फ्रैंकफर्ट, जर्मनी, आज जहरहृंदरथेल में "पाश्चात्य विज्ञान और बौद्ध परिप्रेक्ष्य" पर एक संगोष्ठी में, संचालक गर्ट स्कॉबेल ने घोषणा की, कि प्रारंभ में जर्मन भौतिक विज्ञानी और दार्शनिक कार्ल फ्रेडरिक वॉन वीज़्सकर को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी जिनका दस वर्ष पूर्व निधन हो गया था। उनके पुत्र अर्नस्ट उलरिक वॉन वीज़्सकर, एक जीवविज्ञानी और थिंक टैंक रोम क्लब के सह-अध्यक्ष, इस अवसर पर उपस्थित थे।
अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में, परम पावन दलाई लामा ने कहा कि यह उनके लिए सम्मान की बात थी कि वे अपने शिक्षक, वॉन वीज़्सकर के बेटे और उनके पुराने मित्र वुल्फ सिंगर के साथ बैठे थे - पुराने मित्रों का एक सुखी पुनर्मिलन। उन्होंने उल्लेख किया कि वे क्वांटम भौतिकी के संबंध में डेविड बोम और कार्ल फ्रेडरिक वॉन वीज़स्कर को अपना शिक्षक मानते थे, परन्तु उन्होंने कई अन्य विषयों पर भी चर्चा की थी।
अर्नस्ट उलरिक वॉन वीज़स्कर ने सुझाया कि उनके पिता को इस बात पर गर्व की अनुभूति हो रही होगी कि उनकी स्मृति को इस तरह से सम्मानित किया जा रहा है। उन्होंने रोम के क्लब में नई प्रबुद्धता की आवश्यकता के बारे में चर्चा की, जो अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों को संतुलित करता है, साथ ही बाजार तथा राज्य की मांग को संतुलित करता है।
'पाश्चात्य विज्ञान पर अद्यतन' प्रस्तुत करते हुए वुल्फ सिंगर ने सुझाव दिया कि मनुष्य परोपकारी और क्रूर दोनों हो सकते हैं। चूँकि हमारे पास भाषा है, हम सम्प्रेषण की क्षमता रखते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हम अपने जीवन और ग्रह के लिए पूर्णरूपेण उत्तरदायी हैं।
गर्ट स्कॉबेल ने 'पाश्चात्य समाज के लिए नैतिक योगदान का अवलोकन' प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बुद्ध को एक ऐतिहासिक संदर्भ में रखा। उन्होंने पहले और तीसरे व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य में भेदों के साथ पूर्व और पश्चिम के दृष्टिकोणों की तुलना की। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष के अर्थ व नैतिकता के स्थान की भी चर्चा की।
'न्यूरोसाइंस और जागरूकता' का विस्तार करते हुए ब्रिट्टा होल्जेल ने तनाव में कमी, हृदय रोग की कमी, दर्द प्रबंधन, साथ ही साथ करुणा में सुधार और सामान्य कल्याण को लेकर हाल ही में जागरूकता की रुचि का उल्लेख किया। उन्होंने ध्यान विनियमन, भावनात्मक विनियमन, सुधरी आत्म-जागरूकता और स्व विनियमन में इसकी भूमिका को भी संदर्भित किया।
गेशे लोबसंग तेनज़िन नेगी ने 'संज्ञानात्मक आधारित करुणा प्रशिक्षण और एसईईड (सोशल एथिकल इमोशनल डेवलपमेंट)' पर केंद्रित करते हुए विश्व में हुई भौतिक प्रगति को स्वीकार किया, पर इसी के साथ लोगों द्वारा अनुभूत सुख की ओर भी ध्यानाकर्षित किया। उन्होंने 'विश्व सुख की रिपोर्ट' का संदर्भ दिया तथा एमरी विश्वविद्यालय में अपने कार्य का उल्लेख किया, जहाँ उनके ढांचे की संरचना गोलेमैन और सेज की पुस्तक 'ट्रिपल फ़ोकस' पर आधारित है तथा विषय सामग्री परम पावन की 'एथिक्स फॉर ए न्यू मिलेनियम' तथा 'बियोंड रिलिजियन' से ली गई है। उन्होंने उन शिक्षण कार्यक्रमों का वर्णन किया, जिन्हें सामाजिक, भावनात्मक, नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने और शिक्षकों की कार्यशालाओं की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए बनाया जा रहा है।
