धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत - १० अक्तूबर २०१४ - इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की खबर मिलते ही परम पावन ने तुरन्त दोनों विजेताओं को पत्र लिखा।
"मैं आपको नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर बधाई देने के लिए लिख रहा हूँ। यह मेरे लिए बड़े हर्ष का विषय है कि आप अपनी विभिन्न परिस्थितियों में बच्चों की सहायता और उनकी शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य कर रहे हैं, उसे आज मान्यता मिली है।"
मलाला युसुफ़ज़ई को उन्होंने लिखाः
"इतनी सी कम उम्र में शिक्षा के लिए लड़कियों के अधिकार की रक्षा के िलए कदम उठाकर आपने अत्यधिक साहस दिखाया है। इसके बाद आपने फिर से जबरदस्त शक्ति दिखाई, जब आप उन चोटों से उबर रही थी, जो उन लोगों ने आपको पहुँचाई, जो आपसे हिंसक रूप से असहमत थे। इसके बावजूद आप बिना झुके शिक्षा के बुनियादी अधिकार को बढ़ावा देने में लगी रही, यह केवल आपको प्रशंसा का अधिकारी बनाता है।"
जबकि कैलाश सत्यार्थी के लिए उन्होंने टिप्पणी की:
"महात्मा गांधी, राष्ट्रपिता और जिन्हें, मैं एक निजी संरक्षक मानता हूँ, अपने शांतिपूर्ण, अहिंसक परिवर्तन के लिए सम्पूर्ण विश्व के लिए बड़े स्तर पर प्रेरणादायी रहे हैं। मैं यह मानता हूँ कि आप जो उनके अनुयायी हैं, आपको यह पुरस्कार दिया जाना उनके प्रति भी सम्मान व्यक्त करना है।"
उन्होंने दोनों पुरस्कार विजेताओं से अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि एक पुरुष और एक महिला, एक भारतीय और एक पाकिस्तानी को एक साथ शांति पुरस्कार देने का निर्णय इस बात पर बल देता है कि केवल मानव भाइयों और बहनों के रूप में हम एक और अधिक शांतिपूर्ण, सुखी विश्व का निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने उन दोनों को बच्चों की सहायता करने के क्षेत्र में कार्य करने के लिए सराहना की। उन्होंने कहा कि बच्चे, जो समाज में सबसे अधिक मासूम और कमजोर हैं, पर साथ ही भविष्य के बीज हैं, भविष्य तभी सुरक्षित होगा जब हम यह सुनिश्चित कर लें कि बच्चों को एक पूर्ण और समान शिक्षा प्राप्त होगी ।
उन्होंने दोनों पत्रों को एक समान शब्दों के साथ समाप्त कियाः
"आप दोनों को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना शिक्षा के मौलिक महत्व का स्मरण कराता है, यदि हम स्वयं को सुधारना चाहते हैं और एक बेहतर विश्व बनाना चाहते हैं। यह हर जगह, बच्चों, लड़कियों और लड़कों के लिए एक प्रेरणा है।"