लेह, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, भारत, शिवाछेल प्रवचन स्थल के प्रमुख भाग में बने शामियाने की ओर पैदल जाते समय परम पावन दलाई लामा के चेहरे की खिली मुस्कुराहट यह स्पष्ट कर रही थी कि वे सब को देखकर कितने प्रसन्न थे। सिंहासन से उन्होंने आज उन्होंने लोगों को संबोधित किया जिनकी संख्या अनुमानतः ३०,००० हो गई थी।
"जहाँ हमने कल समाप्त किया था वहां से हम ग्रंथ का पाठ जारी रखेंगे। फिर एक मंगल समापन के लिए मैं बोधिसत्व संवर साथ ही श्वेत तारा चिन्ताचक्र का अभिषेक प्रदान करूंगा। परिणाम स्वरूप मुझे पहले प्रारंभिक अनुष्ठान करने होंगे।"
जब वह तैयार हुए तो परम पावन ने श्रोताओं से कहा कि वे शेष ग्रंथ का पाठ करेंगे।
"प्रवचन का विषय कुछ भी हो, शिक्षक की प्रेरणा साथ ही शिष्यों की प्रेरणा सही होनी चाहिए। शिक्षक के लिए शिक्षा देने हेतु धन या अन्य पुरस्कारों की अपेक्षा करना उचित नहीं है, और शिष्यों को दूसरों को धोखा देने, शोषण करने या धमकाने की किसी भी प्रवृत्ति को परे रखना चाहिए।
"जब त्रिरत्न में शरण गमन होने की बात आती है, तो आस्था के तीन पक्ष होते हैं: सराहना, दृढ़ विश्वास और प्रणिधि। उदाहरण के लिए प्रणिधि स्वयं का शरण रत्न बनना है। जब आपका अभ्यास त्रिरत्न में शरण लेने से प्रभावित होता है तो यह बौद्ध हो जाता है; जब यह बोधिचित्त से प्रभावित होता है तो यह महायान से संबंधित होता है। चलिए एक साथ मिलकर शरणगमन तथा बोधिचित्त की प्रार्थना का पाठ करते हैं।
"बुद्ध, धर्म और संघ के लिए
जब तक प्रबुद्धता न मिले मैं उनकी शरण में हूं
मेरे द्वारा किए गए दान आदि पुण्यों से
मैं सभी सत्वों के हित के लिए बुद्ध बनूं।
"इस श्लोक में दान इत्यादि में प्रज्ञा को अन्य पारमिता के रूप में शामिल किया गया है। और यदि आप 'मैं' के बारे में सोचें जो शरण गमन के लिए जाता है, आप पाएंगे कि यह मनो-भौतिक स्कंधों का अंग नहीं है, पर उनसे अलग भी नहीं है। आत्म स्वतंत्र नहीं है, क्योंकि यह स्कंधों के आधार पर ज्ञापित रूप में उपस्थित है।
"'बोधिसत्वचर्यावतार' में ध्यान के इस अध्याय में बिन्दु पर एकाग्रता को विकसित करने के निर्देश शामिल हैं। इसका क्या अर्थ है? यह तब होता है जब आप जो भी वस्तु चुनें उस पर बिना विचलन के ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। न केवल आप बिना विचलन के ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, पर आपका चित्त भी सुस्ती (स्त्यान) और उत्तेजना (औदत्य) से मुक्त होता है। चित्त सतर्क होता है। कई ध्यान करने वालों ने मुझे बताया है कि ध्यान एकांत में कई समय बिताने के बाद, उनके चित्त पहले की तुलना में मन्द लग रहे थे - क्योंकि उन पर सुस्ती ने काबू पा लिया था।