"मैं आपके द्वारा किए गए कार्य पर आपकी विद्वत्ता पूर्ण प्रस्तुतियों की सराहना करता हूँ," परम पावन ने टिप्पणी की। "मुझे स्मरण हो रहा है कि सब कुछ अन्य कारकों के कारण है और किसी की भी स्वतंत्र सत्ता नहीं है।"
"चैतसिक स्तर पर आधुनिक शिक्षा अपर्याप्त है। हमें इसे अन्य स्रोतों से पूर्ण करने की आवश्यकता है। साधारणतया आम लोग वैज्ञानिक और निष्कर्षों के द्वारा जो कुछ निकलता है, उसे स्वीकार करने के लिए अधिक तैयार होते हैं। मेरा मानना है कि हमारे नैतिक शिक्षा इन पर, साथ ही आम अनुभव और सामान्य ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए। साधारणतया, हम यह कह सकते हैं कि नैतिक कर्म सुख को जन्म देते हैं, जबकि अनैतिक कार्यों से पीड़ा बढ़ती है। अतः हमें सौहार्दता को लेकर शिक्षा को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है कि यह बेहतर व्यक्तिगत स्वास्थ्य और कल्याण का, साथ ही अधिक व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक सुख का एक कारण है।"
तत्पश्चात परम पावन ने वुल्फ सिंगर के साथ संवाद प्रारंभ किया, जो २०वीं शताब्दी के पूर्व के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर था कि चित्त, मस्तिष्क का एक उत्पाद मात्र है। शताब्दी के अंत में ऐसा लगने लगा कि कुछ चैतसिक गतिविधियाँ मस्तिष्क को प्रभावित कर सकती है। सिंगर ने उत्तर दिया कि प्रचलित दृष्टिकोण यह है कि चित्त मस्तिष्क का उभरता गुण है, पर संभव है कि कुछ पारस्परिक कार्यों का न्यून आकलन किया गया हो।
परम पावन उनसे यह भी जानना चाहते थे कि क्या गर्भधारण के समय मस्तिष्क का अस्तित्व होता है और सिंगर ने उन्हें बताया कि उस समय उसके पास केवल अस्तित्व की क्षमता होती है। परम पावन ने आगे पूछा कि क्या, एक सूक्ष्म स्तर पर, हम कह सकते हैं कि वे कण जो मस्तिष्क का निर्माण करते हैं और कण जो चट्टानों और पौधों को बनाते हैं, वे समान होते हैं। सिंगर ने स्वीकार किया कि वे दोनों समान होते हैं, पर यह विभिन्न रूप से आयोजित किया जाता है।
एक प्रश्न को दोहराते हुए, जो उन्होंने दूसरों से पूछा है, परम पावन जानना चाहते थे कि जब एक आदर्श शुक्राणु एक परिष्कृत स्थिति के गर्भ और स्रीबीज से मिलता है तो क्या १००% निश्चित है कि गर्भ धारण होगा। एक नकारात्मक उत्तर मिलने पर वे जानना चाहते थे कि कौन सा तीसरा शामिल हो सकता है। सिंगर ने उन्हें बताया कि शुक्राणु एक जीवित सत्व है, पर मान लिया कि इसमें कोई चेतना नहीं होती।
श्रोताओं में से एक ने पूछा कि क्या बातचीत मस्तिष्क पर अधिक केंद्रित नहीं है और हृदय पर कम है। परम पावन ने टिप्पणी की कि हृदय मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित है। उन्होंने आलंकारिक रूप से पूछा कि परोपकारिता और प्रेम को क्या नियंत्रित करता है जिसे हम साधारणतया हृदय से जोड़ते हैं और सिंगर ने उत्तर दिया, "मस्तिष्क।"
जो भी हो परम पावन ने कहा कि मनुष्य जिन कई समस्याओं का सामना करता है वह दूसरों के हितों के प्रति चिंता की कमी का परिणाम है, जिसे तकनीकी समाधान से निपटाया नहीं जा सकता, अपितु यह केवल 'हृदय परिवर्तन' द्वारा हो सकता है।
भोजनोपरांत परम पावन गाड़ी से नूतन स्थापित तिब्बत हाउस गए, जहाँ उन्हें संस्थापक डगयब रिनपोछे और स्थानीय महापौर उवे बेकर द्वारा ने उनका स्वागत किया। उन्होंने औपचारिक रूप से फीता काटा, दीप प्रज्जवलित किया और संस्था के उद्घाटन का संकेत देने हेतु प्राण प्रतिष्ठा के छंदों का पाठ किया।
मेयर बेकर ने परम पावन का स्वागत किया और मीडिया के एकत्रित हुए सदस्यों से उनका परिचय कराया।
