थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, आज प्रातः ३३वें माइंड एंड लाइफ संवाद की अंतिम बैठक के संचालक आरोन स्टर्न थे। जैसे ही परम पावन दलाई लामा आये और अपने आसन में विराजमान हुए उन्होंने दिन के दो प्रस्तुतकर्ता सोनिया लुपिएन और पेट्रीशिया जेनिंग्स का परिचय दिया और दोनों ही कक्षा की समस्याएँ और उनके समाधान के बारे में बात करने वाली थीं।
सोनिया लुपिएन ने घोषणा करते हुए प्रारंभ किया कि वह कनाडा की शिक्षिका थीं जो लंबे समय से एसईएल और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता सिखाने का प्रयास कर रही थीं। उस अवधि में उन्होंने पाया है कि कई, संभवतः अधिकांश छात्र सीखने को लेकर समायोजित होते हैं, दूसरों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वह सोच रही थीं कि इसका क्या करण था। उन्होंने देखा कि इस लड़की के माता-पिता तलाक की प्रक्रिया में थे, उस लड़के पर धौंस जमाया जा रहा था और दूसरी की बहन बीमार थीं। यह अनुभूत करने के लिए २५ वर्ष लग गए कि इनमें से प्रत्येक बच्चा तनाव ग्रस्त था।
जब उन्होंने विज्ञान की ओर देखा तो उन्होंने पाया कि जब मस्तिष्क तनाव देखता है तो हार्मोन निकलते हैं। ये पुनः मस्तिष्क में वापस आते हैं जहाँ वे विशेष रूप से चयनात्मक ध्यान को प्रभावित करते हैं, जिसके द्वारा हम भेद करते हैं कि क्या प्रासंगिक है और सीखने के सामान्य संकाय। परम पावन ने पूछा कि क्या इसका उपचार औषधि द्वारा नहीं किया जा सकता और लुपियन ने समझाया कि इस ओर प्रयास हुआ है और यह पाया गया कि कुछ हार्मोन को सीमित करना दूसरों को प्रभावित करता है और इस तरह स्वास्थ्य के पूरे संतुलन को बिगाड़ता है। उन्होंने बताया कि तनाव निरपेक्ष और सापेक्ष्य हो सकता है। निरपेक्ष तनाव को अस्तित्व के संकट से प्रेरित किया जाता है। सापेक्ष्य तनाव नया, अप्रत्याशित, स्वयं की भावना के लिए संकट और नियंत्रण को दूर करने की भावना है, जिसका संक्षिप्त नाम है एनयूटीएस।
एक बार जब यह समझा गया कि बच्चे तनाव से प्रभावित होते हैं और अपने माता-पिता के तनाव से प्रभावित होते हैं, तो उसके प्रतिकार हेतु उपाय तैयार किए गए। डीस्ट्रैस फॉर सकसेस नाम के एक कार्यक्रम का विकास किया गया था जो बच्चों और किशोरों को यह सीखने में सहायता देता है कि तनाव क्या है, इसे कैसे पहचाना है और अपने जीवन में इससे किस तरह निपटा जा सकता है। यह कार्यक्रम छात्र जो पहले से ही जानते हैं उन्हें और आगे बढ़ाने में सहायता करता है और उन्हे वह ज्ञान देता है कि तनाव मस्तिष्क और शरीर को किन रूपों में प्रभावित करता है, उसकी पहचान कर सकें। इसे जहाँ भी लागू किया गया है, यह क्रोध, तनाव और अवसाद को कम करने में सफल रहा है। लुपिएन ने बताया कि अब तक ६५,००० बच्चों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया है और वे परम पावन की टिप्पणी से उत्साहित हुई हैं कि एक छोटा कार्य एक बीज बन सकता है जो विकसित होता है।
