पोमाइया, टसकेनी, इटली - १२ जून २०१४ - परम पावन दलाई लामा ने दिन का प्रारंभ, सबसे अधिक बिकने इतालवी समाचार पत्र कोरिएरे डेला के एक पत्रकार, निबंधकार और स्तंभकार, श्री बेप्पे सेवेरग्निनि के साथ एक घंटे के साक्षात्कार से किया। बाद में लेखक, मनोवैज्ञानिक और विज्ञान पत्रकार डा. डेन गोलमेन ने अपनी नई पुस्तक के लिए परम पावन दलाई लामा का साक्षात्कार लिया। डा. गोलमेन बारह वर्ष न्यूयॉर्क टाइम्स से जुड़े थे तथा मनोविज्ञान और मस्तिष्क विज्ञान के विशेषज्ञ रहे थे।
मध्याह्न में, रोम में निवास कर रहे इटली में भारत के राजदूत श्री बसंत कुमार गुप्ता ने परम पावन दलाई लामा से भेंट की। इस के पश्चात सेक्रेड कॉन्वेंट ऑफ असीसी के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उनकी बैठक हुई।
चूँकि परम पावन दलाई लामा की इटली की यात्रा को लेकर मीड़िया में बहुत रुचि थी इसलिए पोमाइया में मध्याह्न में ८० से अधिक पत्रकारों के लिए प्रेस के सदस्यों के साथ एक बैठक का आयोजन किया गया था।
प्रेस के लिए अपने प्रारंभिक उद्बोधन में परम पावन ने इटली की आश्चर्यजनक रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'काफी गर्म है'। उन्होंने टिप्पणी की, कि किस तरह वह मुंबई, भारत के गर्म और चिपचिपे मौसम से बचने के लिए, जहाँ उन्होंने इटली में आने से पूर्व प्रवचन दिया था, इटली की यात्रा करने की प्रतीक्षा कर रहे थे, और एक ठंडे और खुशनुमा मौसम की आशा कर रहे थे। पर दुर्भाग्य से इटली का मौसम लगभग मुम्बई के समान ही था।
परम पावन ने कहा कि इटली आकर वह सम्मान और खुशी का अनुभव कर रहे थे। यद्यपि लामा चोंखापा संस्थान की अपनी पहली यात्रा के बाद से पीढ़ियाँ बदल गयी हैं, पर मूल उद्देश्य को आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा "मैं बहुत अच्छा अनुभव कर रहा हूँ।" उन्होंने मीडिया की रुचि और उनकी उपस्थिति के लिए उनके प्रति अपनी सराहना व्यक्त की।
परम पावन ने जीवन में अपनी तीन प्रतिबद्धताओं के विषय में बात की। उन्होंने कहा कि वह सदा से सात अरब मनुष्यों में से अपने को एक मानते हैं। प्रत्येक में प्रेम, स्नेह तथा सुख की समान इच्छा है, जो मानव प्रेम का आधार है। इसलिए वह हमेशा आधारभूत मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने का समर्थन करते हैं। उनका मुख्य संदेश मानव प्रेम है - जो कि मानव सुख का परम स्रोत है। मानव स्नेह मूल रूप से एक जैविक कारक है और हमारे जीवित रहने का आधार मानव प्रेम है। हम चाहे धर्म में विश्वास करें अथवा न करें, हमारा संबंध किसी भी संस्कृति से हो, हम सभी को प्रेम की आवश्यकता है।
अपनी दूसरी प्रतिबद्धता पर बोलते हुए, परम पावन ने धार्मिक सद्भाव की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि वह सदा अन्य धर्मों और परंपराओं के अभ्यासियों से संपर्क बनाए रखते हैं जो प्रेम, करुणा, सहिष्णुता और क्षमा के समान अभ्यास को लेकर चलते हैं।
भारत के उदाहरण पर बल देते हुए, जहाँ सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं का पीढ़ियों से शांतिपूर्ण सह अस्तित्व निरंतर बना हुआ है, परम पावन ने कहा कि वे भारत में ५० वर्षों से अधिक समय से रह रहे हैं और भारत एक जीवंत उदाहरण है, जहाँ २००० वर्षों या उससे अधिक समय से कई विभिन्न धर्म शांतिपूर्ण ढंग से सह अस्तित्व में हैं। अतः उन्होंने कहा, धार्मिक सद्भाव संभव है।
एक तिब्बती के रूप में, परम पावन ने सदा तिब्बती संस्कृति के संरक्षण और इसके समृद्ध बौद्ध ज्ञान और परंपरा का समर्थन किया है। २०११ में सीधे निर्वाचित राजनीतिक नेता को अपने सभी राजनीतिक उत्तरदायित्व सौंपने के पश्चात उन्होंने मात्र आध्यात्मिक नेता के रूप में अपनी वर्तमान भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह उन्होंने स्वेच्छा, खुशी और गर्व से किया है।
