मुंडगोड, कर्नाटक, भारत - २७ दिसंबर २०१४ - आज तड़के भोर होते ही जब परम पावन दलाई लामा गदेन शरचे महाविहार से आए तो हज़ारों भिक्षु, भिक्षुणियाँ, तलघर, मंदिर, उसके बरामदों और शामियाने के नीचे दालानों में बैठे साधारण लोग उन्हें सुनने हेतु तत्पर थे।
ज़ामर पंडित के बोधिपथ क्रम के भाष्य को लेते हुए, चार वर्गीय संघ के संदर्भ ने परम पावन को यह समझाने के लिए प्रेरित किया कि इसमें पूर्ण दीक्षित भिक्षु व भिक्षुणियाँ साथ ही उपासक व उपासिकाएँ शािमल हैं। चूँकि बुद्ध ने भिक्षु व भिक्षुणियों को पूर्ण दीक्षा दी इसलिए चार वर्गीय संघ में भिक्षुणियों को भी शामिल करना चाहिए। परन्तु जब मूलसर्वास्तिवादिन परंपरा के अनुसार विनय की चर्या तिब्बत में लाई गयी तो केवल भिक्षुओं को दीक्षित िकया गया। इसका कारण था कि भारत से आमंत्रित करने हेतु कोई मूलसर्वास्तिवादिन भिक्षुणी नहीं थी। धर्मगुप्त परम्परा के अनुसार भिक्षुणी दीक्षा चीन तथा और वियतनाम में मौजूद है। परम पावन ने कहा चार वर्गीय संघ के एक अंग के रूप में भिक्षुणियों की दीक्षा सुनिश्चित करने पर चर्चा और निश्चित करने के िलए एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक बुलाने हेतु प्रयास हुए हैं तथा जारी हैं।
आस्था के संदर्भ में परम पावन ने लाहौल और स्पीति के मार्ग पर लोगों से िमलने का उल्लेख किया। परम पावन ने उनसे पूछा कि क्या वे बौद्ध थे और उन्होंने कहा, हाँ। उन्होंने पूछा कि बौद्ध धर्म किसके िवषय में है, और उन्होंने कहा शरण गमन। उन्होंने पूछा कि किसमें शरण लेना? और उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते थे। उन्होंने पूछा, "बुद्ध है क्या" और उन्हें पता न था। जब उन्होंने पूछा कि क्या बुद्ध और ब्रह्मा एक ही थे, उन्होंने कहा हाँ। परम पावन ने सुझाया कि बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आपकी आस्था तर्क तथा समझ पर आधारित हो। इसलिए शरण लेना कि आपके दादा दादी ऐसा कर रहे हैं, पर्याप्त नहीं है। अगर ऐसा होता तो, हमें कांग्यूर और तेंग्यूर के ३०० से अधिक संस्करणों की कोई आवश्यकता न होती।
"यदि आप यह नहीं जानते कि प्रबुद्धता क्या है, तो आप बोधिचित्त का विकास कैसे कर सकते हैं," उन्होंने पूछा। वे प्रज्ञा द्वारा प्रबुद्धता पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जबकि वे सत्वों पर बोधिचित्त द्वारा ध्यान केंद्रित करते हैं।"
"चित्त को प्रशिक्षित करने के लिए हमें चार आर्य सत्य से प्रत्येक की चार आकारों के बीच सूक्ष्म अनित्यता और दुख का परीक्षण करने की आवश्यकता है। मैं प्रत्येक दिन इन १६ आकारों का विश्लेषण करता हूँ। मैं बोधिचित्त पर भी चिंतन करता हूँ और अपनी ध्यान साधना में प्रबुद्धता के ३७ बोध्यंगों पर ध्यान लगाता हूँ।"
परम पावन ने विभिन्न लमरिम परम्पराओं द्वारा अपनाए गए विभिन्न दृष्टिकोणों के विषय में बात की। गेशे शरावा का ग्रंथ 'मुक्ति रत्नालंकार' बुद्ध प्रकृति द्वारा प्रारंभ होता है। एक और दृष्टिकोण जो एक व्यापक, दूरदर्शी व्यवहार को जन्म देता है, वह परात्मसम परिवर्तन के विचार से प्रारंभ करना है।
