रीगा, लातविया, ९ सितम्बर, २०१३ - भारत से एक लंबी यात्रा के पश्चात्, जब परम पावन दलाई लामा कल उत्तरी यूरोप स्थित लातविया की राजधानी बंदरगाही शहर रीगा पहुँचे तो उनका स्वागत बड़े ही सौहार्द रूप से हुआ। जेनिस मार्टिंस स्कूजा के नेतृत्व में आयोजक समिति ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया, जबकि उनके कई शुभचिंतक उनके होटल में एक मुस्कान के साथ उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
आज का उनका कार्यक्रम एक प्रेस भेंट से प्रारंभ हुआ। उन्होंने यह घोषणा करते हुए प्रारंभ कियाः “इस मनोहर शहर में अपने तीसरी यात्रा को लेकर मैं बहुत खुश हूँ। जहाँ भी मैं जाता हूँ, मैं समान होने की जागरूकता उत्पन्न करने का प्रयास करता हूँ, मानवता के एक होने की। और एक बौद्ध भिक्षु होने के नाते अंतर – धार्मिक समन्वय के पोषण का प्रयास करता हूँ। सभी धर्म करुणा की शिक्षा देते हैं और उसके अभ्यास के लिए हमें सहिष्णुता और क्षमा की आवश्यकता है, जो हमारे अभ्यास की सुरक्षा में सहायक है। तिब्बत के विषय में, तिब्बती बौद्ध संस्कृति, जो कि शांति और करुणा की संस्कृति है, को सुरक्षित रखने में मैं एक उत्तरदायित्व बनाए रखता हूँ।”
पत्रकारों के प्रश्नों में, परम पावन का धन के दृष्टिकोण का प्रश्न भी शामिल था, जिसके उत्तर में उन्होंने कहा कि हम सब को उसकी आवश्यकता है। यहाँ तक कि बरसीलोना में जिन कैथलिक भिक्षुओं से उनकी भेंट हुई, जिन्होंने ब्रेड और जल पर जीवित रह कर पाँच वर्ष प्रेम पर एकांत ध्यान लगाया था, को भी धन की आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि जो लोग केवल लाभ की सोच में लगे हैं, जिससे शोषण और भ्रष्टाचार जन्म लेता है, एक समस्या है। अपने कार्य में हमें नैतिक, सच्चा और ईमानदार होना चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि क्या यह बेहतर है कि अपमान और गालियों का उत्तर मौन रूप से दिया जाए, उन्होंने कहाः “हमारे पास मुँह है और हमारे पास अनोखी भाषाएँ हैं : हमें अपनी अभिव्यक्ति करनी चाहिए”।
राजनैतिक नेताओं की उनसे सार्वजनिक भेंट को लेकर स्पष्ट अनिच्छा के विषय में वे बोले कि उनकी वाशिंगटन और ब्रसल्स की यात्रा के अलावा उनकी विदेश यात्राएँ गैर – राजनैतिक हैं। उनकी मुख्य प्रतिबद्धता मानवीय जीवन मूल्यों और धार्मिक समन्वय को लेकर आम जनता के साथ संलग्न होना है। तिब्बती समस्या के विषय में उन्होंने कहा कि वे अलगाव की नहीं, पर तिब्बती भाषा और उसके साथ जुड़ी तिब्बती बौद्ध संस्कृति के संरक्षण के सच्चा अवसर की माँग कर रहे हैं।
उन्मुक्त चित्त की शक्ति के प्रश्न के संदर्भ में वे बोले कि आत्म-विश्वास महत्त्वपूर्ण है और उसके विकास में एक आवश्यक तत्व है खुलापन और ईमानदारी। एक और अन्य प्रश्न के उत्तर में, कि लोग बोधिचित्त पर ध्यान केंद्रित किए बिना आध्यात्मिक अभ्यास कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि एक शांत चित्त, शांतिप्रिय चित्त अच्छा है और बोधिचित्त को विकसित करने का आधार है, जिसे पोषित करने में वर्षों के सतत प्रयास लगते हैं।
अंत में परम पावन जी से सीरिया पर अंतर्राष्ट्रीय हमले की संभावना पर उनके विचार पूछे गए तो उन्होंने सुझाव दिया कि हिंसा से कोई समस्या नहीं सुलझती: अहिंसा ही ऐसा समाधान है जो काम आ सकता है। तदनुसार इक्कीसवीं शताब्दी में हमें संघर्ष को संवाद और चर्चा से सुलझाने की आवश्यकता है। अतिरिक्त शक्ति को उन्मुक्त करने का परिणाम अप्रत्याशित है।
