वॉरसा, पोलैंड - २३ अक्तूबर, २०१३ - जब कल परम पावन दलाई लामा न्यूयॉर्क से वॉरसा हवाई अड्डे पर उतरे तो उनका स्वागत तिब्बती प्रतिनिधि थुबतेन समडुब और स्वास्थ्य मंत्री डॉ छेरिंग वंगछुग, जिन्होंने अपना मेडिकल प्रशिक्षण यहाँ किया था, जो पोलिश बोलते हैं और शहर को जानते हैं, ने किया। होटल में एक बड़ी संख्या में तिब्बतियों, मंगोलियों और स्थानीय शुभचिंतकों ने उनका स्वागत पारम्परिक तिब्बती रूप से किया। उसके बाद होटल की लॉबी में सह नोबेल पुरस्कार विजेता मैरेड कोरिगान मैग्योर से भेंटकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए।
वे वॉरसा में, स्वतंत्र लोगों के नगर में, नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के १३वें शिखर सम्मेलन में भाग लेने आए हैं। परन्तु नेशनल ऑपेरा, जहाँ आज का कार्यक्रम होने को था, में गाड़ी से जाने के पूर्व पोलिश टीवी के जेसेक ज़ाकौस्क ने उनका साक्षात्कार लिया। पहले प्रश्न पर, कि क्या आप सुखी हैं?, परम पावन ने उत्तर दिया वे मीठी नींद सोते हैं, आराम से हैं और खुश हैं। इस बात पर ज़ोर देकर पूछे जाने पर कि क्या वे अपने जीवन से सुखी हैं, उन्होंने उत्तर दियाः
“मेरी कुछ दर्द और पीड़ाएँ हैं, जो बुढ़ापे के साथ आती हैं, पर चित्त शांति के विकास की तुलना में ये इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं । मैं केवल ७ अरब लोगों के बीच एक हूँ और मैं यह बताने का प्रयास करता हूँ कि अंततः सुख का स्रोत हमारे अपने अंदर है।”
यह पूछे जाने पर, कि इसका अर्थ यह हुआ कि यदि आप प्रयास करें तो आप सुखी हो सकते हैं, उन्होंने ८ वीं शताब्दी के बौद्ध आचार्य शांतिदेव की सलाह का उद्धरण दिया कि यदि आप कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं तो आपको ऐसा करना चाहिए और यदि आपको यह लगता है कि आप उस पर काबू नहीं पा सकते तो उसके विषय में चिन्ता करने से कोई लाभ नहीं; एक अत्यंत व्यावहारिक निर्देश। साक्षात्कर्ता जानना चाह रहे थे कि दलाई लामा के रूप में पहचाने जाने पर एक छोटे बालक के रूप में उन्हें कैसा लगा। परम पावन ने उत्तर दिया कि उनकी माँ ने बताया कि वे उस दिन के प्रारंभ से ही बड़े उत्साहित थे, जिस दिन अन्वेषी दल उनके घर पहुँचा। वे आए, उनको जाँचा और परीक्षा ली और जब वे वापस जाने वाले थे तो वे भी उनके साथ जाना चाहते थे।
शिखर का पाँचवां सत्र, जिसका प्रमुख विषय था ‘एकजुटता और सुलहः और युद्ध नहीं’ में परम पावन, नोबेल विजेता मैरेड कोरिगान मैग्योर तथा शरणार्थियों की संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मेलिसा फ्लेमिंग ने भाग लिया। संचालनकर्ता ने कहा कि यहाँ हम आशावादी अनुभव कर सकते हैं कि गत २५ वर्षों में पोलैंड का किस प्रकार विकास हुआ है पर हम विश्व के अन्य भागों के प्रति निराशावादी हो सकते हैं। मेलिसा फ्लेमिंग ने इसे आगे बढ़ाया, यह स्वीकार करते हुए कि विश्व और अधिक दयनीय स्थिति में है, यह कि अब पहले की तुलना में और अधिक शरणार्थी हैं। विश्व में ४५ अरब शरणार्थियों की संख्या पोलैंड के ३८ अरब जनसंख्या से अधिक है। उन्होंने कहा कि युद्धों को रोकने के लिए जो इनके कारण हैं और कमज़ोरों की सहायता के लिए हमसे जो बन पड़ता है, वह हमें करना चाहिए।
