शिवाछेल, लेह, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, आज परम पावन दलाई लामा का ८३वां जन्मदिन था। वह शिवाछेल फोडंग के अपने निवास के प्रार्थना कक्ष में ७ बजे आए तथा उनके दीर्घायु तथा स्वास्थ्य के लिए हो रही प्रार्थनाओं में निजी कर्मचारियों तथा निकट परिचरों के साथ सम्मिलित हुए। दोर्जे यमक्योंग और ञेनछेन थंगला के भविष्यवाणी कर्ता दोनों ने तन्द्रावस्था में अपना सम्मान व्यक्त किया।
प्रार्थना के समाप्त हो जाने के बाद, सशक्त अच्छे स्वास्थ्य का प्रदर्शन करते हुए परम पावन फोडंग से ५०० मीटर की दूरी पर शिवाछेल प्रवचन मंडप बिना किसी सहायता के चले। वे अकसर सैकड़ों शुभचिंतकों का अभिनन्दन करने तथा उनसे बातचीत करने के लिए रुके, जो मार्ग के दोनों ओर पंक्तिबद्ध थे। मंडप पहुंचने पर, उन्होंने बुद्ध की मूर्ति के समक्ष एक नवनीत दीपक प्रज्ज्वलित किया। सामने मंच पर आकर वे लोगों का, जिनकी संख्या अनुमानतः २५,००० थी, का निकट से अभिनन्दन करने के लिए उत्तर व दक्षिण कोनों तक चले। हर कोई भारतीय और तिब्बती राष्ट्रीय गानों के लिए खड़ा हुआ जिसके उपरांत परम पावन के जन्मदिन का समारोह मनाने का एक गीत था।
लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष छेवंग ठिनले ने बुद्ध को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए और परम पावन, गदेन ठिसूर रिनपोछे, डिगुङ छेछंग रिनपोछे, ठिकसे रिनपोछे तथा अन्य टुल्कु, संघ समुदाय के सदस्य और गणमान्य व्यक्ति, जिनमें केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष डॉ लोबसंग संगे, संसद सदस्य थुबतेन छेवांग, लेह विधायक रिगज़िन जोरा, लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद ज्ञल पी वांज्ञल, तिब्बती और लद्दाखी शामिल थे, के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए प्रारंभ किया। उन्होंने हर्ष व्यक्त किया कि परम पावन स्वस्थ प्रतीत हो रहे हैं और सभी को उनका जन्मदिन मनाने हेतु आने के लिए धन्यवाद दिया।
छेवंग ठिनले ने घोषणा की कि परम पावन की सलाह के अनुसार लद्दाख बौद्ध संघ ने बुद्ध की शिक्षाओं के अस्तित्व को सुनिश्चित करने की इच्छा से भाषा और संस्कृति की कक्षाएं स्थापित की हैं।परम पावन को लद्दाख आते रहने के लिए अनुरोध करते हुए, उन्होंने घोषणा की, कि उनके जन्मदिन पर लद्दाखी लोगों का उपहार उन्होंने जो कहा उसे अभ्यास में लाना था।
गीत और नृत्य प्रस्तुतियों की श्रृंखला में पहला कार्यक्रम शम घाटी के एक समूह द्वारा किया गया था।
निर्वासित तिब्बती संसद का एक वक्तव्य स्थानीय तिब्बती प्रतिनिधि दोनडुब छेरिंग द्वारा पढ़ा गया। इसने निर्वासन और तिब्बत में वर्तमान स्थिति में परम पावन की उपलब्धियों का सारांश था और जो भारत सरकार के प्रति कृतज्ञता के भाव के साथ समाप्त हुआ।
तत्पश्चात् एक लद्दाखी सांस्कृतिक दल, दोर्जे स्तगमो और दोस्तों, ने पारंपरिक सफेद छुबा तथा उठे हुए अंगूठे के जूते पहने लद्दाखी लोक गीत का प्रदर्शन किया।
लद्दाखी मुसलमानों की ओर से बोलते हुए, शिया मुस्लिम कल्याण संगठन अंजुमन इमामिया के अशरफ अली बरचा ने परम पावन को उनके जन्मदिन पर बधाई दी तथा उनकी लम्बी उम्र की दुआ की। उन्होंने आगे कहा कि लद्दाखी खुशकिस्मत थे कि परम पावन, दुनिया में अमन के सच्चे दूत, उनके क्षेत्र का अकसर दौरा करते थे। उन्होंने सभी लद्दाखियों से मज़हबी अमन कायम रखने के लिए परम पावन के सलाह को पूरा करने की ज़िम्मेदारी लेने को कहा।