अपने होटल में प्रेस वार्ता के बाद परम पावन लातविया के सांसद श्री डेविड स्टाल्ट्स के साथ लातविया स्वतंत्रता संग्राम (१९१८- १९२०) में शहीदों के सम्मान में बनाया गए स्वतंत्रता स्मारक, जो कि लातविया की स्वतंत्रता, स्वराज्य और संप्रभुता का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है, देखने गए। उन्होंने स्मारक के समक्ष पुष्प और रेशमी खाता रखा तथा एक क्षण प्रार्थना के लिए रुके।
वहाँ से वे ९० वर्ष के सिनेमा स्पलैंडिड पेलेस गाड़ी में गए, जहाँ उन्हें बौद्धों तथा तिब्बत समर्थन समूहों से मिलना था। अपनी परिचयात्मक टिप्पणी में उन्होंने उल्लेख किया कि यह उनकी लातविया की तीसरी यात्रा है, जब वे १९९१ और २००१ में पहले आ चुके हैं।
“एक बार पुनः कल मेरे हवाई अड्डे पर उतरने के क्षण से लोगों ने जो सौहार्द और मैत्री भावना मेरे प्रति व्यक्त की है उसने मुझे छू लिया है।”
श्रोताओं में जो बौद्ध थे, उनके लिए उन्होंने मानवीय विकास की धार्मिक भावनाओं का सर्वेक्षण और उसके अंदर बौद्ध धर्म का स्थान प्रस्तुत किया। उन्होंने ध्यान दिलाया कि उन्होंने पिछले तीस वर्षों से अंतर्धर्म के क्षेत्र में कार्य किया है और उसी दौरान उन्होंने आधुनिक वैज्ञानिकों से भी संवाद का आयोजन किया है। उन्होंने एक स्वस्थ वैज्ञानिक अविश्वास की तुलना भारतीय बौद्ध पंडित नागार्जुन द्वारा बौद्ध शिक्षा के आलोचनात्मक मूल्यांकन से की और इस पर बल दिया कि इक्कीसवीं शताब्दी में बौद्ध होने के लिए अध्ययन, तर्क और समझ का होना आवश्यक है।
तिब्बत समर्थन समूह को संबोधित करते हुए उन्होंने ६ लाख तिब्बतियों की ओर से उनके प्रयासों की सराहना अभिव्यक्त की, पुनः यह टिप्पणी करते हुए कि प्राथमिक उद्देश्य तिब्बती संस्कृति और आंतरिक मूल्यों का संरक्षण है। लातविया टी वी के साथ साक्षात्कार में परम पावन ने इस बात को दोहराया कि उनकी मुख्य रुचि लोगों से मिलने की है, न कि उनके नेताओं से। उन्होंने यह भी समझाया कि तिब्बत के राजनैतिक उत्तरदायित्वों से निवृत्त होने के निश्चय का कारण उनके बचपन से ही उनके मन की यह भावना थी कि कुछ चन्द लोगों के हाथ में बहुत अधिक शक्ति थी। उन्होंने समझाया कि प्रजातंत्र लोगों का राज और लोगों द्वारा राज सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका है, विशेषकर इसलिए कि यह लोगों को अपनी सरकार बदलने में सक्षम बनाता है।
यह स्वीकार करते हुए कि ऐतिहासिक रूप से चीन, मंगोलिया और तिब्बत तीन शक्तिशाली साम्राज्य थे, उन्होंने कहा कि आज उसके अपर्याप्त भौतिक विकास के कारण पी आर सी के अंदर रहने में ही तिब्बत का भला है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में तिब्बत के प्रश्न को उठाने की निरर्थकता और पंडित नेहरू की सलाह कि चीनी अधिकारियों से सीधा निपटना अधिक प्रभावशाली होगा का स्मरण किया। १९७४ में एक निर्णय लिया गया कि अभी या बाद में तिब्बतियों को वही करना होगा। उन्होंने निश्चयपूर्वक कहा कि यदि चीन की जनता यह जानती कि तिब्बत सीधी स्वतंत्रता के बजाय सार्थक स्वायत्तता की माँग कर रहा है, तो वे यह जानना चाहेंगे कि उनकी सरकार वह दे क्यों नहीं रही।
