रोम, इटली - दिसंबर १३, २०१४ - परम पावन दलाई लामा का रोम में तीसरा दिन इतालवी सांसदों के साथ, जिसमें मानवाधिकार समिति के अध्यक्ष और सीनेट के उपाध्यक्ष शामिल थे, एक सौहार्दपूर्ण बैठक के साथ प्रारंभ हुआ। उन्होंने उन्हें उनसे आकर भेंट करने के िलए धन्यवाद दिया और उन्हें चीन के साथ संबंधों, िजन्हें वे सकारात्मक संकेत के रूप में देखते हैं, की सूचना दी। उन्होंने उल्लेख किया कि हाल ही में शी ज़िनपिंग ने न केवल राष्ट्रवाद के विरोध में, पर हान वर्चस्व को लेकर भी िवरोध व्यक्त िकया, जिस प्रकार अध्यक्ष माओ करते थे। उन्होंने उनसे पेरिस और दिल्ली में दिए गए शी ज़िनपिंग की इस टिप्पणी की भी सूचना दी जिसमें उन्होंने पुष्टि की थी कि चीनी संस्कृति में बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह देखते हुए कि िकस प्रकार चीन के राष्ट्रपति का रवैया हू याओबंग के यथार्थवादी दृष्टिकोण के साथ मेल खाता है, जिन्होंने तिब्बत पर एक सकारात्मक रुख अपनाया, परम पावन ने आशा व्यक्त की।
"२००१ के बाद से मैं अर्द्ध सेवानिवृत्त हो गया हूँ" उन्होंने सांसदों से कहा, "और २०११ के बाद से मैं पूरी तरह से राजनैतिक उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त हूँ। अब मैं केवल तिब्बती संस्कृति, जो कि शांति और अहिंसा की संस्कृति है और अध्यात्म के संरक्षण, तथा तिब्बती पर्यावरण के संरक्षण से जुड़ा हूँ। मेरे विचार से एक मानवीय स्तर पर हम सभी समान हैं। मैं स्वयं को कोई िवशिष्ट नहीं समझता, केवल एक और मनुष्य हूँ। आप राजनेता भी, जो यूरोपियन संघ के इटली के लोगों के सुख के लिए काम कर रहे हैं, ७ अरब मनुष्यों के लिए एक बेहतर विश्व बनाने में योगदान दे सकते हैं।"
सांसदों ने पृथक पृथक रूप से परम पावन को उनके इटली आगमन के लिए, और जो प्रेरणा वे उन्हें देते हैं, के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने पुष्ट किया कि वे मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के उनके कार्यों को जारी रखेंगे और करुणा, शांति और अहिंसा के मूल्यों को पोषित करेंगे, विशेषकर विश्व के इस कठिन समय में तथा साथ ही तिब्बत के लिए समर्थन बनाए रखेंगे।
फ्रांस २४ के लिए एक साक्षात्कार में मार्क पेरेलमान ने पूछा कि क्या परम पावन निराश हैं कि पोप उनसे भेंट करने में असमर्थ हैं तथा इस वर्ष के प्रारंभ में नार्वे के प्रधानमंत्री ने भी बैठक के िलए मनाही कर दी थी। परम पावन ने कहा, नहीं और यह समझाया कि वे राजनैतिक उत्तरदायित्वों से सेवानिवृत्त हो गए हैं और नेताओं से भेंट करने के बजाय वे व्यापक स्तर पर लोगों के साथ संबंध बनाने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहाः
"यदि मानवता सुखी है, तो हम सभी लाभान्वित होंगे। परम पावन पोप से भेंट करने को लेकर, जो मैं चाहता हूँ, मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि ऐसा संभव क्यों नहीं है, पर उसके िलए आपको उनके कार्यालय से पूछना पड़ेगा।"
पेरेलमान ने पूछा कि परम पावन ने शी ज़िनपिंग को अधिक यथार्थवादी बताया है, पर पूछा कि क्या वह वास्तव में सोचते हैं कि वह तिब्बत के बारे में बात करने के लिए तैयार थे। परम पावन ने उत्तर दिया ः