"यदि आप शमथ को विकसित करने में सक्षम हैं, तो आप अपनी वायु ऊर्जा को सक्रिय कर सकते हैं और शारीरिक और मानसिक लचीलापन प्राप्त कर सकते हैं। आप अपने को अपने विश्लेषणात्मक ध्यान में व्यवहृत कर सकते हैं, इस प्रकार आप अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं। इन अभ्यासों को गैर-बौद्ध भारतीय परम्पराओं के साथ साझा किया जाता है। वे अभ्यासी अस्तित्व के उच्च स्तर तक पहुँचने का अधिक उद्देश्य रखते हैं, जैसे रूप और अरूप लोक जो इस स्थूल काम लोक सूक्ष्म है। मैं कुम्भ मेले में जाकर इनमें से कुछ ध्यानियों से मिलकर उनके अनुभवों को सुनने की आशा करता हूँ।
"बौद्ध अभ्यास में, हम परम यथार्थ को निर्धारित करने के लिए विपश्यना का उपयोग करते हैं और बोधिचित्त के सहयोग से हम अपने क्लेशों और ज्ञेयावरण के उन्मूलन के लिए उस अंतर्दृष्टि का उपयोग करते हैं। हम जितना अधिक नैरात्म्य से परिचित होते हैं, उतनी ही हमारी मोह की भावना इत्यादि में कमी आती है।
अपनी 'मूलमध्यमकारिका' में नागार्जुन कहते हैं, "कर्म और क्लेशों के क्षय में मोक्ष है;
कर्म और क्लेश विकल्प से आते हैं, विकल्प मानसिक प्रपञ्च से आते हैं, शून्यता में प्रपञ्च का अंत होता है।"
लोगों में कुछ स्थविरवाद भिक्षुओं को देख कर, परम पावन ने उन्हें मंच पर आमंत्रित किया। उन्होंने श्लोक १५७ से 'बोधिचर्यावतार' के अध्याय ८ का अपना पाठ पुनः प्रारंभ किया।
यह देखते हुए कि वस्तुएँ वस्तुनिष्ठ अस्तित्व ली हुईं प्रतीत होती हैं, उन्होंने पुष्टि की कि जब वह किसी और को देखते हैं तो उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि वे स्वतंत्र रूप से अस्तित्व रखती हैं। इसी तरह, जब वे उन्हें देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि वे वस्तुनिष्ठ रूप से अस्तित्व रखते हैं। यदि यह सत्य हो तो यदि आप इसकी खोज करें तो इस स्वतंत्र या वस्तुनिष्ठ रूप से अस्तित्व रखने वाले व्यक्ति को ढूंढना संभव होना चाहिए - पर यह नहीं मिलता।
परम पावन ने शीघ्र ही अध्याय ८ को पूरा किया। अध्याय ९ के संबंध में, जो प्रज्ञा से संबंधित है, उन्होंने टिप्पणी की, कि आधारभूत अज्ञान को दूर करने के लिए हमें यथार्थ को समझना होगा। प्रज्ञा बुद्धि का वह पक्ष है जो वस्तुओं को जस का तस देखता है। उन्होंने सत्य द्वय का उल्लेख किया - चीजें किस तरह का दृश्य रूप रखती हैं और वे वास्तव में कैसी हैं उन्होंने स्पष्ट किया कि जो लोग शून्यता का अनुभव करते हैं वे उसके बाद भी सांवृतिक विश्व से जुड़े रहते हैं। उदाहरणार्थ वे भूख और प्यास का अनुभव करते हैं। वस्तुएँ प्रतीत्य समुत्पादित रूप से अस्तित्व रखती हैं तो ऐसा नहीं है कि उनके अस्तित्व के नकारा जा रहा हो, अपितु एक स्वतंत्र और स्वभाव सत्ता लिए वस्तुओं के रूप में उनका अस्तित्व नहीं होता।
उन्होंने इस के समर्थन में २५वें श्लोक को उद्धृत किया।
जो देखा, सुना, या जाना है
को नकारना नहीं है।
यहां, यह वास्तविक अस्तित्व की धारणा है, जो दुःख का कारण है,
जिसको त्यागना चाहिए।
परम पावन ४०वें श्लोक पर रुके और घोषणा की कि वह अगले वर्ष पुस्तक पढ़ना पूरा कर लेंगे और वह आज दीर्घायु अभिषेक देने जा रहे थे।
