थेगछेन छोलिंग, मैक्लिओड गंज, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - परम पावन दलाई लामा आज प्रातः तिब्बती महिला संघ (टी डब्ल्यू ए) के १९० सदस्यों से मिले, जो भारत, नेपाल, बेल्जियम और अमेरिका के ३७ विभिन्न आवासों से अपने त्रिवर्षीय बोर्ड मीटिंग के लिए एकत्रित हुई हैं।
"हम लगभग साठ वर्ष पूर्व शरणार्थी बने," परम पावन ने उनसे कहा। "उस समय से विश्व बौद्ध धर्म की तिब्बती परम्परा की सराहना करने लगा है। अब तो आधुनिक वैज्ञानिक भी हमारी बातों में रुचि लेने लगे हैं। शरणार्थियों के रूप में हम अपनी विशिष्ट धार्मिक परंपराओं, हमारी भाषा, लेखन के हमारे तरीके इत्यादि से हमारी अनूठी तिब्बती अस्मिता विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं।
"मुझसे कई लोग कहते हैं कि वे तिब्बतियों की करुणाशील, हँसमुखता, अच्छे स्वभाव तथा उनकी सौहार्दपूर्ण मुस्कुराहट की अत्यंत सराहना करते हैं। हम विश्व में तिब्बत की सकारात्मक छवि प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं।
"जब हम पहली बार भारत आए, तो लगभग अस्सी हजार तिब्बती पलायन करने में सफल रहे थे। प्रारंभ से ही हमने निर्वासन में हमारे प्रशासन के व्यवस्थित लोकतांत्रिककरण का प्रारंभ कर दिया। भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के सहयोग से हमने विद्यालयों की स्थापना की जहाँ तिब्बती बच्चे पारम्परिक तिब्बती देखरेख व आधुनिक शिक्षा दोनों प्राप्त कर सकते थे।"
परम पावन ने अपना गौरव व्यक्त करते हुए कहा कि वह राजनैतिक उत्तरदायित्व सीधे तिब्बतियों द्वारा एक निर्वाचित नेतृत्व के हाथ में सौंपने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने पुष्टि की, कि अपनी राजनैतिक सेवानिवृत्ति के बावजूद, वह तिब्बती संस्कृति, धर्म और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण में योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने टिप्पणी की, कि तिब्बत की स्वस्थ पारिस्थितिकता से न केवल तिब्बतियों का संबंध है, अपितु एशिया भर में लाखों लोग भी हैं जो तिब्बत की नदियों पर पानी के स्रोत के रूप में निर्भर हैं।
विशेष रूप से महिलाओं की भूमिका के बारे में बोलते हुए, उन्होंने बैठक को बताया:
"बौद्धों के रूप में हम सदैव सभी सत्वों के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं, परन्तु व्यावहारिक दृष्टिकोण से केवल इस ग्रह के मनुष्य हैं जिनके लिए करुणा तथा सौहार्दता को विकसित देने के लिए हम कार्य कर सकते हैं। इस संदर्भ में, वैज्ञानिकों ने पाया है कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में दूसरों की पीड़ा के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। इस तरह जैविक रूप से, महिलाओं में करुणा अभिव्यक्त करने की सहज प्रवृत्ति होती है।
"मेरे अपने जीवन में, मैंने कभी अपनी माँ के मुख पर क्रोध की अभिव्यक्ति नहीं देखी। वह हर किसी के प्रति दया का भाव रखतीं थीं। उनकी करुणा स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती थी जब उनकी आँखें किसी अन्य को पीड़ा या दुःख में देखकर आँसुओं से भर जाती थीं। मेरी माँ करुणा की मेरी पहली शिक्षिका थीं, यही कारण है कि मेरा मानना है कि हम सर्वप्रथम घर पर दयालुता के बारे में सीखते हैं।
"ऐसे समय जब एक राष्ट्र के रूप में तिब्बत का अस्तित्व खतरे में है, आप सभी ने बुद्ध धर्म तथा भोट भाषा के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए जो कुछ बन पड़ा है वह किया है। तिब्बतियों का अवलोकितेश्वर के साथ एक विशेष कर्मिक संबंध है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि आप सभी ने अवलोकितेश्वर के अनुग्रह की न केवल आगामी जीवन में अपितु कई आने वाले जीवनों के लिए पुण्य संभार किया है। निर्वासन में हम में से किसी को भी तिब्बत में उन तिब्बतियों को नहीं भूलना चाहिए, जो स्वतंत्र नहीं है - हम बाकी विश्व के लिए उनके प्रतिनिधि हैं।"