"मैं ऐसी आशा करता हूँ। उन्होंने सार्वजनिक रूप से चीनी संस्कृति में बौद्ध धर्म के मूल्य को स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त उनके मित्र कहते हैं कि वह और अधिक यथार्थवादी हैं। यद्यपि संगठन के अंदर जिसके वे प्रमुख हैं, अभी भी कई कट्टरपंथी हैं, तो हमें देखना होगा।"
उनके उत्तराधिकारी के संबंध में और क्या १५वें दलाई लामा होंगे, परम पावन ने दोहराया कि १९६९ में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि १५वें दलाई लामा होंगे अथवा नहीं, यह तिब्बतियों तथा अन्य संबंधित लोगों की इच्छाओं पर निर्भर करेगा। वे हँसे और उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ चीनी अधिकारी इस मुद्दे को लेकर उनकी तुलना में अधिक चिन्तित हैं। अंत में इस प्रश्न पर कि क्या वे तिब्बत में सच्ची स्वायत्तता को देखने की आशा रखते हैं, उन्होंने उत्तर दिया ः
"हाँ, मैं ऐसा सोचता हूँ। यदि इसमें शामिल लोग परिस्थिति का एक यथार्थवादी दृष्टिकोण लें तो यह शीघ्र और सरलता से परिवर्तित हो सकता है। यह पर्यावरण की क्षति जैसा नहीं है कि एक बार ऐसा हो गया तो उसका सुधार करने में कठिनाई होगी।"
बी बी सी के लिए परम पावन का साक्षात्कार करते हुए यलदा हाकिम ने पूछा कि क्या २१वीं सदी अलग थी। उन्होंने उससे कहा:
"२०वीं सदी के पूर्वार्ध से परिस्थितियाँ परिवर्तित हो गई हैं। १९९६ में मैं राजमाता से मिला, जिनके चेहरे से मैं अपने बाल्यकाल से ही परिचित था। चूँकि उन्होंने लगभग सम्पूर्ण २०वीं सदी देखी थी, मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि चीजों में सुधार हो रहा है अथवा नहीं। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि सुधार हो रहा है। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए जब वे छोटी थीं तो कोई भी मानव अधिकार या आत्मनिर्णय के अधिकार के विषय में बात नहीं करता था जैसे वे अब करते हैं।"
"२०वीं सदी के पूर्वार्ध में लोग बिना सोचे समझे युद्ध में जाने के लिए शामिल हो जाते थे, पर अब लोग वास्तव में युद्ध से तंग आ गए हैं। साथ ही २०वीं सदी में विज्ञान और अध्यात्म के प्रश्न अलग अलग माने जाते थे। अब वैज्ञानिक चित्त और भावनाओं की क्रियाओं में गहरी रुचि ले रहे हैं।"
सुश्री हाकिम ने पूछा कि क्या वे सोचते हैं कि हांगकांग में हो रहे लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को लेकर ब्रिटेन और अन्य देशों को चीन के साथ एक कड़ा रुख अपनाना चािहए था। उन्होंने उत्तर दियाः
"चीन आर्थिक रूप से बढ़ रहा है और विश्व अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में स्वीकृत किया जाना चाहता है। मुक्त विश्व का उत्तरदायित्व भी स्वतंत्रता और लोकतंत्र की मुख्य धारा में चीन को आकर्षित करना है।"
बर्मा में मुसलमानों पर बौद्धों द्वारा हमलों के विषय में, परम पावन ने जो पहले कहा था उसे दोहराया कि उन्होंने इस पर आंग सान सूकी के साथ चर्चा की है। उन्होंने बर्मा के बौद्धों से आग्रह किया है कि जब उन्हें क्रोध आए तो वे बुद्ध के मुख का स्मरण करें। उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में सुनिश्चित हैं कि यदि बुद्ध वहाँ होते तो वह इन मुसलमानों को सुरक्षा देते।
