लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर - जुलाई २६, २०१७, शिवाछेल से शे का मार्ग सिंधु नदी के समानांतर चलता है और कुछ स्थानों पर पुते स्तूपों के समूहों के बीच से घुमावदार रास्ते से होते हुए। सदैव की भांति स्थानीय लोगों के समूह परम पावन दलाई लामा की एक झलक पाने हेतु आज प्रातः उनके मार्ग पर पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे। ऊपरी शे में दुजोम भिक्षुणी विहार की ओर जाते हुए, जब वे मुख्य राजमार्ग से मुड़े तो मार्ग के दोनों ओर स्थानीय लोग पंक्तिबद्ध हो खड़े थे जिनमें सैकड़ों मुस्कुराते हुए अपनी साफ - सुथरी वर्दी में स्कूल के बच्चे थे। परम पावन के गाड़ी से उतरते ही उर्ज्ञेन रिनपोछे ने उनका स्वागत किया और तत्काल ही एकत्रित हुए लोगों में से कई आगे उमड़े, उनके सिर इधर से उधर हो रहे थे, जैसे मानो उन पर कुछ सवार हो गया हो। जैसे ही सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, लगा मानो परम पावन के स्पर्श या दयालु भरे संकेत ने उन्हें शांत कर दिया हो।
भिक्षुणी विहार के नये मंदिर की चौखट पर परम पावन ने फीता काटा, प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रार्थना की और मंदिर के उद्घाटन का संकेत करते हुए द्वार को ढकेला। सहस्र भुजा और सहस्र चक्षु वाले आर्य लोकेश्वर की मूर्ति जो संभवतः पंद्रह मीटर ऊंची थी, के नीचे उन्होंने लामाओं, भिक्षुओं, भिक्षुणियों और अन्य अतिथियों के समक्ष आसन ग्रहण करने से पूर्व एक दीप प्रज्ज्वलित किया। प्रार्थना के दौरान जिसमें भैषज्य बुद्ध का आह्वान, गुरु पद्मसंभव की सप्तांग प्रार्थना और बुद्ध का द्वादश नाम स्तोत्र शामिल था, चाय और समारोहीय मीठे चावल परोसे गए।
प्रारंभिक टिप्पणी में खेनपो छेवंग रिनजिन ने विगत कई वर्षों से उर्ज्ञेन रिनपोछे के बुद्ध की शिक्षाओं को बनाए रखने के प्रयासों को वर्णित किया, जिनमें इस भिक्षुणी विहार की स्थापना और इस सभागार का निर्माण था जो अब पूरा हो गया था। परम पावन की उपस्थिति की गहरी सराहना व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि परम पावन अपने पूर्ववर्तियों के प्रबुद्ध कर्मों के प्रतीक हैं, तो यहां तक कि उनके नाम का श्रवण मात्र ही प्रबुद्धता के लिए एक विशेष छाप छोड़ता है।
अपनी रिपोर्ट में, उर्ज्ञेन रिनपोछे ने "इस उत्कृष्ट अवसर पर जब परम पावन ने हमारे अनुरोध को अनुग्रहपूर्वक स्वीकार किया है और एक ऐसे करुणा भाव से आए हैं जिससे उऋण नहीं हुआ जा सकता" को संदर्भित किया। उन्होंने बताया कि सम्प्रति ५२ भिक्षुणियाँ, भिक्षुणी विहार से संबंधित हैं, जिनमें से अल्पायु वाली स्कूल और कॉलेज जाती हैं, जबकि और अधिक उम्र वाली आध्यात्मिक अभ्यास करने के लिए भिक्षुणी विहार में रहती हैं। रिनपोछे ने कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य भिक्षुणियों की शिक्षा और स्वास्थ्य की देख रेख है, इस आशा में कि सीमित संसाधनों के बावजूद धर्म और सत्वों की सेवा की जा सके। उन्होंने परम पावन की दीर्घायु के लिए प्रार्थना के साथ समाप्त किया।
लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद डॉ सोनम दावा अगले वक्ता थे जिन्होंने अपनी आधिकारिक क्षमता में कम और, शे के निवासी के रूप में अधिक बोला। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम सद्भावना से एक साथ रहते हैं। इसके अतिरिक्त डुगछेन रिनपोछे ने निकट ही डुग पेमा करपो विद्यालय की स्थापना की है और परम पावन इस भिक्षुणी विहार का उद्घाटन करने आए हैं, स्थानीय लोग अपने लामा की उपस्थिति से धन्य अनुभव कर रहे हैँ। अंत में उन्होंने उल्लेख किया कि २०१० में विनाशकारी बादल विस्फोट से हुई ऐसी क्षति के बाद, हेल्पएज इंडिया स्थानीय समुदाय में एक मूल्यवान वयोवृद्ध घर की स्थापना कर रहा था।
तत्पश्चात भिक्षुणियों ने परम पावन के समक्ष चार चुनौती और चार उत्तर देते हुए अस्तित्व के समानार्थी शब्दों पर चर्चा करते हुए शास्त्रार्थ प्रस्तुत किया। परम पावन के आसपास इकट्ठे होने और उनके साथ अपनी तसवीर खिंचवाने के तत्काल बाद मंदिर के पीछे से एक तीखी भौंकने की आवाज़ आई। एक धूसर अप्सो दुलकी चाल से उनके समक्ष आया, उनके सामने की सीढ़ी पर सामने वाले पंजे रखे, परम पावन की ओर सीधी दृष्टि की, अभिनन्दन में अपनी पूंछ हिलाई और वहाँ से चला गया।
"यहाँ शे में, ऊर्गेन रिनपोछे ने कड़ी मेहनत की है," परम पावन ने सभा को संबोधित करते हुए टिप्पणी की। "उन्होंने न केवल इस मंदिर का निर्माण किया है, पर वे इन भिक्षुणियों की शिक्षा के लिए प्रावधान कर रहे हैं। उन्होंने प्रयास किए हैं और स्थानीय लोगों ने उनके प्रति भक्ति के कारण उनका समर्थन करते हुए अपनी सहायता का योगदान दिया है। मैं वास्तव में उस सब की सराहना करता हूँ जो कुछ यहाँ किया गया है, जिसमें पशुओं के जीवन को बचाना भी शामिल है। यह तिब्बत में बुद्ध की शिक्षाओं को लेकर जो बड़ी त्रासदी और बाधा हुई है, उसके विपरीत है। हम सभी एक ही परंपरा का अनुपालन करते हैं, पर मात्र यह प्रार्थना करना कि शिक्षाएँ फले फूलें से लक्ष्य की प्राप्ति न होगी।
"यह सुनिश्चित करने के लिए, हमें यह जानना होगा कि शिक्षाएँ किस विषय के बारे में हैं। महान भारतीय आचार्य वसुबन्धु ने सलाह दी कि बुद्ध की सद्धर्म को आगम और अधिगम रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उन्हें जीवंत रखने हेतु हमें उन का अनुभव और विकास दोनों करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ शास्त्रों का पठन और जो हमने सीखा है उसे शील, समाधि और प्रज्ञा के तीन प्रशिक्षण को व्यवहृत करने - दूसरे शब्दों में, अध्ययन और अभ्यास। यहां इस भिक्षुणी विहार में ऐसी भिक्षुणियां हैं जो अपने संवरों के पालन के साथ-साथ तर्कशास्त्र और शास्त्रार्थ का अध्ययन भी करती हैं। नकारात्मक भावनाओं का सामना करने का समग्र उद्देश्य मात्र प्रार्थना द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता; इसके लिए समझ तथा प्रज्ञा की आवश्यकता है।
यही कारण है कि यहाँ भिक्षुणियों के लिए अपने अध्ययन में तर्क को शामिल करना महत्वपूर्ण है। चीनी साम्यवादी कहते थे कि बौद्ध धर्म केवल अंध विश्वास की एक व्यवस्था है। उन्होंने इसे लोगों का शोषण करने के साधन के रूप में खारिज कर दिया। पर यदि आप वास्तव में बौद्ध धर्म क्या है इसके बारे में एक अच्छी समझ का विकास करें तो आप इसे समझाने और ऐसी चुनौतियों का उत्तर देने में सक्षम होंगे।