परम पावन ने कई प्रश्न पूछे और पुष्टि की कि तनाव प्रायः क्रोध का नकारात्मक प्रभाव होता है। वह जानना चाहते थे कि क्या डीस्ट्रैस फॉर सकसेस का उपयोग वयस्कों द्वारा किया जा सकता है और सुना कि यह सफल है, जिसके परिणामस्वरूप तनाव और तनाव संबंधी हार्मोन कम हो जाते हैं। ल्यूपिन सहमत थीं कि क्रोध और तनाव के अस्तित्व के संबंध में एक न्यायसंगत प्रकार्य हो सकता है, पर हममें से किसी को इसकी बहुत अधिक आवश्यकता नहीं है। रिचर्ड डेविडसन ने टिप्पणी की कि कुछ लोग संभवतः यह नहीं जानते कि उनमें तनाव है जो इसे नियंत्रित करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
लुपियन ने परम पावन से कनाडा में अपने मित्र की ओर से एक प्रश्न पूछा जो जानना चाहते थे कि क्या वे सोचते हैं कि कृत्रिम बुद्धि के साथ काम करने वाले वैज्ञानिक अंततः कृत्रिम चेतना पैदा करने में सक्षम होंगे। उन्होंने कुछ शंका व्यक्त की और डेविडसन ने कहा कि कई वैज्ञानिक सहमत हैं।
पेट्रीशिया जेनिंग्स ने शिक्षकों में तनाव को देखने के विषय में बात की। उन्होंने इस ओर देखा कि कक्षाएँ तनाव का स्रोत क्यों थी और पाया गया कि कुछ शिक्षक भावनात्मक रूप से थककर चूर हो गए हैं। उन्होंने यह भी पाया कि कक्षा में हर कोई सीमित है। इस ओर सीएआरई - कल्टिनेटिंग अवेरनेस एंड रेसिलियन्स इन एजुकेशन - एक कार्यक्रम जिसे शिक्षकों को तनाव कम करने और जागरूकता, उपस्थिति, करुणा, चिंतन तथा प्रेरणा के विकास द्वारा उनके शिक्षण को जीवंत करने के लिए बनाया गया है।
उन्होंने टिप्पणी की, कि अधिकांश शिक्षक करुणा की एक प्रबल भावना के साथ अपना कार्य प्रारंभ करते हैं। सीएआरई में उन्हें अपने ध्यान पर निगरानी रखने हेतु सिखाया जाता है, इस पर ध्यान देने के लिए कि कब तनाव बढ़ता और वे इस तरह के कदम उठाएँ, जैसे शांत होने के लिए श्वास पर ध्यान देना और अधिक प्रभावी रूप से प्रतिक्रिया के लिए। निरीक्षण किए गए परिणामों में शिक्षकों की बेहतर भावनात्मक विनियमन, बेहतर कक्षा वातावरण और बेहतर छात्र परिणाम शामिल हैं। जेनिंग्स ने महत्वपूर्ण बिंदु बताया कि इस रूप में शिक्षक न केवल कौशल सिखाते हैं, वे उन्हें साकार करते हैं। उन्हें अपनी कक्षा को बताने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, कि "मैं तनाव का अनुभव कर रहा हूँ और मैं शांत होने के लिए कदम उठा रहा हूँ", इस तरह वे भी छात्रों द्वारा अनुपालन के लिए एक प्रारूप प्रदान करते हैं।
जेनिंग्स ने यह भी उल्लेख किया कि सीएआरई को सफलतापूर्वक एसईएल के साथ शिक्षा प्रणाली में शामिल किया गया है जिसको लुइसविले में विकसित किया जा रहा है, लुइसविले - करुणा का नगर जिसका नेतृत्व परम पावन के मित्र मेयर फिशर कर रहे हैं। डेन गोलमैन ने आगाह का एक स्वर उठाया कि यूके में एसईएल को सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से लागू किया गया है, पर इसका क्रियान्वयन खराब तरीके से हुआ है क्योंकि शिक्षक इसे तनाव का एक अन्य स्रोत मानते हैं। सोना दिमिद्जियन ने आज युवा लोगों के साथ साझेदारी के महत्व की बात की कि उन्हें अपनी आवाज़ उठाने के लिए सहायता दी जाए जब वे परिवर्तन के लिए एक प्रबल शक्ति बन गए हैं।
अमिशी झा ने सेना के सदस्यों को संदर्भित किया, जिन्होंने ध्यान प्रशिक्षण में भाग लिया है, पर पाठ्यक्रम समाप्त होने के बाद वे इसे जारी नहीं रखते। उन्होंने परम पावन से पूछा कि लोगों को किस तरह प्रोत्साहित किया जाए कि वे जो कुछ सीखें उसे अपने दैनिक जीवन में उपयोग में लाएँ।
