कारगिल, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, भारत, आज प्रातः मार्ग में मौसम की अनिश्चितता के कारण जांस्कर से दलाई लामा के प्रस्थान में विलम्ब हुआ। आखिरकार आसमान साफ हो गया और हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी और सुरु नदी और रंगदुम विहार के ऊपर से होते हुए १ बजे के बाद कारगिल उतरा। हेलिपैड़ पर जम्मू-कश्मीर विधान परिषद के अध्यक्ष हाजी अनायत अली, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक टी ज्ञलपो, कारगिल डीसी विकास कुंडल, कारगिल विधायक असगर अली करबाली, एलबीए अध्यक्ष कारगिल, साथ ही इस्लामवादी के प्रतिनिधियों और आईकेएमटी कारगिल, द्रॉस के सामाजिक-धार्मिक नेता, मुलबेक गांव के नेताओं और दहनु के ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया।
परम पावन गाड़ी से सीधे कारगिल में हुसैनी बगीचे गए, जहाँ ८००० अनुमानित लोग जिनमें शहर के सभी समुदायों के युवा और वयोवृद्ध थे, उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। स्थानीय अधिकारियों और मुस्लिम धार्मिक नेताओं के साथ मंच पर अपना आसन ग्रहण करते हुए उन्होंने उनका अभिवादन किया।
"आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्य भाई और बहनें हैं," उन्होंने प्रारंभ किया। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और दुःख से बचना चाहते हैं और हम सभी को उस इच्छा को पूरा करने का अधिकार है। चूंकि हम सभी का इससे संबंध है, अतः यह महत्वपूर्ण है कि हम मानवता की एकता को स्वीकार करें। इस तथ्य के बावजूद कि हम सभी मानव के रूप में समान हैं, गौण स्तर पर हमारे बीच राष्ट्रीयता, जाति, धार्मिक विश्वास आदि के अंतर हैं। यहां भारत में, उदाहरण के लिए लोग हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या यहूदी, पारसी , जैन, बौद्ध या सिख हो सकते हैं। जब हम अपने बीच इस तरह के अंतर पर अधिक जोर देते हैं तो हम स्वयं के लिए समस्याएं निर्मित करते हैं। हम उन्हें किस तरह हल कर सकते हैं? यह मानकर कि मौलिक स्तर पर मनुष्यों के रूप में हम सभी समान हैं और उस आधार पर मनमुटाव से बचें।
"मेरे भाइयों और बहनों मैं आप सभी से मिलकर और आपके साथ अपने कुछ विचार साझा करते हुए बहुत खुश हूँ। यदि हम एक शांतिपूर्ण दुनिया प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें मानवता की एकता पर विचार करने की आवश्यकता है। जैसा कि मैंने पहले कहा था, धार्मिक आस्था एक रूप हो सकता है जिससे हम एक दूसरे से अलग हैं, पर विश्व की सभी धार्मिक परम्पराएँ प्रेम, सहिष्णुता, क्षमा और आत्मानुशासन का एक ही संदेश सम्प्रेषित करती हैं।
"सभी में शांतिपूर्ण व्यक्तियों तथा सुखी समुदायों को बनाने की समान क्षमता है। उनके विभिन्न दार्शनिक विचार हो सकते हैं, पर ये लोगों की विभिन्न संस्कृति, विभिन्न स्वभाव और विभिन्न दृष्टिकोण के प्रकाश में आवश्यक हैं। वे वास्तव में अधिक करुणाशील व्यक्तियों को बनाने के एक आम लक्ष्य हेतु विभिन्न दृष्टिकोण हैं।
"विभिन्न धर्मों के दार्शनिक दृष्टिकोण औषधियों की तरह हैं। हम यह नहीं कह सकते कि एक दवा हर किसी के लिए उत्तम है। हमें रोगी की बीमारी, आयु और स्वभाव को ध्यान में रखना होगा और उसके अनुसार चुनना होगा। इसी प्रकार, विभिन्न लोग धार्मिक अभ्यास के लिए विभिन्न दृष्टिकोण अपनाते हैं। इसलिए, यह विचार कि सीरिया और अफगानिस्तान जैसे अन्य स्थानों में लोग न केवल लड़ रहे हैं, बल्कि धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं, एक विरोधाभास है। यही कारण है कि हमें अंतर्धार्मिक सद्भाव को विकसित करने के प्रयास की आवश्यकता है।