परम पावन ने टिप्पणी की कि समय स्थिर होकर खड़ा नहीं रहता पर फिर भी भविष्य वैसा होगा जिस तरह का चयन हम करते हैं। जिस तरह के भविष्य को हम देखना चाहते हैं उसे लेकर हम एक दृष्टि बना सकते हैं और उसे पूरा करने के लिए काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में यहाँ भिक्षुणियां और बाहर एकत्रित स्कूली बच्चे वास्तव में भविष्य के लिए आशा प्रदान करते हैं, पर उन्हें एक आधुनिक शिक्षा और आंतरिक विश्व की समझ जो उन्हें चित्त की शांति देने में सक्षम करेगा, की आवश्यकता है।
उन्होंने उर्ज्ञेन रिनपोछे को भिक्षुणियों को बुद्ध की आधारभूत शिक्षाओं के बारे एक अच्छा आधार देने की आवश्यकता को लेकर सलाह दी। उस आधार पर वे लोंगछेनपा की 'सुख व सहजता की खोज त्रयी' जिसके बाद उनके 'दार्शनिक सिद्धांतों का कोष' की ओर उन्मुख हो सकते हैं जो उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों से परिचित कराएगा। इसमें वे लोंगछेनपा के 'महायान कोष' और 'धर्मधातु कोष' जोड़ सकते हैं। उन्होंने उस छोटी सी पुस्तिका को उठाया जो वितरित की गई थी जिसमें 'हृदय सूत्र' अथवा '२५ पंक्तियों की प्रज्ञा पारमिता' है और उसकी सामग्री का एक संक्षिप्त विवरण दिया। भिक्षुणियों की ओर आमुख होते हुए उन्होंने कहा,
"अच्छी तरह से अध्ययन करें और आप भी पूरी तरह से योग्य शिक्षक बन सकती हैं। विगत दिसंबर दक्षिण भारत में बीस भिक्षुणियों को उनके बीस वर्षों से अधिक श्रमसाध्य अध्ययन को मान्यता देते हुए गेशे-मा की उपाधि से सम्मानित किया गया।"
परम पावन ने आगे कहा कि अध्ययन अब भिक्षुओं और भिक्षुणियों तक सीमित न होना चाहिए। साधारण लोगों को भी ऐसा करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने सभा को अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, गुरु पद्मसंभव, हयग्रीव और वज्रकिलय के मंत्रों का संचरण दिया।
जब वे मंदिर से रवाना हुए तो परम पावन ने एक वयोवृद्ध लोगों के घर के लिए हेल्पएज इंडिया परियोजना की आधारशिला का अनावरण किया। फिर, शे से निकलकर वे गाड़ी से लेह गए, जहाँ वे ईदगाह एक बाड़ा लगा खुले आसमान में, जो रमजान नमाज अदा करने के लिए महफूज़ रखा जाता है, सुन्नी और शिया मुस्लिम समुदाय के अतिथि थे।
सुन्नी समुदाय के मुख्य ने परम पावन को मोहब्बत और अमन का एक जिंदा निशान बताया। उन्होंने कसम ली कि ज़ोजी दर्रा से तुर्तुक तक मुस्लिम समुदाय लद्दाख में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास जारी रखेगें। उन्होंने आगे कहा कि कुछ शरारती लोगों के काम और मीडिया के कुछ गलत रिपोर्टों के बावजूद, इस्लाम अमन का मज़हब है।
उन्होंने परम पावन को बौद्ध परिवार से जुड़ी एक महिला को उपहार देने के लिए आमंत्रित किया, जिसने समुदाय के लिए ईदगाह की देखभाल की है। उन्होंने आगे कहा कि जब वे हाल ही में संपत्ति को बढ़ाने की इच्छा कर रहे थे तो उनके बौद्ध पड़ोसियों ने उन्हें यह कहते हुए ज़मीन दी, "गोनपा या मस्जिद सब एक हैं "। परम पावन से अब्दुल घनीशेख की लिखी एक इतिहास की किताब का विमोचन करने के अनुरोध करने के बाद उन्होंने समापन करते हुए कहा,
"जनाब कृपया, लद्दाख आते रहें। हम आपकी लंबी ज़िन्दगी की दुआ करते हैं।"
