गुड़गाँव, नई दिल्ली, भारत - अक्तूबर ६, २०१३ - संयुक्त राज्य अमेरिका, मेक्सिको और पोलैंड की अपनी यात्रा के प्रारंभ में परम पावन दलाई लामा आज गुड़गाँव में ग्लोबल स्पा और वेल सम्मेलन में बोले। धर्मशाला से दिल्ली की सीधी उड़ान भरने के बाद वे सीधे गाड़ी से सभा में गए, जहाँ उनके आगमन पर उनके मेजबान और पुराने मित्र, मैक्स हेल्थकेयर के संस्थापक और अध्यक्ष अनलजीतसिंह ने उनका स्वागत किया।
जब मैत्री से भरी स्वागत की तालियों की ध्वनि शांत हुई तो परम पावन ने संबोधन से प्रारंभ किया 'आदरणीय भाइयों और बहनों', यह समझाते हुए कि उन्हें हमेशा इसी प्रकार प्रारंभ करना अच्छा लगता है, क्योंकि उनका विश्वास है कि आज जीवित ७ अरब मनुष्य समान हैं। वे सब सुख की कामना करते हैं और सभी को इसे प्राप्त करने का अधिकार है। हल्की सी शरारत भरे स्वर में वे बोले:“”
“इसमें कोई संदेह नहीं कि हम सब में जो आम है, वह यह कि हम सभी किसी न किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करते हैं। जो भी हो, मैं यहाँ आकर बहुत खुश हूँ और निमंत्रण के लिए अपने पुराने मित्र अनलजीतसिंह को धन्यवाद देता हूँ।”
यह देखते हुए कि अच्छा स्वास्थ्य मुख्य प्रसंग था, उन्होंने घोषित किया कि सुखी जीवन जीने का परम आधार करुणापूर्ण व्यवहार का होना है। सुख का सीधा संबंध सौहार्द भाव से है, जो प्रतिभावान बुद्धि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
“हर कोई एक सुखी जीवन जीना चाहता है,” उन्होंने कहा, “पर हम भौतिक चीज़ों में सुख और संतुष्टि ढूँढने में लग जाते हैं। यद्यपि कई वैज्ञानिकों, जिनसे मैंने बात की है, अब स्वीकार करने लगे हैं कि प्रसन्न चित्त शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए मैं यह प्रस्ताव रखता हूँ कि शारीरिक स्वच्छता के अतिरिक्त हमें भावनात्मक स्वच्छता के विकास की भी आवश्यकता है।”
बीसवीं सदी के युद्धों, विशेष रूप से हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम विस्फोट की भयावहता का स्मरण करते हुए, परम पावन ने कहा कि आज विश्व भर में जनता की राय शांति और अहिंसा के प्रति अधिक इच्छुक है। उन्होंने सुझाव दिया कि यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इस शताब्दी के अंत तक जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक आपदाओं को उत्पन्न करने की संभावना है और बढ़ती मानव आबादी संसाधनों पर दबाव डालेगी ।
“परन्तु एक सामाजिक प्राणी के रूप में,” उन्होंने कहा कि, “हमें दूसरों की भलाई के लिए चिंतित होना चाहिए। यदि हम इस प्रकार की चिंता उत्पन्न कर लें तो हममें दूसरों को ठगने, धौंस जमाने या धोखा देने के लिए कोई स्थान ही न रह जाएगा। सौहार्दता का संबंध सहयोग से है। सहयोग, विश्वास पर निर्भर है और विश्वास पैदा होता है यदि हम आधारभूत मानव मूल्यों, जिसे मैं धर्मनिरपेक्ष नैतिकता कहता हूँ, के अनुसार जिएँ।”
उन्होंने आगे कहा कि मानसिक स्वास्थ्य केवल उसके लिए प्रार्थना करने मात्र से प्राप्त नहीं होगा पर वास्तव में दूसरों के लिए सहानुभूतिकी भावना को परिष्कृत करने से होगा। उन्होंने कहा कि यही वे श्रोताओं के साथ बाँटना चाहते थे।
