बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - ३० दिसम्बर २० - आज प्रातः नए योग्यता प्राप्त गेशे उम्मीदवारों को प्रमाण पत्र देने का कार्य पूरा हुआ और प्रमाणित उम्मीदवारों में से कइयों ने परम पावन के आसन को अपने मस्तक से स्पर्श करते हुए अपना सम्मान प्रकट किया और समूहों में उनके साथ तसवीर खिंचवाई।
परम पावन ने अपना प्रवचन आचार्य धर्मत्रेय के 'मित्र वर्ग' से एक छंद को उद्धृत करते हुए प्रारंभ किया:
बुद्ध अन्य सत्व के पाप को धोते नहीं,
न ही वे अपने हाथों से दुःखों को दूर करते हैं।
वे दूसरों के चित्त में उनकी समझ संचारित नहीं कर सकते
वे धर्मता सत्य की देशना देकर सत्वों का करते हैं मुक्ति।।
"सत्वों की सहायता की प्रेरणा रखते हुए, बुद्ध मार्ग को प्रकट करते हैं।" परम पावन ने व्याख्या की "हमारे पास तिब्बती भाषा में अनूदित कांग्युर और तेंग्युर, दो संग्रह हैं जिनमें निर्देश निहित हैं जो संकेत देते हैं कि किसे अपनाना है और किसका परित्याग करना है। फिर हमारे पास तेंग्युर में नागार्जुन, उनके सहयोगियों और अनुयायियों की रचनाएँ हैं, जो चित्त को अनुशासित करने के उपायों को स्पष्ट करते हैं।
"तिब्बती और भारतीय आचार्यों की शैली भिन्न थी। अतीश ने राजा जंगछुब के अनुरोध पर सामान्य रूप से तिब्बतियों के हित के लिए 'बोधि पथ प्रदीप' लिखा। उस समय तक उन्होंने बहुत अध्ययन नहीं किया था इसलिए उन्होंने बहुत सुलभ ढंग से इसे लिखा था। परन्तु अन्य भारतीय आचार्य जो भारतीय पाठकों के लिए लिख रहे थे, वे एक अन्य बड़े बौद्धिक चुनौती के संदर्भ में कार्य कर रहे थे। यह 'शांतिदेव' की 'बोधिसत्वचर्यावतार' से भी स्पष्ट है जो ९वें अध्याय में, माध्यमक दृष्टिकोण पर बल देता है, दूसरों का खंडन करता है और आलोचना का उत्तर देता है।"
लमरिम ग्रंथंो का कथन है कि गुरु पर निर्भर रहना आपको प्रबुद्धता के निकट लाता है, पर परम पावन ने टिप्पणी की कि यह उनके लिए इतना सहायक नहीं है जिनकी आध्यात्मक साधना में कम रुचि है। नागार्जुन ने कहा है कि सम्पूर्ण बौद्ध शिक्षण दो सत्यों पर आधारित है ः सांवृतिक और पारमार्थिक सत्य। चन्द्रकीर्ति के मध्यमकावतार का एक छन्द इसकी स्पष्ट व्याख्या करता है ः
हंसों का राजा झुंड से पहले उड़े
सांवृतिक और पारमार्थिक सत्य के दो पंख फैलाए।
पुण्य की वायु से प्रेरित
वह पार करे सागर को और पहँुचे अग्रिम तट और प्रबुद्धता के गुणों तक।।
वस्तुएँ एक सच्चा और स्वतंत्र अस्तित्व लिए प्रतीत होती है, और ऐसे लोग हैं जो दार्शनिक रूप से इस पर जोर देने का प्रयास करते हैं। पर जहाँ अंतरिक्ष के सभी सत्व दुख नहीं चाहते, तो अज्ञानता और भ्रांति को सशक्त करना स्वयं के लिए और अधिक मुसीबत को आमंत्रण देने के समान है। सत्व भ्रमित हैं। वे नहीं पहचान पाते कि पीड़ा क्या है या इस पर किस तरह काबू पाया जा सकता है। यह देखकर बुद्ध करुणा से भर गए थे।
परम पावन ने कहा बौद्ध मार्ग दो सत्य पर आधारित होते हुए अनूठा है। जे चोंखापा इस की सराहना अपने 'मार्ग के प्रमुख तीन अंग' में करते हैं:
जब ये दो प्रतीति साथ साथ और समवर्ती हों,
जब अचूक प्रतीत्यसमुत्पाद के दृष्टि मात्र से।
कुछ ज्ञान आता है जो मानसिक ग्राह्यता के सभी साधनों को पूर्णतया नष्ट कर देता है,
उस समय गहन दृष्टिकोण का विश्लेषण पूर्ण होता है।।
लमरिम ग्रंथ की ओर पढ़ने के लिए मुड़ते हुए परम पावन ने पंछेन लोबसंग येशे के 'द्रुत मार्ग' में से मध्यम स्तर के प्राणियों का अनुभाग समाप्त किया। उन्होंने कहा कि एक भिक्षु के चीवर धारण कर लेना पर्याप्त नहीं है, हमें भवचक्र से मुक्त होने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है।
