प्रातः के मध्य काल में परम पावन डच संसद की विदेश मामलों की समिति के सदस्यों और अन्य सांसदों के साथ एक बैठक के लिए गाड़ी द्वारा हेग गए। द्वार पर समिति के अध्यक्ष एंजलीन एइज्सिंक ने उनका स्वागत किया और उन्हें बैठकीय कक्ष में ले गई जहाँ समिति के सदस्य उनका अभिनन्दन करने और उनसे हाथ मिलाने के लिए उत्सुक थे। अपने परिचय में उन्होंने कहा:
"हम पाँच वर्षों के बाद पुनः यहाँ आपको पाकर बहुत प्रसन्न हैं। हम शांति और मानव अधिकार के लिए आपके कार्य की प्रशंसा करते हैं। मेरे साथ कई, फिर से नीदरलैंड में आप का स्वागत करते हैं। हमसे बात करने के लिए मैं आपको आमंत्रित करती हूँ।"
"संसद के सम्मानित सदस्य", परम पावन ने प्रारंभ किया। "जब से मैं एक बच्चा था तब से मैं लोकतांत्रिक प्रणाली का प्रशंसक रहा हूँ। तिब्बत के लिए राजनीतिक उत्तरदायित्व लेने से पहले, मेरे मित्रों में सफाई कर्मचारी और नौकर शामिल थे जिनसे इस या उस कर्मचारी की धमकी, शोषण और पक्षपात के बारे में गपशप सुना करता था। १९५१ में उत्तरदायित्व सँभालने के तुरंत बाद मैंने सुधार करने के उद्देश्य से एक समिति का गठन किया। पर चूँकि चीनी अपने स्वयं के परिवर्तन करना चाहते थे उन्होंने इसका अनुमोदन नहीं किया। १९५९ में भारत में आने के बाद मैंने तिब्बतियों के बीच में लोकतंत्र लागू करने के लिए अपने प्रयासों को नए सिरे से प्रारंभ किया। बाद में, २००१ में पहली बार एक राजनीतिक नेता के सीधे निर्वाचित होने के बाद मैं अर्द्ध सेवानिवृत्त हुआ और फिर, २०११ के चुनाव के बाद, मैं पूरी तरह से सेवानिवृत्त हो गया।"
"मेरा लोकतंत्र में विश्वास है। मैं मानता हूँ कि एक देश उनके नेताओं का नहीं अपितु वहाँ रहने वाले लोगों का है। नीदरलैंड डच लोगों का है, आप के बीच प्रतिनिधित्व कर रहे किसी पार्टी का नहीं।"
अपने आप को एक ७९ वर्षीय साधारण बौद्ध भिक्षु के रूप में बताते हुए उन्होंने कहा, कि वह ग्रह के ७ अरब मनुष्यों के समान अपने को केवल एक अन्य मनुष्य के रूप में देखते हैं, जिनमें से प्रत्येक को सिर्फ दूसरों के कल्याण के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि, हम सब अपनी माँ से पैदा हुए हैं और उसके स्नेह में बड़े हुए हैं जिसने हममें करुणा का बीज बोया। करुणा और मानव मूल्यों की इस भावना का पोषण वह अपनी पहली प्रतिबद्धता के रूप में वर्णित की। उन्होंने कहा कि उनकी दूसरी प्रतिबद्धता अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना है, उसी तरह जैसे यह सैकड़ों वर्ष से भारत में समृद्ध रही है। जहाँ तक उनकी तीसरी प्रतिबद्धता का प्रश्न है, उन्होंने कहा कि वह एक तिब्बती हैं और ऐसे, जिन पर तिब्बतियों ने अपना विश्वास रखा है।
"मैं अनुभव करता हूँ कि तिब्बत की शांति और अहिंसा की संस्कृति मानवता के लिए बहुत सहायक और मूल्यवान है। मैं इसे न केवल तिब्बत के लोगों के लिए, पर बड़ी संख्या में चीनी बौद्ध जो तिब्बती बौद्ध धर्म में अपनी रुचि को जगा रहे हैं, उनके लिए संरक्षित करने हेतु समर्पित हूँ।"
"इस देश और यूरोपीय संघ के लोगों ने दशकों से तिब्बत और उसके लोगों के लिए बड़ी चिंता जताई है। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के साथ साथ आप ने उदार भाव से हमें समर्थन दिया है और मैं आपको धन्यवाद देना चाहूँगा।"
सभा में उठाया गया प्रथम प्रश्न चीनी अधिकारियों के साथ संवाद के नवीकरण की संभावना के विषय को लेकर था। परम पावन ने टिप्पणी की, कि तिब्बतियों और चीनियों के संबंध ३००० वर्षों से हैं; कभी कभी वे सुखपूर्ण रहे हैं और कभी कभी कम। १९५० दशक के प्रारंभ में उन्होंने तिब्बती साम्यवादियों के साथ अध्यक्ष माओ से भेंट की, जिनकी सोच थी कि चीनी साम्यवादी नेतृत्व में वे एक बेहतर तिब्बत का निर्माण कर सकते थे। पर १९५६ या ५७ के पश्चात इन तिब्बती साम्यवादियों को हटा दिया गया और पार्टी और अधिक वामपंथी और कठोर हो गई।