परम पावन ने बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध के चिंतन में परिवर्तन पर प्रकाश डाला। पहले के दशकों में यदि कोई देश युद्ध पर जाता तो प्रायः प्रत्येक नागरिक शामिल होने पर गर्व का अनुभव करता था। यह बदल गया है। उन्होंने उन अरबों लोगों की ओर ध्यान आकर्षित किया, जो समूचे विश्व में इराक के खिलाफ युद्ध का विरोध करते हुए प्रदर्शन कर रहे थे।
“लोग इस को लेकर अधिक जागरूक हो रहे हैं कि हिंसा अतिरिक्त दुःख लाती है अतः एक ही समाधान है कि बातचीत कर अपने विरोधियों के चित्त में परिवर्तन लाआ जाए। शांति की इच्छा बढ़ गयी है। इस बीच स्नेह के मूल्य की सराहना भी बढ़ गयी है जब वैज्ञानिक यह स्वीकार कर रहे हैं कि यदि हम सुखी और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं तो आंतरिक शांति आवश्यक है। इसलिए मैं आशावादी बना हुआ हूँ।”
मैरेड मैग्योर ने अपनी बात जोड़ते हुए कहा कि १९७६ में उत्तरी आयरलैंड के लोगों ने हिंसा को नकार दिया था और तब से उन्होंने देखा है और उन लोगों के साथ शामिल हुई हैं, जो कई स्थानों में अहिंसात्मक समाधानों के लिए कार्य कर रहे हैं; वही समाधान है।
जब संचालनकर्ता ने पूछा कि क्या हस्तक्षेप सहायक है अथवा नहीं, परम पावन ने उत्तर दियाः
“आधारभूत रूप से बल का प्रयोग एक गलती है। ११ सितम्बर की त्रासदी के पश्चात, १२ सितम्बर को मैंने श्री बुश, जिनको मैं अच्छी तरह जानता हूँ, को पत्र लिखा। मैंने अपनी हार्दिक संवेदना और आशा जताई कि कोई भी प्रत्युत्तर अहिंसात्मक हो। मेरी चिंता यह थी कि एक बार नफरत और क्रोध शामिल हो जाए तो शारीरिक शक्ति का प्रयोग कभी समस्या का अंत नहीं कर सकता।”
“बीसवीं शताब्दी रक्तपात और अत्यधिक हिंसा का युग था पर फिर भी बर्लिन की दीवार और फिलिपीन में मार्कोस की सरकार का जन शक्ति द्वारा ध्वंस हुआ। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि इसके स्थान पर वर्तमान शताब्दी संवाद की शताब्दी होगी। जैसा कि हिरोशिमा के शिखर सम्मेलन में मैंने कहा था, कि विश्व शांति केवल प्रार्थना से नहीं आएगी, अपितु कार्य से होगी। यदि हममें निश्चय हो तो हम विश्व शांति का निर्माण कर सकते हैं।”
“मैं आशा करता हूँ कि आज की इस बैठक ने युवा पीढ़ी का मार्ग दर्शन किया है कि किन रूपों में हिंसा का अंत किया जाए, आप जो सच्चे रूप से इक्कीसवीं शताब्दी के हैं। हमें इसी के विषय में सोचना होगा। यदि हम अन्य लोगों को अपना मानवीय भाई और बहन मानें तो एक दूसरे का किसी प्रकार के नुकसान करने अथवा शोषण करने के लिए कोई स्थान न रह जाएगा। हमें ७ अरब मनुष्यों में से प्रत्येक को हमारा ‘अपना’ ही एक अंग समझना होगा, मेरा ऐसा विश्वास है कि यह महत्वपूर्ण है कि आज की युवा पीढ़ी प्रयास करे, क्योंकि संभवतः इक्कीसवीं सदी मानवता के जीवन काल में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाएगी।”