परम पावन ने पत्रकारों की भूमिका के महत्व पर बल दिया कि वे किस प्रकार मानव मूल्यों और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया के लोगों की नाक हाथी की नाक के समान लम्बी होनी चाहिए, जो राजनेताओं और अन्य लोगों को सामने और पीछे से सूँघ सकें। एक लोकतांत्रिक समाज में लोगों को सत्य जानने का अधिकार है और पत्रकारों को यथार्थ की सूचना जनता को देनी चाहिए। पर उन्होंने कहा कि उन्हें सच्चाई, वस्तुनिष्ठता से और निष्पक्ष ढंग से सूचना देनी चाहिए।
फुटबॉल विश्व कप और उनके प्रिय टीम से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में, परम पावन ने कहा कि उनकी फुटबॉल में कोई रुचि नहीं थी। उन्होंने कहा कि उनकी मुख्य रुचि अपने नित्य प्रति के जीवन में नकारात्मक भावनाओं पर काबू पाने और सकारात्मक भावनाओं को उत्पन्न करने की थी। हँसी हँसी में उन्होंने कहा कि यह उनके लिए फुटबॉल की तरह था जिसे सुनकर सभी ने तालियाँ बजाईं।
चीनियों द्वारा एक बड़े स्तर पर पर बौद्ध धर्म को अंगीकृत करने के विषय में परम पावन ने उल्लेख किया कि विश्व की बौद्धों की सबसे बड़ी जनसंख्या चीन में है: अब ४०० अरब से अधिक। उन्होंने मेन लैंड चीन से बढ़ती संख्या में चीनियों की रुचि का उल्लेख किया जो भारत में उनकी शिक्षाओं को प्राप्त करने के लिए आते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने सदा से ही सच्ची स्वायत्तता और चीनियों के साथ रहने का समर्थन किया था। "हम स्वतंत्रता की माँग नहीं कर रहे", उन्होंने कहा।
२०१२ में बोधगया, भारत में हुए कालचक्र दीक्षा का स्मरण करते हुए परम पावन ने, दीक्षा के उपरांत तिब्बतियों और चीनियों के घर लौटने पर उनके प्रति चीनी अधिकारियों की अलग अलग प्रतिक्रयाओं की बात की। उन्होेंने कहा कि जहाँ एक ओर चीनियों को लौटने के बाद किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा, पर तिब्बतियों से तरह तरह के प्रश्न पूछे गए और उन्हें घर में बंदी बनाकर भी रखा गया। उन्होंने कहा कि वह अगले महीने लद्दाख, भारत में कालचक्र दीक्षा दे रहे हैं, और चीनी अधिकारियों ने पहले से ही तिब्बतियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं विशेष रूप से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के तिब्बतियों पर।
धर्म परिवर्तन के संबंध में एक प्रश्न पर परम पावन ने कहा कि अपनी परंपरागत धार्मिक मूल्यों को बनाए रखना अधिक उचित और सुरक्षित है। धर्म का परिवर्तन सरल नहीं और यह कभी कभी और अधिक समस्याएँ उत्पन्न करता है। निस्सन्देह ऐसे कुछ हैं जिनमें अन्य धर्मों के प्रति एक स्वाभाविक रुचि है और ऐसे लोगों को परिवर्तन करने की अपनी स्वतंत्रता है।
उन्होंने बौद्ध धर्म में रुचि रखने वालों को सलाह दी कि वे एक शिक्षक का आँखें मूँदकर पालन करने के बजाय, बौद्ध दर्शन का अध्ययन कर, स्वयं उसका परीक्षण कर अभ्यास करें। पर उन्होंने बल दिया कि यदि आप धर्मांतरण करते हैं, तो आपको सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।