जैसे जैसे ग्रंथ मानव जीवन के मूल्य और इसे सार्थक बनाने की आवश्यकता से आगे जाते हैं, वे अनित्यता व मृत्यु की चर्चा करते हैं, और ये दोनों स्थूल स्तर पर होते हैं। नागार्जुन इस बात पर बल देते हैं कि चित्त के प्रशिक्षण में अनित्यता तथा नैरात्म्यता की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, अतः मृत्यु पर चिंतन हताश होने का कोई आधार नहीं है।
मृत्यु के संबंध में परम पावन ने 'थुगदम' घटना के विषय पर बात की, जो बौद्ध समझाते हैं कि जब नैदानिक मृत्यु के बाद भी सूक्ष्म चेतना बनी रहती है तो क्या होता है। उन्होंने हाल ही में देखी एक मंगोलियाई की तस्वीर का उल्लेख किया जिसने यह २५ दिनों के िलए किया था। उन्होंने कहा कि २० शताब्दी के मध्य में वैज्ञानिकों ने चित्त को मस्तिष्क की एक स्वतंत्र इकाई के रूप में नहीं पहचाना था। अब ऐसे वैज्ञानिक हैं जो ऐसी पहचान कर रहे हैं। और अब प्रमाण हैं कि विचार का मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है, जो कुछ समय पूर्व तक असंभव माना जाता था। उन्होंने दोहराया कि प्राचीन भारतीय साहित्य चित्त के विशाल ज्ञान का एक स्रोत है, ज्ञान जिसका २१वीं सदी में विश्व पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। वह आस्था से अधिक युक्ति और शिक्षा पर निर्भर करेगा।
मृत्यु के विषय में चर्चा बनाए रखते हुए, परम पावन ने इंगित िकया कि उनकी महान उपलब्धियों के बावजूद समय के साथ चीन की महान दीवार और ताज महल के निर्माण से संबंधित सभी लोग काल ग्रस्त हो गए। बौद्ध परिप्रेक्ष्य से जो महत्वपूर्ण है वह सूक्ष्म चित्त है जो हमारी मृत्यु के बाद भी निरंतर रहता है। यही हमारे कर्म के चिह्नों के आधार हैं।
मृत्यु पर चिंतन हमें यह सोच देता है कि हमारे जीवन में क्या बहुमूल्य है। बुद्ध ने एक गृहस्थ के जीवन को कमियों से पूर्ण बताया। सबसे पहले बचपन और शिक्षा, फिर आपको एक नौकरी ढूँढने की, विवाह करने, बच्चों को जन्म देने, और निर्णय करने कि आप को कम संख्या अथवा अधिक बच्चों की आवश्यकता है। फिर आपको उनका पालन पोषण करना होगा और पढ़ाना होगा। उसके बाद उनकी नौकरी खोजने की चिंता इत्यादि। यह चिंता तथा असहजता की याचिका है। पर दूसरी ओर यदि आप धर्माभ्यास में लगे रहें तो आप के पास मुक्ति प्राप्त करने की संभावना है। बुद्ध ने दिखाया कि प्रबुद्धता प्राप्त करने के लिए आपको कठोर परिश्रम करना पड़ेगा।
मृत्यु पर चिंतन में तीन आधारभूत बातें शामिल है: कि मृत्यु अपरिहार्य है, उसका समय अनिश्चित है और जब यह आती है तो केवल आध्यात्मिक अनुभव ही सहायक होगा। ये नौ कारणों को जन्म देती हैं: मृत्यु निश्चित रूप से आएगी, हमारे जीवनकाल को दीर्घ नहीं िकया जा सकता और अब जब हम जीवित हैं तो भी आध्यात्मिक साधना के लिए बहुत कम समय है। हमारी मृत्यु कब होगी यह अनिश्चित है, क्योंकि इस संसार में जीवन अवधि अनिश्चित है, मृत्यु के अनेक कारण हैं, जबकि जीवन के कारण बहुत कम हैं और शरीर अत्यंत नाज़ुक है। अंत में मित्र सहायता नहीं करेंगे, हमारे संसाधन सहायता नहीं करेंगे और यहाँ तक कि हमारा शरीर भी सहायक न होगा। इन सब के बावजूद, जब हम मरणासन्न होते हैं अथवा किसी मरणासन्न व्यक्ति को देखते हैं, हम यह अनुभव करने में असफल होते हैं कि यह हमारे साथ भी होगा। हम भी मर जाएँगे।
