जाने जाते हैं, का स्मरण किया जिन्होंने उन्हें बताया था कि उन्होंने नागार्जुन के लेखन में स्पष्टीकरण पढ़ा था जिसने २००० वर्ष पूर्व क्वांटम भौतिकी के विषय में बताया।
"प्राचीन भारतीय विचारों में सबसे महत्त्वपूर्ण एक 'अहिंसा' है, जिसे मैं कार्य में करुणा मानता हूँ। इसका अर्थ दुर्बलता, भय से दुबकना या फिर कुछ भी न करना नहीं है। यह दूसरों के अधिकारों को पहचानते हुए बिना हिंसा के कार्य करना है। प्रेरणा, 'करुणा' है, और कार्य, 'अहिंसा' है।"
"इस देश ने कई महान आध्यात्मिक परम्पराओं को जन्म दिया है और समय के चलते अन्य महान परंपराएँ यहाँ आई है, पारसी, साथ ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम के अनुयायी उन में से हैं जो भारत आकर बस गए हैं। ये प्रमुख धार्मिक परंपराएँ यहाँ साथ साथ मिलकर शांति से रहती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कभी कभी कुछ अप्रिय हो जाता है पर अधिकांश तौर पर वह कम ही होता है।"
परम पावन ने याद किया कि वे राजस्थान में रोमानिया के एक व्यक्ति से मिले थे जो धार्मिक सद्भाव पर शोध कर रहा था। उसने उन्हें एक मुसलमान गाँव के बारे में बताया जिसे उसने देखा था, जहाँ ४५०० लोगों के बीच तीन हिंदू परिवार सुरक्षित और सुख से रहते थे। परम पावन ने घोषणा की कि विश्व के सभी देशों में भारत इस का प्रारूप है कि किस प्रकार विभिन्न धर्मों के लोग शांति से एक साथ रह सकते हैं। भारत दिखाता है कि बहुलवाद, सहिष्णुता और अंतर्धामिक सद्भाव के साथ रहना संभव है। उन्होंने अपने मित्र का उदाहरण दिया जिसने कहा कि भारत की सहिष्णुता की दीर्घ परम्परा, दूसरों के कभी कभी विपरीत दृष्टिकोण को स्वीकार कर और सम्मान करने के कारण भारत का लोकतंत्र, कानून का शासन, बोलने की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता सफल है। उन्होंने चारवाक का उल्लेख किया जो प्राचीन सुखवादी शून्यतावादी थे, जिन्होंने आध्यात्मिक गतिविधियों को नकार दिया, पर फिर भी जिनके शिक्षकों का उल्लेख ऋषि या साधु के रूप में किया जाता है।
"यह पर्याप्त नहीं है कि आज धार्मिक शिक्षक अपने आश्रमों में चुपचाप बैठे रहें" परम पावन ने कहा, "उन्हें बाहर आकर उनकी समृद्ध परंपराओं और अनुभवों को साझा करना चाहिए।" जब हम अंतरिक्ष से हमारे नीले ग्रह की तस्वीरें देखते हैं तो सीमाओं के कोई संकेत नहीं हैं। यह मानवता की एकता का एक ज्वलंत उदाहरण है। इसलिए हमें मानवता के कल्याण को हमारा प्राथमिक उद्देश्य बनाना चाहिए। हमारे पास आधुनिक शिक्षा और तकनीकी विकास है पर फिर भी हमें अभी भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हममें से कोई भी ये समस्याएँ नहीं चाहता पर हम उन्हें स्वयं के लिए निर्मित करते जान पड़ते हैं। क्यों? बहुत ज्यादा आत्मकेन्द्रितता के कारण, हमारे अपने संकीर्ण हितों को बहुत अधिक महत्त्व देने के कारण। देखिए, जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन में क्या हुआ। बहुत सारे देशों ने वैश्विक हित के समक्ष, जो हम सब को प्रभावित करता है, अपने संकीर्ण राष्ट्रीय हित डाल दिए। हम दूसरों की आवश्यकता की चिंता किए बिना 'मैं' और 'मेरा', 'हम' और 'हमारा' को लेकर बहुत अधिक सोचते हैं।"
परम पावन ने पूछा कि हम इस विषय में क्या कर सकते हैं जब ७ अरब की जनसंख्या से १ अरब स्वयं को आध्यात्मिकता के संबंध में अविश्वासी घोषित कर देते हैं और उनमें से कई जो स्वयं को विश्वासी मानते हैं, बहुत सच्चे नहीं हैं। उन्होंने पूछा कि ऐसे लोगों के बीच जो स्वयं को धार्मिक विचारधारा वाला मानते हैं उनमें भ्रष्टाचार कैसे पनप सकता है। पर ऐसे ही समय ईसाई भिक्षुओं और भिक्षुणियों और रामकृष्ण मिशन के सदस्यों ने ऐसे लोगों के बीच जिन्हें यह बहुत कम प्राप्त है, स्वास्थ्य और शिक्षा का प्रसार करने के अपने कार्यों द्वारा एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है।