जब साक्षात्कारकर्ता जानना चाह रहा था कि क्या परम पावन ने अपने अन्य पहले शौकों जैसे घड़ी बनाने में रुचि में कोई और शौक जोड़े हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि आजकल वे अपना समय पढ़ने और ध्यान में लगाते हैं। यह पूछे जाने पर कि लातविया के लोगों के लिए उनका क्या संदेश है, वे बोलेः
“एक सुखी जीवन जीने के लिए केवल धन पर निर्भर रहना गलत है। कृपया अपने आंतरिक संसार पर और अधिक ध्यान दें, अपने चित्त पर ध्यान देना सीखें, आप इसी तरह अपने आने वाली समस्याओं का सामना करना सीख पाएँगे।”
इसी विषय को उन्होंने बाद में लातविया की एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में जारी रखा, जब उनसे पूछा गया कि लोग अपने हृदयों में शांति पाने के लिए क्या कर सकते हैं।
“चित्त की शांति का विरोधी कोई बाहरी वस्तु नहीं पर हमारे अंदर है। जैसे कि अमरीकी मनोवैज्ञानिक आरों बेक ने बताया, जब हम क्रोधित होते हैं, क्रोध का ९०% भाग हमारा मानसिक प्रक्षेपण होता है।”
यह पूछे जाने पर कि क्या वे अपनी मृत्यु के लिए तैयार हैं, परम पावन ने उत्तर दिया कि अपने दैनिक ध्यान में वे पाँच बार उस प्रक्रिया का अभ्यास करते हैं, शरीर के स्थूल, तरल, ताप शक्ति और चित्त के विलयन की कल्पना करते हुए जिसके चार स्तर है, स्थूल चित्त का सूक्ष्म में विलयन। यह पूछे जाने पर कि वह ऐसा क्यों करते हैं तो उन्होंने उत्तर दियाः
“मृत्यु पर नियंत्रण कर; पुनर्जन्म की तैयारी”
एस्टोनिया की एक पत्रिका के एक और साक्षात्कारकर्ता ने प्रश्न किया कि तिब्बत और अन्य सत्वों की सबसे अच्छी तरह से सहायता कैसे की जा सकती है, परम पावन ने कहा कि वे समर्थन की सराहना करते हैं और दोहराया कि उनकी मुख्य चिंता केवल तिब्बतियों के राजनैतिक अधिकार की ही नही, अपितु तिब्बती बौद्ध धर्म के ज्ञान और संस्कृति की भी है। उन्होंने एस्टोनिया के लोगों से यह देखने का अनुरोध किया कि वे किस तरह शांति और करुणा की इस संस्कृति के संरक्षण में सहयोग दे सकते हैं।
दोपहर को एरीना रीगा में एक एलेक्ट्रिक बैंड के कार्यक्रम के बाद, लातविया तिब्बत संघ के संस्थापक मार्टिंस स्कूजा ने लातवी भाषा में परम पावन का परिचय कराया। श्रोताओं की एक लम्बी कतार उनके समक्ष मंच के किनारे पर सफेद लिली रखने सामने आई। उन्हें इस वर्ष का दलाई लामा युवा करुणा सम्मान की विजेता टेरेज़ तेल्पे को अपने क्षेत्र में करुणापूर्ण कार्य प्रदत्त करने के लिए, आमंत्रित किया गया, जिसके पश्चात् उन्होंने अपना सार्वजनिक व्याख्यान प्रारंभ कियाः
“लातविया के भाइयों तथा बहनों, मैं यहाँ पुनः एक बार आकर और आपके साथ अपने कुछ अनुभव बाँटने का अवसर पाकर बहुत खुश हूँ। मैं आयोजकों का धन्यवाद करना चाहता हूँ , जिन्हें इस कार्यक्रम को आयोजित करने में असुविधाओं और बाधाओं का सामना करना पड़ा है और मैं आप सब का भी आने के लिए धन्यवाद करना चाहता हूँ यद्यपि आज काम का दिन है।”
“जब भी मुझे अवसर मिलता है, मैं अपने आंतरिक मूल्यों की बात करता हूँ। हमारी अधिकांश रूप से एक भौतिकवादी जीवन शैली है, जिसकी विशेषता भौतिक संस्कृति है। परन्तु यह हमें केवल अस्थायी ऐन्द्रिक संतोष देती है जबकि दीर्घकालीन संतोष इन्द्रियों पर नहीं अपितु चित्त पर आधारित होती है। वहीं वास्तविक शांति पाई जा सकती है। और हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में भी चित्त की शांति एक महत्त्वपूर्ण तत्व है।