उन्होंने टिप्पणी की, "हमारे पास अध्ययन के लिए कांग्यूर और तेंग्यूर के ३०० से अधिक खंड हैं। बौद्ध धर्म यथार्थ को समझने और अपने चित्त में शोधन के विषय में है, प्रार्थना के माध्यम से नहीं, अपितु कारण के माध्यम से। जब हम जीवित और सक्षम हैं तो हमें अध्ययन, चिंतन करने और ध्यान करने की आवश्यकता है - और इसी कारण एक लंबा जीवन होना अच्छा होता है।
"साधारणतया किसी अभिषेक के आरंभ में बाधाओं को दूर करने के लिए एक अनुष्ठान होता है। पर मुझे लगता है कि कुछ सत्वों को बुरी शक्ति के रूप में मानना अब संगत नहीं है। प्रत्येक दिन के आरंभ में, मैं परोपकार विकसित करता हूँ पर शाम को हम कहते हैं, 'बुरी शक्तियाँ दूर हों।' यहाँ एक विरोधाभास सा प्रतीत होता है, जिसका अनुपालन करने का मैं अब इच्छुक नहीं हूँ। मैं बहुत उच्च अनुभूत व्यक्ति नहीं हूँ लेकिन मुझे बोधिचित्त की शक्ति पर बहुत विश्वास है।"
अभिषेक के दौरान परम पावन ने बोधिसत्व संवर लेने में सभा का नेतृत्व किया। जब अभिषेक पूरा हुआ तो उन्होंने बुद्ध, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, तारा और हयग्रीव के मंत्रों का संचरण भी दिया।
परम पावन ने श्रोताओं से कहा, "हमने इस वर्ष प्रवचन व अभिषेक आयोजित किया है, और हम अगले वर्ष पुनः मिलेंगे। इस बीच सौहार्दता एवम् शून्यता की समझ पैदा करने के बारे में सोचें। इसके अतिरिक्त डॉक्टरों ने मुझसे माता-पिता को सितंबर में एक अभियान का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कहा है ताकि बच्चों को खसरा के खिलाफ टीका लगाया जा सके। सब कुछ ठीक हो।"
लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष, छेवंग ठिनले ने कृतज्ञता के कुछ शब्द प्रस्तुत किए। "मैं सम्पूर्ण हृदय से लेह, नुबरा, जांस्कर और कारगिल की यात्रा में किए गए सभी कार्यों के लिए परम पावन का धन्यवाद करना चाहता हूँ। यहां लद्दाख में हम बहुत लोग नहीं हैं, पर हम अपने बहुमूल्य अंतर्धार्मिक सद्भाव को संरक्षित कर एक और शांतिपूर्ण विश्व के लिए में योगदान करने की आशा करते हैं। लद्दाख बौद्ध संघ और लद्दाख गोमपा संघ के नेता हर तरह से लद्दाख में धार्मिक सद्भाव कायम रखने के लिए एक प्रस्ताव पर सहमत हुए हैं, और हमने इस प्रस्ताव को परम पावन के समक्ष प्रस्तुत किया है। हम अपने बौद्ध भाइयों और बहनों को २१वीं सदी का बौद्ध बनने में सक्षम होने के लिए भी उपाय कर रहे हैं। हम आपको आगामी वर्ष पुनः देखने के लिए तत्पर हैं और इस बीच वचनबद्ध होते हैं कि हम आपकी सलाह का पालन करेंगे।"
छेवंग ठिनले परम पावन को एक श्वेत स्कार्फ प्रदान करने के लिए सिंहासन के निकट आए। परम पावन ने उन्हें धन्यवाद दिया और विनोदपूर्वक लद्दाख बौद्ध संघ अध्यक्ष के सिर को अपनी मुट्ठी से थपथपाई। वह सिंहासन से उतरे और एक बार फिर लोगों से हाथ हिलाकर विदा लेने के लिए मंच के समक्ष गए। हजारों हाथों ने प्रत्युत्तर में हाथ हिलाया। वह गाड़ी में शिवाछेल फोडंग लौटे। कल वह लद्दाख में तिब्बती निवासियों से बात करेंगे, जो स्थानीय तिब्बती चिल्ड्रेन विलेज स्कूल में एकत्रित होंगे।