मुंडगोड, कर्नाटक, भारत - २६ दिसंबर २०१४ - कल के शिक्षण सत्र के अंत में, परम पावन दलाई लामा ने गदेन शरचे महाविहार में अपना अस्थायी निवास स्थानांतरित कर दिया, जहाँ वे तीन रात्रि बिताएँगे। आज प्रातः वे जंगचे लौटे, जो लमरिम प्रवचनों का कार्यक्रम स्थल बना हुआ है। प्रवचन सिंहासन के समक्ष एक अर्ध वृत्ताकार में कुर्सियाँ रखी गई थीं। तवांग, अरुणाचल प्रदेश के नमज्ञल ल्हचे विहार के विहाराध्यक्ष गुरु रिनपोछे को इस अवसर को समझाने के लिए आमंत्रित किया गया।
उन्होंने कहा कि परम पावन के १९५९ में तिब्बत छोड़ने के पश्चात, उन्होंने ५५ वर्ष पूर्व तवांग में निर्वासन में अपना प्रथम प्रवचन दिया था। तवांग के लोगों ने इस घटना को चिह्नित करने के लिए उन्हें एक पुरस्कार देने का निश्चय किया था। रजत निर्मित ट्रॉफ़ी, जो एक कमल के रूप में बनी है जो परम पावन की करुणा का प्रतीक है, एक ग्लोब जो उनकी विश्व व्यापी गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करता है और जिसके शीर्ष भाग पर एक धर्म चक्र है।
अगले वक्ता कर्नाटक के पर्यटन मंत्री आर वी देशपांडे थे, जिन्होंने परम पावन के अच्छे कार्यों को स्वीकार िकया और उनसे बार बार कर्नाटक आने का अनुरोध किया।
निर्वाचित तिब्बती नेता, सिक्योंग, डॉ लोबसंग सांगे ने दोहराया कि परम पावन ने तवांग में निर्वासन में अपना पहला प्रवचन दिया था। उन्होंने आगे कहा कि उस समय से इन ५५ वर्षों में, वे अथक कार्य करते रहे हैं, सम्पूर्ण िवश्व में यात्रा कर शांति का संदेश फैलाते तथा नालंदा परंपरा के विचारों को साझा करते रहे हैं। उन्होंने परम पावन को आशा का प्रकाश स्तम्भ और तिब्बती जन मानस के हृदय व आत्मा के रूप में वर्णित किया। उन्होंने इस अवसर पर तिब्बती लोगों के प्रति व्यक्त समर्थन के िलए भारत की सरकार और लोगों और विशेषकर कर्नाटक के लोगों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित िकया।
कर्नाटक के गृह मंत्री ने परम पावन द्वारा प्रायः कहे कथन को उद्धृत करते हुए कि भारतीय गुरु थे जबकि तिब्बती चेले थे,
"पर" उन्होंने कहा,"परम पावन विश्व के गुरु हैं। हमें उनके आशीर्वाद की आवश्यकता है।"
प्रत्युत्तर हेतु अनुरोध किए जाने पर परम पावन ने कहाः
"आज हमारे बीच गदेन ठि रिनपोछे और शरपा छोजे और जंगचे छोजे, कर्नाटक के दो मंत्री और अरुणाचल प्रदेश से सम्मानित प्रतिनिधि हैं। मोन लोगों के तिब्बत के साथ घनिष्ठ आध्यात्मिक संबंध हैं। अरुणाचल सरकार तवांग में मेरे पहले प्रवचन की ५५वीं वर्षगांठ मनाना चाहती है। मैं उन्हें धन्यवाद देना चाहूँगा।"
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उन्होंने स्मरण किया कि वे पेचिश से पीड़ित थे, पर मेमांग पहुँचने पर वह ठीक होने लग गए थे। उन्होंने पी.एन. मेनन से मिलकर मिली राहत की बात की, जिनसे वे पहले बीजिंग में मिले थे, जिन्होंने देक्यी लिंखा, अंग्रेज़ों और बाद में ल्हासा में भारतीय मिशन में सेवा की थी। मेनन ने उन्हें बताया कि वह भारत सरकार की ओर से उनका स्वागत कर रहे थे।
बाद में नेहरू ने भारतीय संघ के राज्यों से पूछा यदि उनमें से कोई भूमि दे सके जिस पर उन सैकड़ों, हज़ारों को शरण दिया जा सके जिन्होंने परम पावन का निर्वासन में अनुपालन किया था। सबसे सकारात्मक उत्तर एस निजलिंगप्पा, उस समय मैसूर प्रेसीडेंसी कहलाई जाने वाली और जो अब कर्नाटक है, के मुख्य मंत्री से आया। परम पावन ने पुनः धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने टिप्पणी की, कि वह प्रारंभिक समर्थन अब किस प्रकार तुमकुर विश्वविद्यालय और सेरा जे विहार विश्वविद्यालय के बीच सहकारी उद्यमों के रूप में परिपक्व हो गया है।
