नई दिल्ली, भारत, परम पावन दलाई लामा ने कल दोपहर में धर्मशाला से दिल्ली के लिए उड़ान भरी। आज, उन्हें राजिंदर नगर के सालवन पब्लिक स्कूल में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। स्कूल, जो ग्यारह सालवान के समूह में से एक है, ने बड़े ही व्यापक रूप से तिब्बती शैली में उनके स्वागत की तैयारियाँ की थी, छात्रों ने पारम्परिक समर्पण तैयार किया था, तिब्बती शैली में स्वागत द्वार और आयोजन स्थल प्रार्थना ध्वजों से सजा हुआ था। छात्रों ने घोषणाएँ की।
यह स्पष्ट किए जाने के उपरांत कि प्रकाश का समर्पण प्रज्ञा के उदय तथा अज्ञान को दूर करने का संकेत है, परम पावन कार्यक्रम के उद्घाटन हेतु दीप प्रज्ज्वलन में सम्मिलित हुए।
अपने स्वागतीय संबोधन में गवर्नरों के अध्यक्ष, किरपाल सिंह ने परम पावन को शांति के रूप, प्रेम व करुणा के प्रतीक, एक वैश्विक आध्यात्मिक नेता तथा और लोकतंत्र के एक उत्साही अधिवक्ता के रूप में वर्णित किया। उन्होंने विद्यार्थियों को ध्यान से सुनने की सलाह दी, क्योंकि उन्होंने भविष्यवाणी की, कि उन्हें सुनने का यह अवसर भविष्य में उनकी स्मृतियों में खचित रहेगा। अंत में छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के माता-पिता की ओर से उन्होंने परम पावन का सौहार्दता से स्वागत किया जो १६ नवंबर, १९९७ को अपनी पिछली यात्रा के लगभग २० वर्षों के बाद पुनः आए थे।
"सम्माननीय बड़े भाइयों और बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया, और विद्यार्थियों का अभिनन्दन करने से पूर्व शिक्षकों, कर्मचारियों और अभिभावकों का अभिनन्दन किया" तथा छोटे भाइयों व बहनों मैं पुनः आप सब के साथ होकर और इन युवाओं के साथ मिलकर बहुत प्रसन्न हूँ तथा सम्मान का अनुभव करता हूँ । मेरा संबंध २० वीं शताब्दी से है तथा मेरे माता-पिता, मेरे शिक्षक और मेरे कई मित्र पहले ही जा चुके हैं। पर जब मैं आप जैसे युवा लोगों से मिलता हूँ, तब मैं भी युवा अनुभव करता हूँ। अभी भी इस शताब्दी के आठ दशक आना बाकी हैं। आपमें से जो २१ वीं शताब्दी से जुड़े हैं, के पास अवसर तथा उत्तरदायित्व है कि आप एक बेहतर, अधिक शांतिपूर्ण, करुणाशील विश्व बनाएँ। मेरी पीढ़ी में से कई इसे देखने के लिए जीवित न होंगे, पर हम आप में अपनी आशा संजोए हुए हैं।
"हमारा विश्व गहन रूप से अन्योन्याश्रित हो गया है। हम मात्र' मेरा परिवार' तथा' मेरा देश' कहकर सोचते थे, पर अब हमें अपनी चिंता समूचे विश्व तथा आज जीवित ७ अरब मनुष्यों तक ले जाना है। यदि हम सभी शांति और सामंजस्य के साथ रह सकें, तो हम सभी लाभान्वित होंगे। अन्यथा मात्र आत्म- केंद्रितता चिंता और तनाव लाता है, जो बदले में अविश्वास और यहाँ तक कि हिंसा की ओर ले जाता है।सामाजिक प्राणी होने के नाते हमें मित्रों की आवश्यकता है। जब हम अपने मित्रों से घिरे होते हैं तो हम सुरक्षित और निश्चिन्तता का अनुभव करते हैं। अतः सभी ७ अरब मानवों की एकता के संदर्भ में दूसरों के हित को लेकर हमारी चिंता का विस्तार करना समझ में आता है।
"जब मैं लोगों से मिलता हूँ, तो मैं स्वयं को मात्र उनके समान एक मानता हूँ। मैं स्वयं को विशिष्ट या अलग नहीं सोचता, जो अलग स्थान से आया है और एक अलग संस्कृति से संबंध रखता है। न ही मैं अपने आप को एक अकेले' परम पावन दलाई लामा' के रूप में सोचता हूँ। मैं स्मरण रखता हूँ कि मनुष्य होते हुए हम सब एक हैं। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। अपने बीच के अंतर पर केन्द्रित रहना समस्याओं की ओर ले जाता है। चूंकि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, अतः अधिक करुणा और सौहार्दता से व्यवहार करना हमें सुखी करता है तथा हमें सहज बनाता है। "
परम पावन ने कहा कि आज भौतिक विकास के बावजूद, नैतिक मूल्यों के अभाव में विश्व के कई भागों में एक नैतिक संकट है। उन्होंने कहा कि आज धर्म को भी संघर्ष के लिए एक आधार के रूप में काम में लाया जाता है। उन्होंने कहा कि' हम' और' उन' के संदर्भ में सोच और अधिक विभाजन को उकसाता है। उन्होंने सुझाव दिया कि मात्र आधुनिक शिक्षा एक स्वस्थ और अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। केवल आंतरिक मूल्यों को सम्मिलित कर इसके दृष्टिकोण को पर्याप्त रूप से संपूर्ण बनाया जा सकता है। यह सीखना कि अपनी विनाशकारी भावनाओं से किस तरह निपटा जाए, जो प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान हमें सिखा सकता है, का ही परिणाम सुखी व्यक्ति, सुखी परिवार और एक संपूर्ण सुखी विश्व हो सकता है। परम पावन ने घोषित किया कि वह मुख्य रूप से मानव सुख को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
