नई दिल्ली, भारत - २२ सितंबर २०१४ - आज प्रातः सांसद राजीव चंद्रशेखर और अशोक विश्वविद्यालय द्वारा परम पावन दलाई लामा को इंडिया हैबिटेट सेंटर में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। कर्नाटक और बेंगलुरु का प्रतिनिधित्व करने वाले श्री चंद्रशेखर भारतीय संसद के ऊपरी सदन, राज्यसभा के एक स्वतंत्र सदस्य हैं। अशोक विश्वविद्यालय पूरी तरह से आवासीय विश्वविद्यालय है, जिसके संस्थापकों का मानना है कि शिक्षा समग्र और उदार होनी चाहिए। अपने परिचय में श्री चंद्रशेखर ने परम पावन की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो शांति और सहअस्तित्व का समर्थन करते हैं।
"प्रिय भाइयों और बहनों", परम पावन ने प्रारंभ किया, "हम वही हैं, ७ अरब मनुष्य, भाई और बहन, हर व्यक्ति एक मां से पैदा हुआ और एक दूसरे पर निर्भर होकर जीवित।" अतीत में लोग आत्मनिर्भर थे तथा अकेले समुदायों में रह पाते थे पर आज हम बहुत अधिक अन्योन्याश्रित हैं। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक अर्थव्यवस्था चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रही हैं, जो हम सब को प्रभावित करती हैं, जिनका सामना हमें मिलकर एक साथ करना है।
अतः "'हम' और 'वह' के रूप में सोचना बिलकुल व्यर्थ है। मैं अपने आप को ७ अरब दूसरों के बीच सिर्फ एक मनुष्य के रूप में देखता हूँ। यदि मैं स्वयं को दूसरों से भिन्न या कोई विशेष रूप में देखूँ तो यह हमारे बीच एक दीवार खड़ी करता है। हम सभी सुखी जीवन जीना चाहते हैं, अपने चारों ओर मित्र इकट्ठा करना चाहते हैं और मैत्री विश्वास, ईमानदारी और खुलेपन पर आधारित है। यह मनुष्य के एक होने का एक और पक्ष है। यदि हम दूसरों को हराते हैं तो हमारा भी अहित होता है, यदि अन्य सफल होते हैं तो हम भी लाभान्वित होते हैं।"
उन्होंने बताया कि किस तरह धार्मिक परंपराएँ एक ही लक्ष्य के लिए अलग अलग दृष्टिकोण की रूपरेखा देते हैं। आस्तिक परम्पराएँ, सृजनकर्ता ईश्वर में विश्वास करती हैं, जबकि नास्तिक जैसे कि सांख्य, जैन और बौद्ध धर्म स्व सृजन में विश्वास करते हैं। यद्यपि सांख्य तथा जैन, शरीर और मन से अलग एक आत्मा में विश्वास करते हैं पर बौद्धों का कहना है कि ऐसी कोई आत्मा नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इसका अर्थ यह नहीं कि आत्मा का अस्तित्व होता ही नहीं, पर उसका अस्तित्व अन्य कारकों पर निर्भर होकर होता है।
परम पावन ने उल्लेख िकया कि जहाँ कुछ लोग यह कहते हैं कि ईश्वर की सेवा का श्रेष्ठ उपाय दूसरों की सेवा करना है, यह भी स्पष्ट है कि दूसरों को अहित न करते हुए उनकी सहायता की जाए, उनके साथ प्रेम और करुणा का व्यवहार स्थायी विश्वास और मैत्री को जन्म देता है। मित्र, जो धन तथा शक्ति की ओर आकर्षित होते हैं वे समृद्िध और शक्ति के केवल अल्पकालिक मित्र हो पाते हैं।