उन्होंने कहा, कि "आज वह नए नेता, शी जिनपिंग अधिक व्यावहारिक और यथार्थवादी प्रतीत होते हैं।" मैं यही कह सकता हूँ कि इन वर्षों में चीनी साम्यवादी पार्टी ने परिवर्तित होती वास्तविकता के अनुसार कार्य करने की क्षमता दिखायी है।"
एक अन्य प्रश्नकर्ता ने पूछा कि वह और उसके सहयोगी तिब्बत के लिए क्या कर सकते हैं, और परम पावन ने वह बात दोहरायी जो उन्होंने कहीं और कही थी, कि तिब्बत के प्राकृतिक वातावरण के लिए और मानव अधिकारों के सतत उल्लंघन के लिए चिंता व्यक्त करना महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी उल्लेख िकया कि लियू ज़ियाबो को उनके समर्थन की आवश्यकता है। यह पूछे जाने पर कि तिब्बत में जारी आत्म-दाह क्या विरोध, क्रोध या निराशा की अभिव्यक्ति है, परम पावन ने उत्तर दिया: "निराशा"। उन्होंने कहा:
"हम तिब्बती अपनी संस्कृति से प्यार करते हैं जैसा मैं मानता हूँ कि आप करते हैं, पर जिस नियंत्रण और उत्पीड़न में वह आज है, वह कई तिब्बतियों को इस सीमा तक प्रभावित कर रहा है कि वे अपने प्राणों की आहुति के लिए तैयार हैं। यह एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है क्योंकि चीनी कट्टरपंथी, ये कठोर कदम लेने के लिए उकसाने का आरोप हम पर डाल रहे हैं, उसी तरह जैसे २००८ के विरोध प्रदर्शन के लिए उन्होंने हमें दोषी ठहराया था।"
एक समिति का सदस्य जानना चाहता था कि कौन सी वस्तु परम पावन को आगे बढ़ते रहने की ऊर्जा देती है और उन्होंने उत्तर दिया:
"मेरे पास तिब्बत के लिए बात करने की स्वतंत्रता है। तिब्बतियों की भावना स्वदेश में कम नहीं हुई है और हमारे मध्यम मार्गी दृष्टिकोण के लिए हमें उनका समर्थन प्राप्त है। मेरे विचार से स्थितियाँ परिवर्तित हो रही है। चीन को बढते लोकतंत्र और स्वतंत्रता के प्रति, विश्व की प्रवृत्ति का अनुसरण करना होगा।"
सदस्यों के बीच से जब एक युवा पिता ने पूछा कि वह अपने छह महीने बेटे के साथ किस प्रकार के मूल्यों का साझा करने के बारे में सोचे। परम पावन ने सबसे पहले कहा, कि उन्हें पितृत्व होने का कोई अनुभव नहीं है, पर तनिक सोचने के बाद उन्होंने कहा:
"आप को अपने युवा बेटे के पालन पोषण करने का महान अवसर प्राप्त हुए है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि बच्चों के विकास में शारीरिक स्पर्श एक महत्त्वपूर्ण कारक है, विशेषकर मस्तिष्क के विकास में। यह महत्त्वपूर्ण है कि आप उसके साथ अपना प्यार और स्नेह बाँटे। मेरे अपने संबंध में मेरी माँ वास्तव में सौहार्दता से भरी हुई थी, हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पर उनका हम सब के साथ बड़ा ही करुणाशील व्यवहार था। करुणा की वह मेरी पहली शिक्षिका थी।"
एंजलीन एइज्सिंक ने सत्र को संपन्न किया:
"हमारी संसद में अपनी प्रज्ञा लाने के लिए धन्यवाद।"
संसद के बाहर दालान में धूप में पत्रकार और स्कूली बच्चे परम पावन की एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे। वह उनके बीच हँसते, अभिवादन का आदान प्रदान करते और हाथ मिलाते हुए जा रहे थे।
मध्याह्न के भोजन के बाद परम पावन ने, इरास्मस विश्वविद्यालय, शिक्षा का केन्द्र, जो महान डच मानवतावादी के नाम पर है, में 'एजुकेशन ऑफ द हार्ट' विषय पर एक संगोष्ठी में भाग लिया। परम पावन के पुराने मित्र, पूर्व डच प्रधानमंत्री रुड लब्बर्स ने उनका परिचय कराया। संगीतकारों के एक बैंड ने परम पावन की यात्रा के लिए विशेष रूप से रचित संगीत का वादन किया। संचालक डैनियल सीगल ने ६०० उपस्थित लोगों को समझाया कि 'एजुकेशन ऑफ द हार्ट' समकालीन शिक्षा में आंतरिक मूल्यों, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता लाने के लिए परम पावन की पुस्तक 'बियोंड रिलिजियन' से प्रेरित है। उसने परम पावन से पूछा कि विश्व भर की यात्राओं के दौरान उन्होंने कौन सा चिन्तन एकत्रित किया है, और उन्होंने कहा:
