परम पावन ने कहा कि विकास और प्रगति वास्तव में लोगों पर निर्भर करती है। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद लोगों में आत्मविश्वास की आवश्यकता है। समुचित विकास और प्रगति के लिए उत्साह एक महत्त्वपूर्ण कारक है। उन्होंने तिब्बती लोगों का उदाहरण दिया जो पिछले ५५ वर्षों से शरणार्थी के रूप में रहे हैं, बहुत दुख झेले पर अपना आत्मविश्वास कभी न खोया।
परम पावन सदा की तरह सभी को सह भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित कर अपना प्रवचन प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि एक बुनियादी स्तर पर सभी मनुष्य समान हैं और सब में नकारात्मक और विनाशकारी भावनाओं पर काबू पाने के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग करने की एक जैसी क्षमता है। मानसिक स्तर पर व्याकुलता के कारण धनवान भी संतुष्ट नहीं हैं। परम पावन ने सभी को सलाह दी कि वे उस सुख पर अधिक ध्यान दें जो ऐन्द्रिक स्तर पर नहीं बल्कि मानसिक स्तर से संबंधित है। उन्होंने उल्लेख किया कि मस्तिष्क विशेषज्ञों सहित चिकित्सा वैज्ञानिकों ने प्रयोगों और अध्ययन द्वारा पाया है कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी मानसिक शांति बहुत महत्त्वपूर्ण है।
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उन्होंने कहा कि लोग एक प्रबल आत्म - धारणा व्यवहार के साथ, तथा 'हम' और 'वे' के रूप में सोचते हुए आत्म की ओर बहुत अधिक ध्यान देते हैं जो सभी समस्याओं को जन्म देता है। हम सब को मतभेद के माध्यमिक स्तर पर बहुत ज़ोर न देते हुए ७ अरब मानवता के सदस्यों के एकत्व को समझना है। ऐसा करने हुए सभी मानव निर्मित समस्याएँ क्रमशः कम की जा सकती हैं। चाहे कोई भी धार्मिक मान्यताएँ हों, भूमण्डलीय तापक्रम वृद्धि और पर्यावरणीय क्षति सभी को प्रभावित करती हैं और भौतिक सीमाओं से परे हैं। ७ अरब मानव समुदाय का एक भाग होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति को एक सकारात्मक अंतर लाने में योगदान करने की नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
उन्होंने कीड़ों का उदाहरण दिया जहाँ कोई धर्म, कोई संविधान, और कोई पुलिस बल न होते हुए भी, कीट समुदाय का प्रत्येक सदस्य, अपनी प्रजाति की एकता के हित में कार्य करता है। चूँकि हममें विशेष मानव बुद्धि है अतः कीड़ों और जानवरों के विपरीत, मानवता के हित के लिए हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।
परम पावन ने कहा कि माध्यमिक भेद पर अंतर किए बिना वह सभी के साथ, साथी मनुष्यों के रूप में बात करते हैं। उन्होंने कहा कि इस बात पर बहुत ज़ोर देना कि वह दलाई लामा हैं, उन्हें वास्तव में दूसरों से दूर करता है। यह उचित है कि प्रत्येक को अपना भाई और बहन माना जाए जो एक सहजता और विश्राम की भावना लाता है। यदि हम सही अर्थों में मानवता की एकता को मानते हैं और दूसरंों को अपने भाई और बहनों के रूप में सोचते हैं, तो हम उन हत्याओं को रोक सकते हैं जो आज हो रही हैं।
परम पावन ने कहा कि बौद्ध धर्म एक स्वतंत्र आत्मा को स्वीकार नहीं करता। पर इसका अर्थ आत्मा की अनुपस्थिति नहीं है। स्वाभाविक रूप से हर किसी के अंदर मैं की भावना है, परन्तु आत्मा के प्रति एक प्रबल ग्राह्यता सभी समस्याएँ उत्पन्न करती हैं। इसके प्रतिपक्ष के रूप में स्वयं के विषय में न सोचते हुए दूसरों के हित को सोचते हुए परोपकारिता का विकास आवश्यक है।
परम पावन ने भारत के नालंदा विश्वविद्यालय के विद्वान आचार्यों जैसे शांतरक्षित, कमलशील और धर्मकीर्ति के महान सहयोग का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि नालंदा मात्र एक विहार नहीं था अपितु एक महान शिक्षा का केंद्र था। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की, कि तिब्बतियों ने सभी प्रमुख नालंदा शिक्षाओं और टिप्पणियों को तिब्बती भाषा में अनुवादित कर नालंदा परंपरा को जीवंत रखा है। विश्व भर के बौद्ध जिनमें चीन, श्रीलंका और बर्मा शामिल हैं, ने इस काम को मान्यता दी है और अब कई बौद्ध, बौद्ध दर्शन पर चर्चा और अध्ययन कर रहे हैं।