इसके बाद उन्होंने प्रश्न आमंत्रित किए, जोडा केनेथ आरपेलेटियर द्वारा संचालित किए गए। पहले का संबंध था कि नकारात्मक भावनाओं के साथ कैसा व्यवहार करें। परम पावन का उत्तर था, जागरूकता से। उन्होंने कहा कि जब हम आराम करना चाहते हैं यातना कम करना चाहते हैं तो हमें एक शांतचित्त की आवश्यकता है, क्रोध से भरे चित्त से लेटने से कुछ नहीं होता। भावनात्मक स्वच्छता को विकसित करने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि हमें चित्त के एक मानचित्र की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि एकाग्रता और अंतर्दृष्टि विकसित करने की प्राचीन भारतीय पद्धतियॉँ भी बहुत सहायक हैं।
चूँकि शिखर सम्मेलन के विषयों में से 'एक निर्णायक क्षण' था, परम पावन से पूछा गया कि क्या वे अपने जीवन से एक निर्णायक क्षण बाँटेंगे। उन्होंने उत्तर दिया:
“१६ वर्ष की आयु में मैंने स्वतंत्रता खो दी, २४ वर्ष में मैंने अपना देश खो दिया, वास्तव में, जब मैं मात्र ५ वर्ष का था तो निजी स्वतंत्रता खो दी और अन्य बच्चों के साथ खेलने का अवसर। इसलिए जब मैं छोटा ही था तब पोताला में अपने कठोर मुख वाले गुरू के साथ एकांत साधना में बैठता था और शाम को मैं चरवाहों के गीत सुनता जब वे अपने भेड़ों को चराई के बाद लौटाकर लाते। और मैं सोचता कि मुझे उनके जैसा होना है। फिर लगभग १३ या १४ आयु के आसपास मैं अध्ययन और आध्यात्मिक अभ्यास में सही रुचि लेने लगा, इसलिए मुझे लगता है कि वह मेरे लिए एक निर्णायक क्षण था।”
उनके आशावादी होने के आधार पर पूछे जाने पर, परम पावन ने उत्तर दिया कि वह मानवीय बुद्धि और सौहार्दता में विश्वास करते हैं, जिसके कारण मनुष्यों में महान सकारात्मक क्षमता है।
अंत में एक प्रश्न पूछा गया कि वह तिब्बती संस्कृति को किस प्रकार देखते है और तिब्बत के बाहर रहने वाले लोग इसके समर्थन करने के लिए क्या कर सकते हैं। उन्होंने उत्तर दिया:
“तिब्बती संस्कृति शांति और अहिंसा की संस्कृति है, यह करुणा की संस्कृति है। अधिक से अधिक लोग इन मूल्यों की सराहना करने लगे हैं, जो हमारी बौद्ध परंपरा, नालंदा परंपरा से जुड़ी है। हम तिब्बती भारतीय गुरुओं के चेले हैं, लेकिन इन दिनों, जहाँ तक बौद्ध धर्म का संबंध है, हम चेले अपने गुरुओं की तुलना में अधिक सक्रिय हैं। मेरा विश्वास है कि हम तिब्बती, बौद्ध संस्कृति को विज्ञान, दर्शन और धार्मिक अभ्यास के संदर्भ में देख सकते हैं और मुझे लगता है कि इसका वैज्ञानिक भाग सार्वभौमिक हित और लाभ का हो सकता है। आजकल भी सर्वेक्षण के अनुसार चीन में ३०० करोड़ बौद्ध हैं, उनमें कई शिक्षित लोग, और कई तिब्बती बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले।”
“और इसके लिए कि आप हमारी संस्कृति का समर्थन करने के लिए क्या कर सकते हैं, मैं प्रायः लोगों को तिब्बत जाकर स्वयं देखने के लिए कि वहाँ क्या हो रहा है, की सलाह देता हूँ। तिब्बत की नाजुक पारिस्थितिकी पर ध्यान दें जिसे जलवायु और पानी की आपूर्ति पर इसके प्रभाव के कारण तीसरे ध्रुव के रूप में वर्णित किया गया है। इसलिए वहाँ जाएँ, देखें, निरीक्षण करें और सूचना दें। धन्यवाद ।”
कल परम पावन अटलांटा, जॉर्जिया, संयुक्त राज्य अमरीका की एक लंबी यात्रा आरंभ करेंगे।