"शंका तनाव और भय सभी क्रोध से संबंधित हैं," उन्होंने उत्तर दिया "और इनका संबंध एक आत्म-केंद्रित व्यवहार से है। यह कुछ सप्ताह या कुछ वर्षों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। मैं ८२ वर्ष का हूँ और मैं ७० वर्षों से इस पर काम कर रहा हूँ। मात्र तनाव को कम करना उपयोगी है, पर वह सतही है; हमें इसके अंतर्निहित कारणों का परीक्षण करना होगा। बौद्ध ध्यानाभ्यासों में विशिष्ट नकारात्मक भावनाओं के लिए विशिष्ट प्रतिकार सुझाए जाते हैं, पर उनका प्रभाव मात्र अस्थायी रूप से होता है। एक स्थायी समग्र प्रभाव के लिए यथार्थ की एक गहन समझ विकसित करने की आवश्यकता है।
"बुद्ध शमथ तथा विपश्यना के वातावरण से उभरे। ये अभ्यास पहले से ही उपस्थित थे। जिसका परिचय उन्होंने दिया, वह अंतर्दृष्टि के प्रति एक नया दृष्टिकोण था, यथार्थ की एक नई समझ। कुछ हद तक यह उससे मेल खाता है जो आज के क्वांटम भौतिकविद कहते हैं। बुद्ध ने मानव अवस्था की एक अधिक परिष्कृत, गहन अंतर्दृष्टि प्राप्त की, परन्तु उन्होंने सोचा, 'यह अमृत मय धर्म मैंने प्राप्त किया है जो गहन व शांतिमय, प्रपञ्च मुक्त, असंस्कृत प्रभास्वरता है, फिर भी यदि मैं इसकी देशना दूँ तो कोई समझ न पाएगा, अतः मैं अरण्य में मौन रहूँगा।
"उस समय लोग शमथ का अभ्यास करते थे, ध्यान विकसित किया और एक स्वतंत्र स्व के अस्तित्व में विश्वास करते थे - बुद्ध ने उसे नकारा। यथार्थ के विषय में उनकी नई समझ, कि ऐसा कोई स्व नहीं है, उन्हें यह समझ दी कि दुख का मूल अज्ञान में निहित है और चूँकि यथार्थ की समझ से अज्ञान दूर हो सकता है तो दुख निरोध संभव है।
"बाद में, नागार्जुन ने व्याख्यायित किया:
कर्म और क्लेशों के क्षय में मोक्ष है;
कर्म और क्लेश विकल्प से आते हैं,
विकल्प मानसिक प्रपञ्च से आते हैं,
शून्यता में प्रपञ्च का अंत होता है।
तथा
इच्छा, घृणा और भ्रम
पूर्ण रूप से धारणा से उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहा जाता है।
वे सभी उत्पन्न होते हैं
सुखद, अप्रिय, और त्रुटियों पर निर्भर होकर
"उनके शिष्य आर्यदेव ने भी यह संकेतित किया कि यथार्थ की एक स्पष्ट समझ कैसे महत्वपूर्ण हो सकती है:
जैसे-जैसे स्पर्श भाव [व्याप्त होता है] शरीर में
भ्रम की उपस्थिति है सभी [क्लेशों] में
भ्रम पर काबू पाकर आप
सभी क्लेशों पर भी पर काबू पाएंगे।
"यथार्थ को समझने के लिए कि किसी का भी स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता परोपकारिता की भावना से जुड़कर बहुत शक्तिशाली है।"
चाय के अंतराल के उपरांत रिचर्ड डेविडसन ने परम पावन से पूछा कि उन्होंने जो कुछ पहले ही कहा है उसकी पृष्ठभूमि में शून्यता की समझ के लिए किस तरह एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण विकसित करना संभव है। परम पावन ने उत्तर दिया कि ऐसे प्रश्न के लिए उन्हें कुछ पृष्ठभूमि देने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