“सीरिया संकट की ओर मुड़ते हुए संचालनकर्ता ने पूछा कि हम किस तरह सहायता कर सकते हैं। मेलिसा फ्लेमिंग ने उत्तर दिया आधे शरणार्थी बच्चे हैं जिनकी स्कूली शिक्षा बाधित हो गई है। हम उन्हें सहायता और समर्थन दे सकते हैं। परम पावन ने कहा कि हमें समस्याओं के स्रोत को संबोधित करना होगा जो शरणार्थी पैदा करते हैं। ५० से अधिक वर्षों तक एक शरणार्थी के रूप में स्वयं रहे उन्होंने कहा कि, महत्वपूर्ण तत्व हैं आत्म – विश्वास तथा परिश्रम। धनवानों और निर्धनों के बीच की खाई के संबंध में उनका सुझाव था कि जहाँ अमीरों के लिए यह उचित है कि वे सहायता तथा सुविधाएँ प्रदान करें, ग़रीबों को अपनी शक्ति जुटानी होगी, अपना आत्म-विश्वास बना कर ऐसी सहायता का लाभ उठाना होगा।”
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मैरेड मैग्योर ने बैठक को स्मरण कराया कि हर पुरुष, स्त्री और बच्चे को न मारे जाने का अधिकार है और हममें से प्रत्येक का यह कर्तव्य है कि हम किसी दूसरे को न मारें। उन्होंने परम पावन का और तिब्बती लोगों द्वारा अपने संघर्ष में लाए गए अहिंसा के प्रारूप की सराहना की। परम पावन ने उत्तर दिया कि अहिंसा प्रभावशाली है। उन्होंने बढ़ती संख्या में चीनी बुद्धिजीवियों और साधारण लोगों द्वारा तिब्बती समस्या के प्रति सहानुभूति जताने का उदाहरण दिया, ऐसा समर्थन जो यदि तिब्बती हिंसात्मक हो जाएँ तो वह गायब हो जाएगा। “हम तिब्बती, तिब्बत का आधुनिकीकरण चाहते हैं, परन्तु चीनियों को चाहिए कि वे हमें अपने मामलों की देख रेख करने दें, तब हम अपनी भाषा, धर्म और संस्कृति, जो करुणा और शांति की संस्कृति है, के संरक्षण में सक्षम हो पाएँगे। ऐतिहासिक रूप में बौद्ध देश होने के नाते, चीन हमारी बौद्ध संस्कृति से लाभान्वित हो सकता है। इस बीच यह ध्यान में रखते हुए कि एशिया की कई महत्वपूर्ण नदियाँ तिब्बत में जन्म लेती हैं और १ अरब लोगों को प्रभावित करती हैं, हमें अपने पर्यावरण को भी सुरक्षित करना होगा। यह भविष्यवाणी करना मुश्किल है कि क्या होगा परन्तु तिब्बती भावना प्रबल बनी हुई है।”
जैसे सत्र समाप्त होने को आया, मेलिसा फ्लेमिंग ने स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र की दो भूमिकाएँ हैः राजनैतिक गतिविधि, जो न्यूयॉर्क में केन्द्रित है तथा जिनेवा में केन्द्रित मानवीय कार्य।
इसके तुरन्त पश्चात जब सत्र ६ –‘युवा तथा एकजुटताः शांति के अधिवक्ता हों’ प्रारंभ हुआ तो परम पावन के साथ शांति पुरस्कार विजेता बेट्टि विलियम्स, प्रो मुहम्मद युनुस तथा संयुक्त राष्ट्र के अपर महासचिव पीटर लौंस्की - टाइफ्फेंथल शामिल हुए। परम पावन ने पूछा कि मुख्य विषय का क्या अर्थ था और उत्तर दियाः
“विश्व शांति का प्रारंभ व्यक्तियों के अंदर की निजी शांति से प्रारंभ होनी चाहिए; हमें मानव एकता की भावना की आवश्यकता है। इसके लिए शिक्षा ज़रूरी है।”
