बोधगया, बिहार, भारत, नालंदा शिक्षा द्वारा अनुरोधित प्रवचनों के तीसरे दिन, ठिठुरा देने वाला कोहरा उठ गया और सूरज चमक रहा था जब परम पावन दलाई लामा गाड़ी से कालचक्र मैदान पहुँचे। पालि में मंगल सुत्त के सस्वर पाठ के उपरांत मैत्रेय स्कूल के बच्चों ने संस्कृत में '१७ नालंदा पंडितों की स्तुति' का पाठ किया। इसने परम पावन को इस पर चिन्तन करने के लिए प्रेरित किया कि वे विद्वान कितने महान थे और यह कितना महत्वपूर्ण था कि बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को तर्क और कारण के आधार पर स्थापित किया।
"यह कितना अनूठा है कि इन विभिन्न विद्वानों के लेखन अब भी हमारे लिए उपलब्ध हैं। हम उनका पठन तथा अध्ययन कर सकते हैं, उन्हें हमारी पाठ्य पुस्तकों के रूप में उपयोग कर सकते हैं और उन्होंने जो कहा है उसे दूसरों तक पहुँचा सकते हैं।
"आज मैं बोधिचित्तोत्पाद समारोह करना चाहता हूँ। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में इस पर चिन्तन करना अच्छा होगा कि प्रेम और करुणा के उनके संदेश के अतिरिक्त बुद्ध ने अहिंसा के महत्व पर भी बल दिया। हमें उस के लाभ तथा हिंसा की कमियों के बारे में सोचने की आवश्यकता है। इसी तरह, हमें दूसरों के प्रति सोच रखने के लाभ तथा आत्म - केन्द्रितता के संकट की भी तुलना करना चाहिए। बोधिचित्त में सभी सत्वों की सहायता करना शामिल है और ऐसा करने के लिए यह पवित्र स्थल एक उत्कृष्ट स्थान है।"
परम पावन ने बड़ी सावधानी से श्रोताओं का आठ अंतरंग बोधिसत्व शिष्यों से घिरे हुए बुद्ध की भावना करने के निर्देश में नेतृत्व किया, जिसमें मैत्रेय और मंजुश्री समेत क्रमशः व्यापक और गहन वंशावली के अग्रगण्य थे। उन्होंने नागार्जुन और सराह, ८४ महासिद्धों, महाकाश्यप और बुद्ध के बाद आने वाले सात का उल्लेख किया। ञिङमा परम्परा से उन्होंने शांतरक्षित, गुरु पद्मसंभव, ठिसोंग देचेन, पद्मसंभव के २५ शिष्य इत्यादि, कर्ग्यू परम्परा से महान अनुवादक मरपा साथ ही मिलारेपा और गम्पोपा, सक्या परम्परा से पञ्च महान जो विरुपा के बाद आए तथा सक्या, ङोरपा और छरपा परम्पराओं के धारक; अतीश और डोमतोनपा और कदम्प परम्परा के सदस्य; जे चोंखापा और उनके शिष्य जैसे जमपेल ज्ञाछो और से और वेनसा वंशावली के धारक - जो सभी सत्वों की प्रबुद्धता के महान प्रणिधान साक्षी होंगे।
परम पावन ने सर्वप्रथम श्रोताओं का सप्तांग प्रार्थना और फिर शरण गमन और बोधिचित्तोत्पाद छंदों के पाठ में नेतृत्व किया,
बुद्ध, धर्म और संघ के लिए
सम्यक् संबुद्धत्व तक मैं शरण गमन होता हूँ
उदारता या इन शिक्षाओं के सुनने से जो भी पुण्य संभार करूँ
सभी सत्वों के लिए बुद्धत्व प्राप्त करूँ।
तत्पश्चात परम पावन ने श्रोताओं का 'सर्व योग' में नेतृत्व किया जो परमार्थ बोधिचित्त के अनुभव को मिलाते हैं। उन्होंने बुद्ध शाक्यमुनि, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री और आर्य तारा के मंत्रों का संचरण कर समाप्त किया।
परम पावन ने 'शालिस्तंभ सूत्र' लिया, इस प्रश्न से प्रारंभ करते हुए कि 'अज्ञान क्या है?' वस्तुओं की वास्तविक प्रकृति को लेकर भ्रांति सभी दोषों और दुर्भाग्य के मूल में है। यह टिप्पणी करते हुए कि प्रखर बुद्धियुक्त लोगों के लिए अपनी आस्था को तर्कसंगत करना एक ऐसा चिह्न है, उन्होंने '१७ नालंदा पंडितों की स्तुति' से एक छंद उद्धृत कियाः
सत्य द्वय के अर्थ को समझकर, जिस तरह वस्तुएँ अस्तित्व रखती हैं,
हम चार आर्य सत्यों द्वारा निश्चित करते हैं कि हमारा भवचक्र में किस तरह आगमन व निर्गम होता है
वैध अनुज्ञप्ति से हमारी आस्था त्रिशरण में दृढ़ होगी
मुक्ति मार्ग के मूल की स्थापना कर सकूँ।