"आज जीवित सात अरब मनुष्यों में से एक हूँ। हममें से प्रत्येक का मानवता और विश्व कल्याण के बारे में सोचने का उत्तरदायित्व है क्योंकि यह हमारे अपने भविष्य को प्रभावित करती है। हम इस समय इस ग्रह पर समस्याएँ खड़ी करने के लिए पैदा नहीं हुए थे अपितु कुछ लाभ लाने के लिए। यह ऐसा कुछ है जिसके लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ, जैसे मैं धार्मिक सद्भाव को भी बढ़ावा देता हूँ और तिब्बती संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास करता हूँ। इसका कारण यह है कि केवल तिब्बत में ही भारत की नालंदा विश्वविद्यालय की परम्पराएँ जिसमें यथार्थ की गहन समझ और चित्त तथा भावनाओं के कार्य की गहरी समझ अक्षुण्ण रूप से संरक्षित की गई थी। हमने इसे श्रमसाध्य अध्ययन तथा तर्क और कारण के व्यवहार द्वारा प्राप्त किया। मुझे बौद्ध धर्म का प्रचार करने में कोई रुचि नहीं है, मैं मात्र इससे संबंधित ज्ञान जो यह सम्प्रेषित करता है, को उपलब्ध कराने को लेकर सोचता हूँ। और इस लक्ष्य में माइंड एंड लाइफ ने जो रुचि दिखाई है उसके लिए मैं आभारी हूँ।"
डेविडसन ने सप्ताह की कार्यवाही के सारांश को समाप्त करते हुए यह स्वीकार किया कि वैज्ञानिक मस्तिष्क के बारे में कुछ जानते हैं, पर चित्त के बारे में बहुत कम जानते हैं और ध्यान परम्पराओं के साथ व्यवहार से सीख रहे हैं। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि परम पावन दीर्घायु हों और उन्हें प्रेरित करते रहें।
माइंड एंड लाइफ की अध्यक्षा सुसन बाउर-वू ने अपने धन्यवाद के शब्दों में यह माना कि यह सप्ताह उल्लेखनीय रहा है, न केवल कक्ष में उपस्थित लोगों के लिए अपितु प्रति दिन ५००,००० लोगों के लिए भी जिन्होंने वेबप्रसारण द्वारा उसका अनुपालन किया था। उन्होंने बैठकों के दौरान आतिथ्य के लिए नमज्ञल विहार को धन्यवाद किया। उन्होंने अतिथियों, संकाय, माइंड एंड लाइफ बोर्ड और कर्मचारियों और उदार दाताओं और समर्थकों को धन्यवाद दिया जिन्होंने बैठक को संभव बनाया। उन्होंने विशेष रूप से दलाई लामा ट्रस्ट, भारत और उनके 'अद्भुत टीम' के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। अंत में, उन्होंने अपने समय के अपने उदार उपहार के लिए परम पावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
उन्होंने उत्तर दिया कि वह इसे अपना कर्तव्य मानते हैं और वे शांतिदेव को एक और श्लोक से प्रेरित हैं:
बोधिचित्त के अश्व पर आरूढ़ होकर
जो सभी नैराश्य व थकान को दूर करता है,
कौन, जब वे इस चित्त के बारे में जानेंगे जो आनन्द से आनन्द की ओर भागता है
क्या कोई नैराश्य में डूबेगा?
"मैं खुश हूँ कि मैंने एक छोटा सा योगदान दिया है। समय गतिशील है। यदि हम मूर्खता से इसका प्रयोग करते हैं तो हम इसे व्यर्थ कर देते हैं, पर यदि हम सेवा कर सकें तो यह उचित है। हमारे साथी मनुष्य, जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से हमारे समान हैं, वे ही हैं जिनकी हम वास्तव में सहायता कर सकते हैं। यही कारण है कि शिक्षक की दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए एक सच्चा समर्पण ताकि उन्हें प्रभावशाली होने के लिए अवसर प्राप्त हो।
"शारीरिक रूप से हम अब तितर - बितर हो रहे हैं, पर मानसिक रूप से हम साथ रहेंगे। अगली बार मिलेंगे।"