बोधगया, बिहार, भारत, आज प्रातः परम पावन दलाई लामा ने सूर्य से आलोकित नीले नभ तले तिब्बती विहार से प्रस्थान किया। उन्होंने महाबोधि स्तूप तक की उस छोटी दूरी को गाड़ी से तय किया, जहाँ आज ञिङ्मा परम्परा का प्रार्थना महोत्सव प्रारंभ हुआ। बोधगया में अपने वर्तमान प्रवास के दौरान परम पावन की स्तूप की यह तीसरी यात्रा थी। एक बार पुनः उन्होंने बोधि वृक्ष के पश्चिमी दिशा में अंदर के प्रांगण को घेरती पत्थर की रेलिंग से होते हुए गर्भगृह की परिक्रमा की, जहाँ उन्होंने बुद्ध की मूर्ति के समक्ष अपना सम्मान व्यक्त किया तथा दीप प्रज्ज्वलित किया। तत्पश्चात उन्होंने जालियों से झांकते लोगों का मुस्कुराते हुए अभिनन्दन किया और अपनी प्रदक्षिणा पूरी की और बोधि वृक्ष तथा वज्रासन के समक्ष अपना आसन ग्रहण किया।
उनकी बाईं ओर लामा जैसे कथोक गेचे रिनपोछे बैठे थे और उनके दाहिने ओर वर्तमान गदेन ठिपा और उनके पूर्ववर्ती तथा अन्य लामा थे। उनके समक्ष एक थंगका लटका था जिसमें चौदह दलाई लामाओं को चित्रित किया गया था।
जारी प्रार्थना समारोह के साथ मिलकर नमज्ञल विहार ने दलाई लामा की वंशावली के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए प्रार्थना और स्तुति का संग्रह आयोजित किया था। उन्होंने 'तीन भागों में दैनिक अभ्यास' नाम से बुद्ध की स्तुति के साथ प्रारंभ किया तथा जे चोंखापा के 'प्रतीत्य समुत्पाद की शिक्षा के लिए बुद्ध की स्तुति', 'सत्य दुंदुभी बुद्ध की वंदना', 'नालंदा के १७ पंडितों की स्तुति', ठुलशिक रिनपोछे की 'अमृतमय आशीर्वाद मेघ' जो अवलोकितेश्वर की अवतरित वंशावली के गुणों की समीक्षा करता है जिसमें दलाई लामा शामिल हैं, बुद्ध तथा बोधिसत्वों की वंदना, जिसके साथ शुद्धीकरण प्रक्रिया जुड़ी है, 'समर्पण मेघ', 'समन्तभद्रचरी प्रणिधान प्रार्थना', 'तिब्बत के धर्मपालों की वंदना', 'मुनि' 'सत्य का गीत' - जो साम्प्रदायिकता के बिना शिक्षा के प्रसार के लिए प्रार्थना है, 'सत्य वचन' और बुद्ध का 'धर्म के फलने फूलने के लिए प्रार्थना' तक जारी रखा।
सम्पूर्ण सस्वर पाठ परम पावन द्वारा रचित एक छंद के साथ समाप्त हुआ:
उन अनिष्टार्थी सत्वों द्वारा जो भी किया जाता है
फिर वे दृश्यमान या अदृश्य हों -जो अपनी विकृत आकांक्षाओं के कारण
अतीत में, बौद्ध शिक्षाओं के प्रतिरोधी रहे हैं,
वे त्रिरत्न के सत्य से निर्मूल हों
तिब्बती विहार में लौटकर परम पावन ने पूरे वियतनाम के १७० पेशेवरों के एक समूह से भेंट की।
उन्होंने उनसे कहा, "आपका जो कुछ विशिष्ट पेशा हो फिर चाहे वह लाभ लाए या हानि, वह आपकी प्रेरणा पर निर्भर करता है। यदि आप आत्म - केंद्रित हैं तो एक शिक्षक के रूप में काम करना अच्छा प्रतीत हो सकता है, पर वास्तविकता भिन्न हो सकती है। जैसा मैंने कहा, सब कुछ आपकी प्रेरणा पर निर्भर करता है। बुद्ध ने सदैव बल दिया कि हमें अपने चित्त को शुद्ध करने की आवश्यकता है, अतः हमें इस तरह के विश्लेषण की आवश्यकता है कि किस तरह की मानसिक स्थितियां उपयोगी हो सकती हैं और कौन सी हमारे लिए संकटपूर्ण हो सकती हैं।
"क्रोध, घृणा और ईर्ष्या जैसे मानसिक क्लेश हानिकारक हैं क्योंकि वे हमारे चित्त की शांति को विचलित करते हैं। चिकित्सा शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि निरंतर क्रोध व भय हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करते हैं। क्रोध को कम करने के लिए हमें धैर्य तथा सहिष्णुता की आवश्यकता है, परन्तु सबसे प्रभावी कदम सौहार्दता उत्पन्न करना है। इसके अतिरिक्त मानवता की एकता के बारे में सोचना महत्वपूर्ण है - कि किस तरह मानव होने के नाते हम सभी समान हैं। क्योंकि मैं स्वयं को मात्र एक और इंसान के रूप में सोचता हूँ, जिसमें मुझे लेकर कोई विशेषता या विभिन्नता नहीं, जिनसे भी मैं मिलता हूँ मैं उन्हें भी एक अन्य इंसान के रूप में देखता हूँ, फिर चाहे उनकी जाति, आस्था या राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
"बौद्ध जीवन के बाद जीवन के विचार को स्वीकार करते हैं और भविष्य में अच्छे पुनर्जन्म को प्राप्त करने की कुंजी अपने वर्तमान जीवन को एक सार्थक रूप से जीना है। और इसका अर्थ दूसरों का किसी रूप में अहित न करना और दूसरों की सहायता करना है।"