एक छोटे से अंतराल के पश्चात सभागार में लौटने पर परम पावन ने श्रोताओं को बताया कि डगयब रिनपोछे, जिन्हें वे उस समय से जानते हैं जब वे एक छोटे बालक थे, ने परम पावन की दीर्घायु के िलए प्रार्थना प्रस्तुत करने की अनुमति माँगी थी। उन्होंने कहा:
"मेरी ही तरह वह दोलज्ञेल की तुष्टि करते थे, पर उन्होंने जो मैं कह रहा था वह बात सुनी, समझा और उस अभ्यास को छोड़ दिया। मेरे द्वारा िकए गए जांच पर उन्होंने िवश्वास किया। जब कोई मुझ पर विश्वास दिखाता है तो यह उचित है िक मुझे उस विश्वास का उत्तर देना चाहिए। इसलिए जब उन्होंने मेरी दीर्घायु के िलए प्रार्थना समर्पित करनी चाही, तो मैं सहमत हो गया।"
मंत्राचार्य ने उस बिंदु तक प्रार्थना का नेतृत्व किया जब गुरु एक प्रशस्ति पत्र और अनुरोध प्रस्तुत करता है। डगयब रिनपोछे ने डगयबपा और निर्वासन में तिब्बती संसद के सदस्य, गंग ल्हामो के साथ मिलकर निम्नलिखित घोषणा की।
"परम पावन अपने प्रेम व करुणा में सभी के प्रति निष्पक्ष हैं, वह शांति के समर्थक और इसी रूप में सम्मानित किए जाते हैं। हम तिब्बत के डगयब क्षेत्र के लोग, आपके प्रति श्रद्धा तथा भक्ति का भाव रखते हुए तथा कृतज्ञता के कारण आपकी दीर्घायु हेतु यह प्रार्थना समर्पित करते हैं। हमारा सौभाग्य है कि इसके िलए हमें आपकी सहमति प्राप्त है।"
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"आप पूर्ण योग्य गुरु हैं, ज्ञान से सम्पन्न जो आपने अपने शिक्षकों, रडेंग िरनपोछे, तगडग िरनपोछे, लिंग रिनपोछे और ठिजंग िरनपोछे के मार्गदर्शन में अध्ययन व चर्या द्वारा अर्जित की है। आप इन गुरुओं के शिष्य के रूप में उत्कृष्ट प्रमाणित हुए। आपने विगत दलाई लामाओं की भांति तिब्बत का उत्तरदायित्व ग्रहण िकया और आप तिब्बत की एकमात्र आशा और शरण बन गए हैं। आपने शिक्षाएँ और अभिषेक प्रदत्त की हैं तथा अपने शिष्यों में आत्मविश्वास और दृढ़ता की एक सशक्त भावना को प्रोत्साहित किया है। आपने स्पष्ट किया कि जे चोंखापा की रचनाओं के १८ खंड भारतीय पंडितों के महान कार्यों को समझने की ताली हैं। आपने स्पष्ट किया कि तिब्बती बौद्ध धर्म, नालंदा की विशुद्ध परंपरा के अंतर्गत आता है। मात्र आस्था पर उनकी देशनाओं को न ग्रहण करते हुए, आपने उनका विश्लेषण तथा परीक्षण किया जैसा बुद्ध ने सुझाया था। आज के विश्व के िलए आप एक अतुलनीय गुरु हैं।"
"आप ने अधिकांश बौद्ध शिक्षाओं के वैज्ञानिक चरित्र का प्रकटीकरण िकया है और सुझाया है कि बौद्ध विज्ञान और दर्शन सभी के लिए सुलभ होना चाहिए। यह बौद्ध धर्म के लिए एक नया दृष्टिकोण है। आप िवश्व भर में शांति और धार्मिक सद्भाव के लिए बैठकों और सम्मेलनों में भाग लेने हेतु यात्रा करते हैं।"
"यह ठिजंग िरनपोछे थे िजन्होंने कहा कि १४वें दलाई लामा के कार्यों को पिछले सभी दलाई लामाओं के कामों के सम देखा जाएगा। ३९३ वर्ष बीत चुके हैं जब डगयब के गुरु, प्रथम बार डग्यब में प्रकट हुए थे। वे केंद्रीय तिब्बत में अध्ययन करने गए और अभ्यास करने के लिए डगयब लौट आए। वे और उनके उत्तराधिकारियों को अतीत में दलाई लामाओं और तिब्बत की सरकार की सेवा करने का अवसर मिला है। हम पूर्ण रूप से दलाई लामा की दया का ऋण चुकाना चाहते हैं।"