लद्दाख पब्लिक स्कूल, लोमडोन स्कूल, महाबोधि स्कूल और डुग पेमा करपो स्कूल की छात्राओं ने एक रमणीय गीत और नृत्य प्रस्तुत किया।
तवांग फाउंडेशन के निदेशक, मलिंग गोनबो ने स्मरण किया कि नालंदा परम्परा पहली बार तिब्बत में स्थापित की गई थी और बाद में हिमालयी क्षेत्र में इसका विस्तार हुआ। उन्होंने गुड़गांव में हाल ही में हुए सम्मेलन का उल्लेख किया जिसमें लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के प्रतिनिधियों के साथ-साथ दक्षिण भारत में तिब्बती विहारों ने संस्कृति तथा अस्मिता के बारे में चर्चा की।
सम्मेलन के समापन पर प्रतिभागियों ने हिमालयी क्षेत्र में मंदिरों और विहारों में नालंदा परम्परा में संरक्षित प्राचीन भारतीय ज्ञान के अध्ययन को सक्षम करने के लिए एक पाठ्यक्रम तैयार करने का संकल्प किया। योजना में आम लोगों और साथ ही भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को शामिल करने का विचार है। लोछेन रिनपोछे ने प्रस्ताव की एक प्रति परम पावन को प्रस्तुत की।
छेरिंग छोडोन तथा उनकी महिला सहयोगियों ने एक और परंपरागत लद्दाखी लोक गीत और नृत्य प्रस्तुत किया।
लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद, ज्ञल पी वांज्ञाल ने परम पावन की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके द्वारा रखे उदाहरण का हर कोई अनुसरण कर सकता है।
तिब्बत के तीन प्रांतों के लोगों के एक समूह ने दर्शकों का तिब्बती ल्हमो या ओपेरा परम्परा से लिए गए प्रदर्शन के साथ मन मोह लिया उन्होंने सीधे सादे ढोल व झांझ की संगत में गीत व नृत्य प्रस्तुत किया।
मंगोलिया के बौद्धों की ओर से वोसेर रिनपोछे ने परम पावन के प्रति श्रद्धा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह तीसरे दलाई लामा, ज्ञलवंग सोनम ज्ञाछो के साथ संबंधों के कारण था कि मंगोलिया दृढ़ रूप में बौद्ध क्षेत्र के रूप में स्थापित हो गया। फिर, २०वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बौद्ध धर्म पर हमला हुआ और देश ने विनाश तथा दुःख की अवधि में प्रवेश किया।
१९७९ में, परम पावन ने पहली बार मंगोलिया की यात्रा की। परिणामस्वरूप मंगोलियाई छात्रों ने प्रशिक्षण व अध्ययन के लिए पुनर्स्थापित तिब्बती महाविहारों, चिकित्सा संस्थानों और स्कूलों में प्रवेश लिया। अब योग्य शिक्षकों की एक नई पीढ़ी है, जिन्होंने तर्क और दर्शन के श्रमसाध्य अध्ययन को पुनः प्रारंभ किया है। मंगोलियाई इस के लिए परम पावन के आभारी हैं तथा इस प्रार्थना में एक साथ जुड़ते हैं कि वे दीर्घायु हों।
केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष डॉ लोबसंग सांगे ने अपना भाषण आज के कार्यक्रमों के आयोजन के लिए लद्दाख बौद्ध संघ को धन्यवाद देते हुए प्रारंभ शुरू किया। उन्होंने कहा, "मैं वास्तव में सम्मानित व विनम्रता का अनुभव कर रहा हूँ, इस सुन्दर स्थान पर, आप दयालु लद्दाखी लोगों के बीच, परम पावन की उपस्थिति में महान १४वें दलाई लामा के जन्मदिन का समारोह देखने में सक्षम हूँ। आप वास्तव में भाग्यशाली हैं। कई लोग उन्हें कुछ क्षणों के लिए देखने के लिए प्रार्थना करते हैं और वे यहां आपके साथ तीन दिनों तक नहीं, अपितु तीन सप्ताह तक रहने वाले हैं।"