बिहार के मुख्य मंत्री श्री नीतीश कुमार के आगमन की प्रतीक्षा में एक छोटी सा अंतराल था, जो "भारतीय बौद्ध शास्त्र में विज्ञान और दर्शन, खंड १: भौतिक विश्व" पुस्तक के विमोचन समारोह में सम्मिलित होने आए थे। मुख्यमंत्री ने तुरन्त द्रुत गति से चलकर प्रवचन स्थल में प्रवेश किया और मंच पर परम पावन के साथ शामिल हुए। परम पावन दलाई लामा के कार्यालय की ओर से तेनज़िन तकला ने उनका स्वागत किया और बिना कोई विलम्ब के श्रृंखला के सम्पादक डॉ थुबतेन जिनपा को प्रथम खंड - भौतिक विश्व का परिचय देने के लिए आमंत्रित किया।
डॉ जिनपा ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि यह उनके लिए कितने सम्मान की बात थी कि उन्हें परम पावन और मुख्यमंत्री के समक्ष "भारतीय बौद्ध शास्त्र में विज्ञान और दर्शन" का परिचय देने का अवसर मिल रहा था। उन्होंने आगे कहाः
"इस श्रृंखला की परिकल्पना स्वयं परम पावन दलाई लामा द्वारा की गई थी और कई वर्षों से उनकी निगरानी में विद्वानों के एक दल द्वारा संकलित की गई थी। वास्तविकता की प्रकृति के विषय में बौद्ध शास्त्र, वैज्ञानिक और दार्शनिक अन्वेषणों को एक ढांचे में लाता है, जो आधुनिक पाठक की पहुँच के भीतर है। श्रृंखला के चार खंडों में, प्रथम जो भौतिक विश्व विज्ञान पर केंद्रित है, आज आधिकारिक तौर पर विमोचित की जा रही है।
"इस श्रृंखला का सृजन वास्तव में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। सर्वप्रथम महान भारतीय बौद्ध विचारकों के दृष्टिकोणों को सावधानी से निकालकर उन्हें वैज्ञानिक जांच के ढांचे में सुयोजित करना ही बौद्ध विचारों के इतिहास में एक क्रांतिकारी उपलब्धि है। परम पावन की कल्पना का ही परिणाम है कि समकालीन पाठकों को पहली बार एक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से, भारतीय बौद्ध विचारकों के विचारों और अंतर्दृष्टि के साथ संलग्न होने का अवसर मिला है।
"दूसरा, इन खंडों में विचारों के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान करने की क्षमता है। आज तक विचारों का इतिहास विशेष रूप से विज्ञान का मुख्य रूप से यूरोप केन्द्रित रहा है, जिसमें पाश्चात्य विश्व के बाहर की महान सभ्यताओं की ओर कम ध्यान दिया गया है। परन्तु विज्ञान के इन खंडों में प्राचीन भारत में वैज्ञानिक सोच की जो एक परिष्कृत परम्परा प्रचलित थी उसका दस्तावेजीकरण किया गया है। सभी महान भारतीय परम्पराओं ने मानव चित्त के प्रकार्य की उन्नत समझ विकसित की, साथ ही साथ हमारे चित्त व और भावनाओं को प्रशिक्षित करने और नियंत्रित करने के लिए ध्यान तकनीकों का विकास किया।
"तीसरा, यह देखते हुए कि इन खंडों में एकत्रित किए गए सभी शास्त्रीय भारतीय स्रोतों को कंग्यूर और तेंग्यूर के तिब्बती शास्त्रीय संग्रह से लिया गया है, इस विशेष श्रृंखला का निर्माण तिब्बती लोगों की ओर से भारतीय परम्पराएँ, जो तिब्बतियों ने जीवित रखी हैं, भारत और विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण उपहार का प्रतिनिधित्व करता है।
"यह सबसे उपयुक्त है कि इस ऐतिहासिक श्रृंखला का विमोचन बोधगया में हो रहा है, जो बिहार राज्य में स्थित है, जहाँ किसी समय नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी के महान भारतीय विहारीय विश्वविद्यालय फल फूल रहे थे।"
डॉ जिनपा ने आगे इस श्रृंखला के आधिकारिक विमोचन में बिहार के माननीय मुख्यमंत्री का परम पावन दलाई लामा के साथ सम्मिलित होने की प्रतीकात्मकता को स्वीकार किया। यह भारत और तिब्बत के बीच पारम्परिक शिक्षक और शिष्य संबंध का तथा सिंधु ज्ञान की विरासत के साझे रूप का स्मरण कराता है। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि इन दिनों परम पावन भारतीयों की युवा पीढ़ी के बीच, शास्त्रीय भारतीय परम्पराओं के ज्ञान के बारे में जागरूकता विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता की बात कर रहे हैं। उन्होंने डॉ इयान कॉगलैन का जिन्होंने अंग्रेजी अनुवाद किया और पुस्तक के प्रकाशक, संयुक्त राज्य अमेरिका में विज़डम प्रकाशन और यहाँ साइमन एंड शुस्टर ने यहाँ योगदान दिया, के प्रति धन्यवाद ज्ञापन के साथ समापन किया।