मध्याह्न के भोजनोपरांत बाद परम पावन ने इटली और पड़ोसी देशों में रहने वाले २०० से अधिक तिब्बतियों की एक सभा को संबोधित किया। उन्होंने उनसे अपनी प्राचीन धरोहर पर गौरवान्वित होने के लिए आग्रह किया। उन्होंने पुरातत्वविदों द्वारा किए गए अध्ययन का हवाला दिया जिन्हें तिब्बत की दोमे क्षेत्र में मानव सभ्यता के प्रमाण मिले हैं जो पाषाण युग के जान पड़ते हैं। उन्होंने तिब्बत के ङारी क्षेत्र में भी हुए पत्थर उत्खनन का उल्लेख किया जो हजारों वर्ष पुराना है। "इसलिए हमारी एक बहुत ही लंबी और प्राचीन धरोहर है।" उन्होंने कहा।
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"हमारे संघर्ष को जारी रखने के कारण मुख्य रूप से संकल्प, इच्छा शक्ति और तिब्बत के अंदर तिब्बतियों की दृढ़ता है" उन्होंने कहा। परम पावन ने दिवंगत फुनछोग वंाज्ञल का उल्लेख किया, जिन्हें वे एक नास्तिक कहते थे पर वे जो कि अपने राष्ट्र, तिब्बत के प्रति बहुत देशभक्ति की भावना रखते थे। उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट प्रणाली में तिब्बती अधिकारियों का भी उल्लेख किया जो अपने में तिब्बत के प्रति एक सशक्त भावना रखते हैं जिसके कारण वे मुसीबत में पड़ सकते हैं। परम पावन यह जानकर प्रसन्न थे कि इस संघर्ष में तिब्बतियों ने हिंसा को नहीं अपनाया है।
उन्होंने तिब्बती भाषा, धर्म और संस्कृति को बनाए रखने के लिए निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों की सराहना की। पर उन्होंने तिब्बतियों को आगाह किया कि वे आत्मतुष्ट न हों और तिब्बती बौद्ध संस्कृति को गंभीरता से लें। उन्होंने अपना भय व्यक्त किया कि तिब्बती क्रमशः ईमानदारी और निष्ठा की अपनी संस्कृति को खो रहे हैं। उन्होंने अच्छे पुराने दिनों में पंजाब के भारतीय व्यापारियों का उदाहरण दिया जो स्वेटर बिक्री कारोबार के लिए तिब्बतियों को बिना कोई गारंटी िलए शुद्ध विश्वास पर ब्याज मुक्त ऋण देते थे। उन्होंने कहा कि इन दिनों यह सब अब एक नकद लेन - देन था।
तिब्बती भाषा के अध्ययन की आवश्यकता के महत्त्व पर बोलते हुए परम पावन ने जम्मू एवं कश्मीर के भारतीय राज्य में निवास कर रहे तिब्बती मुसलमानों का उदाहरण दिया जो एक औपचारिक केन्द्रीय तिब्बती बोली विशुद्ध रूप से बोलते हैं यद्यपि वे तिब्बती बौद्ध नहीं हैं। उन्होंने माता - पिता से आग्रह किया कि वे घर पर तिब्बती बोलने की आदत का विकास करें ताकि तिब्बती युवा पीढ़ी भाषा शिक्षण जारी रख सकें। उन्होंने कहा कि केवल तिब्बती भाषा ऐसी है जो एक समग्र रूप में बौद्ध धर्म की नालंदा परंपरा को समझ सकती है।
चूँकि कई युवा तिब्बती भारत में तिब्बती आवासों में बच्चों और बुज़ुर्गों को छोड़ कर विदेशों में रह रहे हैं, यह विदेश में रह रहे तिब्बतियों के लिए महत्त्वपूर्ण है कि आवासों में सामुदायिक विकास की दिशा में योगदान करें। परम पावन ने यह आशा व्यक्त की, कि निर्वासन तिब्बती आवास तिब्बती भाषा, धर्म और संस्कृति को संरक्षित कर सकते हैं और अक्षुण्ण रख सकते हैं, फिर भले ही तिब्बती संघर्ष अधिक वर्षों या दशकों तक जारी रहे।
उन्होंने सभी को सलाह दी कि वे व्यक्तिगत हितों के स्थान पर अपने समुदाय, राष्ट्र के विषय में सोचें और व्यापक हित के लिए कार्य करें। उन्होंने दर्शकों में से एक तिब्बती उद्योगपति का उदाहरण दिया और उनके द्वारा भारत के भंडारा तिब्बती आवास में एक वृद्धाश्रम के योगदान की सराहना की। उन्होंने वहाँ के अच्छे एयरकंडीशन का विशेष उल्लेख किया और हँसी हँसी में टिप्पणी की, कि छोटे दूरदराज का वातानुकूलन यहाँ इटली की तुलना में कहीं अधिक बेहतर था।
बाद में मध्याह्न में परम पावन मोदिग्लिआनी फोरम लौटे और नागार्जुन के "सुहृल्लेख" तथा चोंखापा के "प्रतीत्यसमुत्पाद स्तव" के प्रवचनों को जारी रखा। कल परम पावन प्रातः अवलोकितेश्वेर की दीक्षा प्रदान करेंगे जिसके पश्चात मध्याह्न में वे एक सार्वजनिक व्याख्यान होगा।