नई दिल्ली, भारत - २० दिसम्बर, २०१३ - आज दूसरे दिन भी परम पावन दलाई लामा ने ८५ वर्षीय जीव विज्ञानी और दार्शनिक हम्बर्टो मातुराना, जो कि परम पावन के अच्छे मित्र फ्रांसिस्को वरेला के शिक्षक तथा सहयोगी थे, के नेतृत्व में एक चिली प्रतिनिधिमंडल के साथ भेंट की। वे ऐसे वैज्ञानिक हैं जिनकी सलाह का परम पावन प्रायः उद्धरण देते हैं कि उनका प्रयास रहता है कि वे अपने अनुसंधान के क्षेत्र के प्रति बहुत अधिक मोह न रखें क्योंकि ऐसा करने से आपकी वस्तुनिष्ठता के लिए हानिकर होगा।
आज डॉ. मातुराना इस विषय पर बोलना चाहते थे कि हम जीव विज्ञान, विज्ञान और समझ के संदर्भ में किस प्रकार के जीव हैं। उन्होंने कहा कि जब हम परीक्षण करते हैं तो पाते हैं कि हम जीवित प्राणी हैं। हम स्वयं को परिवारों, समुदायों में जीता और साथ साथ कार्य करता पाते हैं। हमारे पास अपने कार्यों तथा भावनाओं का समन्वय करने के लिए भाषा भी है, पर जब हम यह देखने का प्रयास करते हैं कि हम किस वस्तु के बने हुए हैं तो उत्तर मिलता है, अणुओं के। परम पावन बीच में बोल उठे कि पौधे और वृक्ष भी हमारी ही तरह अणुओं से बने हैं पर फिर भी उनकी कोई भाषा नहीं है, क्यों? उन्होंने आगे पूछा कि भाषा के अभाव में पौधों और स्तनधारियों में क्या अंतर है और डॉ.मातुराना ने उत्तर दिया कि अंतर उनके रहन सहन में है। उन्होंने आगे कहा कि जहाँ तक हम जानते हैं, केवल मनुष्यों के पास भाषा है। जैसे ही बातचीत भावनाओं की ओर मुड़ी परम पावन ने इंगित किया कि भावनाएँ आवश्यक रूप से भाषा के प्रयोग से जुड़ी नहीं हैं। परम पावन के प्रश्न पर कि क्या चित्त एक स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाली इकाई है, डॉ. मातुराना ने उत्तर दिया कि वह नहीं है पर वह मस्तिष्क के संदर्भ में अस्तित्व रखती है, जिसने परम पावन को एक अन्य वैज्ञानिक मित्र वोल्फ सिंगर के अवलोकन का स्मरण कराने के लिए प्रेरित किया कि मस्तिष्क का कोई केन्द्रीय नियंत्रण प्रतीत नहीं होता।
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प्रतिनिधि मंडल के एक और युवा सदस्य ने परम पावन से उन लोगों के िलए एक संदेश का अनुरोध किया जो अगले वर्ष चिली में शांति के लिए एक बैठक में भाग लेने वाले हैं।
उन्होंने कहा:
"हर कोई एक सुखी जीवन, एक सार्थक जीवन चाहता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमारा अभ्यास यथार्थवादी होना चाहिए। हमारी प्रेरणा चाहे जो भी हो, यदि हम यथार्थवादी न हों तो अपने लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर सकते। हममें दूसरों के अधिकारों और विचारों का सम्मान करते हुए एक मानवता से जुड़े होने की भावना होनी चाहिए। जब भी संघर्ष उठे तो हमें उसे समझौता और बातचीत के माध्यम से हल करने का प्रयास करना चाहिए।"
उसके बाद कई रूसी पत्रकारों के साथ वार्तालाप की श्रृखंला प्रारंभ हुई, जिन्होंने विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जिसका प्रारंभ इस से हुआ कि अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने के लिए क्या किया जा सकता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि यह आज के सबसे गंभीर प्रश्नंों में से एक है और कुछ किया जाना चाहिए।
"न केवल भारत में बल्कि संयुक्त राज्य अमरीका, रूस और चीन में अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। यह न केवल नैतिक रूप से गलत है, पर एक व्यावहारिक बिंदु से परेशानी का एक स्रोत है। इसके समाधान के दो पहलू हैंः धनवानों को सहायता करनी चाहिए, परन्तु निर्धनों को भी प्रयास करना चाहिए। क्रोध और नैराश्य से कुछ सुलझ नहीं पाएगा।"
मध्य पूर्व में संघर्ष के विषय में पूछे जाने पर, खासकर सीरिया में युद्ध के बारे में, उन्होंने उसका उत्तरदायित्व िपछले दशक में की गई गलतियों को ठहराया, जब प्रचलित दृष्टिकोण था कि समस्याओं का सबसे अच्छा समाधान बल प्रयोग द्वारा हो सकता है। आज लोग यह अनुभव करने लगे हैं कि वास्तव में समस्याएँ केवल बातचीत के माध्यम से ही सुलझाई जा सकती हैं।