परम पावन, नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के विश्व शिखर सम्मेलन के ५वें सत्र जिसका विषय 'शांति जीना, युद्ध की रोकथाम' था, में सम्मिलित हुए। जब उन्होंने सभागार में प्रवेश किया तो संचालक एमिलियो करेली कह रहीं थीं िक हम अधिक संघर्ष, हथियारों के अधिक से अधिक व्यापार का सामना कर रहे हैं और प्रश्न िकया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को क्या करना चाहिए। परम पावन ने उत्तर दियाः
"जब मैं इन भयावह बातों के बारे में सुनता हूँ जो हो रही हैं तो मेरी कभी कभी इच्छा होती है कि मेरे पास कुछ चमत्कारी शक्ति होती जिनसे मैं इन मुसीबत खड़ी करने वालों को ले लेता और ब्रह्मांड के किसी दूर भाग में छोड़ आता, पर मेरे पास नहीं है। हमें पूछना होगा कि 'इस हिंसा को कौन निर्मित करता है?' हमें इसे रोकने के लिए कार्य करना होगा। हमें अपने चित्त को परिवर्तित करने के लिए, क्रोध का शमन करने के लिए रास्ते ढूँढने होंगे। यहाँ नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के बीच अन्य विशेषज्ञ हैं और मैं उनसे सुनना चाहूँगा।"
हेलफांड ने कहाः
"इन हथियारों का लगातार बना रहना मात्र ही खतरा है, परन्तु मनुष्यों ने उनका िनर्माण किया है, तो मनुष्य उन्हें अलग भी कर सकते हैं। हम सभी इस पर काम कर सकते हैं, चलो हम सभी ऐसा करने में सहायता करें।"
उनकी प्रस्तुति पर एक लंबे समय तक तालियों की गड़गड़ाहट गूँजती रही।
विज्ञान और विश्व मामलों पर पगवाश सम्मेलनों का प्रतिनिधित्व करते हुए जयनाथ धनपाल ने सभा को बताया कि उनका संगठन आइंस्टीन और बर्ट्रेंड रसेल द्वारा प्रेरित है। उन्होंने टिप्पणी की कि जहाँ जैविक और रासायनिक हथियारों को समाप्त कर दिया गया है, परमाणु हथियार बने हुए हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि समस्या का एक हिस्सा साधारण मानव सुरक्षा पर राष्ट्रीय सुरक्षा रखने का गलत विचार है। मानवता की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कोस्टा रिका और आइसलैंड ने सफल राष्ट्रों के रूप में रास्ता दिखा दिया है जिन्होंने एक स्थायी सेना नहीं बना रखी है और सैन्य-औद्योगिक परिसर बारे में आइजनहावर की भविष्य सूचक चेतावनी की ओर संकेत किया।
"वैज्ञानिकों का उत्तरदायित्व है कि उनका ज्ञान मानव जाति के लाभ के लिए उपयोग में लाया जाए उसके िवरोध में नहीं।"
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आई पी सी सी) की ओर से बोलते हुए राजेंद्र कुमार पचौरी ने श्रोताओं में सभी युवा लोगों का स्वागत करते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि आईपीसीसी का पाँचवां आकलन प्रकाशित किया जा चुका है। उन्होंने चेतावनी दीः
अपने समापन भाषण में परम पावन ने कहा िक जहाँ चिंता के लिए कई बातें हैं पर साथ ही आशा के लिए एक प्रबल आधार है। मध्याह्न में उन्होंने युवा नेताओं के लिए एक कार्यशाला में भाग लिया, जिसमें उन्होंने आंतरिक मूल्यों के लिए मानवीय आवश्यकता और उन्हें विकसित करने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने के िवषय में बताया। उन्होंने यूरोप में निवास कर रहे तिब्बतियों और तिब्बत समर्थकों से भी भेंट की। उन्होंने उन्हें बताया कि तिब्बती भावना को जीवंत बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण था। एक लंबे दिन की समप्ति के पूर्व उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के साथ एक बन्द दरवाजे की बैठक में भी भाग लिया।
शांति शिखर सम्मेलन जारी रहेगा और कल समाप्त होगा