परम पावन ने सुझाव दिया कि जिस तरह एक बहुधार्मिक समाज भारत ने स्वतंत्रता मिलने पर एक धर्मनिरपेक्ष संविधान बनाया, आज धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता है, वे आंतरिक मूल्य जो सभी धर्मों द्वारा व्यवहार में लाए गए हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता के विचारों, जो सभी विश्वासों का और उनके भी जिनकी कोई परम्परा नहीं है, बिना किसी पक्षपात के सम्मान करता है, के बड़े प्रशंसक हैं। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता सामान्य ज्ञान, सामान्य अनुभव और वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित की जा सकती है। उन्होंने विगत ३० वर्षों से उनकी वैज्ञानिकों के साथ हो रहे संवादों की चर्चा की। उन्होंने उल्लेख किया कि वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि निरंतर क्रोध, विद्वेष और भय हमारे शारीरिक स्वास्थ्य कोे दुर्बल करते हैं, जबकि सौहार्द और दूसरों के प्रति चिंता हमारे अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। इसलिए दूसरों के प्रति करुणा और चिंता उत्पन्न करना हमारे हित में है। परिणाम स्वरूप हम अधिक स्वस्थ और अधिक सुखी होंगे।
परम पावन से पूछा गया कि क्या उनका युवाओं के लिए कोई संदेश था और उन्होंने उत्तर दिया:
"मैंने देखा है कि ये युवा किस तरह आनंद और सद्भावनाओं से भरे हुए हैं। जब आप कठिनाइयों का सामना करें तो आप को यह सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए। निराशावाद को अपने ऊपर हावी होने देना विफलता को आमंत्रित करना है। जब मैं आपकी उम्र का था तो काफी शरारती और आलसी था। मैं अध्ययन से अधिक खेलना पसन्द करता था। फिर १६ वर्ष की आयु में मैंने अपनी स्वतंत्रता खो दी और २४ में अपना देश खो दिया, पर मैंने कभी हार नहीं मानी और अपनी आशा को जीवित रखा है।"
इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, जिसमें नीलगिरी जिले के आदिवासी और टी सी वी बाइलाकुप्पे के तिब्बती छात्रों ने नृत्य प्रस्तुत किया। जब नर्तक तैयार हो रहे थे, मीडिया के सदस्य परम पावन से प्रश्न करने के लिए आगे बढ़े और वे मंच से उनसे बात करने के िलए नीचे झुके।
"मैं मीडिया से कहना चाहूँगा", उन्होंने कहा, कि "कानून के शासन से शासित आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में जानकारी बहुत महत्त्वपूर्ण है।" मैं प्रायः कहता हूँ कि मीडिया के सदस्यों की नाक हाथी जैसी लंबी होनी चाहिए कि सूंघ कर पता लगाए कि क्या हो रहा है और फिर जनता को सूचित करना चाहिए। यह एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व है, पर यह ईमानदारी के साथ किया जाना चाहिए। एक बार जनता जागरूक हो जाए तो वे तदनुसार कार्रवाई कर सकते हैं।"
जैसे ही बैठक का अंत हुआ परम पावन को उनकी गाड़ी तक ले जाया गया। जनता के कई लोग, जो उन्हें देख कर खुश थे उनका स्पर्श भी करना चाहते थे, सामने धक्का देकर उनके साथ हाथ मिलाने या उनके चरण स्पर्श करने के लिए। धीरे धीरे उनके चारों ओर पुलिस के घेरे ने द्वार तक अपना रास्ता बना लिया, और मुस्कुराते, अपने मित्रों और शुभचिंतकों को देख हाथ िहलाते परम पावन अपने होटल वापस लौट सके। कल वे भारतीय बौद्धों के साथ बैठकों के लिए नागपुर की यात्रा कर रहे हैं।