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"दोलज्ञल के संबंध में, आप ने इसका भली भांति परीक्षण किया है तथा शिक्षक ठिजंग दोर्जे छंग से इस अभ्यास को रोकने के लिए सहमति प्राप्त कर ली है। आप के द्वारा इसकी इतनी अच्छी तरह से बात की जाँच करने के बाद, आपका परामर्श न मानना बुद्धिमानी का कार्य नहीं है। अतीत में, डगयब मगोन और बुगोन विहारों ने दोलज्ञल का अभ्यास नहीं किया था, पर ८० के दशक के बाद से प्रधान और गौण विहार इसकी तुष्टि और संस्कार करने लगे हैं।"
"निस्संदेह यह एक व्यक्तिगत चयन है कि दोलज्ञल का पालन िकया जाए अथवा नहीं। डगयब क्षेत्र में कुछ लोगों ने अपने छिपे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग कर इस प्रथा को बढ़ावा दिया है। यही लोग परम पावन दलाई लामा को शब्दों से तिरस्कृत करते हैं, जो तिब्बतियों के हृदयों को आहत करती है। डगयब क्षेत्र में ऐसे लोग हैं जो दोलज्ञल का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे पूर्ववर्ती लामाओं के पद चिह्नों पर चल रहे हैं, पर अपने शिक्षकों की प्रशंसा करने का यह उचित रूप नहीं है। परम पावन दलाई लामा का विरोध करते हुए पर अपने शिक्षकों का अनुपालन करना उनके लामाओं के पैर खींचने के समान है। डगयब में जो दोलज्ञल का अभ्यास बनाए रख और उसका प्रसार कर रहे हैं, वे केवल अपने बीच प्रचार प्रसार कर रहे हैं।"
जहाँ तक एक 'अंतर्राष्ट्रीय शुगदेन गठबंधन' स्थापित करने की बात है, यह अभूतपूर्व है कि मनुष्य एक रक्षक के छद्मवेश में एक आत्मा की रक्षा के लिए एक संगठन की स्थापना करे। यद्यपि मेरे पास कोई अधिकार नहीं है, पर तिब्बत के अंदर और बाहर ऐसे लोग हैं जो मुझ पर विश्वास करते हैं। मैं डगयब के लोगों के लिए, धर्म के िलए, हमारे समुदाय में शांति के लिए और इसलिए कि हमारे बीच सद्भाव रहे और उन विहारों में जहाँ ३००० से अधिक भिक्षु और भिक्षुणियाँ अध्ययन और अभ्यास कर रहे हैं, बात करना चाहूँगा।
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"वे जो दोलज्ञल की तुष्टि में लगे हैं, अपने कुकृत्यों के कारण सभी को कलंकित कर रहे हैं। वे दलाई लामा की वंशावली के प्रति कृतघ्न जान पड़ते हैं और विश्वसनीय लोगों को दुख व पीड़ा की ओर ले जा रहे हैं।
"हम यहाँ परम पावन की दीर्घायु की प्रार्थना के िलए एकत्रित हुए हैं। इस सभा में यह मुद्दा उठाने के िलए मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ। हमारी प्रार्थना एक छोटे से पुष्प की तरह है, पर फिर भी वह एक भेंट के रूप हो सकती है।"
"इस समय हम तिब्बती भौतिक रूप से शक्तिशाली लोग नहीं हैं, पर अपनी विशाल और व्यापक संस्कृति और हमारे पक्ष में सत्य की शक्ति के साथ हम आपकी सलाह का पालन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। कृपया अपनी करुणा में हमें धारण कर लीजिए। यह सभी तिब्बतियों, साथ ही डगयब के लोगों की चिंता है। हमारे रक्षक और शरण बनें। आप दीर्घायु हों।"
डगयब रिनपोछे, उनके साथी और रातो क्योंगला रिनपोछे ने परम पावन को बुद्ध के काय, वाक और चित्त के प्रतीक प्रस्तुत किए।
जनता को एक नई पुस्तक देते हुए परम पावन ने कहा, कि यदि हम कांग्यूर के १०० खंड और तेंग्यूर के २२० खंडों को देखें, तो पाएँगे कि वह दिखाता है कि इस समय जो हमारा चित्त है उसे बुद्ध के चित्त में कैसे परिवर्तित कर सकते हैं। और हम इसे केवल चित्त के आधार पर कर सकते हैं। इसमें नकारात्मक भावना को पहचान, उसे िकस प्रकार परिवर्तित किया जा सकता है शामिल है। उन्होंने सुझाव दिया कि, यदि हम इस तरह का मनोविज्ञान अपनी शिक्षा प्रणाली में शामिल कर लें, तो यह सहायक होगा।