बेट्टि विलियम्स ने कहा कि आपको शांति के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। शांति का संबंध कार्य से है। उन्होंने कहा कि वे अपने क्रोध को सकारात्मक कार्य में परिवर्तित करना सीख चुकी है। उन्होंने सबसे आग्रह किया कि वे अपनी सरकारों से अपने सैन्य बजट का एक प्रतिशत शांति और कल्याण हेतु लगाने के लिए समर्थन जुटाएँ। मुहम्मद युनुस ने गरीबी और बेरोज़गारी के उन्मूलन की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि हमें एक बेहतर विश्व की कल्पना की ज़रूरत और उसके बाद उस कल्पना को साकार करने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। युवा लोगों में विश्वास होना चाहिए कि वे विश्व को परिवर्तित कर सकते हैं। संचालनकर्ता ने परम पावन से पूछा कि जिन १२९ लोगों ने तिब्बत में आत्मदाह किया, क्या वे आशा छोड़ चुके थे । उन्होंने उत्तर दियाः
“यह दुखद घटनाएँ दर्शाती है कि इससे संबंधित व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करते हैं। ये व्यक्ति न ही नशे में हैं और न पारिवारिक समस्याओं से बोझिल हैं और वे दूसरों के विरोध में हिंसात्मक हो सकते थे। पर इसके बदले उन्होंने आत्मत्याग करने का चयन किया। तिब्बती अहिंसा को लेकर प्रतिबद्ध बने हुए हैं।”
“थियाननमेन की घटना के पूर्व, हमारे चीनियों की ओर हाथ बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, उनका सहयोग पाने में हमें कठिनाई थी। उसके बाद से अपेक्षाकृत सरल रहा है और चीनी विद्वानों, कलाकारों, यहाँ तक कि सेवानिवृत्त सैन्य तथा सरकारी अधिकारियों ने भी सहानुभूति व्यक्त की है। जहाँ भी तिब्बती हैं, हम चीनी तिब्बती मैत्री समूह स्थापित करने का प्रयास करते हैं। जब मैंने उन चीनियों से बात की, जो मेरे विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे, तो मैंने पाया है कि वे वास्तविक स्थिति के बारे में पूर्ण रूप से अनभिज्ञ हैं। सभी जानते हैं कि हम स्वतंत्रता की माँग नहीं कर रहे, पर फिर भी चीनी सरकार द्वारा मुझे एक ‘अलगाववादी’ के रूप में प्रस्तुत करने का प्रचार चल रहा है।”
बेट्टि विलियम्स ने उल्लेख किया कि शांति को लेकर प्रत्येक मनुष्य कुछ न कुछ कर सकता है। पीटर लौंस्की - टाइफ्फेंथल ने संयुक्त राष्ट्र रासायनिक शस्त्र इंस्पेक्टरों की ओर ध्यान आकर्षित किया जो इस समय कुछ जोखिम उठाकर सीरिया में कार्य कर रहे हैं। बांगलादेश के शोषक परिधान उद्योग के बारे में बोलते हुए मुहम्मद युनुस ने प्रस्तावित किया कि कंपनियाँ और ग्राहक समान रूप से शोषण मुक्त प्रमाणित उत्पादों को स्वीकृति दें। उन्होंने आगे कहा कि उनका विश्वास है कि यदि स्पष्ट रूप से क्यों समझाया जाए तो वे कपड़ों के खुदरा मूल्य में एक डॉलर अतिरिक्त जोड़ने के लिए तैयार होंगे। उस छोटी मूल्य वृद्धि से उन महिलाओं को जो कपड़े बनाती हैं, उचित न्यूनतम मज़दूरी, स्वास्थ्य इंश्यूरेंस और बच्चों के लिए दिन में देखभाल केन्द्र देना संभव हो पाएगा।
