मनाली, हि. प्र, भारत – बीती रातभर के बारीश के बावजूद कल सुबह भी बारिश जारी थी जब परमपावन दलाई लामा मनाली के लिए रवाना हुये । तिब्बती जनता उन्हें विदाई करने के लिए धर्मशाला से लेकर शहर तक कतार में खड़े थे । परमपावन का काफिला कांगड़ा के निचले क्षेत्रों से गुज़रते समय भी लगातार भारी बारिश हो रही थी ।
हमीरपुर क्षेत्र में पहुंचने पर परमपावन विश्राम के लिए रुके जहां पर किन्नौर और लाहौल-स्पीति के प्रफुल्लित छात्रों ने उनका स्वागत किया । इस दौरान हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल ने परमपावन का दर्शन किया । परमपावन ने उन्हें और उनके साथियों को बताया कि क्यों वे आधुनिक विश्व में प्राचीन भारतीय ज्ञान के पहलुओं को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ।
हमीरपुर से रिवालसर होकर मंडी जाने के लिए सड़क पहाड़ियों की ओर गुज़र रहा था । छ़ो-पेमा (रिवालसर) गुरु पद्मसंभव से सम्बन्धित एक पवित्र तीर्थ स्थान है जो तिब्बती एवं हिमालयी लोगों में अत्यन्त प्रसिद्ध है । परमपावन का काफिला जैसे ही सड़क मार्ग से गुज़र रहा था लोग हाथों में खाताक और अगरबत्ती लेकर उनका अभिवादन कर रहे थे । छ़ो-पेमा के बाद बारिश कम हुयी और धूप निकलने लगी, लेकिन वहां से मंडी तक की सड़क काफी घुमावदार और उतराई थी । परमपावन ने दोपहर का भोजन मंडी के भूतपूर्व राजा के महल में किया जो अब एक होटल है, और आज के लिए परमपावन ने यहीं पर विश्राम किया ।
आज सुबह मौसम साफ था । स्थानीय तिब्बती समुदाय के नेताओं का एक समूह परमपावन के दर्शन के लिए आये । परमपावन के एक पुराने मित्र मंडी निवासी तथा भूतपूर्व पुलिस उपाधीक्षक, जिन्होंने 80 के दशक में परमपावन की सेवा की, उन्होंने परमपावन को मार्ग में अपने घर आने का निमंत्रण दिया और बाद में परमपावन वहां उनके निवास पर गये । मंडी से कुल्लु के लिए परमपावन का काफिले ने एक वैकल्पिक मार्ग को लिया । कुल्लु पहुंचने पर परमपावन विश्राम के लिए रुके और चाय का सेवन किया । कुल्लु के विभिन्न स्थानों पर परमपावन के अभिनन्दन के लिए स्वागत द्वार बनाये गये थे और भारतीय, तिब्बती, भिक्षु-भिक्षुणियों और बच्चे-बुजुर्ग सब परमपावन के स्वागत और दर्शन के लिए खड़े थे ।
मनाली पहुंचने पर परमपावन सीधे होन ङारी मठ में पधारे, जहां गोमाङ मठ के पूर्व मठाधीश भिक्षु लोब्ज़ाङ सामतेन ने उनका स्वागत किया । परमपावन ने आत्मीय भाव से उन्हें गले से लगाया । कुल्लू घाटी के तिब्बती प्रतिनिधि सुश्री तेनज़िन ङावा ने खाताक अर्पण कर उनका स्वागत किया । मठ के प्रांगण में बच्चों ने ‘छेमा-छाङफु’ अर्पण कर तथा टाशी शोल्पा नृतकों ने नृत्य कर एवं तिब्बती लड़कियों ने स्वागत गीत गाकर परमपावन का स्वागत किया । बौद्ध मन्दिर के अन्दर परमपावन ने एक दीप जलाया और बुद्ध, अवलोकितेश्वर आदि प्रतिमाओं को नमन किया । परमपावन के आसन ग्रहण करने पर मठाधीश ने मण्डल अर्पण किया जो बुद्धत्व के काय, वाक् और चित्त को चिन्हित करते हैं ।
“तिब्बत में दूसरे दलाई लामा ज्ञालवा गेदुन ग्याछ़ो द्वारा स्थापित ‘ङा, दाग और ग्याल’ तीन मठ थे जो लामो-छ़ो नदी के किनारे स्थापित ङारी डासाङ, दागपो शेडुपलिङ और छोएखोर ग्याल थे । यहां के मठाधीश रिन्पोछे ने इच्छा व्यक्त की थी कि वे ङारी डासङ को यहां निर्वासन में पुनः स्थापित करना चाहते हैं, इसलिए मैंने सुझाव दिया कि यहां पर इसका पुर्निर्माण करें । मैं उनकी आभारी हूँ कि उन्होंने ऐसा किया और मुझे आमंत्रित किया । आज यहां पर सम्मिलत हुये दूसरे सम्प्रदाय के लामागण को भी मैं धन्यवाद देता हूँ ।”
“हालांकि इन दिनों नये भिक्षुओं का मठ में आना काफी कम हो गया है, फिर भी इस तरह के शिक्षण केन्द्रों को बनाना अति आवश्यक है जिससे न केवल भिक्षु-भिक्षुणियां, बल्कि साधारण जनता भी इसमें अध्ययन कर सकें । बौद्धधर्म श्रद्धा को आधारित कर स्थापना नहीं की गयी थी । तथागत बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्ति के तुरन्त बाद यह विचार आया था कि उन्होंने अमृत रूपी धर्म को जान लिया है लेकिन इसे वे दूसरों को बताना चाहेंगे तो भी लोग इसे समझ नहीं पायेंगे । लेकिन बुद्ध के अनुयायी धीरे-धीरे तर्क-वितर्क के माध्यम से उनकी शिक्षाओं को समझ पाये ।”
परमपावन ने जानना चाहा कि यहां अध्ययनरत छोटे भिक्षुगण कौन से ग्रन्थ याद कर रहे हैं और यह सुनकर प्रसन्न हुये कि वे मूल ग्रन्थ अभिसमयालंकार को याद कर रहे है । उन्होंने उल्लेख करते हुये कहा कि अभिसमयालंकार और मध्यमक सिद्धान्त का संयुक्त रूप से अध्ययन करना अत्यावश्यक है ।
कार्यक्रम के अन्त में परमपावन ने घोषणा की कि वे 13 और 14 अगस्त को ‘चित्त शोधन की अष्ट पदावली’, ‘सैंतीस बोधिपाक्षिक धर्म’ और आचार्य नागार्जुन के ‘बोधिसत्त्व विवरण’ पर प्रवचन देंगे तथा 15 अगस्त को महाकारुणिक आर्यअवलोकितेश्वर अभिषेक प्रदान करेंगे ।