उन्होंने टिप्पणी की कि १९३५ में इस दिन परम पावन का जन्म तिब्बत के एक दूरस्थ भाग तकछेर में हुआ था। छह वर्ष की आयु में वे सिंहासन पर बैठे, औपचारिक रूप से १६ वर्ष की आयु में तिब्बत के आध्यात्मिक और राजनीतिक मामलों का उत्तरदायित्व लिया तथा चीनी साम्यवादियों द्वारा देश पर कब्जा करने के बाद चौबीस वर्ष की आयु में निर्वासित हो गए जिसके बाद उन्होंने विश्व पर एक बड़ा प्रभाव डाला। उन्होंने परम पावन को सुख, प्रेम और करुणा के साकार के रूप में वर्णित किया। उन्होंने दिल्ली सरकार के सुख के पाठ्यक्रम के प्रारंभ उनके हाल ही में सम्मिलित होने के बारे में बताया तथा उनके धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के निरंतर प्रचार को मानव शांति और सुख में उनके योगदान के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।
सिक्योंग ने टिप्पणी की कि यदि भारत वास्तव में पहली श्रेणी में आना चाहता है तो उसे स्मरण रखना चाहिए कि अतीत में नालंदा एशिया में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय था और बौद्ध धर्म भारत का सबसे श्रेष्ठ निर्यात था। इन दिनों परम पावन इस देश में चित्त और भावनाओं के प्रकार्य के प्राचीन भारतीय ज्ञान की सराहना को पुनर्जीवित करने के लिए अथक रूप से काम कर रहे हैं।
लेह और जंगथंग के तिब्बती निवासियों की तरफ से कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में परम पावन को सोने व चांदी का धर्म चक्र प्रस्तुत किया गया। इसके बाद उन सभी कलाकारों, जिन्होंने पहले कार्यक्रम प्रस्तुत किया था, ने मिलकर एक मंगल गीत गाया।
परम पावन से कुछ शब्द कहने के अनुरोध किए जाने पर वे मंच के समक्ष आए जहाँ से वे उन लोगों के चेहरे देख सकते थे जिन्हें वे संबोधित कर रहे थे।
"मेरे जन्मदिन के इस समारोह में यहां गदेन ठिसूर रिनपोछे हैं जिनसे मुझे महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिली हैं। यहाँ डिगुङ छेछंग रिनपोछे, अन्य प्रतिष्ठित लामा और विद्वान और लोगों की एक विशाल सभा भी है। उस दिन जब मैं लेह में पहुंचा तो आकाश मेघाच्छन्न था और मैं सोच रहा था कि संभवतः आज वर्षा होगी, पर उसके स्थान पर सूरज तप रहा है। मुझे आज सद्भावना के कई संदेश प्राप्त हुए हैं और मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने उन्हें भेजा है।
"जब लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष ने घोषणा की, कि वे अध्ययन और अभ्यास के बारे में मेरी सलाह को कार्यान्वित करने के लिए काम कर रहे थे तो मैं वास्तव में प्रसन्न था। हम सभी सत्वों के हित के लिए प्रार्थना करते हैं और जब हम रात के नभ को देखते हैं तो हम असीमित ग्रहों और सितारों को अनंत आकाशगंगाओं को देख पाते हैं जहां ऐसे अनंत प्राणी हैं। यह दुनिया उस ब्रह्मांड का भाग है और इस धरती पर कई पक्षी, जानवरों और कीड़े हैं, पर हम उनके लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते। जिन प्राणियों की हम सहायता कर सकते हैं वे ऐसे इंसान हैं जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से हमारे जैसे हैं। मेरा लक्ष्य उनके लिए शांति और सुख लाने का प्रयास करना है।