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"आज मैं कांग्यूर और तेंग्यूर से लिए गए विज्ञान का संकलन के संक्षिप्त संस्करण का विमोचन कर रहा हूँ। अंग्रेजी, चीनी और हिन्दी में इन पुस्तकों का एक प्रारंभिक अनुवाद पहले से प्रारंभ हो चुका है और इसके मंगोलियाई, जर्मन, इतालवी और जापानी में अनुवाद करने की योजना जारी है। मैं आशा करता हूँ कि वे लाभकारी होंगी।"
परम पावन ने जिन आचार्यों ने शोध किया उनके प्रति और इस परियोजना में शामिल हर एक के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने आगे कहाः
"डगयब रिनपोछे और डगयब के लोगों ने यह भेंट दी है और रिनपोछे ने अपने भाषण में बातें बहुत स्पष्ट कर दी हैं। तिब्बत के अंदर और बाहर लोगों को तर्कसंगत और यथार्थवादी होना होगा न कि कुछ पुरानी प्रथाओं से चिपके रहना, केवल इसलिए कि आप को लगता है कि यह पुराना है। रिनपोछे ने सुझाया है कि जब हम तिब्बती वापस तिब्बत जाएँ तो मैं भी डगयब की यात्रा करूँ। मैं आशा करता हूँ कि मैं ऐसा कर पाऊँगा।"
"पर आप शरचे के गेशे क्या यह स्मरण रखते हैं कि एक बार मैंने कहा था कि यदि आप इस अभ्यास से चिपके रहें तो मैं शरचे दुबारा नहीं आऊँगा और मैं उसी समय फिर आऊँगा यदि आप इसे छोड़ दें। डगयब के लिए भी ऐसा ही है। मैं ऐसे स्थान पर क्यों जाऊँ जहाँ मेरा जीवन खतरे में है? अमेरिका और भारतीय सुरक्षा सेवाओं ने पुष्टि की है कि इस प्रकार का खतरा है। यदि डगयब और छमदो के लोग मेरे साथ अपना आध्यात्मिक बंधन नहीं रखते तो मैं वहाँ क्यों जाऊँ? यदि आप मुझे आमंत्रित करें, पर जो मैं कहता हूँ उसे सुनना न चाहें, तो मैं क्यों आऊँ?"
"दोलज्ञल समर्थक, जो संयुक्त राज्य अमेरिका तथा और कहीं मेरे विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं, मुझे 'झूठा दलाई लामा' कहकर बुलाते हैं। मुझे उनके द्वारा प्रयोग िकए जा रहे अपशब्दों से कोई आपत्ति नहीं है, मैं उनके लिए केवल करुणा का अनुभव करता हूँ। यह मेरी आदत है कि जब भी संभव हो, मैं गिरजाघरों, मंदिरों और मस्जिदों का दौरा करता हूँ और जब जाता हूँ तो सम्मान व्यक्त करता हूँ। प्रदर्शनकारियों ने हाल ही में मेरी एक मुसलमान खोपड़ी टोपी पहनी तस्वीर प्रदर्शित की और दावा िकया कि मैं एक मुसलमान हूँ। एक ओर तो ये लोग कहते हैं कि मैं एक झूठा दलाई लामा हूँ, पर दूसरी ओर ठिजंग रिनपोछे जब मंगोलिया का दौरा करते हैं तो मेरे नाम का लाभ उठाते हैं और ज़ोर देकर कहते हैं कि वह मेरे शिक्षक के अवतार हैं।"
"आप दोलज्ञल को संतुष्ट करना चाहते हैं या नहीं यह आप पर निर्भर है, परन्तु दोलज्ञल ने ५वें दलाई लामा को दी अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी। डगयब के लोगों, मैं आशा करता हूँ कि जो मैं कह रहा हूँ वह आप सुन रहे हैं। यदि आप मेरे साथ तर्क करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है पर यदि आप ऐसा करें तो आप अंतर्राष्ट्रीय गेलुगपा संघ की प्रकाशित पुस्तक में वर्णित ४०० वर्ष के इतिहास के प्रमाण के साथ भी तर्क कर रहे होंगे।"
परम पावन ने तत्पश्चात फाबोंखा के लमरिम 'विमुक्ति हस्त धारण' का पाठ जारी रखा जिसमें समझाया गया है कि िकस प्रकार गुरु को संतुष्ट कर उनसे याचना की जाए।
महान पथ क्रम पर प्रवचन कल जारी रहेंगे।