"गृहस्थ का जीवन छोड़ कर और ब्रह्मचारी हो, आपको देखने की आवश्यकता है कि बुद्ध ने किस तरह धर्म का अभ्यास किया। इस संबंध में हम बोधगया में लोगों द्वारा बुद्ध के क्षीण, जो कि उनकी कठिन तप का परिणाम था, के रूप के चित्र की प्रतियों को बेचता हुआ पाते हैं। मूल प्रतिमा लाहौर में संग्रहालय में है। पोताला में हमारे पास इसका एक चित्र होता था और एक बार जब मैं जापान की यात्रा पर था तो लाहौर संग्रहालय की कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी में इसे शामिल किया गया था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है जिस सरल मार्ग को हम लेने की इच्छा रखते हैं उसके विपरीत बुद्धत्व की प्राप्ति में बुद्ध ने कितने कष्ट झेले।"
आठ महान लमरिम ग्रंथों में से, उन्होंने ५वें दलाई लामा के 'मंजुश्री के मुखागम' को पढ़ना प्रारंभ किया। उन्होंने श्रोताओं को परामर्श दिया कि वे सभी प्राणियों के कल्याण के लिए प्रबुद्धता प्राप्त करने की इच्छा से सुनें। उन्होंने उस खंड को पढ़ना प्रारंभ किया जो उत्तम पुरुषों के मार्ग से संबंधित है। बोधिचित्तोत्पाद के दो उपाय हैं ः सप्त हेतु-फल उपदेश और परात्मसमता परात्मपरिवर्तनभाव। करुणा के विकास हेतु हम जिस उपाय का भी पालन करें, दोनों ही पहले समत्व के विकास पर आधारित हैं।
मध्याह्न के भोजन के बाद, परम पावन ने आगामी प्रवचन के कार्यक्रम की रूप - रेखा दी, यह कहते हुए कि तिब्बती महीने की पहली तारीख को दीर्घायु प्रार्थना होगा और वे अंतिम दिन की प्रातः अवलोकितेश्वर दीक्षा देंगे। उन्होंने टिप्पणी की कि साधारणतया बुद्ध की शिक्षाएँ दृश्य और वास्तविकता में अंतर करने के बारे में है। उस संदर्भ में दीर्घायु प्रार्थना में वे पंक्तियाँ, जो लामा से १०,००० वर्ष जीवित रहने के लिए कहती हैं, मूर्खता भरी है क्योंकि सभी जानते हैं कि इतना नहीं रहेगा।
"इसी तरह, हम १६ अर्हतों की प्रार्थना करते हैं, लेकिन उनमें से किसी एक ने भी कोई ग्रंथ नहीं छोड़ा जिसका हम प्रयोग कर सकें, या कुछ प्रकट किया है जिसे हम काम में ला सकते हैं। दूसरी ओर, नालंदा के १७ पंडितों में से हर एक ने कुछ लिखा जिसका मूल्य बना हुआ है। मैं जानता हूँ कि ऐसा कहते हुए मैं कुछ लोगों को परेशान करने का खतरा ले रहा हूँ, जैसे वह समय जब धर्मशाला में मैं तिब्बती चिकित्सालय गया, मैंने यह टिप्पणी निकल जाने दी कि जहाँ मैं तिब्बती चिकित्सा की बहुत सराहना करता हूँ, मेरी ज्योतिष में इतनी अधिक रुचि नहीं है। ज्योतिष विभाग के कर्मचारी बहुत हतोत्साहित हुए और मुझे उन्हें मनाना पड़ा कि मैं उसका प्रयोग करूँ अथवा न करूँ पर तिब्बती संस्कृति में ज्योतिष का एक स्थापित स्थान है। उस आधार पर इसे संरक्षित करने हेतु उन्हें कार्य करना चाहिए।"
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परम पावन ने प्रवचन का शीघ्र समापन करने से पूर्व 'दक्षिण परम्परा' से और 'द्रुत मार्ग' से पढ़ा। उन्होंने श्रोताओं को श्रीलंका के लाइट ऑफ एशिया फाउंडेशन के एक दल से परियच करवाया, जिन्होंने बुद्ध के जीवन पर उनके बुद्धत्व को प्राप्त होने तक को लेकर एक नई फिल्म बनाई है। फिल्म ने हाल ही में दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में पुरस्कार जीते और जब वे दिल्ली में थे तो उनसे एक अवसर देने का अनुरोध किया गया था कि उन्हें वह दिखाई जा सके। उन्होंने उनसे कहा था कि वह यहाँ बाइलाकुप्पे में सैकड़ों, हजारों के लिए प्रवचन करेंगे और यदि वे यह यहाँ दिखा सकें तो वे आभारी होंगे। उन्होंने घोषणा की कि आराम करने से पहले वे फिल्म के पहले पंद्रह मिनट देखेंगे पर उन्होंने श्रोताओं को अंत तक देखने के अवसर का आनंद उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।