"यदि आप निरंतर क्रोध में हैं तो आप दुखी होंगे और आपका स्वास्थ्य प्रभावित होगा लेकिन यदि आप दूसरों के प्रति करुणाशील हैं तो आप सुखी व स्वस्थ होंगे।
"मैं अपनी विभिन्न धार्मिक परंपराओं के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भी चिंतित हूं, जो सहिष्णुता, प्रेम और करुणा का एक आम संदेश सम्प्रेषित करते हैं। उनके विभिन्न दार्शनिक विचार सभी इन गुणों को बढ़ावा देने के साधन हैं। यहां लद्दाख में धार्मिक सद्भाव में बना हुआ है - कृपया इसे बनाएँ रखें और जब भी संभव हो दूसरों को इसके लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। यह ऐसा कुछ है जिसे हम अपने तरीके से कर सकते हैं।
"मेरी तीसरी प्रतिबद्धता एक तिब्बती के रूप में है। तिब्बत के लोग मरणासन्न श्वास में मेरा नाम लेते हैं, अतः स्पष्ट रूप से, उनमें से अधिकांश मुझ पर विश्वास रखे हुए हैं। तिब्बती लोगों का मुद्दा एक उचित और योग्य मुद्दा है। साथ ही साथ हिम भूमि के लोगों के प्रति उत्तरदायित्व के रूप में मैं तिब्बत की संस्कृति और भाषा को संरक्षित रखने के लिए काम करने के लिए बाध्य अनुभव करता हूं।
"तिब्बती धर्म और संस्कृति को जीवित रखना तिब्बतियों और हिमालयी क्षेत्र के लोगों के कंधों पर है। महान भारतीय आचार्य वसुबंधु ने सलाह दी कि बुद्ध की शिक्षाओं को अागम और अधिगम के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उन्हें जीवित रखने के लिए हमें उनका अध्ययन और अनुभव दोनों करने की आवश्यकता है। इसका मतलब शास्त्रों को पढ़ना और शील, समाधि तथा प्रज्ञा की तीन अधिशिक्षाओँ का प्रयोग करके सीखना है - दूसरे शब्दों में अध्ययन और अभ्यास।
"लोछेन रिनपोछे ने मुझे इस सलाह को लागू करने के लिए उन प्रयासों के बारे में बताया है जो हिमालयी क्षेत्र में मंदिरों और विहारों को शिक्षण केंद्रों में बदलकर किए जा रहे हैं। समय निरंतर चलता रहता है। हम अतीत को नहीं बदल सकते, पर हम भविष्य को आकार दे सकते हैं। यही कारण है कि ये स्कूली बच्चों को वास्तव में आशा का स्रोत है।
"आप लद्दाखियों में शास्त्रों के संग्रह से पहले ' छग-छल, मैं शास्त्रों के समक्ष श्रद्धा अर्पित करता हूँ, कहने की प्रवृत्ति है, पर उनके विषय को पढ़े और अध्ययन किए बिना सम्मान के इन शब्दों का अधिक प्रभाव न होगा।"
अपने मुस्लिम मित्रों की ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा कि वे जानते थे कि वे अपनी धार्मिक शिक्षाओं को अल्लाह से जोड़ते हैं, पर वे नालंदा परम्परा के तर्क और कारण से स्वयं को लाभान्वित कर सकते हैं।
"बस इतना ही," उन्होंने समाप्त किया, "क्या आप को भूख लगी है?"
सोनमलिंग तिब्बती आवास के छेतेन वंगचुग द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव के बाद, परम पावन गाड़ी से शिवाछेल फोडंग लौट गए। भोजन कक्ष में मध्याह्न के भोजन के लिए आमंत्रित अतिथि उनके साथ सम्मिलित हुए, जबकि अधिकांश लोग शिवाछेल मैदान में बड़ी संख्या में बने तंबुओं में पिकनिक मनाने के लिए एकत्रित हुए। एक आनन्द भरी पार्टी देर दोपहर तक चली।