थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., "भाइयों और बहनों, मैं आप सभी से मिलकर खुश हूँ", परम पावन दलाई लामा ने आज अपने निवास पर विश्व के कई भागों से आए लगभग १५० लोगों का स्वागत किया। लगभग ५० लोग, जो अधिकांश रूप से मैक्सिको, कोलंबिया, अर्जेंटीना और चिली से थे, का नेतृत्व मुख्य रूप से चार बौद्ध भिक्षुणियों के एक समूह ने किया था, जिन्होंने मेक्सिको में एक छोटा समुदाय स्थापित किया है। ९० लोगों का एक अन्य समूह स्थानीय तुषिता ध्यान केन्द्र में दस दिन के तिब्बती बौद्ध धर्म के परिचयात्मक पाठ्यक्रम के प्रतिभागियों का था।
परम पावन ने उनसे कहा, "इस ग्रह पर ७ अरब मनुष्य हम सभी समान मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। हम सभी ने एक माँ से जन्म लिया और हम सभी उसकी दया और देखभाल के कारण जीवित रह सके। मनुष्य के रूप में हम सामाजिक प्राणी हैं और यह प्यार और स्नेह है जो हमें एक साथ जोड़ता है।
"इन दिनों वैज्ञानिकों ने ऐसे शिशुओं के साथ प्रयोग किया है, जो अभी इतने छोटे हैं कि बात नहीं कर सकते और निष्कर्ष निकाला कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। अन्य खोज इंगित करते हैं कि निरंतर क्रोध और घृणा हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है, जबकि सामान्य रूप से अधिक करुणाशील व्यवहार का विकास हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सशक्त करता है।
"मानव होने के नाते हम सब बराबर हैं, पर साथ में यह भी सच है कि जलवायु और प्राकृतिक वातावरण में अंतर होने का कारण विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों की अलग-अलग संस्कृतियाँ हैं, जो उनके जीवन की विभिन्न जीवन शैलियों को जन्म देता है। फिर भी, जहाँ भी मैं व्याख्यान देता हूँ, मैं सदैव 'भाइयों और बहनों' के अभिनन्दन से प्रारंभ करता हूँ।"
परम पावन ने कहा कि कई क्षेत्रों में संतोषजनक विकास के बावजूद, आज के विश्व में हम जिस तरह धर्म के नाम पर और हथियारों में संपन्न व्यापार के नाम पर संघर्ष को देखते हैं जो मात्र हत्या के साधन हैं, उससे नैतिक सिद्धांतों में आधारभूत अभाव की कमी परिलक्षित होती है। ऐसी परिस्थितियों में, विश्व की मानव जनसंख्या के अंग के रूप में, हम में से प्रत्येक का विश्व को एक अधिक खुशहाल तथा अधिक शांतिपूर्ण स्थान बनाने में योगदान देने का उत्तरदायित्व है।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने विश्व की प्रमुख धार्मिक परम्पराओं के प्रति अपनी गहरी सराहना व्यक्त की। उन्होंने उन के बीच जैसे बौद्ध धर्म, जो कर्म के महत्व को सिखाता है, अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायित्व लेना है और कई अन्य जो एक सृजनकर्ता ईश्वर में विश्वास के महत्व पर बल देते हैं, के बीच अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने हम मानव भाइयों और बहनों को उस ईश्वर के सृजन के रूप में देखने को एक अद्भुत और शक्तिशाली शिक्षा का रूप बताया।
बौद्ध धर्म के संबंध में, उन्होंने कहा कि एक बार जब बुद्ध ने घर त्याग दिया और आध्यात्मिक अभ्यास में संलग्न होने लगे तो उन्होंने नैतिकता, शमथ और अंतर्दृष्टि के समकालीन परम्पराओं में से ग्रहण किया। इसने वास्तविकता की स्पष्ट समझ के संदर्भ में चित्त व भावनाओं के प्रकार्य की गहन समझ को जन्म दिया - एक सराहना कि, कुछ भी जिस रूप में प्रतीत होती हैं, उस रूप में अस्तित्व नहीं रखती। परम पावन ने बल देते हुए कहा कि जो लोग आज बुद्ध का अनुसरण करना चाहते हैं, उन्हें २१वीं सदी के बौद्ध होने की आकांक्षा रखनी चाहिए, उनका अभ्यास मात्र आस्था पर आधारित न हो, अपितु उसके मूल में ज्ञान और समझ हो।
कई स्थानों पर बढ़ते राष्ट्रवाद के संबंध में उनकी प्रतिक्रिया पूछे जाने पर, परम पावन ने टिप्पणी की कि सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि हम सभी को इस ग्रह पर एक साथ रहना है। वैश्विक अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय सीमाओं से सीमित नहीं होता। जलवायु परिवर्तन एक गंभीर संकट है जिसका संबंध सम्पूर्ण मानवता से है। एक व्यापक परिप्रेक्ष्य लेने की आवश्यकता को देखते हुए, एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाना अवास्तविक, संकुचित दृष्टि और तारीख से परे का प्रतीत होता है।
अंत में, परम पावन से 'चित्त शोधन के अष्ट पदों' के संचरण का अनुरोध किया गया जो भोट भाषा में स्मृति से उसका त्वरित रूप से पाठ करते हुए उन्होंने किया। इस लघु ग्रंथ में परोपकार को लेकर जो सलाह दी गई है उन्होंने उसकी प्रशंसा की और टिप्पणी की कि अंतिम पद का संबंध शून्यता की समझ रखने वाली प्रज्ञा से है। उन्होंने सुझाया कि जो इच्छुक हैं उन्हें एक अन्य पुस्तक पढ़नी चाहिए जिसे उन्होंने निजी रूप से अत्यंत मूल्यवान पाया है - शांतिदेव का 'बोधिसत्वचर्यावतार' विशेषकर छठे और आठवें अध्याय, जो धैर्य और करुणा के विकास से संबंधित हैं।