परम पावन ने मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने, अंतर - धार्मिक सद्भाव को पोषित करने और एक तिब्बती के रूप में, तिब्बती भाषा, धर्म और संस्कृति का संरक्षण और तिब्बत के नाजुक पर्यावरण को बचाने की अपने तीन प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया। यद्यपि ७वीं, ८वीं और ९वीं शताब्दी में तिब्बत मंगोलिया और चीन के समान एक साम्राज्य था, पर इस समय वह चीन से अलग होने की माँग नहीं पर एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान चाहते हैं जो तिब्बती मूल्यों के संरक्षण को सुनिश्चित करेगा। उन्होंने अपने श्रोताओं का आह्वान करते हुए उन्हें २१वीं शताब्दी को शांति और सद्भाव का युग बनाने में सहयोग देने के लिए कहा, एक ऐसा युग जिसमें समस्याओं का समाधान शक्ति प्रयोग द्वारा नहीं, अपितु अहिंसात्मक रूप से होगा।
बुद्ध के शिक्षाओं के परिचय के रूप में और कालचक्र अभिषेक की तैयारी के रूप में परम पावन ने कहा कि वे नागार्जुन की 'रत्नावली' और 'सुहृल्लेख' की व्याख्या करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें सेरकोंग छेनशब रिनपोछे से ''रत्नावली' और खुनु लामा रिनपोछे से 'सुहृल्लेख' की शिक्षा मिली थी। पर सबसे पहले उन्होंने श्रद्धात्रय प्रकाशन का पुनरावलोकन किया जो नालंदा के सत्रह महापंडितों की स्तुति है। उन्होंने पुष्पिका से उद्धृत करते हुए बताया कि उन्होंने उसकी रचना क्यों की थी।
"वर्तमान समय में, जब साधारण विश्व में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है, पर हम भी अपने व्यस्त जीवन की हलचल से विचलित हो रहे हैं, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हममें से जो बुद्धानुयायी हैं, उन्हें उनकी शिक्षाओं के आधार पर विश्वास होना चाहिए। इसलिए हमें एक निष्पक्ष और जिज्ञासु मन से इसके कारणों का बारीकी से विश्लेषण कर इनकी जाँच करनी चाहिए।"
उन्होंने कहा कि नालंदा के महापंडितों ने यह प्रतिस्थापित करने के लिए कौन से निश्चित हैं और किन्हें उसी रूप में नहीं लिया जा सकता और वे व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं, बुद्ध की शिक्षाओं की जाँच और विश्लेषण किया था। उन्होंने अपने श्रोताओं की सराहना करते हुए कि कहा, कि वे भी इसी प्रकार का जिज्ञासु और निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाएँ और इस ओर ध्यान दिलाया कि इन तीन शिक्षाओं में प्रमुख एकाग्रता है जो ध्यान और शील द्वारा समर्थित है।
संक्षेप में नागार्जुन और उनके अनुयायियों, असंग और उनके, तर्कशास्त्री दिङ्नाग और धर्मकीर्ति, विनय के आचार्य गुणप्रभ और शाक्यप्रभ और अतिश जिन्होंने अपने पूर्व आचार्यों, शांतरक्षित और कमलशील की तरह तिब्बत में आकर शिक्षा दी, उन्होंने मंगलाचरण के बाद के छंदों को दोहराया:
"सत्य द्वय का अर्थ समझ कि वस्तुओं का अस्तित्व किस प्रकार है,
हम चार आर्य सत्य द्वारा समझते हैं कि हम किस प्रकार भव में आते हैं और इसे छोड़ते हैं।
वैध अनुभूति द्वारा उत्पादित त्रिशरण में हमारा विश्वास दृढ़ होगा
मुझे मुक्ति पथ के मूल की स्थापना के लिए आशीर्वाद प्राप्त हो।"
दिन की शिक्षाओं के समापन के रूप में, परम पावन एक नई पुस्तक 'बौद्ध विज्ञान का महासंग्रह' का विमोचन करते हुए प्रसन्न थे। तीन साल की तैयारी के फलस्वरूप इसमें बौद्ध विज्ञान की व्याख्या है, विशेषकर कांग्युर और तेंग्युर, जो बौद्ध धर्म ग्रंथों का अनुवाद है, से निकाला चित्त का विज्ञान। उन्होंने उसकी सराहना करते हुए कहा कि यह निष्पक्ष, रुचि रखने वाले पाठकों, वैज्ञानिकों और विचारकों के लिए गहन मूल्य रखेगी, क्योंकि इसका संबंध चित्त और भावनाओं की गहरी समझ और उनके साथ कैसे निपटा जाए से है। उनकी परिकल्पना है कि पुस्तक में जो सामग्री है, वह मात्र धार्मिक रुचि तक सीमित न होते हुए शैक्षणिक अध्ययन की वस्तु है। आज तिब्बती संस्करण जारी किया है, लेकिन इसका अंग्रेजी, हिन्दी और चीनी में अनुवाद तैयार करने का कार्य प्रारंभ हो चुका है और ऐसी आशा की जाती है कि वर्ष के अंत तक कम से कम अंग्रेज़ी को अंतिम रूप दिया जाएगा।
नागार्जुन के ग्रंथों की व्याख्या कल जारी रहेगी।