बेट्टि विलियम्स ने ज़ोर दिया कि शांति हममें से प्रत्येक के हाथ में है। पीटर लौंस्की - टाइफ्फेंथल का सुझाव था कि हममें से हर कोई अपने से पूछे कि मैं किस तरह परिवर्तन ला सकता हूँ? मुहम्मद युनुस ने सहस्राब्दि बैठक के लक्ष्य, कि २०१५ तक गरीबी आधी हो जाए और २०३० तक उसका पूरी तरह उन्मूलन हो, का स्मरण कराया। परम पावन ने टिप्पणी की, कि मनुष्य के प्रत्येक कार्य की गुणवत्ता हमारे हृदय पर निर्भर करती है। यदि हमारा हृदय अच्छा हो और दूसरों के प्रति चिंता हो तो हमारे कार्य सकारात्मक होंगे। उन्होंने आगे कहा कि उत्तरदायित्व लेना ऐसा नहीं है जिसे बाहर से थोपा जा सके, यह स्वेच्छा से होना चाहिए। उन्होंने हँसी में युवतियों का संदर्भ दिया, जो प्रसाधनों से स्वयं को सुन्दर बनाती है और सुझाया कि एक सुखी जीवन जीने के लिए और एक अधिक सुखी परिवार के निर्माण के लिए आंतरिक सौन्दर्य कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
“यह आंतरिक सौन्दर्य है जो लोगों को एक करता है और सच्चे, सौहार्दपूर्ण मुस्कान को जन्म देता है।”
साथ साथ एक मैत्रीपूर्ण वातावरण में दोपहर के भोजन के बाद शांति पुरस्कार विजेता शिखऱ सम्मेलन पुरस्कार समारोह के लिए पुनः एकत्रित हुए। बेट्टि विलियम्स ने इस वर्ष की विजेता अभिनेत्री शेरोन स्टोन का परिचय कराया, जिन्हें एचआईवी/एड्स से जुड़े कार्य के प्रति समर्पित योगदान के लिए सम्मानित किया गया। फिर बेट्टि विलियम्स, शिरीन एबादी और परम पावन ने संयुक्त रूप से उन्हें पुरस्कार प्रदान किया। शेरोन स्टोन ने अपने कार्य को समझाते हुए और इस सराहना के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हुए एक भावप्रवण भाषण दिया।
समापन समारोह के दौरान एफ डब्ल्यू डी क्लार्क ने नोबेल पुरस्कार विजेताओं का संयुक्त बयान पढ़ा, जिसमें अहिंसा और शांति पर आधारित एक नए यथार्थ की माँग और सभी स्थानों के लोगों से शांति के लिए खड़े होने और परिवर्तन लाने के लिए साहस जुटाने का आग्रह किया गया था। राष्ट्रपति लेक वालेसा और वॉरसा के मेयर हान्ना ग्रोनकाइविस्ज़ - वाल्ट्ज भी बोले। अगले वर्ष १४वें शिखर सम्मेलन के आयोजन स्थल के रूप में केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका घोषित किया गया ।
इसके बाद हुए संवाददाता सम्मेलन में डी क्लार्क ने कहा कि ऐसी बैठकों में कभी कभी व्यावहारिक दिशा निर्देशों को लाना कठिन है परन्तु प्रेरणा को दिशा देना महत्वपूर्ण है। परम पावन ने बल दिया कि शांति के निर्माण में सभी शामिल हैं। शिरीन एबादी ने कहा कि हम नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लियू ज़ियाओबो को न भूलें, जिन्हें जेल में बाधित किया गया है, जिस आग्रह को मैरेड मैग्योर ने दोहराया। बेट्टि विलियम्स ने सितम्बर ११, २००१ में हुए ३००० जीवनों के भयंकर नुकसान का स्मरण किया, पर इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि तब से प्रतिदिन ३५,००० से अधिक बच्चे कुपोषण के कारण मृत्यु के शिकार हुए हैं। मुहम्मद युनुस ने गरीबी को कम करने और उन्मूलन के लिए सहस्राब्दि बैठक के लक्ष्य के पालन करने की बात दोहराई, साथ में यह कहा कि बेरोज़गारी का भी उन्मूलन होना चाहिए।
शिखर सम्मेलन का अंतिम कार्यक्रम लेक वालेसा, मैरेड मैग्योर, शिरीन एबादी, बेट्टि विलियम्स और परम पावन का मेयर हान्ना ग्रोनकाइविस्ज़ -वाल्ट्ज के साथ सेक्सन उद्यान में वृक्षारोपण करना था, जो इस शिखर सम्मेलन की स्मृति में पल्लवित होगा।