परम पावन दलाई लामा के कार्यालय की ओर से, तेनज़िन तकला ने परम पावन और मुख्यमंत्री से औपचारिक रूप से पुस्तक का विमोचन करने का अनुरोध किया, जो उन्होंने किया। इसके बाद उन्होंने परियोजना की सफलता में योगदान देने वाले सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने शोध दल के अध्यक्ष ठोमथोग रिनपोछे, नमज्ञल विहार के उपाध्याय साथ ही सलाहकार और संपादक, सेरा मे विहारीय महाविद्यालय के गेशे यंगतेन रिनपोछे, गदेन शरचे महाविहार के उपाध्याय गेशे जंगछुब संगे, गदेन जंगचे महाविहार के गेशे छिसा डुगछेन रिनपोछे, डेपुंग गोमंग महाविहार के गेशे लोबसंग खेचोग, जो सभी मंच पर सभी उपस्थित थे और डेपुंग लोसेललिंग महाविहार के गेशे ङवंग सांगे, जो उपस्थित नहीं हो सके।
सभा को हिन्दी में संबोधित करते हुए श्री नीतीश कुमार ने कहा कि वह अपने परम पावन की उपस्थिति में इस समारोह में शामिल होते हुए कितने प्रसन्न थे। उन्होंने स्मरण किया कि वे विगत वर्ष भी कालचक्र समारोहों के दौरान बोधगया आए थे। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि पुस्तकों की इस श्रृंखला के प्रकाशन से नालंदा परम्परा की अंतदृष्टि अपनी स्वयं की भाषा में व्यापक पाठकों को उपलब्ध होगी। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि अंग्रेजी में पहला खंड का विमोचन उस राज्य में हो जिसमें बुद्ध की प्रबुद्धता का स्थान शामिल था, साथ ही नालंदा, विक्रमशिला और हाल ही में खोजा गया तेलहारा जैसे महान विश्वविद्यालय भी शामिल थे। उन्होंने इस अवसर पर उन्हें आमंत्रित करने के लिए परम पावन को धन्यवाद दिया।
"मेरे मित्र मुख्यमंत्री, एक सच्चे मानव हैं," परम पावन ने उत्तर दिया, "और आज यहां इस पुस्तक का विमोचन हम सब के लिए एक विशेष अवसर है। उन्होंने पटना में बुद्ध स्मारिका उद्यान की स्थापना के साथ पहले ही अपने आध्यात्मिक रुचि को प्रकट कर दिया है। संभवतः उनके तथा मेरे बीच एक कार्मिक जुड़ाव है जो बुद्ध के समय तक जाता है।
"जब हम पहली बार भारत में निर्वासन में आए थे तो हमारे समक्ष निपटने के लिए कई तरह की समस्याएँ थीं। परन्तु समय के साथ निश्चित रूप से यह स्पष्ट हो गया कि तिब्बत में बचपन से हमने जो मनोविज्ञान, दर्शन और तर्कशास्त्र का अध्ययन किया था, उसकी आज के विश्व में व्यापक प्रासंगिकता थी। मुझे ऐसा लगा था कि हमारे साहित्य में चित्त दर्शन और तर्कशास्त्र के विज्ञान का धर्म के संदर्भ से परे एक शैक्षिक तरीके से अध्ययन किया जा सकता है। चित्त के प्रकार्य को बेहतर ढंग से समझ कर, हम अपने विचलित करने वाली भावनाओं और और क्लेशों से निपटना सीख सकते हैं जो हम शस्त्र या धन से नहीं कर सकते।
"यदि हम अपने साहित्य को विज्ञान, दर्शन और धर्म के संदर्भ में सोचें तो धार्मिक भाग मात्र बौद्धों के लिए रुचि रखता है, पर विज्ञान और दर्शन किसी के लिए रुचिकर हो सकता है। मेरा मानना है कि हम इन लेखों से विचारों और मूल्यों को लाभकर रूप से आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल कर सकते हैं। लोगों की अनियंत्रित चित्त के कारण एक अशांत विश्व में हम जो जो कर रहे हैं, वह बौद्ध धर्म का प्रचार नहीं है पर यह खोज है कि हम बौद्ध किस तरह मानवता के हित में योगदान दे सकते हैं।
"मैं उन गेशे विद्वानों का धन्यवाद करना चाहूँगा जिन्होंने अनुसंधान कार्य प्रारंभ किया, जिसने सामग्री के मूल संकलन को जन्म दिया और मैं उन विभिन्न अनुवादकों का धन्यवाद करना चाहता हूँ जो अंग्रेजी, चीनी, रूसी, मंगोलियाई, हिंदी और अन्य संस्करणों में योगदान दे रहे हैं। हम तिब्बतियों ने नालंदा परम्परा को जीवित रखा और जिस पर हमें गर्व है - अब हमारे पास इसके मूल स्थान और अन्य जगहों में इसे पुनर्जीवित करने में सहायता करने का एक अवसर है।"
परम पावन ने मुख्यमंत्री को नालंदा के १७ पंडितों से घिरे बुद्ध का खचित थंगका प्रस्तुत किया और दोनों ने साथ साथ मंच से प्रस्थान किया।