"प्रथमतः मेरे लिए आपके साथ इस संगोष्ठी में भाग लेना मेरे लिए महान सम्मान की बात है। इन युवा लोगों को यहाँ देखकर मुझे विशेष रूप से प्रसन्नता हो रही है, क्योंकि युवाओं से मिलकर मैं भी युवा अनुभव करता हूँ। साथ ही यही लोग हैं जो भविष्य की हमारी आशाओं को साकार करते हैं। हम में से यहाँ जो ६० वर्ष से अधिक आयु के हैं, हम २०वीं सदी के हैं, एक ऐसा समय जो जा चुका है। हम इससे सीख सकते हैं, पर हम इसे बदल नहीं सकते। पर भविष्य एक उन्मुक्त स्थान की तरह है, जो क्षमताओं से पूर्ण है और जो यहाँ अथवा वहाँ जा सकता है। आप युवा भाई और बहनें जो २१वीं सदी के हैं, आपके पास भविष्य को आकार और एक बेहतर विश्व बनाने का अवसर है।"
"हर अवसर पर बल के प्रयोग के २०वीं सदी के उदाहरण का अनुसरण न करें। जब समस्याएँ उत्पन्न हों तो अन्य तरीकों से उनके समाधान का प्रयास करें। बल और हिंसा का प्रयोग आज की तारीख से बाहर है। सबसे पहले इस संदर्भ में सोचें कि सम्पूर्ण मानवता के लिए सबसे अधिक हितकारी क्या होगा। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था, मानवता को एक परिवार के रूप में देखने की दिशा में हमें धीरे धीरे ले जा रही है। हम आज इतने अधिक अन्योन्याश्रित हैं जैसे पहले कभी नहीं थे, पर फिर भी हमारा सोचना 'हम' और 'उन' के संदर्भ में है, जिससे हमारा दृष्टिकोण अवास्तविक लगता है और उसके असफल होने की संभावना है। इस बीच दुनिया बहुत अधिक हिस्सों में, धनवानों और निर्धनों के बीच एक बड़ी खाई है।"
"हमें मानवता को नैतिक सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करने के सशक्त प्रयासों की आवश्यकता है, परन्तु यदि वे धार्मिक आस्था के आधार पर हों, तो हमारे समक्ष जटिलताएँ आ सकती है। हर धार्मिक परंपरा की सीमाएँ होती है जिसका अर्थ है कि, किसी काे प्रति भी सार्वभौमिक आकर्षण नहीं है, जबकि ७ अरब जनसंख्या में से १ अरब लोगों की धर्म में कोई रुचि नहीं है। समाधान यह है कि शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को सम्मिलित किया जाए।"
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तीन युवतियों द्वारा एक रमणीय संगीत अन्तराल के बाद प्रश्नोत्तर हुए। परम पावन ने ज़ोर देते हुए कहा कि करुणा के आधार पर कार्य करने के लिए साहस और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। एक महान भारतीय बौद्ध आचार्य के कथन को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, कि यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि वास्तविक रूप से आकलन किया जाए, कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं। यदि आप जिस चुनौती का सामना कर रहे हैं उस पर काबू पा सकते हैं, तो उसके विषय में चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं, पर यदि आप यह निश्चय कर लें कि आप उस पर काबू नहीं पा सकते, तो चिन्ता करने से कुछ नहीं हो सकता। यह दृष्टिकोण व्यावहारिक और यथार्थवादी दोनों है।
विश्वविद्यालय के मैदान में परम पावन ने कई बच्चों के साथ वृक्षारोपण में भाग लिया। उसके चारों ओर एक रेशमी दुपट्टे को डालते हुए उन्होंने यह कामना की, कि जैसे जैसे वह वृक्ष और ऊँचा और मजबूत रूप से बढ़े, करुणा के बीज दुनिया में व्यापक रूप से विकसित हों।
कल, परम पावन फ्रैंकफर्ट, जर्मनी की यात्रा कर रहे हैं जहाँ वे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता और करुणा पर सार्वजनिक व्याख्यान देंगे।