हमारा कार्य सृजनात्मक है अथवा विनाशात्मक हमारी प्रेरणा पर निर्भर करता है। जब हम अपने आप को दूसरों की आवश्यकताओं से जोड़ते हैं तो वहाँ धौंस जमाने, धोखाधड़ी या छल का कोई स्थान नहीं होता। अपने जीवन के पारदर्शी रूप से जीना विश्वास को जन्म देता है और मैत्री विश्वास पर आधारित होती है।
हमें स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि हमारी कौन सी भावनाएँ हानिकारक हैं और कौन सी सहायक। हमें उन्हें परिष्कृत करने की आवश्यकता है, जो चित्त की शांति के लिए अनुकूल है। अकसर ज्ञान के अभाव में हम क्रोध और घृणा को अपने चित्त का स्वाभाविक अंग मान लेते हैं। यह ऐसा उदाहरण है कि किस तरह अज्ञान हमारी समस्याओं का स्रोत है। हम अपनी सकारात्मक भावनाओं को प्रबल कर विनाशकारी भावनाओं को कम कर सकते हैं। इस प्रकार के भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रारंभ कर हम एक और अधिक स्वस्थ समाज में योगदान दे सकते हैं।”
श्रोताओं में से पूछे गए प्रश्नों में एक भय के विषय में था। परम पावन ने कहा कि वह भय जो हमें एक पागल कुत्ते से दूर भगाता है लाभकर है और आवश्यक, जबकि वह भय जिसकी जड़ें अविश्वास में है, वह सहायक नहीं होता और उस पर काबू पाना चाहिए। एक और प्रश्न कि क्यों इतने संकीर्ण दिमाग, अदूरदर्शी, शिक्षित लोग हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि इसका कारण आंतरिक और नैतिक मूल्यों का अभाव है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि ऐसा हो सकता है जब धार्मिक विश्वास बहुत प्रबल हो।
यह पूछे जाने पर कि इस प्रकार के जीवन का क्या अर्थ, जबकि उनकी न पत्नी है न परिवार, परम पावन ने कहा कि वैवाहिक जीवन अधिक रंगीला है पर उसके अपने उतार चढ़ाव भी हैं, जबकि ब्रह्मचारी जीवन कम रंगीला है पर अधिक दृढ़ है और चित्त की शांति के विकास के लिए अधिक अनुकूल है। एक और प्रश्नकर्ता जानना चाहता था कि उन्होंने अन्य धार्मिक परम्पराओं से क्या सीखा है, उन्होंने ईसाई भाइयों और बहनों द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए पूरे विश्व में किए गए कठोर परिश्रम, जो एक प्रेरणा है, को स्वीकार किया।
अंत में जीवन के अर्थ के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने उत्तर दियाः
“ मैं आमतौर पर कहता हूँ कि जीवन का उद्देश्य सुखी होना है। हमारा अस्तित्व आशा पर आधारित है। हमारा जीवन सुखी होने के अवसर पर आधारित है, आवश्यक रूप से धनी होना नहीं पर अपने ही चित्त में सुखी होना है। यदि हम केवल ऐन्द्रिक सुख में लगे रहें, हम जानवरों से थोड़े अलग होंगे। वास्तव में हमारे पास यह अद्भुत दिमाग और बुद्धि है; हमें उसे काम में लाने के लिए सोचना चाहिए।”
अंत में उन्होंने अपने सुनने वालों से यह आग्रह किया कि जो कुछ भी उन्होंने सुना है उस पर अधिक सोचें, अपने मित्रों से चर्चा करें और यदि कोई सार्थकता जान पड़ती है तो अपने जीवन में लागू करें। परन्तु, उन्होंने कहा कि यदि उन्हें उसमें कुछ रूचिकर न लगे तो उसे छोड़ देना ठीक होगा।
इसके पूर्व कि अत्यधिक प्रशंसा के बीच परम पावन मंच से बाहर जाएँ, आयोजकों ने घोषणा की कि जो भी इच्छुक हैं वे पाँच बजे सफेद लिली पुष्पों को दौगवा नदी में विसर्जित करने में शामिल हो सकते हैं।