"क्या यह संभव है? भारत का उदाहरण है, जहां एक हजार से अधिक वर्षों से विभिन्न धर्मों के लोग शांति और सद्भाव में एक साथ रहते हैं, यह सुझाता है कि यह संभव है। कभी-कभी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो प्रायः राजनेताओं द्वारा उकसायी जाती हैं, लेकिन आधुनिक भारत में हमारी विभिन्न धार्मिक परंपराओं के बीच अच्छे संबंध बने हुए हैं - और जहाँ तक मैं जानता हूँ कि इस्लाम की सुन्नी और शिया शाखाओं के बीच झगड़े की कोई सूचना नहीं है।"
परम पावन ने जनमानस से आग्रह किया, "कृपया ध्यान रखें कि मनुष्य होने के नाते हम सभी समान हैं और हमें शांति और मैत्री भाव से साथ साथ रहना है। दूसरा, हममें से प्रत्येक अपने जीवन में अंतर्धार्मिक सद्भावना के लिए कुछ योगदान दे सकता हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि उनकी वर्तमान चिंता में से एक जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक उष्णीकरण है, जो दशकों दर दशक बिगड़ रही है। उन्होंने इंगित किया कि जब आप अफगानिस्तान और मध्य एशिया से होकर उड़ान भरते हैं तो आप देख सकते हैं कि जहाँ पहले झीलें थीं अब मात्र रेगिस्तान हैं।
"यहां तक कि इस तरह के स्थानों में भी, जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है, इसलिए हमें पर्यावरण की अधिक देखभाल करना है। जैसे ही नदियां सूखेगी पानी की आपूर्ति में कमी आएगी। मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, परन्तु विगत ६० वर्षों में जब से मैं हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा घाटी में रह रहा हूँ, हमने कम से कम बर्फबारी देखी है। शायद यहाँ भी वही है। चीजें तेजी से बदल रही हैं और हमें इस बदलाव को हल करने और पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाने हैं।
"यहां इन युवा छात्रों को देखकर मुझे शिक्षा के महत्व का भी स्मरण हो आता है। स्वतंत्रता के बाद से, भारत में शिक्षा में काफी सुधार हुआ है, परन्तु आधुनिक शिक्षा सुखी व संतुष्ट व्यक्तियों को आकार देने में अपर्याप्त लगती है। मैं उन सफल लोगों को जानता हूं जो क्रोधित, तनावग्रस्त, ईर्ष्यापूर्ण और दुखी हैं, और वे जो लोग कम सम्पन्न हैं, परन्तु सुखी व संतुष्ट हैं।
"भौतिक विकास अपने आप में हमें सुख नहीं देता। हमें अपने चित्त व भावनाओं के कार्य को भी समझने की आवश्यकता है जो हम प्राचीन भारतीय स्रोतों से सीख सकते हैं। भारतीय कुलपतियों की हाल की एक बैठक में हमने इस बारे में बात की, कि भारत के पास अपनी भावनाओं से निपटने के उपाय के बारे में प्राचीन भारतीय समझ को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने का अवसर है। यह एक महत्वपूर्ण योगदान है जो भारत यह दिखाते हुए कि चित्त की शांति किस तरह प्राप्त की जाए विश्व शांति में योगदान दे सकता है।
"मैं आप युवा छात्रों और अपने शिक्षकों से आग्रह करता हूं कि अहिंसा के संदर्भ में हमारी नकारात्मक भावनाओं से निपटने के तरीके पर अधिक ध्यान दें।"
परम पावन ने टिप्पणी की, कि जम्मू के एक विश्वविद्यालय की हाल की यात्रा के दौरान उन्हें कारगिल आने के लिए आमंत्रित किया गया था। खराब मौसम के कारण उन्हें आने में विलम्ब हुआ था, पर उन्होंने अनुभव किया कि अपना चेहरा दिखा कर, लोगों के साथ भेंट कर और उनके साथ अपने कुछ विचार साझा करना महत्वपूर्ण था, इसलिए विमान से उतरते ही वे आए थे।
मंच से निकलते समय जनमानस की ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाते हुए, वे अपने होटल की ओर रवाना हुए जहाँ उन्होंने स्थानीय मुसलमान धार्मिक नेता तथा आमंत्रित अतिथियों के साथ देर से मध्याह्न का भोजन किया। कल वे मुलबेख गांव के एक स्कूल की यात्रा करेंगे।