इटली में शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए सबसे अच्छे उपाय पर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने शरणार्थियों की बढ़ती संख्या की समस्या को स्वीकार किया, विशेष रूप से उत्तरी अफ्रीका और सीरिया से आ रहे शरणार्थी। उन्होंने कहा कि शरणार्थी को अपने देश में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है, कोई शरणार्थी एक अन्य देश में छुट्टी मनाने नहीं जाता। शरणार्थियों द्वारा कठिन परिस्थितियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए परम पावन ने कहा कि हमें यथासंभव सहायता प्रदान करना चाहिए। पर जब हम ऐसा नहीं कर सकते तो हमें यह बता देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें उनके देश की समस्याओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए जैसे कि आर्थिक स्थिति, एक वैश्विक स्तर पर धनवानों और निर्धनों के बीच बढ़ती खाई और राष्ट्रों से इस खाई को पाटने में सहायता करने का आग्रह किया। उन्होंने शैक्षिक, आर्थिक और तकनीकी सहायता देते हुए, धनवान देशों से निर्धन देशों की सहायता का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि शरणार्थी समस्या मानव निर्मित है और प्रत्येक को इस के लिए नैतिक उत्तरदायित्व लेना चाहिए। इसके बाद उन्होंने 'हम' बनाम 'वे' की धारणा की बात की, जो कि, उन्होंने कहा कि पुराना था और सभी समस्याओं का मूल था।
उन्होंने कहा कि विश्व में शांति के लिए उनकी मुख्य आशा युवा पीढ़ी के साथ थी। उन्होंने युवाओं से एक अधिक शांतिपूर्ण और अधिक करुणाशील विश्व के निर्माण का आह्वान किया।
वे पिछले एक दशक में अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा आंतरिक मूल्यों पर किए गए शोध के विषय में बोले। उन्होंने कहा कि अब वैज्ञानिक एक तीन सप्ताह के कार्यक्रम के साथ तैयार थे और शीघ्र ही स्वयंसेवक छात्रों के साथ प्रयोग शुरू कर देंगे। तीन सप्ताह कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रतिभागियों के रक्तचाप और तनाव के स्तर, इत्यादि को मापा जाएगा और कार्यक्रम के अंत में परिवर्तनंों को देखा जाएगा।
तत्पश्चात उन्होंने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की शिक्षा पर बात की। उन्होंने महान राष्ट्र भारत का उदाहरण दिया, जिसका संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है - सभी धार्मिक परंपराओं के प्रति सम्मान जिसमें धर्म पर विश्वास न रखने वाले भी शामिल हैं। इस संदर्भ में परम पावन ने स्कूलों में एक शैक्षिक पाठ्यक्रम को विकसित करने के प्रयास में किए जा रहे शोध की बात की, जिसे वे "भावना की स्वच्छता" नाम देना चाहते थे।
उन्होंने आशा व्यक्त की, कि आगामी दो या तीन वर्षों में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लेकर एक पाठ्यक्रम का मसौदा उपलब्ध होगा जिस पर स्कूल प्रयोग कर सकते हैं। यदि यह उपयोगी पाया गया तो अधिक से अधिक स्कूल अपने शैक्षिक पाठ्यक्रम में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की शिक्षा शामिल कर सकते हैं।
चीनी नेतृत्व पर एक प्रश्न के उत्तर में, परम पावन ने कहा कि उन्हें कठोर परिश्रम करने वाले चीनी लोगों की संस्कृति अच्छी लगती है, पर हँसी में कहा कि दुर्भाग्य से चीनी नेतृत्व के कट्टरपंथियों के दिमाग में सामान्य ज्ञान का अभाव है।
दलाई लामा के पुनर्जन्म के बारे में एक प्रश्न पर परम पावन ने कहा कि १९६९ में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि दलाई लामा की संस्था को निरंतर रखने का निश्चय अंततः तिब्बती लोगों को करना है। उन्होंने टिप्पणी की, कि चीनी सरकार वर्तमान दलाई लामा से अधिक १५वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के बारे में अधिक चिंतित हैं।
कल, इटली की यात्रा के चौथे दिन परम पावन ५ मीटर ऊँचे चतुर्भुज अवलोकितेश्वर की मूर्ति को आशीर्वचित करेंगे तथा प्रेम और करुणा के विकास के महत्व पर एक संक्षिप्त प्रवचन देंगे। मध्याह्न में, परम पावन लिवोर्नो शहर के लिए रवाना होंगे।