उन्होंने आगे यह बताया कि वे अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं और वे भारत से बहुत प्रोत्साहन ग्रहण करते हैं जहाँ सभी प्रमुख धर्म सद्भाव से एक साथ रहते हैं। स्वदेशी परम्पराएँ जैसे सांख्य, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, हिंदू धर्म के विविध रूप तथा सिख धर्म विदेशों से आईं परम्पराएँ जैसे पारसी, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म तथा इस्लाम के साथ-साथ फलती फूलती हैं। अपनी सामंजस्यपूर्ण विविधता में भारत विश्व के अन्य भागों के लिए एक उदाहरण बनता है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि वे परम्पराएँ जो शमथ और विपश्यना को विकसित करती हैं, जैसा कि कई भारतीय परम्पराएँ करती हैं, ने स्वाभाविक रूप से चित्त के प्रकार्य की एक अच्छी समझ प्राप्त कर ली है। प्रशिक्षण द्वारा चित्त की शांति संभव है, जो कि आज अनोखे रूप से प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि जिस तरह शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की आकांक्षा से हम शारीरिक स्वच्छता बनाए रखते हैं, उसी तरह मानसिक रूप से स्वस्थ होने का उद्देश्य रखते हुए हमें भावनात्मक स्वच्छता भी उत्पन्न करना चाहिए।
परिणामस्वरूप, परम पावन ने घोषणा की कि वे भारत में प्राचीन भारतीय ज्ञान के पुनरुद्धार को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने अनुरोध किया है कि दक्षिण भारत के बौद्ध विहारों में नालंदा परम्परा में प्रवीण तिब्बती भिक्षु, इस परियोजना में सहायता के लिए अंग्रेजी व हिंदी सीखें।
"तिब्बतियों ने ऐतिहासिक रूप से भारतीयों को अपना गुरु तथा स्वयं को चेला या छात्र के रूप में माना है," परम पावन ने समझाया। " पर जहाँ हजारों वर्षों से अधिक पूर्व प्रदान किए ज्ञान की, उसके उत्पन्न हुए देश में उपेक्षा की गई पर तिब्बतियों ने इसे जीवित रखा है। परिणामस्वरूप हमने अपने आप को विश्वसनीय चेला प्रमाणित किया है।
"चूंकि एक भौतिकवादी संस्कृति और भौतिकवादी जीवन शैली समस्याओं व असंतोष से भरी पड़ी है, अतः हमें एक अलग दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि शिक्षा के आधुनिक विचारों के साथ चित्त व भावनाओं के प्रकार्य की प्राचीन समझ के संयोजन से एक अधिक करुणाशील विश्व के निर्माण में योगदान मिल सकता है। "
छात्रों के कई प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने समझाया कि किस तरह क्रोध व मोह हमारे जीवन का अंग हैं, परन्तु एक संकीर्ण स्व-केन्द्रित दृष्टिकोण से उत्पन्न होते हैं। अतः उन्हें दिन-प्रतिदिन के जीवन में कम करना बेहतर है । प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता रखते हुए उन्होंने निराशा व्यक्त की, कि मुक्त विश्व का एक अगुवा अमेरिका, पेरिस समझौते से पीछे हट रहा है। उन्होंने विश्व के कई भागों में अमीर और गरीबों के बीच की विशाल खाई को संबोधित करने की तात्कालिकता का भी उल्लेख किया।
उन्होंने २० वीं सदी को चिह्नित करने वाले दुःख का स्मरण कर तथा २१ वीं सदी की युवा पीढ़ी को इस प्रवृत्ति को बदलने के लिए मात्र प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं पर निर्भर होते हुए नहीं अपितु एक सुखी व शांतिपूर्ण विश्व बनाने के लिए यथार्थवादी कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए समाप्त किया।
धन्यवाद के शब्दों के दौरान, छात्रों से यह प्रतिज्ञा करने का आग्रह किया गया कि वे परम पावन की नकारात्मकता, घृणा तथा ईर्ष्या पर काबू पाने और उसके स्थान पर मानवता और प्राकृतिक विश्व के लिए प्रेम की भावना को बढ़ावा देने की सलाह का पालन करें।
जैसे ही परम पावन कार्यक्रम स्थल से रवाना होने वाले थे कई छात्रों के माता-पिता लाल कालीन पर पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे। परम पावन ने अभिनन्दन किया, हाथ मिलाया और कइयों के साथ तसवीर खिंचवाई। अंततः अपने प्रस्थान से पहले, उन्होंने भविष्य की पीढ़ियों के लिए' उदारता और करुणा के मूल्यों को बनाए रखने हेतु अनुस्मारक' के रूप में एक पौध का रोपण किया।
अपने होटल लौटने के मार्ग में परम पावन अपने पुराने मित्र श्री एल के अडवानी से मिलने के लिए उनके घर गए। श्री अडवानी जो २००२ से २००४ तक उप-प्रधान मंत्री रहे थे, ने इस महीने के आरंभ में अपना ९०वां जन्मदिन मनाया था। परम पावन ने उन्हें सौहार्दपूर्ण बधाई दी।