परम पावन ने उन्हें बताया, "तकनीकी विकास के कारण विश्व छोटा हो रहा है। अतः विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में जानना महत्वपूर्ण है। मेरा मानना है कि तिब्बत में रुचि रखने वाले जर्मन द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ल्हासा आए थे।"
"युद्धोपरांत विनाश के राख से एक नूतन राष्ट्र उभरा पर उसके बाद भी मैं अपने जर्मन मित्रों के बीच जो कुछ हुआ उसको लेकर उनमें असंतोष की कमी देखकर हैरान होता हूँ।"
"१९७३ में प्रथम बार यूरोप आने के बाद से मैंने कई बार फ्रैंकफर्ट की यात्रा की है और अन्य गंतव्यों की ओर जाते हुए कई बार हवाई अड्डे से गुज़रा हूँ। मैं यहाँ एक जर्मन तिब्बत हाउस की स्थापना देख खुश हूँ। हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में, हम तिब्बतियों ने नालंदा परम्परा को अपने तर्कों तथा चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की समझ के साथ जीवित रखा है। यह मेरी आशा है कि यह एक शिक्षण का केंद्र बने जहाँ लोग इन बातों का अध्ययन एक अकादमिक रूप से कर सकें।"
शरणार्थी संकट के बारे में उनके विचार के बारे में पूछे जाने पर, जिससे यूरोप अभी भी जूझ रहा है, परम पावन ने मदद करने के लिए जर्मन प्रयासों की सराहना की। परन्तु उन्होंने विभिन्न शरणार्थियों की तुलना तिब्बतियों से की, जिन्होंने अंततः घर लौटने की अपनी आधारभूत आशा नहीं त्यागी है। इस संदर्भ में, उन्होंने कहा कि युवाओं के लिए शरण और शिक्षा की सुविधा प्रदान करना अच्छा है। यद्यपि उनके लिए दीर्घकालिक लक्ष्य एक बार शांति बहाल हो जाने के बाद घर लौट जाना होना चाहिए।
परम पावन ने एक और प्रश्नकर्ता के साथ सहमति व्यक्त की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तिब्बत जैसी जगहों पर मानव अधिकारों के उल्लंघन को लेकर चिंता आर्थिक विचारों के संदर्भ में दूसरा स्थान ग्रहण करती है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि उनका चीनी लोगों के साथ सीधे तौर पर कोई विवाद नहीं है, यद्यपि वे कट्टर पंथी सरकार की नीति का विरोध करते हैं।
बौद्ध संगठनों में यौन दुर्व्यवहार का मामला सामने आया और परम पावन ने स्वीकार किया कि वह सोज्ञल रिनपोछे को जानते हैं, जो हाल की शिकायतों का लक्ष्य रहे हैं और स्वीकार किया कि उनके छात्रों ने खुल कर बात की है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक शिक्षक का सम्मान महत्वपूर्ण है, परन्तु 'पथ क्रम' को उद्धृत किया जो विनय को उद्धृत करता है: "यदि शिक्षक का स्पष्टीकरण समग्र अभ्यास के साथ मेल खाता है तो ध्यान दें और इसका पालन करें। यदि यह हानिकारक है तो इसका पालन न करें। अगर शिक्षक कुछ ऐसी सलाह देता है जो धर्म के विरुद्ध है तो इसका विरोध करें।"
मीडिया के सदस्यों की ओर इशारा करते हुए, परम पावन ने उन्हें मानव मूल्यों और अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने उनसे कहा कि उन पर न केवल सनसनीखेज नकारात्मक कहानियाँ बल्कि कुछ सकारात्मक घटनाओं को रिपोर्ट करने का भी उत्तरदायित्व है, जैसे कि यह खोज कि आधारभूत मानवीय प्रकृति करुणाशील है, जिसकी ओर हम अन्यथा ध्यान भी नहीं देते। उन्होंने उन्हें लोगों को यह बताने के लिए स्मरण कराया कि मानवता नष्ट नहीं हुई है, और यदि इस समय उचित प्रयास किए जाएँ तो एक अधिक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण विश्व प्राप्त किया जा सकता है।
कल, परम पावन फ्रैंकफर्ट से दक्षिणी इटली में सिसिली के लिए रवाना होंगे।