एक अन्य प्रश्न का मंतव्य था कि जिस तरह कुछ लोग दूसरों का शोषण करते हैं वह उसी प्रकार है जैसे कुछ जानवर बर्बर ढंग से एक दूसरे को खाते हैं। परम पावन ने टिप्पणी की कि यह नैतिक सिद्दांतों के अभाव के कारण है और आगे कहा कि नैतिकता कोई पवित्र वस्तु नहीं पर एक यथार्थ है। उन्होेंने सुझाया कि लोगों में एक दूसरे को भाई बहन के समान देखते हुए एक मानवता से संबंध की भावना होनी चाहिए।
"मात्र अपने बारे में सोचना और दूसरों की उपेक्षा करना मुसीबत लाता है। सच्चे ईमानदार और पारदर्शी होने पर आंतरिक शक्ति और दूसरों का विश्वास मिलता है। आप अपने आप को तनाव और चिंता से मुक्त पाएँगे।"
यह पूछे जाने पर कि सरकारी नीतियों और वैयक्तिक स्वतंत्रता में किस प्रकार संतुलन लाया जाए, परम पावन जो प्रायः पहले कह चुके हैं, को दोहराया कि विश्व मानवता का है, नेताओं अथवा शासकों का नहीं। लोकतंत्र सरकार की सबसे अच्छी व्यवस्था है क्योंकि नेता न केवल लोगों द्वारा चुने जाते हैं पर उनके लिए जवाबदेही भी होते हैं। राष्ट्रीय पहचान के संबंध में, उन्होंने कहा कि उस पर बहुत अधिक बल देने पर वह हमें आम मानवता से अलग करता है और 'उन' तथा 'हम' की भावना को और प्रोत्साहित करता है। जहाँ तक धर्मों के बीच संवाद का प्रश्न है, उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति की श्रद्धा अथवा अभ्यास के संदर्भ में एक सत्य, एक धर्म, सत्य है पर एक व्यापक विश्व के संबंध में हमें कई सत्यों तथा कई धर्मों को स्वीकारना होगा और उनके बीच सम्मान को बढ़ावा देना होगा।
एक पत्रकार ने परम पावन को अपने एक मित्र के विषय में बताया जो निर्धन है, उसके पाँच बच्चे हैं और जिसकी पत्नी कैंसर के कारण मरणासन्न है। वह जानना चाहता था कि वह कहाँ से शक्ति प्राप्त करे। परम पावन ने उत्तर दियाः
"बहुत दुख की बात है। पर यदि वह केवल अपनी ही कठिनाइयों के बारे में सोचेगा तो यह असहनीय भावनाएँ बढ़ने लगती हैं। दूसरी ओर यदि वह कई अन्य लोगों के बारे में सोचे जो इसी तरह अथवा इससे भी बहुत अधिक बुरी परिस्थिति में हैं, तो वह कुछ राहत ला सकता है। महत्त्वपूर्ण बात एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना है।"
एक वृत्तचित्र फिल्म निर्माता ने एक फिल्म के विषय में बात की जिससे वह जुड़ी है, जो हाथी दाँत के लिए जिसका एशिया में बौद्धों के बीच एक तेजी से बढ़ता बाजार है, अफ्रीका में हाथियों की हत्या से संबधित है। परम पावन ने उससे कहा कि केवल शिक्षा द्वारा ही ऐसी समस्याओं का समाधान हो सकता है और उसका वृत्त चित्र एक बड़े स्तर पर जनता को शिक्षित करने में मूल्यवान सहयोग देगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या 'सफेद झूठ' बोलना स्वीकार्य है, परम पावन ने भिक्षु और अाखेटक का पारम्परिक उदाहरण दिया। अाखेटक एक जंगली जानवर की खोज में है और उसे एक भिक्षु मिलता है जिससे वह पूछता है कि वह जानवर कहाँ गया। चूँकि उससे नुकसान होगा, यह ऐसा उदाहरण है िजसमें भिक्षु के लिए सच कहना गलत होगा। इसी तरह यह पूछे जाने पर कि अपने परिवार की सहायता के िलए क्या कभी चोरी अथवा नशीली दवा बेचना स्वीकार्य होगा, परम पावन ने उत्तर दिया कि आपको स्वयं निर्णय लेना है कि क्या अपने परिवार की सहायता के लिए किसी और का जीवन बरबाद करना उचित है।
संवाद का अंत परम पावन के इस कथन से समाप्त हुआ कि वे रूसी संघ द्वारा विश्व के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान की अपेक्षा करते हैं, और इस बात की सराहना की कि रूस ने आधिकारिक तौर पर चार धर्मों, रूसी रूढ़िवादी चर्च, इस्लाम, यहूदी और बौद्ध धर्म को मान्यता दी है। बदले में पत्रकार पुनः एक बार परम पावन का स्वागत करने के समय की प्रतीक्षा में थे।
कल परम पावन रूसियों द्वारा किए गए अनुरोध पर तीन दिनों का प्रवचन प्रारंभ करेंगें जब वे शांतिदेव के बोधिसत्त्वचर्यावतार की व्याख्या जारी रखेंगे, जो उन्होंने पिछले साल प्रारंभ किया था।