परम पावन ने इसकी तुलना जलवायु परिवर्तन के परिणामों के प्रति हमारे दृष्टिकोण से की। जैसे जैसे मौसम में और अधिक अति होती है, ग्लेशियर पिघलते हैं, समुद्र के स्तर में वृद्धि होती है और वे बड़े शहरों को निमग्न करने की धमकी देते हैं। पर इसके बावजूद लोग युद्ध और संघर्ष में संलग्न होते हैं। यदि वे और अधिक मैत्री भाव रखें और अधिक सहयोग प्रदान करें तो संभवतः इस प्रकार की आपदाओं से बचा जा सकता है।
पहले ज़ामर पंडित का ग्रंथ और उसके पश्चात फाबोंखा के 'विमुक्ति हस्त धारण' का पाठ करते हुए परम पावन ने मृत्यु शैय्या का वर्णन िकया। "आपके लिहाफ से दुर्गन्ध आ रही है। आपके संबंधी चिंतित, असहाय से आपको घेरे खड़े हैं। आपकी वास्तविक मृत्यु के उपरांत, इसकी कोई सुनिश्चितता नहीं कि आप फिर कहाँ जन्म लेंगे, सब कुछ अनिश्चित है। और एक बार मृत्यु हो जाए तो आपके शरीर को हटा कर उसे नष्ट कर दिया जाएगा।"
उन्होंने जे चोंखापा की चिंता का उल्लेख किया कि बोधिचित्त और बुद्धत्व का परिचय जल्दी ही करवाया जाए ताकि लोगों को सम्पूर्ण मार्ग का ज्ञान हो सके। उन्होंने अनुभव िकया कि आध्यात्मिक अभ्यास के प्रारंभ तथा बोधिचित्त के विकास के बीच देरी एक खोया अवसर है, जबकि यह वास्तव में मार्ग का केन्द्र है।
"धर्म का अभ्यास अपने घर में एक छोटे सा कमरा बनाकर उसके अंदर सीधे तन कर बैठना नहीं है। इसका अर्थ, आप जहाँ भी हों, अपने चित्त पर दृष्टि बनाए रखना है। इस प्रकार की जागरूकता महत्वपूर्ण है क्योंकि फिर आप जहाँ कहीं भी हों, यह जानते हैं कि क्या किया जाना चािहए और क्या नहीं। धर्म का अर्थ कहीं और जाना नहीं है, यह आप जहाँ भी हों, ठीक वहीं अपने चित्त को देखना है।"
वे व्यक्ति जिनके चित्त विचलित हैं, उनके लिए, विश्लेषण की शक्ति उन्हें उस वस्तु पर स्थिर रहने के लिए प्रेरित कर सकती है क्योंकि उनकी इस ओर रुचि है। यह बिखरे चित्त को केंद्रित करने में सहायक होता है। कुछ लोग एकाग्रता के प्रशिक्षण में कठिनाई का अनुभव करते हैं, क्योंकि चित्त अनावश्यक रूप से संकुचित सा अनुभव करता है। उनके लिए विश्लेषण सहायक हो सकता है।
"हमें प्रारंभ से ही दूरदर्शी होने की आवश्यकता है। जैसा कि मैंने पहले कहा था करुणा सत्वों की ओर निर्देशित होती है, जबकि प्रज्ञा बुद्धत्व की ओर। यदि आप संकीर्णता का अनुभव करते हैं तो यह तनाव और अवसाद का कारण बन सकता है। बेहतर यह होगा कि विश्राम किया जाए और तनाव मुक्त हों। धर्म का अभ्यास अपने उद्वेलित करने वाली भावनाओं से निपटने के बारे में है। अष्ट लोक धर्मों में परित्याग करने की सबसे कठिन वस्तु अच्छी प्रतिष्ठा की कामना है। आप एक अच्छे ध्यानी और सिद्ध कहलाना चाहते हैं। मृत्यु के प्रति जागरूकता न बनाए रखने की कमियों में से एक यह है।"
कल, स्थानीय तिब्बती परम पावन की दीर्घायु के िलए प्रार्थना करेंगे। परम पावन अपना प्रवचन जारी रखेंगे यद्यपि वे दोनों ही ग्रंथों को समाप्त करने की आशा नहीं रखते, पर उन्होंने पहले ही अगले वर्ष उन्हें पूरा करने का वादा किया है।