परम पावन ने जवाब दिया, "प्रिय भाइयों और बहनों, मैं वास्तव में सम्मानित महसूस करता हूँ। मैं यहाँ एक बार फिर लेह के मुस्लिम समुदाय से मिलने के लिए आकर बहुत खुश हूँ। मेरी एक प्रतिबद्धता है कि इस विश्व को अधिक सुखी, अधिक करुणाशील बनाने का प्रयास करूँ क्योंकि हम सब मानव के रूप में समान हैं। हम एक ही तरह से जन्म लेते हैं। मनुष्य के रूप में हम एक ही करुणाशील स्वभाव का साझा करते हैं। मैं धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध हूँ। मैं बौद्ध भिक्षु हूँ और मैं बौद्ध विद्वान होने का भी दावा कर सकता हूँ। हमें अपनी अलग अलग ज़रूरतों और स्वभावों के कारण अलग-अलग दार्शनिक दृष्टिकोणों के साथ तरह तरह की धार्मिक परंपराओं की ज़रूरत होती है। लाखों इन अलग अलग परम्पराओं का पालन करते हैं और हमें उनका सम्मान करना चाहिए।
"मेरा पहली बार मुसलमानों से सामना हुआ जहाँ मेरा जन्म हुआ था। उस समय ल्हासा में लगभग २००० लोगों का मुस्लिम समुदाय था। चीन से कुछ कसाई थे और हमें मांस देते थे। अन्य लद्दाख से थे। जब वे पहली बार आए तो पञ्चम दलाई लामा ने उन्हें मस्जिद के लिए जमीन दी और वे उन्हें राजकीय कार्यक्रमें में आमंत्रित करते थे। हम सब एक साथ शांतिपूर्वक रहते थे।
"इस देश भारत में, हमारे पास एक जीवंत उदाहरण है कि विश्व के धर्म एक-दूसरे के साथ सद्भावपूर्वक रह सकते हैं। मैंने पहले सुझाव दिया है कि उदाहरण के तौर पर भारतीय मुस्लिमों के प्रतिनिधि दुनिया के दूसरे हिस्सों में शिया और सुन्नी के बीच विवादों में मध्यस्थता करने पर विचार करें। एक बौद्ध के रूप में ज्यादा मैं नहीं कर सकता था, पर साथी मुसलमानों के रूप में हो सकता है आप मदद कर सकें।
"इन दिनों मैं अक्सर यह कहता हूँ कि 'मुस्लिम आतंकवादी' कहकर लेबल का इस्तेमाल करना गलत है। एक बार जब कोई आतंकवाद के कृत्यों पर चलने लगे तो उनका सही मुसलमानों जैसा बर्ताव नहीं रह जाता। मुझे बताया गया है कि कुरान के अनुयायियों को अल्लाह के सभी बंदों की इज़्जत करनी चाहिए और जो खून बहाता है वह सच्चा मुसलमान नहीं रह जाता। और तो और जो फारूक अब्दुल्ला ने मुझे समझाया उसे मैं दोहराता हूँ कि जिहाद सही मायने में अपनी नकारात्मक भावनाओं के साथ आंतरिक संघर्ष के बारे में है। इस तरह के कारणों से मैंने वाशिंगटन डीसी में ११ सितंबर के आयोजन की यादगार समारोह में स्पष्ट किया कि कुछ लोगों की शरारत के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय की आलोचना करना गलत था।"
परम पावन ने बताया कि हाल ही में उनकी ज़ांस्कर यात्रा के दौरान जहाँ जाहिरी तौर पर बौद्ध और मुस्लिम समुदायों के बीच टकराव था, उन्होंने दोनों को सलाह दी कि चूँकि उन्हें एक साथ रहना है, इसलिए उन्हें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए और एक-दूसरे की दुकानों का बहिष्कार नही करना चाहिए।
उन्होंने आगे बताया कि वे बहुत प्रभावित हुए जब श्रीनगर में उन्होंने मुसलमानों से मुलाकात की, जो तिब्बत में रहते थे, जिनके बच्चों ने अपने माता-पिता की अत्यंत मीठी ल्हासा बोली सीखी थी। उन्होंने सिक्योंग को उनमें से कुछ को केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन में नियोजित करने के लिए सलाह दी है।
अंत में लद्दाखी में धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत करते हुए, शिया समुदाय के प्रमुख की परम पावन की लंबी उम्र की दुआ की इच्छा का सर्वसम्मत तालियों की गड़गड़ाहट से हुआ। इसके बाद शिवाछेल फोडंग लौटने से पहले परम पावन ने अपने मेजबानों के साथ एक स्वादिष्ट दोपहर का आनंद लिया।