थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - परम पावन दलाई लामा ने अपने िनवास पर वियतनाम के लगभग ८० व्यापारिक नेताओं, कलाकारों, बुद्धिजीवियों और युवा प्रतिनिधियों के सदस्यों से भेंट की। एक अन्य ५०० ने लाइव टेलीकॉन्फरेंसिंग लिंक पर हनोई, हो ची मिन्ह सिटी और हाय फोंग के साथ वार्तालाप में भाग लिया।
परम पावन ने मानवता की एकता की सराहना करने की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने विश्व में हिंसा की सीमा और जिस तरह गरीबों की उपेक्षा हो रही है जिससे बच्चे भुखमरी का शिकार हो रहे हैं, को लेकर खेद व्यक्त किया।
"इस बीच," उन्होंने आगे कहा, "जो लोग अन्यथा अच्छी तरह से समृद्ध हैं वे न तो सुखी हैं, न ही शांतिपूर्ण हैं। इसके बावजूद वैज्ञानिकों को यह प्रमाण मिलना कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा का स्रोत है। वस्तुतः हम सभी अपने जीवन के प्रारंभ में अपनी माँओं के स्नेह से लाभान्वित हुए हैं। जब कोई अपनी मृत्युशैय्या पर होता है तो यदि वह प्रियजनों से घिरा या घिरी हुई है तो वे शांति से गुजर सकते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक हम सभी को स्नेह की आवश्यकता होती है।
"हम जिन कई समस्याओं का सामना करते हैं, उनमें से कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं क्योंकि हम अपने बीच के गौण अंतरों पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। इसका प्रतिकार मानवता की एकता की गहरी समझ उत्पन्न करना है। यद्यपि हम तिब्बतियों ने चीनी अधिकारियों के कड़े नियंत्रण के कारण बहुत दुःख झेले हैं पर हम इसका उपयोग अपने चीनी भाइयों और बहनों के प्रति वैर को उकसाने के लिए बहाना के रूप में नहीं करते। इसके विपरीत, हमारे सामान्य कल्याण के लिए भाई तथा भगिनीचारे की भावना आवश्यक है।
"पूरे मानव इतिहास के दौरान, हमारे बीच के गौण भेदों जैसे आस्था, रंग और राष्ट्रीयता की ओर अधिक ध्यान देने से जो अंतर उत्पन्न होते हैं, ने हमें केवल दुःख दिए हैं।"
धार्मिक सद्भाव पर अपना ध्यान मोड़ते हुए, उन्होंने टिप्पणी की कि यद्यपि विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ विभिन्न दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं पर उनमें प्रेम, करुणा और आत्म-अनुशासन का एक आम संदेश साझा है जो पारस्परिक सराहना का आधार है।
बौद्ध धर्म की नालंदा परम्परा में शास्त्रार्थ व तर्क की जो विशिष्टता थी उसका बुद्धि व समझ को गहन करने का प्रभाव था जो शंका के महत्व को इंगित करता था तथा 'क्यों' और 'कैसे' के प्रश्न उठाता था।
परम पावन ने श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर दिए। यह पूछे जाने पर कि बिना क्रोधित हुए किस तरह सार्थक जीवन जिया जाए, उन्होंने समझाया कि यद्यपि क्रोध हमारी सुरक्षा करता जान पड़ता है, वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि निरंतर क्रोध और घृणा वास्तव में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करते हैं। उन्होंने दोहराया कि मतभेदों को हल करने में, पारस्परिक लाभकारी समाधान ढूँढना महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारी दुनिया अत्यधिक अन्योन्याश्रित है।
कठिनाइयों का सामना करते हुए हमें यथार्थवादी होना चाहिए। हमें व्यापक परिप्रेक्ष्य लेकर और विभिन्न दृष्टिकोणों से अपनी समस्याओं की जांच करने की आवश्यकता है। यह टिप्प्णी करते हुए कि उनका सम्पूर्ण जीवन विषम परिस्थितियों में बीता है, उन्होंने बल देते हुए कहा कि वे सदैव चित्त की शांति बनाए रखने और अपने मुख पर मुस्कुराहट बनाए रखने में सफल रहे हैं।